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प्लेटो की जीवनी | PLETO KI JIVNI


 

जीवन तथा कार्य

(LIFE AND WORK)


 प्लेटो का जन्म एथेन्स में 427 ई० पू० में हुआ। कुछ लोगों के अनुसार उसके जन्म का समय 420 ई० पू० था। प्लेटो एक अमीर एवं प्रसिद्ध घराने में पैदा हुआ था। माता की ओर से वह सोलन के वंश मे से था और पिता की ओर से काड्स का खून उसकी नसों में बहता था।

 काड्स एथेन्स का सबसे अन्तिम राजा था और सोलन एथेन्स का प्रसिद्ध व्यवस्थापक था जिसने एथेन्स को प्रसिद्ध कानून भेंट किया था।

 इन प्रसिद्ध पूर्वजों के कारण प्लेटो के परिवार को ऐश्वर्य एवं सामाजिक सम्मान दोनों ही प्राप्त थे। प्लेटो का पालन-पोषण अमीरों की भाँति  हुआ   उसका स्वभाव भी सम्पत्तिशालियों की तरह था। अमीर तबियत का होते हुए भी प्लेटो ने तत्कालीन उच्च शिक्षा प्राप्त की। अपने पिता अरिस्टन से उसने कुश्ती लड़ना सीखा। उसका स्वास्थ्य बहुत अच्छा था और देखने में वह सुन्दर था। व्यायाम में दक्ष होने के कारण उसने कई इनाम जीते थे। उसने एथेन्स की सेना में भी काम किया। प्लेटो को उस समय की सबसे बढ़िया शिक्षा मिली। उसका अध्यापक हिरैक्लिटस का समर्थक था और सम्भव है, उसने प्लेटो को हिरैक्लिटस के सिद्धान्तों का ज्ञान दिया हो। 


प्लेटो की प्रकृति और उसके प्रारम्भिक रहन-सहन से कोई भी व्यक्ति यह अनुमान लगा सकता है कि राजनीति उसके लिए स्वाभाविक व्यवसाय होता। राजघराने के व्यक्ति से ही सामान्यतः आशा की जाती है, किन्तु एथेन्स की तत्कालीन परिस्थिति ने उसे राजनीति की ओर जाने से रोका। प्लेटो के यौवनकाल में ऐथेन्स का सूर्य अस्तांचल की ओर था। स्पार्टा में उन्नति हो रही थी और मैसेडोनिया विकास के पथ पर था। पैलोपोनियन युद्ध में एथेन्स की बची हुई शक्ति भी समाप्त हो गई। फलतः एथेन्स में प्रजातन्त्र के स्थान पर पुनः कुलीनतन्त्र स्थापित हुआ।



 30 निर्दयी शासकों के हाथों में शासन-सूत्र आ गया। उनमें से दो तो प्लेटो के रिश्तेदार ही थे और दोनों ही सुकरात के शिष्य रह चुके थे; किन्तु उन दोनों ने सुकरात के साथ जिस निर्दयता का व्यवहार किया, उसने प्लेटो के मन में राजनीति से वैराग्य उत्पन्न कर दिया। एथेन्स में बाद में फिर प्रजातन्त्र आया, किन्तु इस बार एथेन्स सुकरात की हत्या के पाप का भागी हो गया। इन सब स्थितियों के कारण प्लेटो राजनीति से विरक्त हो गया। 

20 वर्ष की अवस्था में प्लेटो महात्मा सुकरात के सम्पर्क में आया और उससे इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपने व्यक्तित्व को सूकरात के व्यक्तित्व में विलीन कर दिया तथा दर्शन को अपना प्रिय विषय बना लिया। लगभग 8 वर्ष तक प्लेटो सुकरात का शिष्य बना रहा। 399 ई० पू० में सुकरात को विष दिया गया | उस समय प्लेटो की अवस्था28 वर्ष की थी। इसके बाद से प्लेटो के जीवन का दूसरा भाग प्रारम्भ होता है। अपने परम प्रिय गुरु की निर्मम हत्या से प्लेटो की आत्मा विद्रोह कर उठी। जिस एथेन्स ने उसके गुरु की कीमत नही पहचानी, उसमें रहना प्लेटोने निरर्थक समझा। एथेन्स के वातावरण को अपने लिए प्रतिकूल पाकर प्लेटो अपने नगर से स्वतः निर्वासित हो गया। प्लेटो 10 वर्ष तक अपने देश से बाहर रहा और अन्य स्थानों के अतिरिक्त उसने मेगारा, मिश्र तथा इटली में काफी समय बिताया। कुछ लोग तो कहते है कि वह भारतवर्ष में भी आया। मेगारा में उसका मित्र एवं सहपाठी यूक्लिड रहता था। यूक्लिड सुप्रसिद्ध गणित ज्ञ  था। प्लेटो की विदेश-यात्रा का प्रथम लक्ष्य मेगारा ही बना और यहाँ पर उसने यूक्लिड के सहयोग से प्रसिद्ध दार्शनिक पार्मेनाइडिस के सिद्धान्त का अध्ययन किया। मिश्र में प्लेटो ने सभ्यता के विकास को अपनी आँखों से देखा और वहाँ की सभ्यता पर आश्चर्यचकित हो गया। वहाँ पर उसे पता चला कि मिश्र की तुलना में एथेन्स कितना हीन है। इटली में उसने पाइथागोरस के मत का अध्ययन किया। सिसली भजाकर उसने शासन-व्यवस्था का अध्ययन किया। इस प्रकार 10 वर्ष तक विदेश भ्रमण करने के पश्चात वह एथेन्स वापस आया और उसने अपनी विश्व-प्रसिद्ध पाठशाला 'अकेडिमी स्थापित की। राजनीतिक जीवन से अलग रहकर उसने अब शिक्षा देना प्रारम्भ किया। प्लेटो के जीवन का यह तीसरा भाग था। यह काम वह जीवन के अन्त तक, लगभग 40 वर्ष तक करता रहा है। 

प्लेटो द्वारा स्थापित अकेडिमी प्लेटो की मृत्यु के बाद भी बहुत दिन तक चलती रही। बाद में सन् 539 ईसवी में रोम के राजा के एक फरमान द्वारा अकेडिमी को बन्द कर दिया गया। 

प्लेटो ने दर्शन की शिक्षा की प्रेरणा सुकरात से प्राप्त की थी; किन्तु दोनों के रहन-सहन में बड़ा अन्तर था। सुकरात गरीब घराने में पैदा हुआ था और गरीबी में ही उसकी मृत्यु हुई। वह फटे-पुराने कपड़े पहनकर ही गुजर करता था। यदि कोई व्यक्ति उसे कोट या जूता पहनते हुए देखता तो वह आश्चर्यचकित होकर सुकरात से इसका कारण पूछता। मृत्यु के समय सुकरात पर कर्ज था और उसने अपने शिष्य क्राइटो से अन्तिम समय में कहा था कि उसे एस्क्युलेपियस को एक मुर्गा देना है। सुकरात एथेन्स का दरिद्र नागरिक था; किन्तु प्लेटो की स्थिति इससे भिन्न थी। प्लेटो उच्च कुल का था और उसने गरीबी में अपना जीवन नहीं व्यतीत किया। रहन-सहन का यह अन्तर दोनों की शिक्षण-प्रणाली में भी प्रकट हुआ। एक मण्डी में अथवा चौराहे पर शिक्षा देता था; दूसरा, अकेडिमी में; अर्थात् एक, सार्वजनिक स्थान पर तो दूसरा, निश्चित पाठशाला में।


प्लेटो की जीवनी | PLETO KI JIVNI 





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