विकास की अवस्थाएँ
Stages of Development
यद्यपि विकास की अवस्था अथवा सोपान अथवा स्तर जैसे शब्द का प्रयोग तकनीकी दृष्टि से भ्रामक है। फिर भी, प्रायः यह स्वीकार किया जाता है कि विकास की सम्पूर्ण प्रक्रिया को कुछ अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है। विकास की अवस्था शब्द युग्म से संकेत मिलता है कि एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाने पर विकास प्रक्रिया में कुछ निश्चित परिवर्तन आ जाते हैं । वास्तव में विकास एक सतत् प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त चलती है। परंतु व्यावहारिक कारणों को दृष्टिगत रखते हुए यह मान लिया जाता है कि विकास की प्रक्रिया में बालक विकास की कुछ अवस्थाओं अथवा सोपानों से होकर गुजरता है।
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विकास के विभिन्न सोपानों अथवा अवस्थाओं को बताया है।
सामान्य रूप से मानव विकास को निम्नांकित अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है
1. गर्भावस्था (Prenatal)
2. शैशवावस्था (Infancy)
3. बाल्यावस्था (Childhood)
4. किशोरावस्था (Adolesence)
5. प्रौढावस्था (Adulthood)
माता व पिता के मिलन के फलस्वरूप माता के द्वारा गर्भ धारण करने से लेकर शिशु के जन्म तक का समय गर्भावस्था कहलाती है। शिशु के जन्म के उपरान्त के प्रथम पाँच वर्ष का काल शैशवास्था या शैशवकाल कहलाता है। पाँच वर्ष की आयु से लेकर बारह वर्ष की आयु तक ही अवधि बाल्यावस्था या बाल्यकाल कहलाती है। बारह वर्ष की आयु से लेकर अट्ठारह वर्ष की आयु तक की अवस्था किशोरावस्था कहलाती है। अट्ठारह वर्ष की आयु के उपरान्त का काल प्रौढकाल या प्रौढ़ावस्था कहलाती है।
शैक्षिक दृष्टि से इनमें से मध्य की तीन अवस्थाओं अर्थात् शैशवावस्था, बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था का अत्यधिक महत्त्व है।
विकास के पक्ष
(Aspects of Development)
विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले विकास के उपरोक्त वर्णित विवेचन से स्पष्ट है कि विकास की प्रत्येक अवस्था में बालक के व्यवहार में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं । बालक के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर विकास को अग्रांकित पक्षों में विभक्त किया जा सकता है |
1. शारीरिक विकास (Physical Development)
2. मानसिक विकास (Mental Development)
3. सामाजिक विकास (Social Development)
4. संवेगात्मक विकास (Emotional Development)
5. नैतिक विकास (Moral Development)
शैक्षिक दष्टि से विकास के इन सभी पक्षों का अत्यधिक महत्व है। विकास की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में इस विभिन्न पक्षों का विकास किस प्रकार से होता है तथा विकास की गति को किसे प्रकार से वांछित दिशा में तीव्र गति से बढ़ाया जा सकता है, इसका अध्ययन करना शैक्षिक मनोवैज्ञानिक के लिए आवश्यक प्रतीत होता है। शैशवावस्था, बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक मानसिक सामाजिक, संवेगात्मक तथा नैतिक विकास की विस्तृत चर्चा अध्याय आठ, नौ, दस, ग्यारह तथा बारह में की गई है।
सम्बन्धित प्रश्न -
VIKAS KI AVSTHAYE NOTES
विकास की अवस्थाएँ नोट्स
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