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शैशवावस्था की विशेषताएँ | Shishu Avstha Ki Vishestaye | Developmental Characteristics of Infancy

 

शैशवावस्था की  विशेषताएँ 

Shishu Avstha Ki Vishestaye

(Developmental Characteristics of Infancy)


शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक तथा नैतिक विकास की दृष्टि से शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं - 


1. शारीरिक विकास में तीव्रता 

(Rapidity in Physical Development) 


2.  मानसिक क्षमताओं में तीव्रता 
(Rapidity in Mental Pottentialities)


3. सीखने में तीव्रता 
(Rapidity in Learning) 


4. दोहराने की प्रवृत्ति 
(Tendency of Repetition) 


 5. जिज्ञासा प्रवृत्ति 
(Curiosity Tendency) 


6. परनिर्भरता 
(Dependence on Others) 

7. स्वप्रेम की भावना 
(Feeling of Self Love)


8. संवेगों का प्रदर्शन 
(Emotional Expression) 


9. सामाजिक भावना का विकास 
(Development of Social Feelings)


10. मूल प्रवृत्तियों पर आधारित व्यवहार 
(Instinctive Behaviour)


11. काम प्रवृत्ति 
(Sex Instinct)




 1. शारीरिक विकास में तीव्रता 

(Rapidity in Physical Development) 

शैशवास्था में विशेषकर प्रथम वर्षों में शारीरिक विकास अत्यंत तीव्र गति से होता है। लम्बाई तथा भार में तीव्र वृद्धि होती है। शरीर के अन्य अंगों व मांसपेशियों का भी क्रमिक विकास होता है। 



2.  मानसिक क्षमताओं में तीव्रता 
(Rapidity in Mental Pottentialities)
 
शैशवावस्था में शिशु की मानसिक क्षमताओं जैसे ध्यान, स्मरण, कल्पना, संवेदना, प्रत्यक्षीकरण आदि के विकास में तीव्रता रहती हैं। यह माना जाता है कि व्यक्ति का जितना भी कुल मानसिक विकास होता है उसका आधा भाग तीन वर्ष की आयु तक हो जाता है। 


3. सीखने में तीव्रता 
(Rapidity in Learning) 

शिशु के  सीखने की गति अत्यंत तीव्र होती है। शैशवावस्था के प्रथम छ: वर्षों में वह लगभग उतना सीख लेता है जितना वह बाल्यावस्था व किशोरावस्था के बारह वर्षो  में सीखता है। 


4. दोहराने की प्रवृत्ति 
(Tendency of Repetition) 

शैशवावस्था में शिशु में शब्दों, वाक्यों अथवा क्रियाओं को दोहराने की प्रवृत्ति विशेष रूप से पाई जाती है। दोहराने में शिशु आनन्द का अनुभव करता है।


 5. जिज्ञासा प्रवृत्ति 
(Curiosity Tendency) 

शिशु में जिज्ञासा की प्रवृत्ति अधिक होती है। छोटा शिशु खिलौनों तथा अन्य वस्तुओं को फेंककर, उसके भागों को अलग-अलग करके या अन्य किसी ढंग से अपनी जिज्ञासा को शान्त करता है । बड़ा शिशु अपने से अधिक आयु के बालकों व व्यक्तियों से विभिन  वस्तुओं तथा बातों के सम्बंध में तरह-तरह के क्या, क्यों तथा कैसे से युत्ता प्रश्न पूछता है।


 6. परनिर्भरता 
(Dependence on Others) 

जन्म के उपरान्त कुछ समय तक शिशु बिल्कुल असहाय स्थिति में रहता है । वह भोजन व अन्य शारीरिक आवश्यकताओं के साथ-साथ प्रेम, सहानुभूति तथा सुरक्षा के लिए अन्य व्यक्तियों पर आश्रित होता है । वह विशेष रूप से अपनी माता पर निर्भर रहता है।



 7. स्वप्रेम की भावना 
(Feeling of Self Love)
 
शैशवावस्था में शिशु के अंदर स्वप्रेम की भावना, जिसे नार्सीसिज्म (Narcissim) कहते हैं, अत्यंत प्रबल होती है। वह सभी का प्रेम पाना चाहता है। वह चाहता है कि केवल उसे ही माता, पिता, भाई, बहन आदि का प्रेम मिले। वह अपने अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों से प्रेम किए जाने पर उनसे ईर्ष्या करने लगता है। उसमें अधिकार की तीव्र भावना रहती है । वह प्रत्येक वस्तु पर अपना अधिकार चाहता है। वह अपने खिलौने व वस्तुएं अन्यों को नहीं देना चाहता है तथा सब कुछ अपने पास रख चकता है। स्वप्रेम की भावना को नार्सीसिज्म के नाम से फ्रायड ने एक यूनानी पौराणि कथा के आधार पर सम्बोधित किया था। उस कथा में नार्सीसिट (Narcessat) नाम व्यक्ति को अपने ही शरीर से अत्यधिक प्रेम करता हुआ बताया गया था।

 
8. संवेगों का प्रदर्शन 
(Emotional Expression) 

जन्म के समय शिशु में उत्तेजना के अतिरिक्त अन्य कोई संवेग नहीं होता। परंत दो वर्ष की आयु होने तक उसमें भय क्रोध, प्रेम तथा पीडा नामक चार मुख्य संग विकसित हो जाते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक शिशु के रोने, चिल्लाने, हाथ-पैर फेंकने की क्रियाओं को संवेगपूर्ण क्रिया मानते हए कहते हैं कि शिशु जन्म से ही संवेगात्मक व्यवहार प्रदर्शित करता है।


 9. सामाजिक भावना का विकास 
(Development of Social Feelings)
 
शैशवावस्था के प्रारम्भिक वर्षों में शिशु में सामाजिक भावना का अभाव रहता है । छोटा शिशु अकेले ही खेलना चाहता है। परंतु शैशवावस्था के अन्तिम वर्षों में शिशु में सामाजिक भावना का विकास होने लगता है । वह अन्य शिशुओं में रुचि लेने लगता है तथा उनके साथ खेलना पसन्द करता है। चार-पाँच वर्ष का बालक अपने छोटे भाई-बहनों या साथियों का बचाव (Defend) करने का प्रयास करता है। वह अन्य बच्चों के साथ खेलना पसंद करता है, अपनी वस्तुओं में अन्यों को साझीदार बनाता है, अन्य बच्चों के अधिकारों का ध्यान रखता है तथा अन्य बच्चों की परेशानी, कष्ट या दुख में उनको सांत्वना देने का प्रयास करता है।


10. मूल प्रवृत्तियों पर आधारित व्यवहार 
(Instinctive Behaviour)

शैशवावस्था में व्यवहार का आधार प्रायः शिशु की मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं। शिशु भूख लगने पर रोने लगता है तथा सामने आने वाली किसी भी वस्तु को मुँह में रख लेता है। क्रोध आने पर शिशु रोकर अथवा हाथ-पैर फेंककर अथवा अपने पास की वस्तओं को फेक कर अपना क्रोध व्यक्त करता है।


11. काम प्रवृत्ति 
(Sex Instinct)

फ्रायड तथा अन्य मनोविश्लेषण वादियों के अनुसार शैशवावस्था में काम प्रवृत्ति अत्यंत प्रबल होती है, परंतु शिशु उसकी अभिव्यक्ति व्यस्कों के समान नहीं कर पाता है। माता का स्तनपान करना, हाथ-पैर के अंगूठे को चूसना आदि शिशुओं की काम प्रवृत्ति के सूचक होते हैं । लड़कों में अपनी माँ के प्रति प्रेम तथा लड़कियों में पिता के प्रति प्रेम भाव का उदय होता है। फ्रायड ने लड़कों के मातृ प्रेम भाव को ओडीपस भावना ग्रन्थि (Oedipus Complex) नाम से तथा लड़कियों के पितृ प्रेम भाव को इलेक्ट्रा भावना ग्रन्थि (Electra Complex) नाम से सम्बोधित किया। इन दोनों नामों का आधार भी यूनानी पौराणिक कहानियाँ थी। 

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