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सुनने और बोलने को प्रभावित करने वाले कारक | sunane aur bolane ko prabhaavit karane vaale kaarak

सुनने और बोलने को प्रभावित करने वाले कारक  

TOPIC सुनने और बोलने को प्रभावित करने वाले कारक
COURSE BIHAR D.El.Ed 1st YEAR 
UNITPAPER F-8 UNIT-3
CODE F - 8
SUBJECT हिंदी का शिक्षण शास्त्र -1 
   
 

 प्रश्न 11. सुनने और बोलने को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें ।


उत्तर -  

सुनने को प्रभावित करनेवाले कारक


प्रत्येक व्यक्ति का श्रवण कौशल भिन्न -भिन्न होता है। निम्नलिखित कारकों से सुनने का कौशल प्रभावित होता है -

क. भाषिक ध्वनियों का ज्ञान ना होना सुनना की सुनने की क्रिया को प्रभावित करता है |

ख. शब्दावली पर अधिकार न होना सुनाए गए विषयों के समझने में बाधक होता है।

ग. क्रम को समझने की योग्यता ना होने से घटना, कहानी सुनने में विषय से संबंध बनाने और सुनकर समझने में सहायता नहीं मिलती है।

घ. स्मरण योग्यता न होने से क्रम को समझने में कठिनाई होती है।

ड़. उपयुक्त वातावरण सुनने की क्षमता को बढ़ाता है और अनुपयुक्त वातावरण बाधक बनता है।

च. अरुची और उदासीनता श्रवण में बाधा उत्पन्न करते हैं।

छ. अस्वस्थता के कारण सुनने के प्रति अनिच्छा, शिथिलता होती है।

ज. श्रोता एवं वक्ता के बीच तालमेल, विश्वास ना होने पर सुनने की क्रिया सार्थक नहीं होती है।

झ. श्रोता के अनुभव के दायरे में विषय को कहने / समझने की संभावना सुनने को सहज बनाती है।

ञ. वक्ता के मनोभावों, उद्देश्य, प्रयोजन, को समझ पाना 'सुनने' को समझने की शर्त है ।

ट. सुनने को संभव बनाने के लिए श्रोता को 'परिचित' विषय से 'अपरिचित' विषय की ओर जाना, समझाना श्रवण कौशल को प्रभावित करता है।

ठ. श्रोता के व्यक्तित्व में धैर्य, ग्रहणशीलता का गुण ना होना सुनने की क्रिया को प्रभावित करता है।

ड. श्रवण इंद्रियों में दोष सुनने की क्रिया में बाधक होता है

ढ. शिक्षक के अशुद्ध उच्चारण का शिक्षार्थी पर गलत प्रभाव पड़ता है। अतः उसका उच्चारण शुद्ध और मानक होना चाहिए ताकि शिक्षार्थी को प्रेरणा मिले।



 
  बोलने को प्रभावित करनेवाले कारक




बोलने के कौशल का विकास सुनने के द्वारा ही होता है। सुनने के कौशल में कमी या बाधा रह जाने पर बोलने के कौशल का विकास भी प्रभावित होता है। बोलने की क्षमता को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन निम्नलिखित हैं।

क. शुद्ध उच्चारण करने में सुनना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसके माध्यम से बच्चों में शुद्ध उच्चारण करने के कौशल का विकास होता है। सुनने के माध्यम से ही बच्चा बोलने में आने वाली उच्चारण संबंधी अशुद्धियों को दूर करने में सफल हो पाता है, जिसके परिणामस्वरूप उसके भाषा संबंधी कौशल में निखार आता है।

ख. मस्तिष्क की बनावट भी भाषा विकास को प्रभावित करते हैं। भाषा बोलने तथा समझने के लिए स्नायु तन्त्र, तथा वाक-यन्त्र की आवश्यकता होती है। बहुत हद तक इनकी बनावट तथा कार्य शैली तथा स्नायु नियन्त्रण भाषा को प्रभावित करते हैं।

ग. भाषा सम्बन्धी बोलने के कौशल विकास पर व्यक्ति जिस स्थान और परिस्थिति में रहता है, आचरण करता है, विचारों का आदान-प्रदान करता है उससे बोलने का विकास होता हैं। उदाहरण स्वरूप निम्न श्रेणी के परिवार व समाज के लोगों में भाषा का विकास कम होता है क्योंकि उन्हें दूसरों के सम्पर्क में आने का अवसर कम मिलता है, इसी प्रकार परिवार में कम व्यक्तियों के होने पर भी भाषा संकुचित हो जाती है।

घ. ऐसे बहुत से व्यवसाय हैं जिनमें भाषा का प्रयोग अत्यधिक होता है। उदाहरणस्वरूप अध्यापन, वकालत, व्यापार कुछ ऐसे व्यवसाय है जिनमें बोले बिना कोई कार्य नहीं चल सकता। अतएव वातावरण के अन्तर्गत इनको भी सम्मिलित किया गया है।

ड़. ध्वनि की मात्राओं के ज्ञान में कमी, सही उच्चारण बोध में अपूर्णता, दोषपूर्ण श्रवण शक्ति, अशुद्ध वर्तनी लिखकर याद रखना, ध्वनि के अनुसार उतार-चढ़ाव, सुर, बलाघात आदि का प्रयोग ना कर पाना, कुशल और दक्ष मार्गदर्शन में कमी, मौखिक (मुँह के अंगों) में दोष बोलने को प्रभावित करते हैं।

च. बालक द्वारा स्वयं यंत्रों पर नियंत्रण ना रख पाने के कारण भाषा दोष उत्पन्न होता है। जैसे ध्वनि परिवर्तन, अस्पष्ट उच्चारण, तुतलाना, हकलाना, तीव्रता स्पष्ट वाणी आदि ।


 
 

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