STET SOCIAL SCIENCE NOTES IN HINDI
कृषि और खेतिहर समाज
EXAM NAME | BIHAR STET 2026 |
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BOARD | BIHAR SCHOOL EXAMINATION BORD ,PATNA |
SUBJECT | SOCIAL SCIENCE |
पाठ | 07 ( नये सिलेबस के अनुसार 7 वे नम्बर पर है ) |
पाठ का नाम | आदिवासी समाज और उपनिवेशवाद ( नये सिलेबस के अनुसार 7 वे नम्बर पर है) |
संछिप्त जानकारी | अगर आप बिहार STET 2023 का तैयारी कर रहे है और आपका विषय सोशल साइंस ( STET SOCIAL SCIENCE ) है तो आप सही जगह है | इस पेज मेंकृषि और खेतिहर समाज के सभी वस्तुनिष्ट प्रश्न दिया गया है | आप यहा से STET 2023 की तैयारी कर सकते है | कोई समस्या होतो नीचे कमेंट कर सकते है|अगर आप STET के तैयारी के लिए अन्य लोगो से जुड़ना चाहते है तो नीचे लिंक पर क्लिक करे | |
आवश्यक सूचना-2 | बिहार STET पेपर -1 में 150 प्रश्न पूछे जाते है जिसमे 100 प्रश्न आपके विषय (सोसल साइंस , साइंस , कॉमर्स , भाषा )से एवं 50 प्रश्न शिक्षण अभिरुचि से पूछे जाते है | इस पेज में सोसल साइंस (सामाजिक विज्ञान ) में सिर्फ कृषि और खेतिहर समाज के सिर्फ वही प्रश्न को समिल किया गया है जो STET 2023 के परीक्षा में पूछे जा सकते है | ये पूर्णतया STET NEW SYLLABUS पे आधारीत है | इस पाठ से 1 एक या दो अवश्य प्रश्न में पूछे जा सकते है| |
आवश्यक सूचना -3 |
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BIHAR STET SOCIAL SCIENCE SYLLABUS PDF
STET SOCIAL SCIENCE
कृषि और खेतिहर समाज
# कृषि -- भूमि को जोतने, फसलें, उगाने, पशुओं को पालने, मछली पकड़ने तथा वानिकी की कला और विज्ञान ।
# गहन खेती -- वह कृषि जिसमें अधिक उत्पादन प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रति इकाई भूमि पर पूँजी और श्रम का अधिक मात्रा में विनियोग किया जाता है।
# मिश्रित खेती -- जब एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलें एक साथ बोई जाये।
# फसल चक्र -- भूमि के किसी टुकड़े, मुख्यतः भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए विभिन्न फसलों का क्रमबद्ध अपवर्तन करने की प्रक्रिया ।
# रोपन या बागानी खेती -- बड़े पैमाने पर की जानेवाली एक फसली कृषि, जिसमें कारखानों के समान उत्पादन और पूँजी निवेश होता तथा कृषि से कच्चे माल के संसाधन में और तैयार माल के विपणन में आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रयोग होता है।
# चकबन्दी -- बिखरी हुई कृषि जोतों अथवा खेतों को एक साथ मिलाकर आर्थिक रूप से उन्हें लाभकारी रूप देना ।
# हरित क्रांति-- अपने देश की कृषि में आधुनिक विकास के मुख्यतः नये बीज, खादों और रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग तथा सुनिश्चित जलपूर्ति की व्यवस्था और उपकरणों के प्रयोग के परिणामस्वरूप कुछ अनाजों की विशेष रूप से गेहूँ की, पैदावार में बहुत वृद्धि ।
# पादप -- संकरण-उन्नत प्रकार के बीजों के किस्मों का विकास किया गया।
# भदई फसलें-भदई फसलें मई-जून में बोयी जाती है और अगस्त-सितम्बर में काटली जाती है । जैसे—मक्का, ज्वार, बाजरा, जूट, उड़द, सनई, मडुआ इत्यादि ।
# अगहनी फसलें -- इनकी बुआई जुलाई-अगस्त में होती है और नवम्बर-दिसम्बर में काट ली जाती है । जैसे—धान, कुलथी, तिल, आलू, तेलहन, सब्जी, मकई, कपास, गन्ना, पटसन इत्यादि ।
# रबी फसलें -- इनकी बुआई अक्टूबर-नवम्बर में होती है तथा ये फसलें मार्च-अप्रैल तक तैयार होती है । जैसे-गेहूँ, जौ, चना, मटर, सरसों, मंसूर आदि ।
# गरमा फसलें -- इसकी बुआई मार्च-अप्रैल में होती है और कटाई जून के महीने में होती है।जैसे-धान, मकई, मूंग, चना, आम, केला इत्यादि ।
# खाद्य फसलें -- वैसे फसलें जिन्हें हम खाद्यान्न के रूप में प्रयोग करते हैं । जैसे—धान, गेहूँ, मक्का, चना आदि ।
# व्यावसायिक फसलें -- वैसे फसलें जिन्हें बेचकर किसान आमदनी प्राप्त करते हैं । जैसे गन्ना, पटसन, कपास, तम्बाकु, आलू, तेलहन, दलहन आदि ।
# 1800 ई. पू. -- लोथल के लोग चावल उपजाते थे ।
# 1960 ई. के दशक -- भारत में हरित क्रांति का आगमन ।
कृषि और खेतिहर समाज# दो लैटिन शब्दों 'एग्रोस' और 'कल्चर' से एग्रीकल्चर बना है। इसका अर्थ है भूमि की जुताई।
# कृषि कार्यों की शुरुआत सिंधु घाटी में हुई। लोथलवासी 1800 ई. पू. चावल पैदाकर खाते थे।
# मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और कालीबंगा में अनाज के बड़े-बड़े कोठार थे। संभवतः किसानों से राजस्व के रूप में अनाज लिया जाता था।
# मेसोपोटामिया में मजदूरीस्वरूप 'जौ' दिया जाता था।
# सर्वप्रथम कपास पैदा करने का श्रेय सिंधुघाटी सभ्यता के निवासियों को है।
# सिंधु शब्द से प्रेरित होकर यूनानी लोग 'कपास' को सिंडन (Sindon) कहते थे।
# बनवाली में उत्तम किस्म का 'जौ' मिला है।
# भारत में दो तिहाई जनसंख्या कृषि पर निर्भर है।
# विश्व में कुल कृषि योग्य 11 प्रतिशत भूमि है, जबकि भारत में 51 प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है।
# कृषि भारत में कुल राष्ट्रीय आय का 35 प्रतिशत योगदान करती है।
# कृषि प्रधान राज्य बिहार में 80 प्रतिशत आबादी खेतीबाड़ी पर निर्भर है। यहाँ 70 प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है जिसमें 60 प्रतिशत शुद्ध बोए गए क्षेत्र माने जाते हैं।
# मानसूनी वर्षा पर कृषि की निर्भरता को "मानसून के साथ जुआ" कहा जाता है।
# बिहार में गहन कृषि के अंतर्गत चार फसलें बोयी और काटी जाती हैं।
# भदई फसलें मई-जून में बोयी और अगस्त-सितंबर में काटी जाती है। मक्का, ज्वार, बाजरा, जूट, उड़द, सनई, मडुआ आदि प्रमुख भदई फसलें हैं।
# अगहनी फसलें जुलाई-अगस्त में बोयी और नवम्बर-दिसंबर में तैयार होती हैं। धान, कुलथी, तिल, आलू, तिलहन, सब्जी मकई, कपास, गन्ना, पटसन आदि मुख्य अगहनी फसलें हैं।
# रबी वसंत ऋतु की फसलें हैं जिनकी बुआई अक्टूबर नवंबर में होती है और मार्च-अप्रैल तक फसलें पककर तैयार होती हैं।
# गेहूँ सर्वप्रमुख रबी फसल है। गेहूँ के अलावा जौ, चना, मटर, सरसों, मसूर, खेसारी, अरहर इत्यादि प्रमुख रबी फसलें हैं।
# गीष्मकालीन 'गरमा फसलें' नियमित सिंचाई की व्यवस्था वाले क्षेत्रों में होती है। इनकी बुआई मार्च-अप्रैल में तथा कटाई जून में होती हैं। गीष्मकालीन धान, मकई, मूँग, चना आम केला तरबूज, ककरी, सब्जियाँ एवं प्याज प्रमुख गरमा फसलें हैं।
# प्रमुख खाद्य फसलें (Food Crops) हैं- धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार-बाजरा, चना, जौ, दलहन, तेलहन आदि ।
# व्यावसायिक या नकदी फसलें (Commerical or Cash Crops) हैं- गन्ना, पटसन, कपास, तंबाकू, आलू, तेलहन तथा दलहन, लाल मिर्च मसालें इत्यादि ।
# पेय फसल (Beverage Crops) चाय है, जिसकी बिहार के किशनगंज में खेती की जाने लगी हैं।
# रेशेदार फसलें (Fibrous Crops) हैं कपास, जूट, रेशम इत्यादि ।
# प्रमुख फसलें हैं- केला, लीची, आम, अमरूद आदि । प्रमुख मसालें हैं- लालमिर्च, लहसुन, हल्दी, धनिया, मेंथी इत्यादि ।
# बिहार की सर्वप्रमुख फसल है चावल या धान (Rice or Paddy)। यह उष्णार्द्र जलवायु की फसल हैं।
# इसके लिए आवश्यक तापमान 20° C से 30°C के बीच होना चाहिए। दोमट (केवाल या चीका) मिट्टी में धान की खेती होती है।
# 1999-2000 के आँकड़ों के अनुसार, धान के लिए सर्वाधिक भूमि रोहतास जिला में है।
# बिहार की दूसरी प्रमुख फसल है गेहूँ। यह शीतोष्ण कटिबंधीय जलवायु की फसल है।
# गेहूँ बीते समय 10 C-15°C के बीच तथा पकते समय 20 °C - 30°C तक तापमान होना चाहिए। इसके लिए वर्षा 50-75 सेमी तक तथा मिट्टी हल्की दोमट रहनी चाहिए। रोहतास, पूर्वी चम्पारण तथा सीवान में गेहूँ की खेती होती है। मकई या मक्का (Maize) बिहार के
# खाद्यानों में चावल तथा गेहूँ के बाद तीसरे स्थान पर है। यह गर्म एवं आर्द जलवायु में होता है।
# इसके लिए आवश्यक तापमान 25 °C - 30°C तक, वर्षा 50-100 सेमी तथा नाइट्रोजन युक्त गहरी दोमट मिट्टी होनी चाहिए।
# मकई की खेती सारण, सीवान, गोपालगंज, वैशाली सहरसा, मधेपुरा आदि जिलों में होती है।
# सभ्यता की शुरुआत में अधिक घने जंगल वाले स्थानों पर लोग झूम की खेती करते थे।
# पहाड़ी क्षेत्रों में आदिवासी लोग आज भी झूम की खेती करते हैं, क्योंकि वे धरती को माँ मानकर उन पर हल नहीं चलाते।
# 1960 के दशक में हरित क्रांति के बाद बिहार में खाद्यान उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई।
# कृषि के यंत्रीकरण, उच्च बीजों के विकास और वैज्ञानिक पद्धति की खेती ने प्रति हेक्टेयर गहन कृषि में वृद्धि हुई है। गहन कृषि का अर्थ हैं एक ही खेत में अधिक फसलें लगाना।
# खेती की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए दो खाद्यान फसलों के बीच एक दलहनी कुल के पौधे को लगाया जाता है जिसे 'फसल चक्र' कहते हैं।
# एक ही खेत में समान समय में न्यूनतम दो या दो से अधिक फसलें बोना मिश्रित खेती है।
# 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा प्रारंभ रोपण या बागानी खेती विशेष प्रकार की झाड़ी कृषि या वृक्ष कृषि है। यह एकल फसल कृषि है।
# रोपण या बागानी खेत में रबर, चाय, कहवा, कोको, मसाले, नारियल और फसलें जैसे- सेब, संतरा, अंगूर आदि उगाई जाती
# कई रोपण कृषि क्षेत्रों जैसे- चाय, कहवा और रबर की बागानों या उनके निकट संसाधित करने की फैक्ट्री लगाई जाती है।
# इस प्रकार की कृषि उत्तर-पूर्वी भारत के पर्वतीय क्षेत्रों, पश्चिम बंगाल के उप हिमालयीय क्षेत्रों तथा प्रायद्वीपीय भारत की नीलगिरी, अन्नामलाई व इलायची की पहाड़ियों में की जाती है।
# बिहार के हाजीपुर और नवगछिया में केले की प्रचुर मात्रा में खेती होती है।
# मुजफ्फरपुर में 'शाही लीची' की खेती होती है।
# गन्ने की खेती पूर्णिया, सरहसा, पश्चिम चंपारण आदि जिलों में खूब होती है। इससे चीनी, गुड़ आदि प्राप्त होते हैं। stet social science notes in hindi