Type Here to Get Search Results !

भाषा शिक्षण के साधन | Bhasha Shikshan Ke Sadhn | language teaching tools

भाषा शिक्षण के साधन

Bhasha Shikshan Ke Sadhn

  • (1) श्यामपट -
  • (2) वास्तविक पदार्थ–
  • (3) चित्र-
  • (4) चार्ट-
  • (5) पोस्टर-
  • (6) प्रतिमूर्ति -
  • (7) रेखाचित्र -
  • (8) मानचित्र -
  • (9) चित्र-प्रदर्शक यन्त्र -
  • (10) खादी बोर्ड -
  • (11) लिंग्वाफोन तथा ग्रामोफोन-
  • (12) रेडियो -
  • (13) टेपरिकार्डर -
  • (14) अभिनय -
  • (15) चलचित्र -
  • (16) टेलीविजन -


कुछ समय श्रव्य-दृश्य उपकरणों का भाषा - शिक्षण में प्रयोग किया जा सकता है। जिन उपकरणों का प्रयोग भाषा - शिक्षण में सम्भव है, उनका नीचे उल्लेख किया जा रहा है-

(1) श्यामपट -

प्राचीन पट्टी या पट्टिका का यह आधुनिक रूप है। प्रत्येक कक्षा के लिए यह अनिवार्य उपकरण है। भाषा शिक्षण का कक्ष श्यामपट से यदि रहित है तो उसे शिक्षण-कक्ष कहा ही नहीं में जा सकता। इसे अध्यापक का मित्र या ज्योतिषी कहा जाता है। इसे गुजरात व महाराष्ट्र में कृष्ण फलक कहते हैं। श्यामपट का रंग श्याम, पीत, हरित या नीला हो सकता है, किन्तु बहु- प्रचलित रंग काला ही है। इस पर सफेद चॉक से लिखने पर अक्षर स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। इसका आकार न बहुत बड़ा न बहुत छोटा होना चाहिए।

श्याम्पट सर्वसुलभ उपकरण है और भाषा - शिक्षक को इसका प्रयोग करना ही है। गद्य-पाठ को पढ़ाते समय कठिन शब्द व उनके अर्थ, कविता - शिक्षण के समय तुलनात्मक कविता या अध्यापक कथन, व्याकरण-शिक्षण के समय उदाहरणार्थ वाक्य और परिभाषा, निबन्ध - शिक्षण के समय रूपरेखा तथा कहानी-शिक्षण के समय सारांश को श्यामपट पर लिखकर शिक्षक अध्यापन को मूल्यवान, व्यवस्थित एवं आकर्षक बना देता है। श्यामपट पर चित्र, रेखाचित्र, मानचित्र आदि को खींचकर शिक्षक को रोचक बना सकता है। भाषा-शिक्षक का श्यामपट लेख अच्छा होना चाहिए।

(2) वास्तविक पदार्थ–

वास्तविक पदार्थ भी सहायक दृश्य उपकरण है। इसके सम्पर्क में छात्र को लाया जा सकता है। कुछ पदार्थ सरलता से कक्षा में अध्यापक ले जा सकता है। स्थूल वस्तुओं के साक्षात् सम्पर्क में आकर बालक पाठ को अच्छी तरह समझता है और सूक्ष्म चिन्तन की ओर अग्रसर होता है। मान लीजिए, कक्षा में फलों के नाम या फूलों के विषय में कुछ जानकारी देनी है। इन वस्तुओं को मूल रूप से कक्षा में ले जा सकते हैं, किन्तु यहाँ इस बात का ध्यान रहे कि पदार्थ ऐसे न हों कि कक्षा में बालकों के लिए तमाशा हो जायें ओर वे पढ़ना-लिखना छोड़कर इन्हें ही देखने लगें ।

(3) चित्र-

पाठ को आकर्षक व रोचक बनाने के लिए अध्यापक चित्र का प्रयोग कर सकता है। रेखाओं और रंगों का वह संयोग जो अपनी मूक भाषा में किसी तथ्य, भाव योजना की अभिव्यक्ति करे, चित्र कहलाता है। यह आँखों को सौन्दर्य प्रदान करता है। चित्र में वस्तुओं का चित्रण रहता है। कला का प्रदर्शन, मनोरंजन, भावाभिव्यक्ति, सौन्दर्याभिव्यक्ति, मूल, वर्णन सूचना, ज्ञान, शिक्षा, धार्मिक भावना, अध्यात्मवाद, मत प्रचार आदि इसके अनेक उद्देश्य हैं। साधारण तस्वीरों और शैक्षिक चित्रों में अन्तर होता है। शैक्षिक चित्र केवल मनोरंजन, कौतूहल, आनन्द या सौन्दर्य के लिए न होकर अनुभव, भाव, तथ्य, ज्ञान एवं शिक्षा प्रदान करने के लिए होते हैं।

पाठ्य-पुस्तकों में भी चित्र होते हैं, किन्तु वे चित्र छोटे होते हैं। शिक्षण के लिए बाहर से बड़े चित्र ले जाने पड़ते हैं। ये सस्ते एवं सुलभ होने चाहिए। महापुरुषों के चित्र, स्थान के चित्र या युद्ध-वर्णन अथवा सभा-सम्मेलनों के चित्र भाषा-शिक्षण में सरलता से प्रयुक्त हो सकते हैं। एक पीरियड में अनेक चित्रों की अपेक्षा एक या दो चित्र ही प्रयुक्त करने चाहिए। प्रत्येक चित्र सोद्देश्य हों और उन पर आवश्यक प्रश्न किये जाने चाहिए। चित्र को ऐसी जगह टाँगना चाहिए, जहाँ से वह सभी बालकों को सरलता से दिखाई पड़े। चित्र स्पष्ट होना चाहिए। इनमें कलात्मकता, स्पष्टता, प्रभाविता, शुद्धता, विश्वसनीयता, सत्यता एवं पूर्णता होनी चाहिए। इसे मनोरंजक, उत्तेजक एवं व्यावहारिक होना चाहिए। इसका आकार इतना बड़ा हो कि पूरी कक्षा देख सके।

(4) चार्ट-

चार्ट भी एक दृश्य साधन है जिसमें तथ्यों और चित्रों का समन्वय होता है। इसमें तार्किक रीति से क्रमबद्धता होती है। यह विचारों अथवा तथ्यों के पारस्परिक मूल की वह सुन्दर व्यवस्था है, जिसमें तार्किक संगठन और क्रमिक विकास की योजना एक बोधगम्य स्वरूप लिए होती है। अच्छे चार्ट में लेख सुन्दर, सरल, आकर्षक और प्रभावशाली होता है। इससे अक्षरों की बनावट का अच्छा ज्ञान हो सकता है। हिन्दी साहित्य का इतिहास पढ़ाते समय चार्ट, धारा चार्ट, तालिका चार्ट, वृक्ष चार्ट और संगठन चार्ट का प्रयोग किया जा सकता है। कवियों व लेखकों को पढ़ाते समय चित्रयुक्त चार्ट का प्रयोग हो सकता है। निबन्ध या व्याकरण को पढ़ाने के बाद कभी-कभी श्यामपट सारांश चार्ट के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

(5) पोस्टर-

पोस्टर एक प्रकार से विज्ञापन चित्र है। यह वह दृश्य है जो अचानक ही दृष्टि को आकर्षित कर लेता है और द्रष्टा का ध्यान अपनी ओर बरबस खींच लेता है। शीघ्र सन्देश सुना देता है और कार्य की दिशा निश्चित कर देता है। हिन्दी पढ़ाने में प्रस्तावना के समय पूर्व ज्ञान पर आधारित विषय सामग्री की ओर शीघ्रता से ध्यान आकृष्ट करने के लिए पोस्टर का प्रयोग किया जा सकता है। इसका प्रयोग हिन्दी-कक्ष को सजाने में भी किया जा सकता है, किन्तु कक्षा-शिक्षण में इसका अधिक प्रयोग नहीं हो सकता ।

(6) प्रतिमूर्ति -

किसी भी वस्तु का वह प्रतिनिध्यात्मक रूप जिसमें लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई, गोलाई आदि में से कम-से-कम तीन बातें हों, उसे प्रतिमूर्ति या मॉडल कहते हैं। मिट्टी, कुट्टी, कागज की लुगदी, चूना, कागज, कार्ड-बोर्ड, लकड़ी, लोहा, टीन, तार, कील, कपड़ा, ऊन, घास- पत्तियाँ, बाँस, सुतली, धागा, प्लास्टिक, हड्डी, चमड़ा, दाँत, सरकण्डा, रुई, बुरादा, रेत, खड़िया, कोयला आदि वस्तुओं के संयुक्त प्रयोग से मॉडल तैयार किया जाता है।

प्रतिमूर्ति किसी बड़ी वस्तु का छोटा नमूना हो सकता है। मॉडल के प्रयोग में मितव्ययिता, दर्शनीयता, विभाजनशीलता, स्पष्टता एवं आकर्षण का ध्यान रखा जाता है। जिन वस्तुओं को कक्षा में लाना सरल नहीं होता, उनके विषय में यदि पाठ पढ़ाना है तो प्रतिमूर्ति का प्रयोग हो सकता है। ताजमहल, अशोक की लाट जैसे विषयों पर साहित्यिक पाठ पढ़ाना है या निबन्ध लिखाना है तो इनकी प्रतिमूर्ति का प्रयोग किया जा सकता है। पशु-पक्षियों के विषय में पाठ को पढ़ाते समय भी प्रतिमूर्ति का प्रयोग हो सकता है, किन्तु भाषा - शिक्षण में यह अल्प प्रयुक्त साधन है।

(7) रेखाचित्र -

वस्तु, प्रतिमूर्ति या किसी अन्य साधन के अभाव में अध्यापक कभी-कभी रेखाचित्र का सहारा लेता है। रेखाचित्र अध्यापक द्वारा कुछ रेखाओं के माध्यम से भाव की मूक अभिव्यक्ति है। श्यामपट पर चॉक के सहारे अध्यापक के रेखाचित्र खींचकर पाठ को रोचक बना देता है। विभिन्न रेखाओं, कोणों, घुमावों आदि को श्यामपट पर पढ़ाते समय बनाना स्वाभाविक भी है और सरल भी है । मुण्डलाकार, उच्चासन आदि शब्दों का स्पष्टीकरण रेखाचित्र द्वारा किया जा सकता है।

(8) मानचित्र -

मानचित्र का सर्वाधिक प्रयोग इतिहास-भूगोल की कक्षाओं में होता है, किन्तु भाषा के पाठों में कुछ ऐतिहासिक या भौगोलिक तथ्यों व प्रसंगों को स्पष्ट करने के लिए मानचित्र का प्रयोग किया जा सकता है। नालन्दा, ओदन्तपुरी, विक्रमशिला, हिमगिरि, गोदावरी, केरल, नागालैण्ड जैसे पाठों को मानचित्र की सहायता से पढ़ाना सरल हो सकता है।

(9) चित्र-प्रदर्शक यन्त्र -

कुछ कलाकार अध्यापक एवं स्लाइड बना लेते हैं और अपनी इच्छानुसार इन्हें प्रदर्शित करते हैं। पहले मैजिक लैण्टर्न का भी प्रयोग होता था । मैजिक लैण्टर्न सबसे पुराना चित्र-प्रदर्शक यन्त्र है। इसके बाद पाठ्य-पुस्तक का चित्र, पृष्ठ, मानचित्र आदि को बड़े आकार में रजतपट पर प्रदर्शित करने के लिए एपिस्कोप आया। बाद में मैजिक लैण्टर्न और एपिस्कोप दोनों का काम देने वाला एपिडायस्कोप आया । इन यन्त्रों द्वारा प्रदर्शित स्लाइडें अचल होती हैं और इनमें ध्वनि नहीं रहती। भाषा-शिक्षण में प्राकृतिक दृश्यों, यात्रा - वर्णनों, उत्सवों, त्यौहारों आदि के पाठ पढ़ाने में चित्र-प्रदर्शक यन्त्रों का प्रयोग हो सकता है, किन्तु ये साधन भाषा एवं साहित्य की शिक्षा में अत्यन्त प्रयुक्त साधन हैं।

(10) खादी बोर्ड -

एक बड़े तख्ते पर फलालेन या खादी कपड़ा या ऊनी कपड़ा तानकर चिपका दिया जाता है और इस बोर्ड को फलालेन बोर्ड या खादी बोर्ड कहते हैं। इसमें चॉक से कुछ लिखा नहीं जाता वरन् कुछ चित्रों या चिह्नों की कटिंग चिपकाई जाती है । पाठ से सम्बन्धित चित्रों को विभिन्न पोस्टरों, पुस्तकों, पत्रिकाओं या समाचार-पत्रों से काट लिया जाता है और उनके पीछे रेगमाल कागज लगा दिया जाता है। अब इन चित्रों को खादी बोर्ड पर चिपकाने पर ये चिपक जाते हैं और आवश्यकतानुसार निकाले जा सकते हैं। इन चित्रों या आकृतियों के पीछे अपनी जानकारी के लिए क्रम संख्या लिख दी जाती है जिससे कहानी का विकास करने में चित्रों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जा सके। प्रारम्भिक स्तर पर वर्णमाला सिखाने में, संयुक्ताक्षरों का ज्ञान कराने एवं माध्यमिक स्तर पर निबन्ध या कहानी का विकास करने में खादी बोर्ड का विकास किया जा सकता है।

(11) लिंग्वाफोन तथा ग्रामोफोन-

श्रव्य उपकरणों में ग्रामोफोन का अपना महत्त्व है। ये उपकरण रिकार्डों की सहायता से बालकों का मनोरंजन करते हैं और शिक्षा भी देते हैं। मसाले के बने गोल तवे पर रेखाओं के रूप में ध्वनि भर ली जाती है और जब लिंग्वाफोन की सहायता से पाठ सुना दिये जाते हैं। ग्रामोफोन की सहायता से कविता, एकांकी संवाद आदि की शिक्षा रोचक ढंग से दी जा सकती है। कविता का वाचन, वार्तालाप, संवाद एवं भाषण की शैलियों का ज्ञान इसके द्वारा सरलता से हो सकता है। ग्रामोफोन के रिकार्ड स्थायी होते हैं। अब बने-बनाये रिकार्ड बाजार से प्राप्त हो सकते हैं। सस्वर वाचन, शब्द-उच्चारण, आदर्श वाचन आदि का अभ्यास इनके द्वारा सरलता से किया जा सकता है।

(12) रेडियो -

रेडियो का प्रयोग अब भारतीय परिवार में भी बढ़ता जा रहा है। शिक्षालयों में यह साधन यदि सुलभ है तो इसके कार्यक्रमों की पहले से जानकारी प्राप्त करके भाषा - शिक्षण में इसका उपयोग किया जा सकता है। भारत के प्रत्येक विद्यालय में सभी विद्वान या भाषाविद् नहीं जा सकते। भाषा-विशेषज्ञ आकाशवाणी द्वारा अपने वक्तव्य प्रसारित करते रहते हैं । इन वार्ताओं को सुनकर छात्र अपना साहित्यिक ज्ञान बढ़ा सकते हैं। ग्रामीण विद्यालयों में अभी भी यह साधन सुलभ नहीं है। रेडियो कार्यक्रमों को और अधिक शैक्षिक बनाने की आवश्यकता है।

(13) टेपरिकार्डर -

यह ऐसा यन्त्र है जो बिजली या बैटरी की सहायता से टेप पर पहले से संग्रहीत ध्वनि को प्रसारित करता है । ग्रामोफोन के रिकार्ड स्थायी होते हैं, किन्तु टेपरिकार्डर के टेप स्थायी होते हैं। ये तार या फीते वाले रिकार्ड होते हैं और इन्हें जब चाहें तब समाप्त कर इन पर दूसरे रिकार्ड भर लें। वक्तव्य, भाषण, कविता, गीत, वार्तालाप आदि को टेप करके प्रसिद्ध विद्वानों के स्वर हम बार-बार सुन सकते हैं। यह रेडियो से कहीं अधिक प्रभावी एवं महत्त्वपूर्ण साधन है क्योंकि इसमें समय का बन्धन नहीं होता । भाषा-शिक्षण में टेपरिकार्डर का प्रयोग महत्त्वपूर्ण है। शुद्ध उच्चारण के अभ्यास में इससे बढ़कर दूसरा साधन है ही नहीं। बालक अपने उच्चारण को इसकी सहायता से स्वयं सुनकर अशुद्धि को दूर कर सकता है। पाठ को दुहराने या स्मरण कराने में इसकी सहायता ली जा सकती है। भारत जैसे गरीब देश में इसका प्रचलन नहीं के बराबर है, किन्तु भाषा - शिक्षण में इसकी उपादेयता को देखते हुए इसके प्रयोग का प्रयास करना चाहिए और इसकी व्यवस्था का भार सरकार को ग्रहण करना चाहिए । सुन्दर वार्तालापों को कण्ठस्थ करने/कराने में टेपरिकार्डर उपयोगी सिद्ध होता है। कुछ छात्र सिनेमा के प्रिय संवादों का टेप भी सुरक्षित रखते हैं। प्रसिद्ध विद्वानों के भाषण के टेप भी विद्यालयों में सुरक्षित रखे जा सकते हैं। इनसे छात्र को सुन्दर भाषा का व्यवहार करने की प्रेरणा मिलती है।

(14) अभिनय -

विद्यालय में विशेष रूप से कभी - कभी नाटकों का आयोजन होता है। वार्षिकोत्सव, सम्मेलन या किसी विशेष दिन के आयोजन में आगुन्तकों के मनोरंजनार्थ नाटक अभिनीत किये जाते हैं। हिन्दी-शिक्षण की दृष्टि से अभिनय महत्वपूर्ण है। अभिनय को देखकर एवं पात्रों के मुख से स्पष्ट एवं उचित आरोहावरोह युक्त वाणी को सुनकर छात्र भाषा का उचित प्रयोग सीखते हैं। अभिनय श्रव्य-दृश्य साधन है जिसे देखा और सुना जाता है। अभिनय के माध्यम से बालक को स्वाभाविक गति से बोलने की आदत पड़ जाती है। वह शब्दों एवं वाक्यों को सजीव ढंग से बोलना सीख जाता है।

(15) चलचित्र -

चलचित्र आज मनोरंजन का सर्वप्रथम साधन बन गया है। पश्चिमी देशों में पाठ्य-वस्तु को स्पष्ट करने के लिए चलचित्रों का खूब प्रयोग होने लगा है। साहित्य में वर्णित विभिन्न प्रकार के काल्पनिक दृश्यों को वर्णन द्वारा स्पष्ट किया जाता है, किन्तु इन दृश्यों को फिल्मों में फोटोग्राफी की कला द्वारा सरलता से प्रदर्शित किया जा सकता है। नवीन खोजों के परिणामस्वरूप आज फोटोग्राफी की कला में बहुत विकास हो गया है और सूक्ष्म अंगों का दिखाया जाना सम्भव हो गया है| आज सिनेमा के प्रति लोगों की अच्छी धारणा नहीं है, क्योंकि भारत में प्रचलित फिल्में बड़ी घटिया किस्म की हैं, किन्तु इनमें सुधार किया जा सकता है और महान् पुरुषों के जीवन से चुनकर अच्छे साधन प्रस्तुत किये जा सकते हैं। भारत में शैक्षिक चलचित्र बहुत कम बनते हैं। दूसरी बात यह भी है कि यह साधन व्यवसाध्य है। कभी-कभी इस साधन का सुलभ होना कठिन है। विद्यालय में प्रोजेक्टर की व्यवस्था नहीं होती और कोई अच्छा अँधेरा कमरा या हॉल नहीं होता । अतः यह भाषा - शिक्षण में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता ।

(16) टेलीविजन -

रेडियो का अत्यन्त विकसित रूप टेलीविजन है जिसमें ध्वनि के साथ-साथ चित्र भी आते हैं। टेलीविजन केन्द्र में अध्यापक भाषा की शिक्षा देकर दूर-दूर तक बैठे श्रोता दर्शकों को भाषा सिखा सकता है। यह श्रव्य दृश्य साधन है क्योंकि इसमें हम बोलने वाले को देख भी सकते हैं। कान और आँख दोनों इन्द्रियों के प्रयोग के कारण यह साधन अधिक प्रभावशाली है । रेडियो सेट के साथ एक छोटे आकार का रजतपट लगा रहता है जिसमें सहस्रों किलोमीटर दूरी पर बैठे हुए व्यक्ति को कविता सुनाते हुए, भाषण देते हुए, वार्तालाप करते हुए देखा जा सकता है। रेडियो और चलचित्र, दोनों के लाभ इससे मिल सकते हैं ।

क्रम संख्या एक से दस तक के साधन केवल दृश्य साधन हैं । क्रम संख्या 11, 12 और 13 के साधन केवल श्रव्य साधन हैं और बाद के तीन साधन श्रव्य दृश्य दोनों हैं।
  • भाषा शिक्षण के साधन
  • Bhasha Shikshan Ke Sadhn
  • language teaching tools

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad