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Samajik Vikas | सामाजिक विकास | Social Development

 सामाजिक विकास 
(Social Development) 

सामाजिक विकास 

(Social Development) 

इस पेज में आप निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पढ़ेंगे -

(1) सामाजिक विकास क्या है ?

What is Social Development ?
(2)शैशवावस्था में सामाजिक विकास 
(Social Developement During Infancy)
(3)बाल्यावस्था में सामाजिक विकास 
Social Development in the Childhood
(4)किशोरावस्था में सामाजिक विकास 
Social Development in the Adolescence
(5) सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

Factors Influencing Social Development

(6) सारांश 


(1) सामाजिक विकास क्या है ?

What is Social Development ?

 सामाजिक विकास क्या है ?

What is Social Development ?

जन्म के समय शिशु में सामाजिकता लगभग शून्य होती है। जैसे-जैसे उसका शारीरिक तथा मानसिक विकास होने लगता है, वैसे-वैसे उसका समाजीकरण भी होने लगता है। वह अपने माता-पिता, परिवार के सदस्यों, संगी-साथियों तथा अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है जिसके फलस्वरूप वह सामाजिक परम्पराओं, मान्यताओं, रुढ़ियों आदि के अनुरूप व्यवहार करना सीखता है तथा सामाजिक जगत में अपने को समायोजित करने का प्रयास करता है। समाजीकरण की इस प्रक्रिया से बालक का सामाजिक विकास होता है। सामाजिक विकास से तात्पर्य विकास की उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक वातावरण के साथ अनुकूलन करता है, सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप अपनी आवश्यकताओं व रुचियों पर नियंत्रण करता है, दूसरों के प्रति अपने उत्तरदायित्व का अनुभव करता है तथा अन्य व्यक्तियों के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से सामाजिक संबंध स्थापित करता है। सामाजिक विकास के फलस्वरूप व्यक्ति समाज का एक मान्य, सहयोगी, उपयोगी तथा कुशल नागरिक बन जाता है। समाज में रह कर ही व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तथा जन्मजात प्रवृत्तियों व योग्यताओं का विकास करता है। समाज में रह कर ही वह दूसरों से सम्पर्क करता है, समाज के मूल्यों, विश्वासों तथा आदर्शों में आस्था रखने लगता है तथा समाज की जीवन-शैली को अपनाता है। उसमें सहअस्तित्व की भावना आ जाती है, वह सामाजिक हित में तथा लोककल्याण की भावना से अपने निहित स्वार्थों का त्याग करना सीख जाता है तथा सामाजिक गुणों को विकसित करके समाज में अनुकूलन स्थापित करने का प्रयास करता है। अन्य व्यक्तियों के साथ सम्पर्क करने एवं अनुकूलन स्थापित करने की योग्यता सामाजिक विकास का ही परिणाम होती है जो बालक के समाजीकरण के फलस्वरूप विकसित होती है। 


                 उपरोक्त से स्पष्ट है कि समाजीकरण की प्रक्रिया तथा सामाजिक विकास परस्पर घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं। समाजीकरण की प्रक्रिया बालक के सामाजिक विकास को गति प्रदान करती है। घर, परिवार, पड़ोस, मित्र-मंडली, विद्यालय, समुदाय, जनसंचार साधन तथा राजनीतिक व सामाजिक संस्थायें बालक के समाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। बालक के सामाजिक विकास को शैक्षिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। आधुनिक समय में शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का सामाजिक विकास करना स्वीकार किया जाता है। अतः शिक्षा के द्वारा बालकों के न केवल शारीरिक व मानसिक विकास को प्रोत्साहित किया जाता है वरन् उनके सामाजिक विकास को भी प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाता है। शिक्षा बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। घर में माता-पिता तथा विद्यालय में अध्यापकगण विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों का आयोजन करके बालकों में समाजीकरण की प्रक्रिया को बढ़ाकर उनका सामाजिक विकास कर सकते हैं।


(2) शैशवावस्था में सामाजिक विकास
 
(Social Developement During Infancy)

शैशवावस्था में सामाजिक विकास 

(Social Developement During Infancy)

 यद्यपि जन्म के समय शिशु सामाजिक नहीं होता है, परंतु दूसरे व्यक्तियों के साथ शिशु के प्रथम सम्पर्क से ही उसके समाजीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है जो किसी न किसी रुप में निरन्तर आजीवन चलती रहती है। अन्य व्यक्तियों के निरन्तर सम्पर्क में आते रहने के कारण शिशु की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन होने लगता है जिसके फलस्वरूप उसके समाजीकरण अथवा सामाजिक विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। 


शैशावावस्था के दौरान शिशु का सामाजिक विकास निम्नांकित ढंग से होता है -


 1. प्रथम माह में सामाजिक विकास
(Social Development in the First Month)


2. द्वितीय माह में सामाजिक विकास
Social Development in the Second Month


3. तृतीय माह में सामाजिक विकास
Social Development in the Third month


4. चतुर्थ माह में सामाजिक विकास
Social Development in the Fourth Month


5. पंचम् माह में सामाजिक विकास
Social Development in the Fifth Month


6. षष्ठ माह में सामाजिक विकास
Social Development in the Sixth Month


7. नवम् माह में सामाजिक विकास
Social Development in the Ninth Month


8. प्रथम वर्ष में सामाजिक विकास
Social Development in the First Year


9. द्वितीय वर्ष में सामाजिक विकास
Social Development in the Second Year


10. तृतीय वर्ष में सामाजिक विकास
Social Development in the Third Year


11. चतुर्थ वर्ष में सामाजिक विकास
Social Development in the Fourth Year


12. पंचम वर्ष में सामाजिक विकास
Social Development in the Fifth Year


13. षष्ठ वर्ष में सामाजिक विकास
Social Development in the Sixth Year


शैशावावस्था के दौरान शिशु का सामाजिक विकास निम्नांकित ढंग से होता है -

 

1. प्रथम माह में सामाजिक विकास

(Social Development in the First Month)

प्रथम माह में शिशु किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं करता है। वह तीव्र प्रकाश तथा ध्वनि के प्रति प्रतिक्रिया अवश्य करता है। वह रोने की तथा नेत्रों को घुमाने की प्रतिक्रियायें करता है। 


2. द्वितीय माह में सामाजिक विकास

Social Development in the Second Month

दूसरे सप्ताह में शिशु आवाजों को पहचानने लगता है। जब कोई व्यक्ति शिशु से बात करता है या ताली बजाता है या खिलौना दिखाता है, तो आवाज को सुनकर वह सिर घुमाता है तथा दूसरों को देखकर मुस्कराता है।

 

3. तृतीय माह में सामाजिक विकास
Social Development in the Third month

तीसरे माह में शिशु अपनी माँ तथा परिवार के सदस्यों को पहचानने लगता है। जब कोई व्यक्ति शिशु से बात करता है अथवा उसके साथ बात करता है या ताली बजाता है तो वह रोते-रोते चुप हो जाता है तथा उसकीओर देखने लगता है।

 

4. चतुर्थ माह में सामाजिक विकास

Social Development in the Fourth Month

चौथे माह में शिशु पास आने वाले व्यक्तियों को देखकर हँसता है, मुस्कराता है। जब कोई व्यक्ति उसके साथ खेलता है तो वह हँसता है तथा अकेला रह जाने पर प्रायः रोने लगता है।

 

5. पंचम् माह में सामाजिक विकास

Social Development in the Fifth Month

पाँचवें माह में शिशु प्रेम व क्रोध में अंतर समझने लगता है। दूसरे व्यक्ति के हँसने पर अथवा प्रसन्न होने पर वह भी हँसता है तथा किसी के नाराज होने अथवा डाँटने पर सहम जाता है तथा प्रायः रोने लगता है। 


6. षष्ठ माह में सामाजिक विकास

Social Development in the Sixth Month

छठे माह में शिशु  परिचित-अपरिचित में अंतर करने लगता है। वह अपरिचितों से डरता है। शिशु बड़ों के प्रति प्रायः कुछ आक्रामक (Aggressive) प्रकार का व्यवहार करता है। वह बड़ों के बाल, कपड़े, चश्मा, घड़ी आदि खींचने लगता है।

 

7. नवम् माह में सामाजिक विकास

Social Development in the Ninth Month

नवें माह में शिश दसरों के शब्दों, हावभाव तथा कार्यों का अनुकरण करने का प्रयास करने लगता है। वह छोटे-छोटे शब्दों का अपने नूतन ढंग से उच्चारण करने का प्रयास करता है।

 

8. प्रथम वर्ष में सामाजिक विकास

Social Development in the First Year

एक वर्ष की आयु में शिश घर के सदस्यों से हिल-मिल जाता है। किसी अनुचित काम को करने पर बड़ों के मना करने पर मान जाता है तथा अपरिचितों के प्रति अपना भय तथा नापसन्दगी दर्शाता है। 


9. द्वितीय वर्ष में सामाजिक विकास

Social Development in the Second Year

दो वर्ष की आय में शिश घर के सदस्यों को उनके कार्यों में सहयोग देने लगता है। इस प्रकार की क्रियाओं से वह परिवार का एक सक्रिय सदस्य बनने का प्रयास करने लगता है।

 

10. तृतीय वर्ष में सामाजिक विकास

Social Development in the Third Year

तीन वर्ष की आय में पास-पड़ोस के अन्य शिशु बालकों के साथ खेलने लगता है। खिलौनों के आदान-प्रदान तथा विभिन्न कार्यों में परस्पर सहयोग के द्वारा वह अन्य बालकों से सहयोग करके सामाजिक संबंध बनाता है 


11. चतुर्थ वर्ष में सामाजिक विकास

Social Development in the Fourth Year

चौथे वर्ष के दौरान शिशु प्रायः नर्सरी विद्यालयों में जाने लगता है जहाँ पर वह नए नए व्यक्तियों तथा बालकों के साथ सामाजिक संबंध बनाता है तथा विद्यालय के नए सामाजिक वातावरण में स्वयं को समायोजन करता है।

 

12. पंचम वर्ष में सामाजिक विकास

Social Development in the Fifth Year

पाँचवें वर्ष में शिश में नैतिकता की भावना का विकास होने लगता है। वह जिस समूह का सदस्य होता है उसके द्वारा स्वीकत प्रतिमानों के अनुरूप अपने को बनाने का प्रयास करता है। इस अवस्था में उसके सामाजिक व्यवहार में परिपक्वता आने लगती है।

 

13. षष्ठ वर्ष में सामाजिक विकास

Social Development in the Sixth Year

छठे वर्ष में शिशु प्राथमिक विद्यालय में जाने लगता है जहाँ उसकी औपचारिक शिक्षा का प्रारम्भ हो जाता है। विद्यालय में शिशु नए मित्र बनाता है। तरह-तरह के सामाजिक कार्यों में भाग लेता है तथा नवीन परिस्थितियों से स्वयं का अनुकूलन करता है। 


शैशवावस्था में बालक के द्वारा किए जाने वाले उपरोक्त वर्णित सामाजिक व्यवहारों के अवलोकन से स्पष्ट है कि जन्म के उपरान्त धीरे-धीरे बालक का समाजीकरण होता है। जन्म के समय शिशु सामाजिक प्राणी नहीं होता है परंतु अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आने पर उसके समाजीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। प्रारम्भ में परिवार के सदस्य, फिर इष्ट मित्र व पड़ोसी तथा तदुपरान्त विद्यालय व समाज शिशु के समाजीकरण में सार्थक योगदान करते हैं। 


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(3) बाल्यावस्था में सामाजिक विकास 
Social Development in the Childhood

बाल्यावस्था में सामाजिक विकास
 
Social Development in the Childhood

बाल्यावस्था में समाजीकरण की गति तीव्र हो जाती है। बालक बाह्य समाज के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आता है जिसके फलस्वरूप उसका सामाजिक विकास तीव्र गति से होता है। 


बाल्यावस्था में होने वाले सामाजिक विकास को निम्नांकित ढंग से व्यक्त किया जा सकता हैं

 1. समूह सदस्यता
Group Membership


2. सामाजिक गुण 
Social Qualities


3. यौन विभेद गुण
Sex Linked Qualities


4. बहिर्मखीता
Extroversionity


5. सामाजिक स्वीकृति की चाह
Need of Social Recognition


6. वंचन का प्रभाव
Selection of Friends


7. मित्र चयन
Selection of Friends


बाल्यावस्था में होने वाले सामाजिक विकास को निम्नांकित ढंग से व्यक्त किया जा सकता हैं


1. समूह सदस्यता

Group Membership

बालक-बालिकाएं किसी न किसी टोली या समूह का सदस्य बन जाते हैं। यह टोली अथवा समूह ही उनके खेलों, वस्त्रों की पसंद तथा अन्य उचित-अनुचित बातों का निर्धारण करते हैं। बालक-बालिका टोली के द्वारा निर्धारित अथवा पसंद किये गये कार्य व्यवहारों को अपनाना चाहता है।

 

2. सामाजिक गुण 
Social Qualities

समूह के सदस्य के रूप में बालक-बालिकाओं के अंदर अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है। उत्तरदायित्व, सहयोग, साहस, सहनशीलता, सद्भावना, आत्मनियंत्रण, न्यायप्रियता आदि गुण बालक में धीरे-धीरे उदय होने लगते हैं।

 

3. यौन विभेद गुण

Sex Linked Qualities

इस अवस्था में बालक तथा बालिकाओं की रुचियों में स्पष्ट अंतर दृष्टिगोचर होता है। लड़कों की दौड़ने-भागने वाले खेलकूदों, घर से बाहर घूमने, मारधाड़ करने जैसे कार्यों में अधिक रुचि रहती है जबकि लड़कियाँ नाच-गाना, कढ़ाई-बुनाई तथा घरेलु कार्यों में अधिक रूचि लेती हैं। 


4. बहिर्मखीता

Extroversionity

बाल्यावस्था में बालक-बालिकाएं प्रायः घर से बाहर रहना चाहते हैं, परंत उनका व्यवहार शिष्टतापूर्ण होता है। बालक-बालिकाएं अन्य व्यक्तियों, परिचितों तथा रिश्तेदारों के समक्ष अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। वे अन्य व्यक्तियों को शिक्षित व सुसंस्कृत होने का आभास देते है |


5. सामाजिक स्वीकृति की चाह

Need of Social Recognition

इस अवस्था में बालक-बालिकाएँ में सामाजिक स्वीकृति तथा प्रशंसा पाने की तीव्र इच्छा होती है। बालक-बालिकाएं अन्य व्यक्तियों के समक्ष ऐसे कार्य तथा आचरण करने का प्रयास करते हैं जिन्हें अन्य व्यक्ति पसन्द करें तथा जिनकी अन्य व्यक्ति प्रशंसा करे। छोटे बच्चों का सहयोग करने, परिवारिक कार्यों में सहायता करने, पढ़ने-लिखने तथा निर्देशों/आदेशों का पालन करते हैं। 


6. वंचन का प्रभाव

Selection of Friends

प्यार तथा स्नेह से वंचित बालक-बालिका इस आय में प्रायः उद्दण्ड हो जाते हैं। बाल्यावस्था के दौरान बाल-बालिकाएं अपने माता-पिता, परिवार के बर्ग सदस्यों तथा अन्यों के स्नेह, दुलार तथा संरक्षण पाने के लिए लालायित रहते हैं। अपेक्षित स्नेह व संरक्षण मिलने पर उनमें सकारात्मक सामाजिक गुण विकसित होते हैं जबकि स्नेह व संरक्षण से वंचित बालक-बालिकाओं में नकारात्मकता का भाव व्याप्त हो जाता है।

 

7. मित्र चयन

Selection of Friends

बाल्यावस्था में बालक-बालिकाएं अपने मित्रों का चनाव करते हैं। वे प्रायः कक्षा के सहपाठियों को अथवा पास-पड़ोस में रहने वाले अपने समान आयु वाले बालक-बालिकाओं को अपना घनिष्ठ मित्र बनाते हैं। इस अवस्था में मित्रों के दृष्टिकोण, विचार, आदत आदि का बाल-बालकाएं अनुसरण करते हैं। 



बाल्यावस्था में बालक-बलिकाओं द्वारा किये जाने वाले उपरोक्त वर्णित सामाजिक व्यवहारों से स्पष्ट है कि इस अवस्था में उनके सामाजिक जीवन का क्षेत्र कुछ विस्तृत हो जाता है जिसके फलस्वरूप बालक-बालिकाओं के समाजीकरण के अवसर तथा सम्भावनायें बढ़ जाती है।

 

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(4)किशोरावस्था में सामाजिक विकास 

Social Development in the Adolescence

किशोरावस्था में सामाजिक विकास 
Social Development in the Adolescence

किशोरावस्था में किशोर एवं किशोरियों का सामाजिक परिवेश अत्यंत विस्तृत हो जाता है। शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक परिवर्तनों के साथ-साथ उनके सामाजिक व्यवहार में भी परिवर्तन आना स्वाभाविक है। किशोरावस्था में होने वाले अनुभवों तथा बदलते सामाजिक संबंधों के फलस्वरूप किशोर-किशोरियाँ नए ढंग से सामाजिक वातावरण में समायोजित करने का प्रयास करते हैं। 


किशोरावस्था में सामाजिक विकास का स्वरूप निम्नांकित होता है - 


1. समूहों का निर्माण 

(Formation of Groups) 
2. मैत्री भावना का विकास 
(Development of Friendship)
(3) समूह के प्रति भक्ति 
(Devotion to the Group)
4. सामाजिक गुणों का विकास 
(Development of Social Qualities)
5. सामाजिक परिपक्वता की भावना का विकास 
(Development of the Feelings of Social Maturity)
6. विद्रोह की भावना 
(Feeling of Revolt)
7. व्यवसाय चयन में रुचि 
(Interest in Selection of Vacation)
8. बहिमुखी प्रवृत्ति 
(Extrovert Tendency)
9.राजनैतिक दलों का प्रभाव
 (Influence of Political Parties) -


किशोरावस्था में सामाजिक विकास का स्वरूप निम्नांकित होता है - 


1. समूहों का निर्माण
Formation of Groups

किशोरावस्था में किशोर एवं किशोरियाँ अपने-अपने समूहों का निर्माण कर लेते हैं। परंतु यह समूह बाल्यावस्था के समूहों की तरह अस्थायी नहीं होते हैं। इन समूहों का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन करना होता है। पर्यटन, नृत्य, संगीत, पिकनिक, आदि के लिए समूहों का निर्माण किया जाता है। किशोर-किशोरियों के समूह प्रायः अलग-अलग होते हैं।

 

2. मैत्री भावना का विकास
Development of Friendship

किशोरियों की रुचि किशोरों से मित्रता करने की तथा किशोरों की रुचि किशोरियों से मित्रता करने की हो जाती है। वे अपनी सर्वोत्तम वेशभूषा, श्रृंगार व सजधज के साथ एक दसरे के समक्ष उपस्थित होना चाहते हैं। 

3. समह के प्रति भक्ति
Devotion to the Group

 किशोरों में अपने समूह के प्रति अत्यधिक भक्तिभाव होता है। समूह के सभी सदस्यों के आचार-विचार, वेशभूषा, तौर-तरीके आदि लगभग एक ही जैसे होते हैं। किशोर अपने समूह के द्वारा स्वीकृत बातों को आदर्श मानता है तथा उनका भरसक अनुकरण करने का प्रयास करता है। 


4. सामाजिक गुणों का विकास 
Development of Social Qualities

 समूह के सदस्य होने के कारण किशोर-किशोरियों में उत्साह, सहानुभूति, सहयोग, सद्भावना, नेतृत्व आदि सामाजिक गणों का विकास होने लगता है। उनकी इच्छा समूह में विशिष्ट स्थान प्राप्त करने की होती है, जिसके लिए वे विभिन्न सामाजिक गुणों का विकास करते हैं। 


5. सामाजिक परिपक्कता की भावना का विकास
Development of the Feelings of Social Maturity

किशोरावस्था में बालक-बालिकाओं में वयस्क व्यक्तियों की भाँति व्यवहार करने की इच्छा प्रबल हो जाती है। वे अपने कार्यों तथा व्यवहारों के द्वारा समाज में सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं। स्वयं को सामाजिक दृष्टि से परिपक्क मान कर वे समाज के प्रति अपने कर्तव्यों तथा उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने का प्रयास करते हैं। 


6. विद्रोह की भावना
Feeling of Revolt

किशोरावस्था में किशोर-किशोरियों में अपने माता-पिता तथा अन्य परिवारजनों से संघर्ष अथवा मतभेद करने की प्रवृत्ति आ जाती है। यदि माता-पिता उनकी स्वतंत्रता का हनन करके उनके जीवन को अपने आदर्शों के अनुरूप ढालने का प्रयत्न करते हैं अथवा उनके समक्ष नैतिक आदर्शों का उदाहरण देकर उनका अनुकरण करने पर बल देते हैं तो प्रायः किशोर-किशोरियाँ विद्रोह कर देते हैं। 


7. व्यवसाय चयन में रुचि
Interest in Selection of Vacation

किशोरावस्था के दौरान किशोरों की व्यवासायिक रुचियाँ विकसित होने लगती हैं। वे अपने भावी व्यवसाय का चुनाव करने के लिए सदैव चिन्तित से रहते हैं। प्रायः किशोर अधिक धनार्जन, सामाजिक प्रतिष्ठा तथा अधिकार सम्पन्न व्यवसायों को अपनाना चाहते हैं। 


8. बहिर्मुखी प्रवृत्ति
Extrovert Tendency

 किशोरावस्था में व्यक्ति में बहिर्मुखी प्रवृत्ति का विकास होता है। किशोर-किशोरियों को अपने समूह के क्रियाकलापों तथा विभिन्न सामाजिक क्रियाओं में भाग लेने के अवसर मिलते हैं जिसके फलस्वरूप उनमें बहिर्मुखी रुचियाँ विकसित होने लगती हैं। वे लिखने-पढ़ने, संगीत, कला, समाजसेवा, जनसम्पर्क आदि से संबन्धित कार्यों में रुचि लेने लगते हैं। 


9. राजनैतिक दलों का प्रभाव
Influence of Political Parties

किशोरावस्था में राजनैतिक दलों की विचारधारओं का किशोरों पर प्रभाव पड़ता है। किशोर प्रायः किसी राजनैतिक विचारधारा से प्रभावित होकर किसी राजनैतिक दल के अनुयायी बन जाते हैं। दल में सम्मान, प्रतिष्ठा तथा प्रशंसा प्राप्त करने के लिए किशोर अदम्य उत्साह तथा समपर्णभाव से जनकल्याण के कार्य करते हैं। इसमें एक ओर जहाँ किशोरों को अपने सामाजिक विकास में सहायता मिलती हैं वहीं दूसरी ओर दूषित राजनैतिक वातावरण में पड़कर गलत रास्ते पर चलकर किशोरों के दादा बन जाने की सम्भावना भी रहती है। 


किशोरावस्था में होने वाले सामाजिक विकास की उपरोक्त वर्णित मुख्य विशेषताओं के अवलोकन से स्पष्ट है कि किशोरावस्था सामाजिक विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण अवस्था है |


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(5) सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 
Factors Influencing Social Development


 सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

Factors Influencing Social Development


विभिन्न अवस्थाओं में होने वाला सामाजिक विकास अनेक कारकों से प्रभावित होता है। बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ महत्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं –

 

1. वंशानुक्रम 

(Heredity)

 2. शारीरिक तथा मानसिक विकास 
(Physical and Mental Development)
3. संवेगात्मक विकास 
Emotional Development
4. परिवार 
(Family)
5. आर्थिक स्थिति 
Economic Status
6. समाज 
Society
7. विद्यालय 
School
8. अध्यापक 
Teacher
9. अन्य कारक 
Other Factors


सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

Factors Influencing Social Development


विभिन्न अवस्थाओं में होने वाला सामाजिक विकास अनेक कारकों से प्रभावित होता है। बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ महत्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं


1. वंशानुक्रम 
(Heredity)

  मनोवैज्ञानिकों के अनुसार सामाजिक विकास पर वंशानुक्रम का भी कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य पड़ता है। वंशानुक्रम व्यक्ति के शारीरिक तथा मानसिक विकास के साथ-साथ उसके सामाजिक विकास को भी प्रभावित करता है। अनेक सामाजिक गुण व्यक्ति को वंश परम्परा के रूप में अपने माता-पिता तथा अन्य पूर्वजों से प्राप्त होते हैं।


 2. शारीरिक तथा मानसिक विकास 
(Physical and Mental Development)

शारीरिक तथा मानसिक विकास का व्यक्ति के सामाजिक विकास से घनिष्ठ संबंध होता है। शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ तथा विकसित मस्तिष्क वाले बालकों के समाजीकरण की सम्भावनायें अधिक होती हैं, जबकि अस्वस्थ तथा कम विकसित मस्तिष्क वाले बालकों के समाजीकरण की सम्भावना कम होती है। बीमार. अपग, शारीरिक दृष्टि से अनाकर्षक, विकत मस्तिष्क वाले, अल्प बुद्धि वाले बालक प्रायः सामाजिक अवहेलना तथा तिरस्कार सहते रहते हैं. जिसके फलस्वरूप उनमें हीनता की भावना विकसित हो जाती है तथा वे अन्य बालकों के साथ स्वयं को समायोजित करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। अत्यधिक प्रतिभाशाली बालक भी मानसिक तालमेल के अभाव (Lack of mental matching) के कारण तथा श्रेष्ठता ग्राथ (Superiority Complex) के कारण प्रायः सामाजिक रूप से समायोजन करने में परेशानी का अनुभव करता है |


3. संवेगात्मक विकास 
Emotional Development

सामाजिक विकास का एक महत्वपूर्ण आधार संवेगात्मक विकास होता है। संवेगात्मक तथा सामाजिक व्यवहार एक दूसरे के अनयायी होते हैं। जिन बालकों में प्रेम स्नेह, सहयोग, ह्रास-परिहास के भाव अधिक होते है वे सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं तथा स्नेह व आकर्षण का पात्र बन जाते हैं। इसके विपरीत जिन बालको में ईर्ष्या   द्वेष, क्रोध, घृणा, नीरसता आदि भाव होते हैं वे किसी को भी अच्छे नहीं लगते हैं तथा ऐसे बालकों की सभी उपेक्षा करते हैं। 


4. परिवार (Family)

समाजीकरण का प्रारम्भ परिवार से होता है। परिवार का वातावरण, संस्कृति, सदस्यों का आचरण, शिक्षास्तर, आर्थिक स्तर, पारिवारिक संरक्षण, सहयोग, पालन-पोषण आदि का बालकों के सामाजिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। बालक अपने माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों जैसे आचरण तथा व्यवहार करने का प्रयास करता है। 


5. आर्थिक स्थिति 

Economic Status

माता-पिता की आर्थिक स्थिति का भी बालक के समाजीकरण पर प्रभाव पड़ता है। धनी माता-पिता के बच्चे अच्छे माहौल में रहते हैं, अच्छे व्यक्तियों के सम्पर्क में आते हैं तथा अच्छे विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करते हैं जिसके कारण उनका सामाजिक विकास अच्छा होना स्वाभाविक ही है। इसके विपरीत निर्धन परिवारों के बालक उत्तम वातावरण, उचित सम्पर्क तथा श्रेष्ठ विद्यालय के अभाव में समुचित सामाजिक विकास से वंचित रह जाते हैं। 


6. समाज 
Society

समाज का भी बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। सामाजिक व्यवस्था बालक के समाजीकरण को एक निश्चित दिशा प्रदान करती है। समाज के कार्य आदर्श तथा प्रतिमान  बालक के सामाजिक दृष्टिकोण का निर्माण करते हैं। ग्रामीण व शहरी समाज में तथा लोकतंत्र व राजतंत्र में बालकों के सामाजिक व्यवहार में स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है।


 7. विद्यालय 
School

बालक के सामाजिक विकास में विद्यालय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है। विद्यालय में बालक को अन्य बालकों, अध्यापकों से मिलने-जुलने के व परस्पर सहयोग करने के तथा विभिन्न प्रकार की सामूहिक क्रियाओं में भाग लेने के अवसर मिलते हैं जो उसके समाजीकरण की दिशा को निर्धारित करते हैं। इससे 

उन्हें परस्पर सामाजिक अन्तक्रिया करने के विपुल अवसर प्रात होते हैं। 


8. अध्यापक 
Teacher

बालकों के सामाजिक विकास पर उनके अध्यापकों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। छात्र अपने अध्यापक से उसी के समान व्यवहार करना सीखते हैं। यदि अध्यापक शांत, शिष्ट, तथा सहयोगी होता है तो छात्रों में भी शिष्टता, धैर्य तथा सहकारिता के गुण विकसित हो जाते हैं। इसके विपरीत यदि शिक्षक अशिष्ट, क्रोधी तथा असहयोगी है तो छात्र भी उसी के समान बन जाते हैं। अत्यधिक सरल व्यक्तित्व वाले अध्यापक छात्रों को अनुशासन में नहीं रख पाते हैं जिसके कारण ऐसे अध्यापकों के छात्रों में अनुशासनहीनता एवं उद्दण्डता की भावना विकसित हो जाती है। 


9. अन्य कारक 
Other Factors

 उपरोक्त वर्णित कारकों के साथ-साथ कुछ अन्य कारक भी बालक-बालिकाओं के सामाजिक विकास पर प्रभाव डालते हैं। संस्कृति, राजनैतिक दल, साहित्य, धार्मिक संस्थायें तथा जनसंचार माध्यमों जैसे अनेक कारक भी बालकों के सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। 


शैशवावस्था, बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था में होने वाले सामाजिक विकास तथा उसे प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारकों के विवेचन से स्पष्ट है कि सामाजिक विकास मानव जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष है। समाजीकरण कि प्रक्रिया के द्वारा ही मानव एक सामाजिक प्राणी बनता है। सामाजिक वातावरण निरन्तर परिवर्तनशील रहता है तथा व्यक्ति को अपने सामाजिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप बदलना होता है। दूसरों से सहयोग करना, अन्यों के अनुरूप व्यवहार करना, शिष्टता का आचरण तथा सहअस्तित्व को स्वीकारना आदि सामाजिक परिपक्वता के लक्षण होते हैं। बालक के सामाजिक वातावरण को नियंत्रित करके उन्हें वांछित दिशा में सामाजिक विकास के लिए प्रेरित किया जा सकता है। शिक्षा इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान कर सकती है। शिक्षा संस्थाओं में स्वस्थ सामाजिक अन्तक्रिया के अवसर उपलब्ध कराकर छात्रों की समाजीकरण की प्रक्रिया को सबल बनाया जा सकता है। 

(6) सारांश 


सारांश 

सामाजिक विकास से तात्पर्य सामाजिक वातावरण के साथ अनुकूलन करने के लिए आवश्यक सामाजिक व्यवहार. मान्यताओं तथा परम्पराओं को अर्जित करने से है। सामाजिक अन्तक्रिया के फलस्वरूप व्यक्ति समाज के आदर्शो, मूल्यों तथा विश्वासों में आस्था रखना सीखता है एवं समाजहित में अपने निहित स्वार्थों को त्याग करने के लिए तत्पर रहता है। शिक्षा के द्वारा बालक-बालिकाएं के समाजीकरण को वांछित दिशा तथा गति दी जा सकती है। विकास के अन्य पक्षों की तरह से सामाजिक विकास को भी तीन अवस्थाओं-शैशवास्था, बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था में बाँट कर अध्ययन किया जा सकता है। वंशानक्रम. शारीरिक मानसिक विकास का स्तर, संवेगात्मक परिपक्वता, परिवार का शैक्षिक, आर्थिक व सामाजिक स्तर डास व समाज, विद्यालय, तथा शिक्षक आदि बालक को सामाजिक विकास को सुभावित करते हैं। पालयों में स्वस्थ सामाजिक अन्तक्रिया के अवसर उपलब्ध कराकर बालक बालिकाएं के सामाजिक विकास को द्रुत गति दी जा सकती है। 

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सामाजिक विकास
Social Development 

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