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KISHORA AVSTHA KE VISHESTAYE | किशोरावस्था क्या है ? इसके विशेषताओ का वर्णन करे | Developmental Characteristics of Adolescence

प्रश्न - किशोरावस्था क्या है ? किशोरावस्था की विशेषताओ का वर्णन कीजिये ?

उत्तर--  

किशोरावस्था 
Adolescence
 

किशोरावस्था जन्मोपरांत मानव विकास की तृतीय अवस्था है जो बाल्यावस्था की समाप्ति के उपरांत प्रारम्भ होती है तथा प्रौढ़ावस्था के प्रारम्भ होने तक चलती है। यद्यपि व्यक्तिगत भेदों, जलवायु आदि के कारण किशोरावस्था की अवधि में कुछ अंतर पाया जाता है, परंतु फिर भी, प्रायः 12 वर्ष से 18 वर्ष की आयु के बीच की अवधि को किशोरावस्था कहा जाता है । इस अवस्था में होने वाले शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक परिवर्तनों को व्यक्तिगत विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के बीच का संधिकाल (Transitional Period) होने के कारण इसे जीवन का सर्वाधिक कठिन काल माना जाता है। इस अवधि में बालक दोनों ही अवस्थाओं में रहता है। न तो उसे बालक ही समझा जाता है। और न ही प्रौढ़ के रूप में स्वीकृति मिलती है।

किशोर बालक सदा असाधारण काम करना चाहता है। वह दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है। जब तक वह इस कार्य में सफल होता है, अपने जीवन को सार्थक मानता है और जब इसमें वह असफल हो जाता है तो वह अपने जीवन को नीरस एवं अर्थहीन मानने लगता है। किशोर बालक के डींग मारने की प्रवृत्ति भी अत्यधिक होती है। वह सदा नए नए प्रयोग करना चाहता है। इसके लिए दूर दूर तक घूमने में उसकी बड़ी रुचि रहती है।


 किशोरावस्था को अंग्रेजी में 'एडोलेसेन्स' (Adolescence) कहते हैं। 'एडोलेसेन्स' शब्द लैटिन भाषा के 'ऐडोलिसियर' (adolescere) से बना है जिसका अर्थ है-परिपक्वता की ओर बढ़ना (To Grow to Maturity) अतः किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें बालक परिवपक्वता की ओर अग्रसर होता है तथा जिसकी समाप्ति पर वह पूर्ण परिपक्व व्यक्ति (Fully Matured Individual) बन जाता है ।


 किशोरावस्था को हॉल (Hall) ने संघर्ष (stress), तनाव (strain), तूफान (storm) तथा विरोध (strife) की अवस्था कहा है। संवेगात्मक उथल-पुथल तथा तनाव की अवस्था होने के कारण कुछ मनोवैज्ञानिक इसे समस्यात्मक अवस्था (Problem Age) भी कहते हैं। शैक्षिक दृष्टि से भी किशोरावस्था को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। अतः किशोरावस्था की विशेषताओं तथा इस अवस्था में शिक्षा के स्वरूप पर विचार करना शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययनकर्ता के लिए आवश्यक ही होगा। 

किशोर  भविष्य में जो कुछ होता है, उसकी पूरी रूपरेखा उसकी किशोरावस्था में बन जाती है। जैसे जिस बालक ने धन कमाने का स्वप्न देखा, वह अपने जीवन में धन कमाने में लगता है। इसी प्रकार जिस बालक के मन में कविता और कला के प्रति लगन हो जाती है, वह इन्हीं में महानता प्राप्त करने की चेष्टा करता और इनमें सफलता प्राप्त करना ही वह जीवन की सफलता मानता है। जो बालक किशोरावस्था में समाज सुधारक और नेतागिरी इत्यादी  के स्वप्न देखते हैं, वे आगे चलकर इन बातों में आगे बढ़ते है।


 

किशोरावस्था की विकासात्मक विशेषताएँ

Developmental Characteristics of Adolescence


1. शारीरिक विकास 

(Physical Development)

 

 2. मानसिक विकास 

(Mental Development)


3. स्थिरता तथा समायोजन का अभाव 

(Lack of Stability and Adjustment)


4. व्यवहार में विभिन्नताएं 

Differences in Behaviour


5. घनिष्ठ मित्रता 

(East Friendship)


 6. रुचियों में परिवर्तन तथा स्थायित्व 

(Changes and Stability in Interests)

 

7. कामशक्ति की परिपक्वता 

(Maturity of Sex Instinct)


8. समूह को महत्व 

(Importance of Group) 


(९)स्वतन्त्रता व विद्रोह की भावना 

(Feeling of Independence and Revolt) 


10. समाज-सेवा की भावना 

(Feeling of Social Service) 


11. ईश्वर तथा धर्म में विश्वास 

(Faith in God and Religion) 


12. वीर पूजा की भावना 

(Feeling of Hero Worship)


13. स्वाभिमान की भावना 

(Feeling of Self Respect)


14. अपराध प्रवृत्ति का विकास 

(Development of Delinquency) 


15. व्यवसाय की चिन्ता 

(Anxiety for Vocation) 


किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक तथा नैतिक विकास की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं 


1. शारीरिक विकास 

(Physical Development) 


किशोरावस्था को शारीरिक विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण काल माना जाता है। इस काल में किशोर तथा किशोरियों में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण शारीरिक परिवर्तन होते हैं जो यौवन आरम्भ के लक्षण होते हैं। इस अवस्था में किशोरियाँ स्त्रीत्व को तथा किशोर पुरुषत्व को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होते हैं। किशोरावस्था में भार तथा लम्बाई में तीव्र वृद्धि होती है, शारीरिक ढाँचे तथा माँसपेशियों में दृढ़ता आती है । किशोरों में दाढ़ी एवं मूंछ की रोमावलि दृष्टिगोचर होने लगती है। वे अपने शरीर तथा स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हैं। किशोर स्वस्थ, सबल तथा उत्साही बनने का प्रयास करते हैं, जबकि किशोरियाँ अपनी आकृति को नारी सुलभ आकर्षण प्रदान करने की इच्छुक रहती हैं।


 2. मानसिक विकास 

(Mental Development) 


किशोरावस्था में मानसिक योग्यताओं का भी विकास होता है । कल्पना, स्मृति, दिवास्वप्नों की बहुलता, तर्कशक्ति, निर्णय लेने की क्षमता अधिक विकसित हो जाती है। इस अवधि में किशोर-किशोरियों में परस्पर विरोधी मानसिक दशाएं (Contrasting Mental Moods) परिलक्षित होने लगती हैं। मानसिक जिज्ञासा का विकास हो जाता है। वह सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं में रुचि लेने लगता है। 


3. स्थिरता तथा समायोजन का अभाव 

(Lack of Stability and Adjustment) 


किशोरावस्था में किशोर-किशोरियों की मनःस्थिति शिशुओं के समान अस्थिर हो जाती है। बाल्यावस्था में आई स्थिरता समाप्त होने लगती है तथा किशोर-किशोरियाँ पुनः शिशु के समान अस्थिर मन वाले हो जाते हैं। इसलिए किशोरावस्था को शैशवावस्था की पुनरावृत्ति (Recapitulation) भी कहा जाता है। इस अवस्था में व्यवहार में इतनी तेजी से परिवर्तन होते हैं कि किशोर-किशोरियों का व्यवहार उद्विग्न सा रहता है उनके विचार क्षण-क्षण परिवर्तित-होते रहते हैं। परिणामतः वे अन्य व्यक्तियों तथा वातावरण के साथ समायोजन करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। 


4. व्यवहार में विभिन्नताएं 

(Differences in Behaviour) 


किशोर-किशोरियों में संवेगों की प्रबलता होती है। संवेगात्मक आवेश में वे असम्भव तथा असाधारण लगने वाले कार्यों को भी कर डालते हैं । भिन्न-भिन्न अवसरों पर उनके व्यवहार भिन्न-भिन्न दिखाई देते हैं व कभी अदम्य उत्साह से युक्त, कभी बिल्कूल हतोत्साहित, कभी अत्यंत क्रियाशील तथा कभी अत्यंत काहिल दिखाई देते है |



5. घनिष्ठ मित्रता 

(East Friendship) 


किशोरावस्था में किशोर किसी समूह का सदस्य होते हुए भी समूह के केवल एक दो व्यक्तियों से घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है जो उसके परम मित्र होते हैं। इनसे वह अपनी व्यक्तिगत समस्याओं की चर्चा करता है तथा परामर्श लेता है।


 6. रुचियों में परिवर्तन तथा स्थायित्व 

(Changes and Stability in Interests) 


किशोरावस्था के प्रारम्भिक वर्षों में किशोर किशोरियों की रुचियों में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है परंतु बाद के वर्षों में उनकी रुचियों में स्थायित्व आने लगता है। किशोर तथा किशोरियों की रुचियों में कुछ समानताएँ भी होती हैं तथा कुछ विभिन्नताएं भी पाई जाती हैं। पत्र-पत्रिकाएं, कहानियाँ, नाटक, उपन्यास आदि पढ़ना, रेडियो सुनना, सिनेमा तथा दूरदर्शन कार्यक्रम देखना, शरीर को आकर्षक बनाने के लिए अलंकृत करना, विषमलिंगी की ओर आकर्षित होना आदि किशोरों तथा किशोरियों की रुचियाँ होती हैं। किशोर खेलकूद, घर से बाहर घूमने-फिरने में अधिक रुचियाँ लेते हैं, जबकि किशोरियाँ कढ़ाई, बुनाई, नृत्य, संगीत तथा घरेलू कार्यों में विशेष रुचि लेती हैं।


 7. कामशक्ति की परिपक्वता 

(Maturity of Sex Instinct) 


किशोरावस्था की सम्भवतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता काम इन्द्रियों की परिपक्वता तथा काम प्रवृत्ति का क्रियाशील होना है। शारीरिक दृष्टि से किशोर तथा किशोरियाँ काम सम्बन्ध स्थापित करने में सक्षम हो जाते हैं। शैशवावस्था का दबा हुआ यौन आवेग, जो बाल्यावस्था में सुप्त रहता है, पुनः जागृत हो जाता है। किशोर-किशोरियों में तथा किशोरियाँ किशोरों में विशेष रुचि लेने लगती हैं। किशोर किशोरियों की मित्रता उनके परस्पर मिलने-जुलने, बातचीत करने, घूमने-फिरने जैसे क्रियाकलापों से स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती हैं। 


8. समूह को महत्व 

(Importance of Group) 


किशोर-किशोरियाँ अपने समूह अथवा संगी-साथियों को अपने परिवार, अध्यापक तथा विद्यालय से अधिक महत्व देते हैं। उनके समस्त कार्य तथा व्यवहार समूह से प्रभावित होते हैं। वे अपने समूह के दृष्टिकोणों को अधिक अच्छा समझते हैं तथा उनके अनुरूप ही अपने व्यवहारों, आदतों, रुचियों तथा इच्छाओं आदि में परिवर्तन लाते हैं। 


(९)स्वतन्त्रता व विद्रोह की भावना 

(Feeling of Independence and Revolt) 


किशोरावस्था में स्वतन्त्रता की भावना अत्यंत प्रबल होती है। किशोर-किशोरियाँ अपने से बड़ों के आदेशों, परिवार व समाज की परम्पराओ, रीति-रिवाजों अथवा अन्ध विश्वासों को सहज ही स्वीकार नहीं करते हैं। वे अपना स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। बिना तर्क के वे किसी बात को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं । यदि उन पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है तो वे विद्रोह करने का प्रयास करते हैं वास्तव में किशोर-किशोरियाँ प्रौढ़ों को अपने मार्ग की बाधा समझते हैं । उनक विचार में प्रौढ़ व्यक्ति उनकी स्वतन्त्रता का हनन करने का प्रयास करते रहते है |


10. समाज-सेवा की भावना 

(Feeling of Social Service) 


किशोरावस्था में समाज सेवा की भावना प्रबल हो जाती है। किशोर दूसरे व्यक्तियों का उपकार करना चाहते हैं। उनमें त्याग तथा बलिदान की भावना प्रबल होती है। देश, समाज अथवा मित्रमंडली के लिए किशोर-किशोरियाँ अपने प्राणों की बाजी लगाने तक के लिए तत्पर हो जाते हैं। वे सम्पूर्ण मानव जाति के लिए प्रेम व हित भाव से ओत-प्रोत रहते हैं। वे बुराइयों को दूर करके आदर्श समाज की स्थापना में अपना भरसक सहयोग प्रदान करने का प्रयास करते हैं। 


11. ईश्वर तथा धर्म में विश्वास 

(Faith in God and Religion) 


किशोरावस्था में धार्मिक भावना का उदय होता है। किशोर तथा किशोरियाँ किसी न किसी रूप में ईश्वर की सत्ता को स्वीकारने लगते हैं। वे धर्म में विश्वास करने लगते हैं तथा मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा अथवा गिरजाघर जाने लगते हैं। उनमें सभी धर्मों का आदर करने की भावना होती है।


12. वीर पूजा की भावना 

(Feeling of Hero Worship) 


किशोरावस्था में वीर पूजा की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। इतिहास, साहित्य तथा वास्तविक जीवन के नायक-नायिकाओं, महापुरुषों, नेताओं, अथवा वीरों के आदर्श गुणों से प्रभावित होकर वे उनके प्रति श्रद्धा तथा भक्तिभाव रखते हैं तथा उनके आदर्शों के अनुयायी होकर उनकी पूजा करने लगते हैं। इसलिए किशोरावस्था को वीर पूजा की अवस्था (Age of Hero Worship) भी कहा जाता है। 

13. स्वाभिमान की भावना 

(Feeling of Self Respect)


किशोर-किशोरियों में स्वाभिमान तथा आत्मगौरव की प्रबल भावना होती है। वे छोटी-छोटी बातों से अपने को अपमानित तथा तिरस्कृत महसूस करते हैं। स्वाभिमान को ठोस लगने के कारण कभी-कभी वे घर से भाग कर स्वतंत्र व आत्मनिर्भर जीवन व्यतीत करने का प्रयास करते हैं।


14. अपराध प्रवृत्ति का विकास 

(Development of Delinquency) 


इच्छापूर्ति में बाधा, निराशा, असफलता, प्रेम का अभाव, नवीन अनुभवों की ललक आदि के कारण किशोरावस्था में अपराध प्रवृत्ति की भावना विकसित होने लगती है। वास्तव में किशोरावस्था अपराध प्रवृत्ति के विकास का एक नाजूक समय होता तथा अधिकांश अपराधियों के अपराधी जीवन का प्रारम्भ प्रायः किशोरावस्था की विषम परिरिस्थतियों के परिणामस्वरूप होता है। 


15. व्यवसाय की चिन्ता 

(Anxiety for Vocation) 


किशोरावस्था में किशोर अपने भावी व्यवसाय के सम्बन्ध में चिन्तित रहते हैं। किसी व्यवसाय को चुनने, उसके लिए तैयारी करने, उसमें प्रवेश पाने तथा उसमें उन्नति करने से सम्बन्धित बातों की किशोर प्रायः आपस में चर्चा करते रहते हैं । अपनी पसंद के व्यवसाय के अनुरूप ही किशोर पाठ्यविषयों का चयन करते हैं।


 किशोरावस्था की उपरोक्त वर्णित विकासात्मक विशेषताओं के विवेचन से  स्पष्ट है कि किशोरावस्था नवीन विशेषताओं से युक्त काल है जिसमें मानव जीवन की उच्चतर तथा श्रेष्ठतर विशेषताएं परिलक्षित होती हैं। बिग्गी तथा हंट (Biggi and Hunt) ने किशोरावस्था की विशेषताओं के सम्बंध में कहा है कि, "किशोरावस्था की विशेषताओं को सर्वोत्तम रूप से व्यक्त करने वाला एक शब्द परिवर्तन है। यह परिवर्तन शारीरिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक होता है।" 


सम्बन्धित प्रश्न -

KISHORA AVSTHA KE VISHESTAYE
किशोरावस्था की विशेषताये 
Developmental Characteristics of Adolescence 

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किशोरावस्था में शारीरिक विकास 
(Physical Development in Adolescence) 


बाल्यावस्था के उपरान्त किशोरावस्था प्रारंभ होती है। किशोरावस्था, बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के बीच का काल है जिसमें प्रजनन क्षमता का विकास होता है। यह 18 वर्ष की आयु तक रहती है। किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं का विकास अत्यंत तीव्र गति से होता है।


 किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक विकास से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन निम्नांकित हैं 


1. लम्बाई  (Length)

 

2. भार  (Weight) 


3. सिर तथा मस्तिष्क (Head and Brain) 


4. हड्डियाँ (Bones) 


 5. दांत (Teeth) 


6. माँस पेशियाँ (Muscles) 


7. अन्य अंग 

(Other Organs)



1. लम्बाई  (Length) 


किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं की लम्बाई बहुत तीव्र गति से बढ़ती हैं। बालिकाएं प्रायः 16 वर्ष की आयु तक तथा बालक लगभग 18 वर्ष की आयु तक अपनी अधिकतम लम्बाई प्राप्त कर लेते हैं। किशोरावस्था में बालकों की लम्बाई बालिकाओं से अधिक रहती हैं। अट्ठारह वर्ष की आयु का बालक इसी आयु की बालिका से लगभग 10 सें०मी० अधिक लम्बा होता है। 



2. भार  (Weight) 


किशोरावस्था में भार में काफी वृद्धि होती है। बालकों का भार बालिकाओं के भार से अधिक बढ़ता है। इस अवस्था के अंत में बालकों का भार बालिकाओं के भार की तुलना में लगभग 10-11 किग्रा० अधिक होता है। किशोरावस्था के विभिन्न वर्षों में बालक तथा बालिकाओं का औसत भार निम्नांकित तालिका में दर्शाया गया है 


3. सिर तथा मस्तिष्क (Head and Brain) 


किशोरावस्था में सिर तथा मस्तिष्क का विकास जारी रहता है, परंतु इसकी गति काफी मंद हो जाती है । लगभग 16 वर्ष की आयु तक सिर तथा मस्तिष्क का पूर्ण विकास हो जाता है। मस्तिष्क का भार प्रायः 1200 ग्रा० से लेकर 1400 ग्रा० के बीच होता है |


4. हड्डियाँ (Bones) 


किशोरावस्था में हड्डियों के दृढ़ीकरण अर्थात् अस्थिकरण (Ossification) की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। जिसके परिणाम-स्वरुप अस्थियों का लचीलापन समाप्त हो जाता है तथा वे दृढ़ हो जाती हैं। किशोरावस्था में हड्डियों की संख्या कम होने लगी है | अस्थिपंजर की कुछ हड्डियाँ आपस में मिलकर एक हो जाती हैं । प्रौढ़ व्यक्ति में केवल 206 हड्डियाँ होती हैं।


 5. दांत (Teeth) 


किशोरावस्था में प्रवेश करने से पूर्व बालक तथा बालिकाओं के लगभग 27-28 स्थायी दाँत निकल जाते हैं। प्रज्ञा दन्त सबसे अन्त में निकलते हैं। प्रज्ञादन्त (Wisdom Teeth) प्रायः किशोरावस्था के अन्तिम वर्षों में अथवा प्रौढ़ावस्था के प्रारम्भिक वर्षों में निकलते हैं। कुछ व्यक्तियों में प्रज्ञादंत नहीं निकलते हैं। 


6. माँस पेशियाँ (Muscles) 


किशोरावस्था में माँसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता है । किशोरावस्था की समाप्ति पर माँसपेशियों का भार शरीर के कुल भार का लगभग 45% हो जाता है। माँसपेशियों के गठन में भी दृढ़ता आ जाती है।


7. अन्य अंग 

(Other Organs) 


किशोरावस्था के अन्त तक बालक तथा बालिकाओं की सभी ज्ञानेन्द्रियों (आँख, कान, नाक, त्वचा तथा जिह्वां) तथा कमेन्द्रियों (हाथ, पैर, मुख) का पूर्ण विकास हो जाता है। वे शारीरिक दृष्टि से परिपक्व हो जाते हैं। शरीर के सभी अंग पुष्ट तथा सुडौल दिखाई देते हैं। किशोरों के कंधे चौड़े हो जाते हैं एवं मुख पर दाढ़ी तथा मूंछ आने लगती हैं।किशोर तथा किशोरियों के प्रजनन अंगों का पूर्ण विकास हो जाता है।  । थॉयरायड ग्रंथि के सक्रिय हो जाने के कारण किशोरों की आवाज में भारीपन आ जाता है, जबकि किशोरियों की आवाज में कोमलता तथा मृदुलता आ जाती है। हृदय की धडकन की गति में निरन्तर कमी आती जाती है। प्रौढावस्था में प्रवेश करते समय व्यक्ति का हृदय एक मिनट में लगभग 72 बार धड़कता है। 


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