जीन पियाजे के सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ
पियाजे के सिद्धान्त का शिक्षा के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक पक्ष पर बहुत प्रभाव है। यह एक ऐसे दृष्टिकोण के सृजन में सहयोग देता है जिसका उन्नतशील उपयुक्त शिक्षा के विचार पर केन्द्रित रहता है। इसका सम्बन्ध शैक्षिक के साथ वातावरण, पाठ्यक्रम, सामग्रियों और अनुदेशन से होता है जोकि विद्यार्थी शारीरिक और संज्ञानात्मक योग्यताओं के साथ-साथ उनकी सामाजिक और भावात्मक आवश्यकताओं से संगतता रखता है। शिक्षकों के लिए इस सिद्धान्त का विशेष महत्व है क्योंकि यह शिक्षकों के शिक्षण को विशेष दिशा प्रदान करता है। इस सिद्धान्त का कक्षागत परिस्थिति में निम्न शैक्षिक निहितार्थ स्वीकार किया जाता है |
(1). बच्चों की चिन्तन प्रक्रिया में अवधान केन्द्रित होना चाहिए नकि बस उनके उत्पादों या उपलब्धियों पर । बच्चों द्वारा किसी प्रश्न या समस्या पर दी गई प्रतिक्रिया या उत्तर की सत्यता जाँच करने के अतिरिक्त शिक्षक को बच्चों द्वारा समस्या या प्रश्न के उत्तर को प्राप्त करने में प्रयोग में लायी गई प्रक्रिया को समझना चाहिए। बच्चों की मौजूदा स्तर की संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं पर ही उपयुक्त अधिगम अनुभव गठित होते हैं और केवल जब शिक्षक बच्चों के किसी विशेष निष्कर्ष में पहुँचने के तरीके की सराहना करते हैं तो बच्चे स्व-प्रोत्साहित होकर उचित संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं की संरचना करते हैं।
(2). अधिगम क्रियाओं में बच्चों की स्व-पहल तथा सक्रिय सहभागिता को निर्णायक भूमिका की मान्यता देनी चाहिए। पियाजे के अनुसार कक्षा में रेडीमेड या तैयार ज्ञान के प्रस्तुतीकरण पर कम महत्व दिया जाए एवं बच्चों को वातावरण के साथ सहज अंतःक्रिया के माध्यम से स्वयं के लिए खोज करने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है। इसीलिए, उपदेशात्मक शिक्षण के स्थान पर शिक्षक इसमें क्रियाओं को समृद्ध विविधता प्रदान करता है जोकि बच्चों को भौतिक संसार पर प्रत्यक्ष कार्य करने की अनुमति देता है।
(3) उन परिपाटियों को महत्व न देना जो बच्चों के चिन्तन को वयस्क जैसा बनाने का उद्देश्य रखती हों। इस सम्बन्ध में पियाजे की प्रसिद्ध उक्ति जिसे अमेरिकन प्रश्न के नाम से जाना जाता है। जोकि है "हम कैसे विकास की तेज गति पकड़ सकते हैं ?" उनका विश्वास था कि बच्चों से अधिक गति एवं चरणों में अधिक शीघ्रता करवाने का हमारा प्रयास शिक्षण को बदतर कर सकता है।
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(4) विकासात्मक प्रगति में व्यक्तिगत विभेदों का अनुमोदन होना चाहिए। पियाजे के सिदान्त के अनुसार सभी बच्चों का एक समान विकासात्मक अवस्थाओं के माध्यम से विकास होता है लेकिन उनमें विकास की दरें भिन्न-भिन्न होती हैं। इसी वजह से इस सिद्धान्त में यह अपेक्षा की जाती है कि शिक्षकों को सम्पूर्ण कक्षा समूह की अपेक्षा वैयक्तिक एवं बच्चों के समूहों के लिए विशेष प्रयास से व्यवस्थित कक्षागत गतिविधियों को बनाना चाहिए।
(5) इस सिद्धान्त में यह अपेक्षा की जाती है कि शिक्षक को विद्यार्थियों को स्वक्रिया द्वारा ज्ञान एवं अनुभव ग्रहण करने की गतिविधियों में भाग लेने के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराने चाहिए । यहाँ शिक्षक की भूमिका मार्गदर्शक की होनी चाहिए। विद्यार्थियों की कार्य-प्रक्रिया में कोई दिशा-निर्देश या कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जिससे उनकी कार्य करने की स्वायत्ता और आत्म-विश्वास प्रभावित हो।
(6) विद्यालय या कक्षागत परिस्थिति में यह सम्भव हो सके कि विद्यार्थियों को शैक्षिक खेलों द्वारा अधिगम कराया जा सकता है तो उन्हें ऐसे अवसर अधिक से अधिक दिए जाने चाहिए। पियाजे ने अपने सिद्धान्त में स्पष्ट किया है कि खेल द्वारा बच्चों में संज्ञानात्मक क्षमता का विकास होता है।
(7) शिक्षक द्वारा कक्षा में किसी प्रकरण के शिक्षण में आवश्यकता अनुरूप मूर्त सामग्रियों एवं दृश्य साधनों, जैसे-मॉडल या समय रेखा आदि का उपयोग किया जाना चाहिए।
(8) किसी कठिन व जटिल विषय या प्रकरण या पाठ के शिक्षण के लिए शिक्षक को अधिगम सहज बनाने हेतु पूर्ववर्ती संज्ञानात्मक अनुभव से सम्बन्धित उदाहरणों का प्रयोग करते हुए प्रकरण या पाठ की व्याख्या की जानी चाहिए।
पियाजे के सिद्धान्त का शैक्षिक निहितार्थ अधिगमकर्ता के विकास स्तर के लिए अनुदेशनों का अनुकूलन है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अधिगमकर्ता की विकासात्मक स्तर विशेष की आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा की विषय-वस्तु को संगत बनाने में सहयोग देता है।
इस सिद्धान्त में शिक्षक की मुख्य भूमिका यह स्वीकार की जाती है कि वह विद्यार्थियों के लिए विभिन्न अनुभवों को प्रदान करते हुए अधिगम को सहज बनाने का प्रयास करे। खोजपूर्ण अधिगम विद्यार्थियों को अन्वेषण करने तथा परीक्षण करने के लिए अवसर प्रदान करता है, जब वह नई समझ का विकास कर रहे होते हैं। इसमें विभिन्न संज्ञानात्मक स्तर के विद्यार्थियों को प्रायः एक साथ काम करने के अवसर उपलब्ध कराने की वकालत की जाती है। जहाँ पर किसी विषय-सामग्री में उच्च समझ रखने वाला विद्यार्थी कम परिपक्व विद्यार्थी की सीखने में सहायता करता है और प्रोत्साहन प्रदान करता है।
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BIHAR D.El.Ed 2nd YEAR All Subject Notes
D.El.Ed. 2nd YEAR Paper Code | D.El.Ed. 2nd YEAR Paper(Subject) NAME | Notes Link |
Paper S1 | समकालीन भारतीय समाज में शिक्षा | |
Paper S2 | संज्ञान सीखना और बाल विकास | |
Paper S3 | कार्य और शिक्षा | |
Paper S4 | स्वयं की समझ |
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Paper S5 | विद्यालय में स्वास्थ्य योग एवं शारीरिक शिक्षा | |
Paper S6 | Pedagogy of English (Primary Level) | |
Paper S7 | गणित का शिक्षणशास्त्र – 2 (प्राथमिक स्तर) | |
Paper S8 |
हिंदी का शिक्षणशास्त्र – 2 (प्राथमिक स्तर) |
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Paper S9 A | गणित का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर) | Clik Here |
Paper S9 B | विज्ञान का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर) | Clik Here |
Paper S9 C | सामाजिक विज्ञान का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर) | Clik Here |
Paper S9 D | Pedagogy of English (Upper – Primary Level) | Clik Here |
Paper S9 E | हिंदी का शिक्षण शास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर) | Clik Here |
Paper S9 F | संस्कृत का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर) | Clik Here |
Paper S9 G | मैथिली का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर) | Clik Here |
Paper S9 H | बांग्ला का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर)
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Paper S9 | उर्दू का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर) | Clik Here |