Bihar Board 10th Class History Objective
क्लास १० इतिहास (सोशल साइंस) ऑब्जेक्टिव इन हिंदी
अध्याय 01 - यूरोप में राष्ट्रवाद
अध्याय 02 - समाजवाद एवं साम्यवाद
अध्याय 03 - हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आन्दोलन
अध्याय 04 - भारत में राष्ट्रवाद
अध्याय 05 - अर्थव्यवस्था और आजीविका
अध्याय 06 - शहरीकरण एवं शहरी जीवन
अध्याय 07 - व्यापार और भूमंडलीकरण
अध्याय 08 - प्रेस-संस्कृति एवं राष्ट्रवाद
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BIHAR STET SOCIAL SCIENCE SYLLABUS PDF
STET SOCIAL SCIENCE
अध्याय 01 - यूरोप में राष्ट्रवाद
यूरोप में राष्ट्रवाद : उदय और विकास
* फ्रांसीसी दार्शनिक रेनन के अनुसार राष्ट्र एक बड़ी और व्यापक एकता है जिसे फ्रांसीसी कलाकार सारयू ने कल्पना से चित्रित किया।
* शिक्षित मध्यमवर्ग के उदय और कुलीनों की जीवन शैली का प्रभाव राष्ट्रवाद के विकास में सहायक होते हैं।
* 1789 की क्रांति के बाद राजशाही को समाप्त कर, फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने यूरोप में राष्ट्रवाद का प्रसार किया।
* नेपोलियन ने विजित राज्यों में नेपोलियन संहिता लागू कर विशेषाधिकार समाप्त कर कानून के समक्ष सबको बराबरी का अधिकार दिया। इससे तानाशाही के विरुद्ध आवाजें उठीं।
* कानून के समक्ष सबको बराबरी, निरंकुशवाद के स्थान पर संविधान और प्रतिनिधि सरकार की स्थापना पर बल, आर्थिक क्षेत्र में मुक्त व्यापार का समर्थन तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता पर बल दिया जाता है।
* मेटरनिक व्यवस्था द्वारा निरंकुशवाद को बढ़ावा तथा राष्ट्रवाद और संसदीय प्रणाली के विकास को रोकने का प्रयास किया गया।
* क्रांतिकारियों ने उदारवाद और राष्ट्रवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
* रूमानिवादियों ने संस्कृति द्वारा राष्ट्रवाद की भावना का विकास करने का प्रयास किया।
* ब्रिटेन में राष्ट्रवाद के द्वारा 1707 के ऐक्ट ऑफ यूनियन द्वारा यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन का गठन किया गया।
* जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी और बोहेमिया में 1848 में क्रांतियाँ हुई और फ्रांस में द्वितीय गणराज्य की स्थापना हुई।
* यूरोप के मरीज' ऑटोमन साम्राज्य की दुर्बलता का लाभ उठाकर 1832 में कुस्तुनतुनिया की संधि द्वारा स्वतंत्र यूनान राष्ट्र की स्थापना की।
* मेजिनी, काबर और गैरबाल्डी तथा विक्टर इमैनुएल के प्रयासों द्वारा 1870 में एकीकृत इटली का जन्म हुआ।
* बिस्मार्क की (रक्त और तलवार) की नीति द्वारा 1871 में प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण हुआ।
* पर्यावरण के वे सारे अवयव जो विद्यमान तकनीक की सहायता से मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूर्ण करने की क्षमता रखता है, संसाधन कहलाता है।
* मानव भी एक संसाधन है।
* तकनीक अथवा प्रौद्योगिकी का विकास मानव की क्षमता और कुशलता पर निर्भर करता है
* संसाधन होते नहीं, बनते हैं।
* संसाधन का निर्माता एवं उपभोगकर्ता, दोनों मानव ही है।
* मनुष्य के आर्थिक विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धि अत्यावश्यक है।
* संसाधनों का वर्गीकरण :
(क) उपलब्धता के आधार पर
प्रकृतिप्रदत्त एवं मानवकृत
(ख) स्रोत के आधार पर जैविक और अजैविक
(ग) पुनः प्राप्ति के आधार पर नवीकरणीय एवं अनवीकरणीय
(घ) स्वामित्व के आधार पर-निजी, सामुदायिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय
(ङ) विकास के स्तर के आधार पर
* संभाव्य, ज्ञात, भंडारित एवं संचित
* प्रकृति द्वारा दी गई सभी वस्तुएँ एवं पदार्थ-जैसे-हवा, जल, भूमि इत्यादि प्रकृति प्रदत्त संसाधन है।
* भवन, सड़क, रेल लाइन, स्कूल, कॉलेज एवं अन्य संस्थान इत्यादि मानवकृत संसाधन पेड़, पौधे, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, मानव इत्यादि जैविक संसाधन है।
* वातावरण के सभी निर्जीव पदार्थ जैसे खनिज, चट्टान, मिट्टी, नदियाँ, पर्वत, पठार इत्यादि अजैविक संसाधन है।
* प्रकृति द्वारा स्वतः बननेवाले संसाधन, जैसे—सूर्य-प्रकाश, हवा, पानी, पेड़-पौधे, जीव-जंतु इत्यादि नवीकरणीय संसाधन है।
* एक बार प्रयोग होने पर खत्म होनेवाले संसाधन, जैसे-कोयला, पेट्रोलियम एवं अन्य खनिज अनवीकरणीय संसाधन कहलाते है।
* मकान, कृषि, भूमि, कार, मोटरसाइकिल, टेलीफोन, साइकिल इत्यादि निजी संसाधन कहलाते हैं।
* चरागाह, मंदिर, खेल का मैदान, तालाब, श्मशान भूमि, बाजार, पंचायत भूमि, विद्यालय भवन, पर्यटन स्थल इत्यादि सामुदायिक संसाधन कहलाते हैं।
* किसी देश के अंदर पाए जानेवाले सभी प्रकार के संसाधन राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं। सागर तट से दूर 19.2 किमी. तक का भाग भी राष्ट्रीय संपत्ति है।
* 19.2 किमी. के बाहर का सागरीय क्षेत्र एवं उसमें पाया जानेवाला संसाधन अंतर्राष्ट्रीय संसाधन कहलाती है।
* जिन संसाधनों का उपयोग वर्तमान में किसी कारण से नहीं हो रहा हो परंतु जिनके उपयोग की संभावना है, संभाव्य संसाधन कहलाते हैं। जैसे—भारत में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा इत्यादि।
अध्याय 02 - समाजवाद एवं साम्यवाद
समाजवाद, साम्यवाद और रूस की क्रांति
* रूस की राज्यक्रांति के कारण-
(1) निरंकुश एवं अत्याचारी शासन
(ii) किसानों की दयनीय स्थिति
(iii) किसानों का विद्रोह,
(iv) रूस की राजनीतिक मर्यादा को आघात,
(v) कारखानों के मजदूरों की खराब स्थिति,
(vi) औद्योगिकीकरण की समस्या,
(vii) रूसीकरण की नीति,
(viii) जार निकोलस द्वितीय और जरीना की अयोग्यता
(ix) सुधार आंदोलन,
(x) मार्क्सवादी विचारधारा का अभाव
(xi) रूस में बौद्धिक जागरण,
(xii) 1905 की क्रांति,
(xiii) प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय,
(xiv) 1917 की फरवरी क्रांति,
(xv) पेट्रोग्राद की क्रांति,
(xvi)अस्थायी सरकार का पतन।।
* बोल्शेविक क्रांति मार्च 1917 में रूस में प्रथम क्रांति हुई। इसके 6 महीने बाद ही अक्टूबर 1917 में दूसरी क्रांति हुई और बोल्शेविकों के नेता लेनिन के नेतृत्व में रूस में गणतंत्र की स्थापना हुई, तथा प्रथम साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई।
* क्रांति का महत्व-तात्कालिक एवं परवर्ती परिणामों की दृष्टि से रूस की क्रांति विश्व के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है
* क्रांति के परिणाम : क्रांति का रूस पर प्रभाव-
(i) स्वेच्छाचारी शासन का अंत और लोकतंत्र की स्थापना,
(ii) सदियों से शोषित सर्वहारा वर्ग को अधिकार और सत्ता,
(iii) नई शासन-व्यवस्था की स्थापना,
(iv) नए प्रकार की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की स्थापना,
(v) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना,
(vi) गैर-रूसी राष्ट्रों का विलयन,
(vi) सभी जातियों को समानता का अधिकार,
(vii) रूसीकरण की नीति का परित्याग ।
* क्रांति का विश्व पर प्रभाव-
(i) रूस की क्रांति का विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा।
(ii) रूस में साम्यवादी शासन की स्थापना के बाद विश्व के अन्य देशों-चीन, वियतनाम आदि में साम्यवादी सरकारें बनीं।
(iii) पूँजीवादी राष्ट्रों में आर्थिक सुधार के प्रयास हुए ।
(iv) अंतर-राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन मिला।
(v). साम्राज्यवाद के पतन की प्रक्रिया तीव्र,
(vi) नए शक्ति-संतुलन की स्थापना ।
* लेनिन और रूस का नवनिर्माण-रूस के नवनिर्माण में लेनिन का महत्वपूर्ण योगदान रहा। लेनिन का जन्म 10 अप्रैल 1870 को हुआ तथा उसकी मृत्यु 21 जनवरी को 1924 को हुई।
* लेनिन के आंतरिक कार्य-
(i) युद्ध की समाप्ति,
(ii) नारियों की स्थिति में सुधार,
(ii) आर्थिक व्यवस्था में सुधार,
(iv) शिक्षा में सुधार,
(v) सामाजिक सुधार,
(vi) धार्मिक स्वतंत्रता,
(viii) आंतरिक शत्रुओं का दमन,
(viii) नए संविधान का निर्माण,
(ix) वैधानिक व्यवस्थाएँ।
* लेनिन की विदेश नीति-
(i) वैदेशिक नीति,
(ii) गुप्त संधियों की समाप्ति,
(iii) राष्ट्रीयता का सिद्धांत,
(iv) साम्राज्यवाद विरोधी नीति,
(v) कौमिण्टर्न की स्थापना ।
* रूस में 22 जनवरी (पुराने कैलेंडर में 9 फरवरी), 1905 को खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।
* नई आर्थिक नीति का मुख्य उद्देश्य उपज बढ़ाना था।
* 1917 की क्रांति के समय रूस में रोमानोव राजवंश का शासन था।
* 1904-05 में रूस का जापान के साथ युद्ध हुआ।
* लाल सेना का गठन ट्राटस्की ने किया था।
अध्याय 03 - हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आन्दोलन
इंडो-चाइना (हिंद-चीन) में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद
* इंडो-चाइना तीन देशों से मिलकर बना है।
ये तीन देश–वियतनाम, लाओस और कम्बोडिया है।
* फ्रांसीसियों ने 1858 में वियतनाम में प्रवेश किया तथा वहाँ उन्होंने अपना उपनिवेश स्थापित किया।
* फ्रांस की औपनिवेशिक योजना–
(i) फ्रांस के साम्राज्य को एक यूनियन में बदलना जिसमें सभी अधीनस्थ उपनिवेश रहेंगे।
(ii) हिंद-चीन इस फ्रांसीसी महासंघ का एक स्वशासित अंग होगा।
(iii) हिंद-चीन के सभी राज्यों को मिलाकर एक संघ बनाना ।
(iv) हिंद-चीन संघ के विदेश नीति एवं सेना पर फ्रांस का नियंत्रण रहेगा।
* व्यापारिक कंपनियों का हिंद-चीन में आगमन–
(i) पुर्तगाली,
(ii) डच,
(iii)इंग्लैंड,
(iv) फ्रांस
* शिक्षा नीति विनतयनाम में फ्रांसीसी किस्म . के स्कूल की स्थापना-वि यतनामियों को यूरोपीय सभ्यता सीखाना। फ्रांसीसी पुस्तकों का प्रचार करना। टोकन फ्री स्कूल खोलना । वियतनामियों को आधुनिक बनाना।
* शिक्षा नीति का विरोध-सरकारी शिक्षा नीति का विरोध स्वतंत्रता आंदोलन शुरू-'यंग अन्नान' की स्थापना तथा अन्नानीय स्टूडेंट पत्रिका प्रकाशित।
* धार्मिक नीति–वियतनाम में बौद्ध धर्म के साथ-साथ कंफ्यूशियस के दर्शन का पूरा प्रभाव, परंतु फ्रांसीसियों द्वारा ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार वियतनामियों का विरोध में स्कॉलर्स रिवोल्ट तथा होआ हाओं आंदोलन करना।
* आर्थिक विकास-मेकोंग डेल्टा क्षेत्र में सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण कर कृषि का विकास करना । रेल लाइन तथा बंदरगाह को विकसित कर यातायात की सुविधा।
* हिंद-चीन में राष्ट्रीयता का विकास -
1903 में 'फान बोर्ड चाऊ' ने 'दुई तान होई' नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की जिसके नेता 'कुआंग दें थे। 'फान बोई चाऊ' ने 'द हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम' नामक पुस्तक की रचना की।
* राष्ट्रवाद आंदोलन-
* वियतनाम के राष्ट्रवादी नेता 'फान चू त्रिन्ह' ने राजतंत्रीय स्वरूप को गणतंत्रवादी बनाने का प्रयास किया। 20वीं शताब्दी में 'पूरब की ओर चलो' राष्ट्रवादी आंदोलन तेज, जापानी छात्रों द्वारा वियतनाम मुक्ति एसोसिएशन की स्थापना।
* वियतनाम में राष्ट्रवाद-
1914 में देशभक्तों द्वारा एक 'वियतनामी राष्ट्रवादी दल' नामक संगठन बनाना। हो ची मिन्ह द्वारा वियतनामी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना। 1940 में 'लीग फॉर दी इंडिपेंडेंस ऑफ वियतनाम' की स्थापना। 1945 में वियतनाम को जापानी आधिपत्य से मुक्ति तथा वियतनाम लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना तथा हो ची मिन्ह का राष्ट्रपति बनाना।
* गृहयुद्ध-सम्राट बाओदाई का वियतनाम पर शासन, 1954 में फ्रांसीसियों की वियतनाम से हार।
* जेनेवा समझौता-वियतनाम दो भागों में विभाजित-
(i) उत्तरी वियतनाम में साम्यवाद सरकार (हो ची मिन्ह की सरकार) तथा
(ii) दक्षिणी वियतनाम में पूँजीवाद समर्पित सरकार (बाओदाई की सरकार)।
* नेशनल लिबरेशन फ्रंट की स्थापना -
उत्तरी तथा दक्षिणी वियतनाम में युद्ध । दक्षिणी वियतनाम को अमेरिकी सहायता।
* पेरिस शांति समझौता-
1974 के पेरिस शांति समझौता से युद्ध बंद। उत्तरी तथा दक्षिणी वियतनाम के एकीकरण से संयुक्त वियतनाम की स्थापना।
* 1975 में लाओस और कंबोडिया में साम्यवादी दल की सरकारें कायम हुई।
अध्याय 04 भारत में राष्ट्रवाद
भारत में राष्ट्रवाद
* भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में की गई।
* 1919-1947 तक के समय को गाँधी युग कहा गया है।
* गाँधीजी के द्वारा तीन आंदोलन पर मुख्य रूप से बल दिया गया–
(1) असहयोग आंदोलन,
(2) सविनय अवज्ञा आंदोलन,
(3) भारत छोड़ो आंदोलन।
* महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था।
* गाँधीजी जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे।
* होमरूल लीग की स्थापना 1916 में की गई।
* एनी बेसेन्ट तथा बाल गंगाधर तिलक के सहयोग से ही होमरूल लीग आंदोलन को आगे बढ़ावा मिला।
* गाँधीजी को कैसरे-हिंद की उपाधि से सम्मानित किया गया।
* गाँधीजी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे।
* लखनऊ काँग्रेस अधिवेशन 1916 में ही संपन्न हुआ।
* गरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने ही गाँधीजी को महात्मा कहा।
* लाला हरदयाल और उनके सहयोगियों के द्वारा जर्मनी में भारतीय स्वाधीनता समिति की स्थापना की गई।
* मार्ले-मिंटो अधिनियम 1909 में पारित किया गया।
* रॉलेट एक्ट 1919 में पारित किया गया।
* जालियाँवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल, 1919 को हुआ था।
* इस घटना के उपरांत गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने अपना 'सर' का खिताब वापस लौटाने की घोषणा की।
* जालियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच हेतु हंटर समिति नियुक्त किया गया।
* गाँधीजी ने ही खिलाफत आंदोलन को सशक्त रूप से शुरू करने का निर्णय लिया था।
* सेब्र की संधि पराजित तुर्की और मित्रराष्ट्रों के बीच संपन्न हुई थी।
* मोहम्मद अली और शौकत अली ने बंबई में खिलाफत समिति का गठन किया।
* 1924 में तुर्की में मुस्तफा कमाल पाशा द्वारा खलीफा के पद को समाप्त कर दिया गया,
* हिंद स्वराज गाँधीजी द्वारा रचित पुस्तक है।
* नागपुर कांग्रेस अधिवेशन 1920 में संपन्न हुआ।
* प्रिंस ऑफ वेल्स नवंबर 1921 में भारत आए।
* ताना भगत आंदोलन अविभाजित बिहार में आरंभ हुआ था।
* अकाली आंदोलन पंजाब में हुआ था।
* केरल में मोपला विद्रोह हुआ था।
* अवध किसान सभा का गठन, जवाहरलाल नेहरू और बाबा रामचंद्र के सहयोग से किया गया।
* इनलैंड इमिग्रेशन एक्ट 1859 में असम में पारित किया गया।
नरेंद्र मंडल देशी रियासतों का सहयोग पाने के लिए गठित किया गया।
चौरीचौरा कांड 5 फरवरी 1922 को हुआ था।
स्वराज दल की स्थापना जनवरी 1923 में की गई।
स्वराज दल के अध्यक्ष चितरंजन दास तथा सचिव मोतीलाल नेहरू थे।
1925 में चितरंजन दास की मृत्यु हो गई।
साइमन कमीशन 1927 में गठित किया गया।
नेहरू रिपोर्ट 1928 में प्रकाशित किया गया।
पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी, 1930 को मनाया गया।
31 दिसंबर, 1929 की मध्य रात्रि को रावी नदी के तट पर जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगा झंडा फहराया।
दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 को शुरू हुई।
1928 में दिल्ली में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी (Hindustan Socialist Republic Army) की स्थापना की गई।
गाँधी-इरविन समझौता 5 मार्च, 1931 को हुआ।
पूना समझौता 26 सितंबर 1932 को गाँधी और डॉ. अंबेदकर के बीच हुआ।
हरिजन नामक पत्रिका का प्रकाशन गाँधीजी के द्वारा हुआ।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सजा 23 मार्च, 1931 को दिया गया।
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने मातृभूमि की स्तुति के लिए 1870 के दशक में 'वंदेमातरम्' गीत की रचना की।
स्वदेशी आंदोलन के दौरान बंगाल में हरा, पीला तथा लाल रंग का तिरंगा झंडा बनाया गया। गाँधीजी ने 'स्वराज झंडा' बनाया इसमें सफेद, हरा और लाल रंग था तथा बीच में स्वावलंबन का प्रतीक चरखा बना हुआ था।
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अध्याय 05 अर्थव्यवस्था और आजीविका
अर्थव्यवस्था और आजीविका : औद्योगिकीकरण का युग
फ्रांस के लुई ब्लॉ ने औद्योगिक क्रांति शब्द का पहला प्रयोग किया।
औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम इंगलैंड में 18वीं शताब्दी में हुई।
औद्योगिक क्रांति वैज्ञानिकों तथा आविष्कारकों की देन थी।
सर्वप्रथम इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति होने के कारण-
(i) इंगलैंड की भौगोलिक स्थिति
(ii) प्राकृतिक साधनों की उपलब्धता
(iii) कृषि क्रांति
(iv) मजदूरों की उपलब्धता
(v) कुशल कारीगर
(vi) पर्याप्त पूँजी की उपलब्धता
(vii) प्रगतिशील व्यापारी वर्ग
(viii) अनुकूल राजनीतिक स्थिति
(ix) जनसंख्या में वृद्धि
(x) वैज्ञानिकों का योगदान
(xi) उपनिवेशवाद
(xii) परिवहन की सुविधा
(xiii) राजकीय संरक्षण।
नई मशीनों का आविष्कार-
(i) फ्लाइंग शटेल
(ii) स्पिनिंग जेनी
(iii) म्यूल
(iv) वाटरफ्रेम
(v) पावरलूम
(vi) कपास ओटने की मशीन इत्यादि।
रासायनिक उद्योग-
कपड़ा धोने-रंगने तथा उन पर छपाई की मशीनों का आविष्कार ।
परिवहन उद्योग–
(i) जॉर्ज स्टीफेंशन वाष्पचालित रेल इंजन,
(ii) रॉबर्ट फुल्टन-पानी का जहाज (वाष्पचालित)।
खान उद्योग-
(i) हम्फ्री डेवी-सेफ्टी लैम्प (1815)
लौह उद्योग-
(i) बेसमेर-लोहा को कठोर बनाने का तरीका
(ii) अब्राहम डर्बी-लोहा गलाने की प्रक्रिया।
कारखानेदारी प्रथा का विकास-
सूती वस्त्र उद्योग
लोहा और इस्पात उद्योग का विकास
तकनीकी विकास की गति तीव्र न होकर धीमी तथा परंपरागत उद्योग समाप्त नहीं हुए।
मशीनीकरण के विकास के बावजूद श्रमिकों की माँग, इसका कारण–
(i) कम मजदूरी पर काम करनेवाले श्रमिकों की उपलब्धता,
(ii) मशीन के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता
(iii) मजदूरों की संख्या को कम-ज्यादा करने की सुविधा।
छोटे श्रमिकों की माँग बनी रही—इसका कारण कम मजदूरी और मशीन में अधिक पूँजी की आवश्यकता। विशेष प्रकार के सामान कुशल कारीगरों द्वारा ही बनाए जा सकते थे।
श्रमिकों का जीवन–नौकरी की कठिनाइयाँ, छंटनी की समस्या एवं वेतन की कमी।
भारत में औद्योगिकीकरण-अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय वस्त्र की माँग, बुनकरों के व्यवसाय में गिरावट एवं इंगलैंड के बने वस्त्रों का भारत में आयात।
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान और बाद में कल कारखानों की संख्या में तेजी से हुई वृद्धि।
औद्योगिकीकरण का प्रभाव-उद्योगों का विकास, नगरीकरण को बढ़ावा, कुटीर उद्योगों की अवनति एवं सामाजिक विभाजन ।
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अध्याय 06 शहरीकरण एवं शहरी जीवन
शहरीकरण एवं शहरी जीवन
नदी घाटी सभ्यताओं में मेसोपोटामिया सबसे प्रमुख शहर था जिसका उदय 3000 वर्ष ईसा पूर्व में हुआ। सिंधु घाटी में हड़प्पा और मोर्हनजोदड़ो विख्यात नगर थे यूनान और रोम में भी नगरों का विकास हुआ था।
सभी शहर एक प्रकार के नहीं थे कुछ छोटे शहर थे तो बड़े नगर भी थे।
लीड्स, मैनचेस्टर जैसे आधुनिक औद्योगिक नगरों का विकास सर्वप्रथम इंगलैंड में हुआ।
औद्योगिक नगर होने में लंदन की आबादी में तेजी से वृद्धि हुई। आबादी में विस्तार के साथ लंदन में अपराध और अपराधी की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई थी। कारखानों मे रोजगार के अवसर कम होने पर महिलाओं ने घरेलू नौकरानी, पेइंग गेस्ट रखने, सिलाई, बुनाई करने, माचिस बनाने जैसे व्यवसाय अपना लिए।
कारखानों में कम मजदूरी पर बच्चों से काम करवाया जाता था। इसे रोकने के लिए अनिवार्य शिक्षा कानून और फैक्टरी एक्ट पास किये गए।
बाहर से आकर शहर में रहनेवालों के लिए स्थानीय शासन और परोपकारी लोगों ने रैनवसेरे और 'अजनबी घर' बनाये । धनी
लोगों ने गरीबों के लिए टेनेमेंट्स बनवाए ।
19वीं शताब्दी में लंदन में सड़कों पर शराबखोरी रोकने के लिए संयमता आंदोलन चलाया गया। इसका उद्देश्य नशीले पदार्थों का उपयोग संयमतापूर्वक करने
का सुझाव देना था।
लंदन को साफ सुथरा, प्रदूषणमुक्त और नागरिकों को खुली हवा उपलब्ध कराने के लिए इर्द-गिर्द हरित पत्ती का निर्माण किया गया। संपन्न लोगों के लिए गार्डन सिटी की योजना एवेनेजर हार्वड ने तैयार की।
1863 में लंदन में विश्व की पहली भूमिगत रेल चलाई गई।
शहरी जीवन के कारण परिवार के स्वरूप और व्यक्तिवाद की भावना में बदलाव आया। औरतों के प्रति सोच में बदलाव आया। संपन्न वर्ग के लोगों के लिए विविध प्रकार के मनोरंजन के साधन विकसित किए गए। शहरों में राजनीतिक गतिविधियाँ बढ़ी और शहर राजनीतिक केंद्र बन गया।
बंबई (वर्तमान मुंबई) सात टापुओं से निर्मित है। ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसका विकास किया। 19वीं शताब्दी में इसका विकास एक महत्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में हुआ तथा सूती कपड़ों के निर्यात का केंद्र बना। 1819 में बंबई प्रेसिडेंसी की राजधानी बनी। बम्बई की आबादी लंदन से अधिक घनी थी। बंबई में बाहर से आकर रहनेवाले लोगों के चालों का निर्माण किया।
1896 में हरीशचंद्र सखाराम भाटवाडेकर ने पहली फिल्म बनाई। 1913 में दादा साहब फाल्के ने राजा हरिश्चंद्र फिल्म बनाई।
बंबई के सुनियोजित विकास के लिए 1898 में सिटी ऑफ बंबई इम्प्रवूमेंट ट्रस्ट की स्थापना की गई।
1918 में किराया कानून पारित किया गया।
शहरीकरण का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। कारखानों की चिमनियों से निकलनेवाले धुएँ ने शहर का वातावरण दूषित कर दिया। इसे रोकने के लिए लंदन में धुआँ नियंत्रक कानून पास किया गया। कलकत्ता में 1863 में धुआँ निरोधक कानून पारित किया गया। बंगाल धुआँ निरोधक आयोग ने कलकत्ता में वायु प्रदूषण को कम करने का प्रयास किया।
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07 - व्यापार और भूमंडलीकरण
व्यापार और भूमंडलीकरण
आधुनिक काल के पूर्व वैश्विक संपर्क सिंधु घाटी की सभ्यता का मेसोपोटामिया से तथा रोमन जगत से और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से बढ़ा। मध्य काल, आधुनिक काल में भी व्यापारिक सांस्कृतिक संपर्क विकसित हुआ।
ईसा की आरंभिक सदियों में व्यापार में रेशम मार्ग का महत्व बढ़ा। यह मार्ग स्थल और समुद्री मार्ग से मध्य एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया यूरोप और अफ्रीका जुड़ गए। 15वीं शताब्दी तक यह एशिया से यूरोप को जोड़नेवाला प्रमुख व्यापारिक मार्ग बना रहा।
आपसी संपर्क से खाद्यान्न एक देश से दूसरे देश में ले जाए गए। आलू, सोयाबीन, मूंगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च, शकरकंद यूरोप से भारत आए।
भौगोलिक खोज से एशिया और अमेरिका के फसल और खनिज पदार्थों की ओर यूरोपीय व्यापारियों और नाविकों का ध्यान गया। इससे उपनिवेशीकरण को बढ़ावा मिला।
19वीं शताब्दी के वैश्विक अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता थी व्यापार, श्रम तथा पूँजी का प्रवाह।
ब्रिटेन के संदर्भ में ब्रिटेन में कृषि उत्पादो के मूल्य में वृद्धि हुई जिससे बड़े कृषक और भू-स्वामी लाभान्वित हुए। कार्न लॉ पारित होने से अनाज तो सस्ता हुआ परंतु किसानों की आमदनी घट गई। वे बेरोजगार हो गए और काम की तलाश में दूसरी जगह चल गए, जिससे इंगलैंड में आयात बढ़ गया। 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन में व्यापार, श्रम और पूँजी का विकास हुआ, इससे 1890 तक वैश्विक कृषि अर्थ व्यवस्था का विकास हुआ।
माल ढुलाई के लिए परिवहन, माँस के व्यापार के लिए रेफ्रीजरेटर का व्यवहार होने से व्यापार का विकास हुआ।
यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीका और एशिया में सैनिक अभियानों और व्यापार के द्वारा अपने उपनिवेश स्थापित किए। अफ्रीका का आपसी सैनिक बँटवारा कर वहाँ के आर्थिक संसाधनों पर अधिकार कर लिया। उपनिवेश विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ गए।
19वीं शताब्दी के अंत में अफ्रीका के मवेशियों में यह बीमारी फैली जिससे पशु धन और खेती नष्ट हो गई।
19वीं शताब्दी में भारतीय श्रम का प्रवाह दूसरे देशों में बड़ी संख्या में हुआ, जहाँ इनका जीवन कष्टदायक था। धीरे-धीरे वे उन देशों की संस्कृति में घुल गए । भारतीय और विदेशी सांस्कृतिक तत्वों का समागम हुआ।
महाजनों और साहूकारों ने कृषि के विकास के लिए सूद पर किसानों को कर्ज मुहैया कराया। कुछ महाजन और साहूकार बड़े व्यापारी और बैंकर बन गए। इन लोगों ने अपने व्यावसायिक संगठन बनाए। एशिया और अफ्रीका में पूँजी निवेश किया। सिंधी व्यापारियों ने महत्वपूर्ण बंदरगाहों पर इंपोरियम खोलकर धन कमाया।
ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से भारत ने वैश्विक व्यवस्था में भाग लिया। कपास, नील, अफीम का निर्यात किया गया एवं मैनचेस्टर में बने वस्त्र, चाय, चीनी मिट्टी के बर्तन और अन्य सामानों का आयात किया गया। इससे कंपनी को आर्थिक लाभ हुआ, परंतु भारत से धन-निष्कासन बढ़ गया।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई तथा अमेरिका की संपन्नता बढ़ गई।
अमेरिका विश्व का कर्जदाता बन गया। युद्ध के दौरान माँग, उत्पादन और रोजगार में तेजी आई। परंतु, धीरे-धीरे किसानों की स्थिति दयनीय हो गई।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था की प्रमुख व्यवस्था थी-वृहत् उत्पादन करना । इसका आरंभ कार निर्माण के लिए हेनरी फोर्ड ने किया। इसके अग्रलिखित लाभ हुए–(i) इंजीनियरिंग सामानों की लागत और मूल्य में कमी आई |
(ii)वेतन बढ़ने से मजदूरों की स्थिति में सधार आया
(iii) उपभोक्ता वस्तुओं की माँग में वृद्धि हुई
(iv) उत्पादन की गति लगातार बढ़ती गई
(v) उपभोक्ता वस्तुओं तथा घरों को खरीदने के लिए हायर परचेज की व्यवस्था की गई जिससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई।
1929-30 में आर्थिक महामंदी के कारण-
(i)कषि में अति उत्पादन,
(ii) अमेरिका में पूंजी के प्रवाह में कमी तथा बैंकिंग व्यवस्था नष्ट । संपन्नता का स्थान निर्धनता और बेरोजगारी ने ले लिया।
(i) व्यापार में गिरावट आई
ii) कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी आई किसानों की स्थिति दयनीय हो गई। भारत से सोने का निर्यात बढ़ गया। शहरी वर्ग मंदी से अधिक
प्रभावित नहीं हुआ।
1960 के दशक से अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तन–
(i) स्थिर विनिमय दर के स्थान पर अस्थिर विनिमय दर
(ii) विकासशील देशों में कर्ज-संकट आरंभ हुआ
(iii) विकासशील देशों में बेरोजगारी की समस्या बढ़ी
(iv) चीन की अर्थव्यवस्था में परिवर्तन
(v) कम वेतन वाले देशों में उद्योगों की स्थापना से वैश्विक व्यापार में वृद्धि।
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अध्याय 08 प्रेस-संस्कृति एवं राष्ट्रवाद
प्रेस, संस्कृति और राष्ट्रवाद
छपाई की तकनीक का आरंभ छठी शताब्दी में चीन और आठवीं शताब्दी में जापान में हुआ।
तेरहवीं शताब्दी के आरंभ में मार्कोपोलो ने चीन से वुडब्लॉक छपाई की तकनीक इटली लाया। इटली से यूरोप के अन्य भागों में इसका प्रसार हुआ।
जर्मनी के गुटेनबर्ग ने 1450 में छापाखाना का आविष्कार किया। इसमें छपनेवाली पहली पुस्तक बाइबिल थी। कैक्सटन ने इंगलैंड में 1477 में छापाखाना का प्रचार किया।
बड़ी संख्या में पुस्तकों की छपाई के साथ जिज्ञासु पाठक वर्ग का उदय और विकास हुआ।
पुस्तकें पढ़कर लोग चर्च में व्याप्त कुरीतियों पर उँगली उठाने लगे और वाद-विवाद करने लगे। धार्मिक विचारों के प्रसार को रोकने के लिए चर्च द्वारा प्रकाशकों एवं पुस्तक विलाओं पर प्रतिबंध लगाये गये।
पाठकों की बढ़ती संख्या तक पहुँचने के लिए सस्ती किताबें बड़ी संख्या में छापी गई, जिसे इंगलैंड में पेनी चैपबुक्स और फ्रांस में
बिब्लियोथीक ब्ल्यू कहा जाता था।
पुस्तकों ने (i) ज्ञानोदय के विचारों का प्रसार किया। (ii) वाद-विवाद की संस्कृति को बढ़ावा दिया। राजशाही के विरुद्ध असंतोष को उखाड़ा। इस प्रकार फ्रांस की क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार करदी।
धातु के बने छापाखाना, शक्तिचालित बेलनाकार प्रेस, ऑफसेट प्रेस, स्वचालित पेपर-रील और फोटो-विद्युतीय नियंत्रण का व्यवहार।
उपन्यासों का धारावाहिक प्रकाशन, कम मूल्य वाली किताबों के प्रकाशन, महँगी पुस्तकों के पेपर बैंक, नए संस्करण के प्रकाशन इत्यादि विधियों से पुस्तकों की बिक्री बढ़ती है।
भारत में छपाई का कार्य पुर्तगालियों के आगमन के साथ सोलहवीं शताब्दी में शुरू हुआ । कैथोलिक पादरियों ने कोचीन में पहली पुस्तक तमिल भाषा में प्रकाशित की।
उपन्यास, पत्र-पत्रिकाएँ, लेख, कार्टून, कैरिकेचर इत्यादि प्रकाशन को नया स्वरूप प्रदान करते हैं।
स्त्रियों को शिक्षा देनेवाले लेख, उपन्यास तथा कहानी का प्रकाशन 19वीं शताब्दी में तेजी से होने लगा।
कुछ मजदूरों जैसे काशी'बाबा और सुदर्शन चक्र ने गरीबों और मजदूरों के लिए 1938 से 1955 के दौर में अनेक पुस्तकें और कविताएँ लिखी।
18वीं सदी में इंगलैंड में पेनी चैपबुक्स की किताबों सस्ती होने के कारण निर्धन वर्ग के लोग भी खरीदकर पढ़ सकते थे।
औपनिवेशिक काल में प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास किया गया। 1878 में वायसराय लिटन के समय में वर्नाक्यूलर प्रेस ऐक्ट पारित एवं भारत रक्षा नियम और भारतीय रक्षा अधिनियम द्वारा प्रेस पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया गया। उपन्यास लेखन इंगलैंड और फ्रांस से आरम्भ हुआ। उपन्यास लेखन की ऐतिहासिक धारावाहिक शैलियाँ प्रचलित हैं। इस क्रांति से श्रमिक वर्ग का उदय हुआ। श्रमिकों की दयनीय दशा पर चार्ल्स डिकेंस और
एमिली जोला ने उपन्यास लिखें।
इंगलैंड में बदलते ग्रामीण परिवेश पर टॉमस हार्डी का उपन्यास 'मेयर ऑफ कैस्टरब्रिज' प्रकाशित हुआ।
महिलाओं के लिए अनेक उपन्यास महिला उपन्यासकारों ने लिखीं। इनमें जेन आस्टिन के प्राइड एंड प्रेज्युडिस तथा शरलॉट वाण्ट जेन आयर विख्यात है।
युवाओं के लिये साहस और वीरतापूर्ण उपन्यास लिखे गए। इनमें प्रमुख हैं डेनियल डेफो रॉबिंसन क्रूसो तथा गुलिबर्स ट्रैवेल्स आर. एल. स्टीवेंसन का ट्रेजर आइलैंड और रूडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक ।
उपन्यासों के द्वास, उपनिवेशवादी प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया । गया। कछ । उपन्यासों में उपनिवेशवाद के दुर्गुणों को उजागर भी किया
गया।
भारत में आरंभिक उपन्यास मराठी और बंगाली भाषा में छापी।
दक्षिण भाषा का पहला उपन्यास मलयालम भाषा में था 'इंदुलेख' चंदु मेनन ने लिखा था।
हिंदी भाषा का पहला उपन्यास दिल्ली के श्रीनिवास दास द्वारा लिखित परीक्षा-गुरु "था। देवकीनंदन खत्री के उपन्यास
चन्द्रकांता से हिंदी भाषा का व्यापक प्रसार हुआ। बंगाली भाषा में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने दुर्गेशनंदिनी और आनंद मठ तथा शरतचंद्र ने देवदास तथा चरित्रहीन जैसे सशक्त उपन्यास लिखें।
उपन्यास के अग्रलिखित उपयोग हैं-
(i)औपनिवेशिक प्रशासकों के लिए
(ii) भारतीयों के लिए
(iii)अतीत के प्रति गौरव और राष्ट्रवाद की भावना का विकास
(iv) विभिन्न भाषाई शैलियों का ज्ञान
(v) उपन्यासों में आधुनिकता का चित्रण और इसका प्रभाव
(vi) मनोरंजन के साधन के रूप में उपन्यास तथा
(vii) मौन रहकर पढ़ने की संस्कृति का विकास।
सामान्यतः 19वीं सदी के प्रारंभ तक महिलाओं द्वारा उपन्यास पढ़ने का विरोध होता था परंतु महिलाओं ने पढ़ा भी और लिखा भी। हाना मूलेन्स ने बंगाल भाषा का पहला उपन्यास करुणा फूलमनीर बिबरण तथा रोकेया हुसैन ने सुल्ताननाज ड्रीम और पद्यराग लिखी।
निम्न जातियों की स्थिति पर इंदुलेखा, इंदिराबाई, सरस्वतीविजयम जैसे प्रभावशाली उपन्यास लिखे गए।
भूदेव मुखोपाध्याय का बंगाल में लिखा
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