बुद्धि (BUDDHI ) को निर्धारित करने वाले कारक
(Factors determining Intelligence)
Post Title | बुद्धि (BUDDHI ) को निर्धारित करने वाले कारक | Buddhi Ko Prbhavit Krne Vale Kark |
Course- | B.Ed & D.El.Ed & CTET |
University | सभी यूनिवर्सिटी के लिए |
बुद्धि (Intelligence) एक जन्मजात योग्यता है अथवा अर्जित योग्यता है, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। मनोवैज्ञानिक इस बात पर एकमत नहीं हो पाए हैं कि बुद्धि (Intelligence)को निर्धारित करने वाला मुख्य कारक वंशानुक्रम (Heredity) है या वातावरण (Environment) | बुद्धि वंशानुक्रम से निर्धारित होती है या वातावरण से, इस प्रश्न के संबंध में सदैव ही दो मत रहे हैं । एक मत के अनुयायी मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि वुद्धि मुख्य रुप से वंशानुक्रम से निर्धारित होती है तथा वातावरण की इसमें गौण भूमिका रहती है। इसके विपरीत दूसरे मत के मानने वाले मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुद्धि का निर्धारण मुख्य रूप से वातावरण के द्वारा होता है तथा वंशानुक्रम का इसमें कोई विशेष महत्व नहीं है । वुद्धि के संबंध में इस प्रकार के मतभेद को मनोविज्ञान में प्रकृति-पोषण विवाद (Nature-Nurture Controversy) भी कहा जाता है।
बुद्धि को निर्धारित करने वाले कारक
(1) वंशानुक्रम (Heredity)-
(2) वातावरण (Environment)-
बुद्धि को निर्धारित करने वाले कारक
(1) वंशानुक्रम (Heredity)
व्यक्तिगत भिन्नता के कारकों को ज्ञात करने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्रारम्भ हो गए थे। ब्रिटिश वैज्ञानिक सर फ्रांसिस गाल्टन (Galton) ने अनेक महान व्यक्तियों के पारिवारिक इतिहास का अध्ययन किया तथा पाया कि उनमें से अनेक व्यक्ति परस्पर रक्त संबंधी थे। इस परिणाम के आधार पर उसने कहा कि उच्च कोटि की बुद्धि कुछ विशिष्ट कुलों में ही पाई जाती है। तब उन्होंने व्यक्तिगत भिन्नता की वंशानुक्रमी प्रकृति की मान्यता का प्रतिपादन किया। गाल्टन ने 1866 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में वुद्धि की विभिन्नता का एक मात्र कारक जैवकीय वंशानुक्रम को बताया। उस समय के अधिकांश मनोवैज्ञानिकों ने इस विचार को एक स्वीकृत तथ्य के रूप में ग्रहण कर लिया। बाद में टरमैन (Terman) तथा गोडार्ड (Goddard) आदि मनोवैज्ञानिकों ने भी अनेक व्यक्तियों के परिवारिक इतिहास का अध्ययन करके वुद्धि के वंशानुक्रमीय होने की मान्यता की पुष्टि की। जुड़वां बच्चों तथा भाई-बहनों पर किये गए अध्ययनों के आधार पर भी इस मान्यता की पुष्टि अनेक मनोवैज्ञानिकों के द्वारा की गई हैं । सन् 1966 में आर्थर जेनसेन (Arthour Jensen) ने वुद्धिलब्धि पर किए गए अनुसंधानों का सर्वेक्षण करके निष्कर्ष निकाला कि बुद्धि (Intelligence) मुख्यतः वंशानुक्रम से निर्धारित होती हैं। उसने कहा कि बुद्धि (Intelligence) के लगभग 75 से 80 प्रतिशत भाग का निर्धारण जेनेटिक विभिन्नताओं (Genetic Differences) से होता है, जबकि शेष 20 से 25 प्रतिशत का निर्धारण वातावरणीय प्रभावों (Environmental Influence) से होता है।
(2) वातावरण (Environment)-
बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में आयोवा विश्वविद्यालय (lowa University) में किए गए अनुसंधान कार्यों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर बुद्धि (Intelligence) तथा वातावरण में संबंध स्थापित किया जाने लगा। अनेक समाजशास्त्रियों तथा मानव व्यवहार वादियों ने भी कहा कि वालक का वातावरण उसकी मानसिक योग्यता को प्रभावित करता है। वैलमैन (Wellman) व कॉफी (Coffy), स्कील्स व फिलमौर (Skeels and Filmore), विलियम्स (Williams) आदि मनोवैज्ञानिकों ने अपने अपने अध्ययनों से वातावरण की महत्ता को सिद्ध करने का प्रयास किया। इन लोगों ने बताया कि अनुकल वातावरण में ही मानसिक योग्यता का विकास होता है तथा अनुपयुक्त वातावरण में रहने से बुद्धि कुंठित हो जाती है। इस प्रकार से इन मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक योग्यता तथा बुद्धि को वातावरण के द्वारा निर्धारित होने वाला गुण बताया तथा वंशानुक्रम के महत्व को अस्वीकार कर दिया। बैंजामिन ब्लूम (Benjamin Bloom, 1964), कार्ल ब्राइटर व सिगफैड एंजिलमैन (Carl Bereiter and Siegfriend Engelmann, 1966) तथा क्लार्क व क्लार्क (Clark and Clarke, 1959) आदि वातावरण वादियों ने वुद्धिलब्धि पर किए गए अनुसंधानों के आधार पर बुद्धि को वातावरण से प्रभावित होने वाला गुण बताया। उनके अनुसार जन्म से चार वर्ष आयु की अवधि में उत्तम वातावरण प्रदान करके बुद्धिलब्धि को बढ़ाया जा सकता है।
वंशानुक्रम तथा वातावरण की अन्तक्रिया
(Heredity-Environment Interaction)-
वंशानुक्रमवादियों तथा वातावरणवादियों के द्वारा बुद्धि के संबंध में अपने-अपने पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत किए जाने की होड़ के फलस्वरुप इस प्रकरण पर एक विवाद सा उत्पन्न हो गया। वंशानुक्रमवादी मनोवैज्ञानिक वातावरण के प्रभाव को तथा वातावरणवादी मनोवैज्ञानिक वंशानुक्रम के महत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे । वास्तव में अनुसंधानों से बुद्धि के वंशानुक्रम से या वातावरण से निर्धारित होने के संबंध में कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं प्राप्त हो सका है। कुछ अनुसंधानों से बुद्धि के वंशानुक्रम से निर्धारित होने के परिणाम प्राप्त हुए हैं, जबकि कुछ अनुसंधान वुद्धि को वातावरण से निर्धारित होने के परिणाम देते हैं। वुद्धिलब्धि परीक्षणों के निर्माण में संलग्न अधिकांश मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को जन्मजात स्वीकार किया, जबकि अधिगम सिद्धान्तों के प्रतिपादन में लगे अधिकांश मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि (Intelligence) को वातावरण से प्रभावित होने की धारणा को स्वीकार किया। जैव रसायन, प्रजननशास्त्र, विकास मनोविज्ञान आदि क्षेत्रों में विकास प्रक्रिया का गहन अध्ययन किया गया तथा इसके निष्कर्षों के आधार पर वंशानुक्रम व वातावरण की अन्तक्रिया के दष्टिकोण का विचार प्रतिपादित किया गया। वर्तमान समय में यही मत अधिक मान्य है। इस मत के अनुसार वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों ही समान रुप से महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। सभी प्रकार का विकास इन दोनों की अन्तक्रिया का परिणाम होता है। बालक के बौद्धिक विकास में भी वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता है। वंशानुक्रम पर हमारा नियंत्रण लगभग नहीं के बराबर होता है, जबकि वातावरण को हम इच्छानुसार परिवर्तित कर सकते हैं । स्वस्थ, प्रेरणादायक तथा उत्तेजनापूर्ण वातावरण प्रदान करके बालक की जन्मजात शक्तियों का विकास अधिकतम स्तर तक किया जा सका है। शैशवावस्था में बालक को प्राप्त अच्छे वातावरण के फलस्वरुप उनकी बुद्धि (Intelligence)लब्धि को बढ़ाने के अनेक सफल प्रयोग हो चुके हैं।
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