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BALYAVSTH ME SANVEGATMK VIKAS | बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास Emotional Development During Childhood

 बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास 
Emotional Development During Childhood



बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास 

Emotional Development During Childhood

संवेगात्मक विकास की दृष्टि से बाल्यावस्था विकास की एक अनोखी अवस्था (Unique Stage) है। बाल्यावस्था में संवेगों की अभिव्यक्ति में सामाजिकता का भाव आने लगता है। बालक संवेगों की अभिव्यक्ति पर नियंत्रण करने लगता है । संवेगों की उग्रता कम होने लगती है। 


बाल्यावस्था में होने वाले संवेगात्मक परिवर्तनों की कुछ प्रमुख विशेषतायें निम्नवत् होती हैं -


1. संवेगों की उग्रता में हास 

Lack of Intensity of Emotions


2. ईर्ष्या (Jealousy)


3.भय (Fear)


4. निराशा (Frustration)


5. जिज्ञासा की प्रबलता

Forceful Curiosity


6. क्रोध (Anger)


7. प्रफुल्लता (Joy)


8. स्नेह (Affection)


बाल्यावस्था में होने वाले संवेगात्मक परिवर्तनों की कुछ प्रमुख विशेषतायें निम्नवत् होती हैं -


1. संवेगों की उग्रता में हास 
Lack of Intensity of Emotions


बाल्यावस्था में संवेगों की उग्रता में कमी आ जाती है। वे शैशवावस्था की भाँति उग्र रुप से अभिव्यक्ति नहीं होते हैं। समाजीकरण के प्रारम्भ होने के फलस्वरुप बालक संवेगों का दमन करने का प्रयास करता है अथवा उनको शिष्ट ढंग से अभिव्यक्त करता है। माता-पिता, अध्यापक तथा अन्य बड़े व्यक्तियों के समक्ष वह ऐसे संवेगों को प्रकट नहीं करता है, जिन्हें अवांछनीय समझा जाता है। 


2. ईर्ष्या (Jealousy)

बाल्यावस्था में बालक-बालिकाओं में किसी न किसी कारण से ईर्ष्या व द्वेष की भावना विकसित हो जाती है जिसके कारण वे अपने भाई-बहनों या साथियों को चिढ़ाते , झूठे आरोप लगाते, तिरस्कार करते, निंदा करते या व्यंग्य करते देखे जा सकते हैं। बालक प्रायः ईर्ष्या तब करता है, जब उसका कोई अधिकार छिन जाता है अथवा वह अन्यों को अपने से अच्छी स्थिति में पाता है। 


3.भय (Fear)

बाल्यावस्था में बालक में भय का संवेग होता है, परंतु यह भय शैशवावस्था के भय से कुछ भिन्न होता है। इस अवस्था में भय का संबंध प्रायः भावी कार्यों से होता है । बाल्यावस्था में बच्चों के अंदर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त न करने का भय, गृहकार्य न करने पर स्कूल में दंड मिलने का भय तथा कक्षा में प्रश्न का उत्तर न दे पाने के कारण अध्यापक द्वारा पिटाई का भय होता है।

 

4. निराशा (Frustration)

बाल्यावस्था में बालक निराशा की भावना से पीड़ित होता है। परिवार, समाज तथा विद्यालय के द्वारा बनाए गए अनुशासन संबंधी नियम बालकों की इच्छापूर्ति में बाधक होते हैं । इच्छाओं के पूरी न हो पाने के कारण बालकों में निराशा के भाव उत्पन्न होते हैं। 


5. जिज्ञासा की प्रबलता
Forceful Curiosity

बाल्यावस्था में बालक-बालिकाओं में जिज्ञासा प्रवृत्ति अत्यंत प्रबल होती है। वह जिन  वस्तुओ के  सम्पर्क में आता है, उनके संबंध में क्यों तथा कैसे से सम्बन्धित प्रश्न पूछकर उनका कार्यप्रणाली का ज्ञान प्राप्त करना चाहता है। 


6. क्रोध (Anger)

क्रोध का मुख्य कारण हताशाएं हैं। इच्छापूर्ति में बाधा पडने पर अथवा कार्यों की अनावश्यक आलोचना करने पर बालक को क्रोध आता है। बाल्यावस्था में क्रोध का संवेग प्रबल हो जाता है। बालक मौन होकर, उदास होकर, अथवा भाई-बहन या साथियों से झगडा करके अथवा वस्तुओं की उठा-पटक करके  अपने  क्रोध को प्रकट करता है। 


7. प्रफुल्लता (Joy)

प्रफुल्लता एक आनन्ददायक अभिव्यक्ति होती है। जव कोइ  सुखद अथवा आनन्ददायक परिस्थिति उत्पन्न होती है तब बालक प्रफुल्लता के वेग का अनुभव करता है। रुचिकर खाद्य पदार्थों अथवा वांछित खेल सामग्री बालक का प्रफुल्लता का कारण हो सकती है। 


8. स्नेह (Affection)

प्रफुल्लता के समान स्नेह भी एक सुखद संवेग है। बालक अपनी स्नेह भावना की अभिव्यक्ति उन व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के प्रति करता है जिनके साथ वह रहना चाहता है या जिनकी वह सहायता करना चाहता है। जिन वस्तुओं तथा व्यक्तियों के सम्पर्क में उसे सुख मिलता है, उनके प्रति वह अपना स्नेह दर्शाता है। 

बाल्यावस्था में होने वाले संवेगात्मक विकास की विशेषताओं से स्पष्ट है कि बाल्यावस्था में भय, निराशा, चिन्ता, व्यग्रता, कुण्ठा, स्नेह, हर्ष, प्रफुल्लता आदि संवेग स्पष्ट रुप से परिलक्षित होने लगते हैं। 

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