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SHISHU AVSHTHA ME SHIKSHA PDF | शैशवावस्था में शिक्षा | Education During Infancy


शैशवावस्था में शिक्षा
 
Education During Infancy


शिक्षा की दृष्टि से मानव जीवन में शैशवावस्था का अत्यंत महत्व है । वेलेन्टाइन ने तो शैशवावस्था को सीखने का आदर्श काल (Ideal Period for Learning) कहा है। वाट्सन के अनुसार विकास की अन्य किसी अवस्था की तुलना में शैशवावस्था में सीखने का क्षेत्र तथा तीव्रता (Scope and Intensity) अधिक होती है । शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा व्यवस्था करते समय इस काल की विकासात्मक विशेषताओं (Developmental Characteristics) को ध्यान में रखना अत्यंत उपयोगी तथा सार्थक हो सकता है। अतः इस काल में शिशू की शिक्षा का आयोजन करते समय निम्नांकित बातों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण होगा


 1. उचित वातावरण 

Proper Environment


शिशु के उचित विकास के लिए शान्त, स्वस्थ तथा सुरक्षित वातावरण आवश्यक है। अतः घर तथा पूर्व प्राथमिक विद्यालय में शिशुओं को शान्त, स्वास्थ्यवर्द्धक तथा सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाना चाहिए। 


2. पालन-पोषण 

Nurture

 

शैशवावस्था में शारीरिक विकास का विशेष महत्व होता है । शारीरिक विकास के लिए पौष्टिक तथा संतुलित भोजन आवश्यक है । अतः शिशु के पालन तथा पोषण में पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए जिससे उसे स्वास्थ्यवर्द्धक पौष्टिक भोजन मिल सके।


 3. स्नेहपूर्ण व्यवहार 

Affectionate Behaviour


शिशु को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए माता-पिता, शिक्षक अथवा किसी अन्य व्यक्ति को उसकी असहायपूर्ण स्थिति का लाभ नहीं उठाना चाहिए। शिशुओं को बात-बात पर डाँटना अथवा पीटना नहीं चाहिए । शिशुओं की आवश्यकताओं की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। शिशु को भय या क्रोध नहीं दिखाना चाहिए वरन् उनके प्रति दया, प्रेम, शिष्टता, सहानुभूति, स्नेह का व्यवहार करना चाहिए।



4. जिज्ञासा की संतुष्टि 

Satisfaction of Curiosity


शिशु तरह-तरह के प्रश्नों के द्वारा अपनी जिज्ञासा को शांत करना चाहता अतः माता-पिता, शिक्षक तथा अन्य व्यक्तियों को उसके प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर देत उसकी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करना चाहिए।


5. सामाजिक भावना का विकास 

Development of Sociability


शैशवावस्था के अंतिम वर्षों में शिशु दूसरे शिशुओं के साथ मिलना, बात करना तथा खेलना पसंद करने लगता है। सामाजिकता की भावना के विकास के लिए यह आवश्यक होगा कि अभिभावक तथा शिक्षक उसे अन्य बालकों के साथ मिलने-जुलने तथा खेलने के उचित अवसर प्रदान करे। 


6. मानसिक क्रियाओं के अवसर 

Opportunities for Mental Activities


शैशवावस्था में मानसिक विकास की गति अत्यंत तीव्र होती है। अतः बच्चे को सोचने तथा विचारने के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने चाहिए जिससे वह अपना सर्वोत्तम मानसिक विकास कर सके।


7. वार्तालाप के अवसर 

Opportunities for Conversation


बालक की भाषा के विकास की दृष्टि से वार्तालाप अत्यंत महत्वपूर्ण है। अभिभावकों तथा शिक्षकों को शिशुओं को छोटी-छोटी कहानियाँ तथा कविताएँ सुनानी तथा याद करानी चाहिए। शिशुओं के साथ सरल भाषा में वार्तालाप करना चाहिए।


8. आत्मप्रदर्शन के अवसर 

Opportunities for Self-Demonstration

 

शिशु में आत्मप्रदर्शन की भावना होती है। अतः उसे ऐसे कार्य करने के पर्याप्त अवसर मिलने चाहिए जिनके द्वारा वह अपनी इस भावना को प्रदर्शित कर सके। कविता पाठ, कला, शिल्पकला आदि के माध्यम से शिशुओं को अपनी योग्यताओं को प्रदर्शित करने के अवसर देने चाहिए।


 9. अच्छी आदतों का निर्माण 

Formation of Good Habits


व्यक्ति की आदतें ही उसके भावी जीवन का निर्माण करती हैं। शिशु को प्रारम्भ से ही अच्छी आदतों की ओर अग्रसर करना चाहिए। 


10. व्यक्तिगत भिन्नता पर ध्यान 

Attention on Individual Differences


विकास का स्वरूप बताता है कि शिशुओं में व्यक्तिगत भिन्नताएं होती हैं अतः शिशु के स्वाभाविक विकास के लिए शिक्षा प्रदान करते समय उनकी व्यक्तिगत भिन्नताओं पर उचित ध्यान दिया जाना आवश्यक है।


11. करके सीखने की महत्ता 

Importance of Learning by Doing


शिशु जन्म से ही क्रियाशील होता है । खेल में उसकी सहज रुचि होती है । अतः उसे करके सीखने तथा खेल द्वारा सिखाने का प्रयास किया जाना चाहिए। 

शैशवावस्था में विकास की विशेषताओं को ध्यान में रखकर यदि उपरोक्त बिन्दुओं के अनुरूप शिशु शिक्षा की व्यवस्था की जायेगी तब सम्भवतः शिशुओं का सहज. व स्वाभाविक ढंग से अधिकतम सम्भव सर्वागीण विकास हो सकेगा। 

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