शिक्षा में वंशानुक्रम तथा वातावरण की महत्ता
Importance of Heredity and Environment in Education
शैक्षिक दृष्टि से वंशानुक्रम तथा वातावरण का अत्यंत महत्व है। निःसंदेह शानुक्रम का परिवर्तित नहीं किया जा सकता, परंतु वंशानुक्रम को ध्यान में रखकर बालक को विकास के लिए उचित वातावरण प्रदान किया जा सकता है जिससे उसका सर्वांगीण विकास हो सके । आधुनिक शिक्षा में बालक को शिक्षा का केन्द्रबिन्दु माना जाता है। अतः बालक के विकास को प्रभावित करने वाले इन दोनों ही कारकों का अध्ययन महत्वपूर्ण माना जाता है। अभिभावक, अध्यापक तथा प्रशासकगण मानव विकास में वंशानुक्रम तथा वातावरण की भूमिका से अवगत होकर बालकों के शैक्षिक विकास के लिए अनुकूलतम प्रयास कर सकते हैं।
बालकों की अनेक शारीरिक, मानसिक तथा अन्य क्षमताओं के विकास में वंशानुक्रम के कारण विभिन्नताएँ होती हैं । बालक के शारीरिक तथा मानसिक विकास पर उसकी वंशानुगत विशेषताओं का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही होता है। अतः अध्यापक तथा अभिभावकगणों को बालक के शारीरिक तथा मानसिक विकास का मूल्यांकन करते समय उसके वंशानुक्रम को ध्यान में रखना चाहिए। वंशानुक्रम के कारण कभी-कभी प्रतिभाशाली माता-पिता के बच्चे मन्द बुद्धि तथा मन्द बुद्धि माता-पिता के बच्चे कुशाग्र वाले भी हो सकते हैं। ऐसे बच्चों के साथ उचित तथा स्नेहपूर्ण व्यवहार करना चाहिए । वंशानुक्रम से बालकों को कुछ प्रवृत्तियाँ भी प्राप्त होती हैं, जिनमें से कुछ सामाजिक दृष्टि से अवांछनीय भी होती हैं। इन अवांछनीय प्रवृत्तियों पर ध्यान देकर इनके दमन तथा मार्गान्तरीकरण का प्रयास भी किया जाना चाहिए । वातावरण का भी बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा नैतिक विकास में योगदान होता है। अनुकूल वातावरण में ही बालक की सुप्त जन्मजात योग्यताएँ प्रस्फुटित होती हैं । अतः घर, परिवार, समाज तथा विद्यालय में वांछित योग्यताओं के विकास के लिए अनुकल तथा अवांछित योग्यताओं के प्रतिकूल वातावरण उत्पन्न करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
स्पष्ट है कि वंशानुक्रम तथा वातावरण का ज्ञान बाल विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा शैक्षिक कार्यक्रमों का निर्माण व संचालन बालक के वंशानुक्रम तथा वातावरण को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए।