विकासात्मक विधि
Developmental Method
विकासात्मक विधि को जेनेटिक विधि (Genentic Method) भी कहा जाता है। इस विधि के अंतर्गत व्यक्ति के विकास का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। मनोवैज्ञानिक जन्म से लेकर प्रौढ़ावस्था तक व्यक्ति के विकास के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्रित करता है तथा उसका विश्लेषण करके व्यक्ति के विकास पर उसके वंशानुक्रम तथा वातावरण के प्रभाव को देखता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि विकासात्मक विधि में विकास की विभिन्न अवस्थाओं जैसे-शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था तथा प्रौढावस्था में व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, संवेगात्मक तथा चारित्रिक आदि पक्षों के विकास का अध्ययन किया जाता है। स्पष्ट है कि यह विधि दीर्घकालीन विधि है, जिसमें अनेक वर्षों तक समंकों को एकत्रित करना होता है । जीवन-इतिहास विधि तथा विकासात्मक विधि में प्रमुख अंतर यह है कि जीवन-इतिहास विधि में व्यक्ति से सम्बन्धित सूचनाएँ अन्य व्यक्ति उपलब्ध कराते हैं, जबकि विकासात्मक विधि में मनोवैज्ञानिक स्वयं अवलोकन करके अथवा मापन करके सूचनाओं को प्राप्त करता है । जीवन-इतिहास विधि में मनोवैज्ञानिक का परिस्थितियों पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। वह केवल व्यक्ति से सम्बन्धित विगत सूचनाओं को प्राप्त करता है, जबकि विकासात्मक विधि में कभी-कभी उसे परिस्थितियों को नियंत्रित करना होता है तथा वह एक लम्बे समय तक घट रही घटनाओं से सम्बन्धित सूचनाएं प्राप्त करता है।
विकासात्मक विधि की विशेषताएं
Characteristics of Developmental Method
विकासात्मक विधि की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं
(i) विभिन्न अवस्थाओं में विकास की विशेषताओं को जानने के लिए विकासात्मक विधि सर्वाधिक उपयोगी है।
(ii) बालक के विकासात्मक दोषों को जानने के लिए यह विधि अत्यंत उपयोगी
विकासात्मक विधि की सीमाएं
Limitations of Developmental Method
इस विधि की निम्नलिखित सीमाएं हैं-
(i) दीर्घकालीन होने के कारण यह विधि समय, धन व श्रम की दृष्टि से अत्यंत व्ययसाध्य है।
(ii) मानव विकास को एक-साथ अनेक कारक प्रभावित करते हैं, सभी का नियंत्रित करके अध्ययन करना सम्भव नहीं होता है।