Experimental Method
अन्तर्दर्शन तथा बहिर्दर्शन विधियों में अवलोकित किए जाने वाले व्यक्ति के व्यवहार पर अवलोकनकर्ता का कोई नियंत्रण नहीं रहता है । व्यक्ति के एक ही प्रकार के व्यवहार के अनेक कारण हो सकते हैं। यही कारण है कि अवलोकनकर्ता के लिए सदैव यह सम्भव नहीं हो सकता है कि वह व्यक्ति के व्यवहार के वास्तविक कारणों को जान सके। इसके अतिरिक्त अवलोकन विधियों के द्वारा कार्य-कारण सम्बन्ध (Cause-Effect Relationship) की स्थापना करना उपयुक्त नहीं माना जाता है। कार्य-कारण सम्बन्ध को स्थापित करने के लिए प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है। प्रयोगात्मक विधि में परिस्थितियों को नियंत्रित करके व्यवहार का अवलोकन किया जाता है। अतएव प्रयोगात्मक विधि को नियंत्रित अवलोकन विधि (Controlled Observation Method) भी कहा जाता है। प्रयोगात्मक विधि एक वैज्ञानिक विधि है तथा यह वैज्ञानिक विधि के सोपानों का अनुसरण करती है। इस विधि में प्रयोगकर्ता परिस्थितियों अथवा वातावरण को नियंत्रित करके निर्धारित करता है तथा उस निर्धारित परिस्थिति में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है
प्रयोगात्मक विधि की विशेषताएं
Characteristics of Experimental Method
(i) प्रयोगात्मक विधि एक वैज्ञानिक विधि है इससे प्राप्त निष्कर्ष वस्तुनिष्ठ, विश्वसनीय तथा वैध होते हैं।
(ii) इस विधि में परिस्थितियों पर मनोवैज्ञानिक का नियंत्रण रहता है इसलिए
इस विधि से कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किए जा सकते हैं।
(iii) इस विधि से प्राप्त परिणामों का सत्यापन प्रयोग को दोहरा कर किया जा सकता है।
(iv) पशुओं पर प्रयोग करके प्राप्त परिणामों को मनुष्यों के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।
प्रयोगात्मक विधि की सीमाएं
Limitations of Experimental Method
प्रयोगात्मक विधि की कुछ सीमाएं हैं जो निम्नवत् हैं
(i) भौतिक परिस्थितियों पर नियंत्रण रखना सरल हो सकता है, परंतु व्यवहार से सम्बन्धित परिस्थितियों पर पूर्ण नियंत्रण रखना प्रायः अत्यंत कठिन अथवा असम्भव होता है, जिसके कारण इस विधि से प्राप्त परिणाम श्रुटिपूर्ण भी हो सकते हैं। प्रयोग चाहे कितनी ही सावधानी से क्यों न किया जाए, उसमें कुछ न कुछ कृत्रिमता अवश्य ही आ जाती है, जिसके कारण परिणामों की सनीयता संदिग्ध हो जाती है।
(iii) कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जिनका निर्माण करना या तो असम्भव होता है अथवा अवांछनीय होता है। जैसे, बालकों में क्रोध, भय, डर आदि उत्पन्न करने के लिए परिस्थितियों का निर्माण करना अवांछनीय ही होगा।
(iv) इस विधि में व्यक्ति को नियंत्रित परिस्थितियों में कार्य करना होता है इसलिए उसमें प्रयोग के प्रति किसी प्रकार की कोई रुचि नहीं होती है। यही कारण है कि इस विधि में प्रयोगकर्ता को प्रयोज्यों का सहयोग प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
(v) नियंत्रित परिस्थितियों में व्यक्ति का व्यवहार अस्वाभाविक तथा आडम्बरपूर्ण हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है जिसके कारण व्यक्ति की वास्तविक दशा का ज्ञान प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
(vi) व्यक्ति को न केवल बाह्य कारक वरन् उसकी आन्तरिक दशाएं भी प्रभावित करती हैं। प्रयोगकर्ता बाह्य कारकों पर तो नियन्त्रण कर सकता है, परंतु आन्तरिक दशाओं पर नियन्त्रण करना उसके लिए सम्भव नहीं होता
(vii) पशुओं पर किए गए प्रयोगों से प्राप्त परिणाम सदैव ही मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।
सम्बन्धित प्रश्न --
शिक्षा मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि
SHIKSHA MNOVIGYAN KE PRYOGATMK VIDHI
Educational Psychology Experimental Method