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SHIKSHA MNOVIGYAN KI VIDHIYA NOTES | शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ नोट्स | Methods of Educational Psychology Notes



शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ नोट्स 
Methods of Educational Psychology Notes 


शिक्षा मनोविज्ञान वास्तव में मनोविज्ञान की एक प्रयुक्त शाखा है जो मनोविज्ञान कसिद्धान्तो का प्रयोग शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए करता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में छात्रों के व्यवहार को समझनेनियंत्रित करनेअनुमान लगाने तथा उसमें परिमार्जन करने से सम्बन्धित मनोवैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध कराता है। मानव व्यवहार का अध्ययन करने के लिए शिक्षा मनोविज्ञान विभिन्न विधियों का प्रयोग करता है जिससे वह छात्रों के व्यवहार से सम्बंधित आवश्यक सूचनाएं संकलित कर सके । क्योंकि शिक्षा मनोविज्ञान सामान्य मनोविज्ञान की ही एक शाखा है इसलिए शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ सामान्य मनोविज्ञान की विधियों से भिन्न नहीं हो सकती हैं। वास्तव में शिक्षा मनोविज्ञान सामान्य मनोविज्ञान के द्वारा व्यवहार के अध्ययन में प्रयुक्त की जाने वाली विभिन्न विधियों का प्रयोग ही करता है।

 

सामान्य जीवन में व्यक्ति अपने स्वयं के तथा अन्य व्यक्ति के व्यवहार को समझने का प्रयास करता ही रहता है । जैसेव्यक्ति सोचता है कि मुझे अमुक व्यक्ति पर क्रोध क्यों आयाअथवा रमेश अमुक वस्तु को देखकर भयभीत क्यों हो गयाइस प्रकार के प्रश्नों पर विचार करने से व्यवहार के कारणों का ज्ञान हो सकता है। इसी प्रकार अन्य व्यक्ति के व्यवहार के अवलोकन से व्यक्तियों के द्वारा किए जाने वाले व्यवहार की समझ हो जाती है। कभी-कभी व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की प्रकृति को परीक्षण के द्वारा जानना चाहता है । जैसेयदि कोई बालक सिनेमा देखने के सम्बंध में अपने पिता के दृष्टिकोण को जानना चाहता है तब वह उनसे सिनेमा जाने की अनुमति माँगता है। यदि इस प्रश्न पर उसके पिता नाराज होते हैं तब वह समझ जाता है कि उन्हें सिनेमा दिखलाना पसंद नहीं है । सामान्य जीवन में व्यवहार को समझने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली इन दोनों व्यापक विधियों- अवलोकन तथा परीक्षण को ही मनोवैज्ञानिकगण व्यवहार के अध्ययन के लिए प्रयुक्त करते हैं । अंतर मात्र इतना होता है कि मनोवैज्ञानिक इन विधियों का प्रयोग परिष्कृत ढंग से (Refined Manner) करते हैंजबकि सामान्य जीवन में व्यक्ति इनको अपरिष्कृत ढंग (Crude Manner) से करते हैं । अवलोकन तथा परीक्षण दोनों विधियों की सहायता से ही मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है।

 

मनोविज्ञान वास्तव में वैज्ञानिक ढंग से व्यवहार का अध्ययन करता है। वैज्ञानिक विधियों की मुख्य विशेषताएं क्रमबद्धता (Systematicness), यथार्थता (Accuracy); वस्तुनिष्ठता (Objectivity), परीक्षणयोग्यता (Verifiability) तथा सार्वभौमिकता (Universality) होती हैं। मनोवैज्ञानिकगण व्यवहार का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक विधियों के विविध सोपानों का अनुसरण करते हैं । वैज्ञानिक विधियाँ प्रदत्तों के संकलनविश्लेषण तथा व्याख्या के आधार पर निष्कर्षों को प्रतिपादित करती हैं। वैज्ञानिक विधि से प्राप्त परिणाम विश्वसनीयवस्तुनिष्ठवैध तथा निष्पक्ष होते हैं। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में जिन विधियों का प्रयोग किया जाता हैउनमें से कुछ प्रमुख विधियाँ निम्नवत् हैं| 

 

(1) अन्तर्दर्शन विधि (Introspection Method)


(II) बहिर्दर्शन विधि (Extrospection Method)


(III) प्रयोगात्मक विधि (Experimental Method)


 (IV) जीवन इतिहास विधि (Case-History Method)

 

(V) विकासात्मक विधि  (Developmental Method)

 

(VI) तुलनात्मक विधि  (Comparative method)

 

(VII) मनोविश्लेषणात्मक विधि (Psycho-Analytical Method)

 

(VIII) निदानात्मक विधि (Diagnostic Method)

 

(IX) सांख्यिकी विधि  (Statistical Method)

 

उपरोक्त विधियों में से अन्तर्दर्शन विधि तथा बहिर्दर्शन विधि निरीक्षण विधियों (Methods of Observation) के अन्तर्गत आती हैंजबकि जीवन इतिहास विधिविकासात्मक विधितुलनात्मक विधिमनोविश्लेषणात्मक विधिनिदानात्मक विधि तथा सांख्यिकीय विधि को विवरणात्मक विधियों (Methods of Exposition) के अंतर्गत रखी जा सकती हैं। आगे मनोविज्ञान की इन विधियों का संक्षिप्त वर्णन किया जा रहा है।

 

अन्तर्दर्शन विधि

Introspection Method

 

यह मनोविज्ञान की संभवतः सर्वाधिक प्राचीन विधि है इस विधि का प्रयोग प्राचीन काल में बहतायत से किया जाता था। अवैज्ञानिक विधि होने के कारण वर्तमान समय में इसका प्रयोग बहत सीमित हो गया है । अन्तर्दर्शन से तात्पर्य अपने अंदर देखना अथवा आत्मनिरीक्षण से है । अन्तर्दर्शन में व्यक्ति अपने स्वयं के व्यवहार को देखता है इसलिए इसे स्वअवलोकन अथवा आत्मनिरीक्षण विधि (Self-observation Method) भी कहा जाता है। प्राचीन काल के मनोवैज्ञानिक मानसिक क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इस विधि का प्रयोग करते थे। वे अपने अनुभवों के समय अर्थात् सुख-दुखक्रोध-शान्तिघृणा-प्रेम आदि स्थितियों में अपनी मानसिक दशाओं तथा भावनाओं का स्वनिरीक्षण करके उसका वर्णन करते थे तथा जिसके विश्लेषण के द्वारा वे मनोवैज्ञानिक नियमों तथा सिद्धान्तों को प्रतिपादित करते थे । उदाहरणार्थ, यदि कोई व्यक्ति क्रोध में है तथा वह अपने क्रोध की अवस्था के कारणों को स्वयं ज्ञात करे तथा इसके आधार पर क्रोध से सम्बन्धित मानसिक प्रक्रिया के नियमसिद्धान्त अथवा दशाओं का निरूपण करे तो इसे अन्तर्दर्शन कहा जायेगा।

 

अन्तर्दर्शन की विशेषताएं

(Characteristics of Introspection)

 

अन्तर्दर्शन विधि वस्तुतः आत्मनिरीक्षण की विधि है। आत्मनिरीक्षण की निम्नांकित विशेषताएं अन्तर्दर्शन की विशेषताएं भी हैं

-
 (i) व्यक्ति को अपने व्यवहार के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष (Direct), तत्काल(Immediate) तथा वास्तविक (Real) ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

 

(ii) व्यक्ति वास्तव में अपने व्यवहार का अवलोकन करता है। अन्य व्यक्ति कभी-कभी व्यवहार का वास्तविक अवलोकन नहीं कर सकते है।

 

(iii) किसी विशिष्ट उपकरण की आवश्यकता न होने के कारण यह विधि अत्यंत सरल तथा सदैव सुलभ विधि है।

 

अन्तर्दर्शन विधि की सीमाएं 

(Limitations of Introspection)

 

अन्तर्दर्शन विधि में वैज्ञानिकता का अभाव होने के कारण यह विधि अधिक मान्य स्वीकार नहीं की जाती है।

 

इस विधि की मुख्य सीमाएं निम्नवत् हैं

 

(i) अन्तर्दर्शन विधि में व्यक्ति अपने स्वयं के व्यवहार का अवलोकन करता है। किसी मानसिक प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति के द्वारा अपने व्यवहार का अवलोकन करना यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है।

 

 (ii) अन्तर्दर्शन विधि से प्राप्त होने वाली सूचनाएँ अत्यधिक विषयनिष्ठ (Subjective) होती हैं।

 

(iii) शिशुओंबालकों तथा असामान्य व्यक्तियों के द्वारा अन्तर्दर्शन विधि का  प्रयोग सम्भव नहीं हो सकता है।

 

(iv) अचेतनावस्था (unconciousness) में किए जाने वाले व्यवहार का

अध्ययन इस विधि के द्वारा नहीं किया जा सकता है।

 

(v) बदलते मनोवैज्ञानिक अनुभवों में अन्तर्दर्शन करना कठिन होता है।

 

शिक्षा मनोविज्ञान की  विधिया   

बहिर्दर्शन विधि 

Extrospection Method 


किसी अन्य व्यक्ति का अवलोकन करके उसके व्यवहार को जानना बहिर्दर्शन कहलाता है । इसीलिए बहिर्दर्शन विधि को पर-अवलोकन विधि या पर-निरीक्षण विधि के नाम से भी जाना जाता है । बहिर्दर्शन विधि में व्यक्ति के व्यवहार, उसके आचरण, क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं आदि को ध्यानपूर्वक देखकर उसके व्यवहार के कारणों का अनुमान लगाया जाता है। उदाहरणार्थ व्यक्ति क्रोधित अवस्था में क्यों आता है, क्रोधित अवस्था में व्यक्ति किस प्रकार का व्यवहार करता है, क्रोध की व्यक्ति के ऊपर क्या प्रतिक्रिया होती है, क्रोध के कारण व्यक्ति में क्या शारीरिक परिवर्तन आ जाते हैं, जैसी बातों का सूक्ष्म अवलोकन करके क्रोध से सम्बंधित व्यवहार की व्याख्या की जा सकती है। जैसे यदि किसी व्यक्ति की आँखें लाल हों, भवें तनी हुई हों तथा वह तेजी से अपने हाथों को इधर-उधर फैकता हुआ जोर जोर से बोल रहा हो तो उसके  इस व्यवहार को देखकर अन्य व्यक्ति समझ जाते है कि वह क्रोधित अवस्था में है। 



बहिर्दर्शन अथवा पर अवलोकन दो प्रकार का हो सकता है


(i ) औपचारिक बहिर्दर्शन  (Formal Extrospection) तथा


(ii) अनौपचारिक बहिर्दर्शन (Informal Extrospection)।


 

बहिर्दर्शन विधि  की विशेषताएं

Characteristics of Extrospection


बहिर्दर्शन विधि की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है


(i) बहिर्दर्शन विधि का प्रयोग शिशुओ , बालको, किशोरों, सभी  पर किया जा सकता है। 


(ii) अचेतन, अर्द्धचेतन, विकृत तथा विक्षिप्त अवस्थाओं में किए जाने वाले व्यवहारों का अध्ययन भी बहिर्दर्शन विधि के प्रयोग से किया जा सकता 


(iii) बहिर्दर्शन विधि में एक साथ अनेक व्यक्ति किसी व्यक्ति के व्यवहार का अवलोकन कर सकते है जिससे परिणाम अपेक्षाकृत अधिक वस्तुनिष्ठ, विश्वसनीय तथा वैध प्राप्त होते है। 


(iv) बहिर्दर्शन विधि की सहायता से पशुओं से प्राप्त परिणामों को मनुष्यों पर लागू करने की सम्भावना को देखा जा सकता है।


 बहिर्दर्शन की सीमाएं 

Limitations of Extrospection


बहिर्दर्शन विधि की सीमाएं निम्नवत् हैं 


(i) बहिर्दर्शन विधि की सबसे बड़ी सीमा यह है कि अवलोकनकर्ता अन्य व्यक्तियों के व्यवहार का अवलोकन या व्याख्या करते समय प्रायः अपनी पूर्वधारणाओं तथा पूर्वाग्रहों से ग्रसित रहता है जिसके कारण इस विधि से प्राप्त परिणाम कभी-कभी आत्मनिष्ठ हो जाते हैं। अवलोकित किए जाने वाला व्यक्ति कभी-कभी जानबूझकर अस्वाभाविक तथा कत्रिम व्यवहार करता है, परंतु अवलोकनकर्ता इस व्यवहार को वास्तविक मानकर उसकी त्रुटिपूर्ण व्याख्या कर देता है । अवलोकित व्यक्ति के लोंगपर्ण व्यवहार से धोखा खाकर निकाले गए निष्कर्ष असत्य होते है। 


(iii) बहिर्दर्शन विधि में अवलोकनकर्ता को एक साथ अनेक कार्य करने पड़ते हैं। व्यवहार का अवलोकन करना एक अत्यंत कठिन कार्य हैं । अवलोकनकर्ता के द्वारा की गई स्वाभाविक त्रुटियों के कारण बहिर्दर्शन विधि अविश्वसनीय परिणाम दे देती है। 


सम्बन्धित प्रश्न --

शिक्षा मनोविज्ञान की  बहिर्दर्शन विधि

SHIKSHA MNOVIGYAN KI BHIDRSHAN VDHI

Educational Psychology  Extrospection Method 

  शिक्षा मनोविज्ञान की  बहिर्दर्शन विधि  | SHIKSHA MNOVIGYAN KI BAHIDRSHAN VDHI | Educational Psychology  Extrospection Method


 प्रयोगात्मक विधि 

Experimental Method


अन्तर्दर्शन तथा बहिर्दर्शन विधियों में अवलोकित किए जाने वाले व्यक्ति के व्यवहार पर अवलोकनकर्ता का कोई नियंत्रण नहीं रहता है । व्यक्ति के एक ही प्रकार के व्यवहार के अनेक कारण हो सकते हैं। यही कारण है कि अवलोकनकर्ता के लिए सदैव यह सम्भव नहीं हो सकता है कि वह व्यक्ति के व्यवहार के वास्तविक कारणों को जान सके। इसके अतिरिक्त अवलोकन विधियों के द्वारा कार्य-कारण सम्बन्ध (Cause-Effect Relationship) की स्थापना करना उपयुक्त नहीं माना जाता है। कार्य-कारण सम्बन्ध को स्थापित करने के लिए प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है। प्रयोगात्मक विधि में परिस्थितियों को नियंत्रित करके व्यवहार का अवलोकन किया जाता है। अतएव प्रयोगात्मक विधि को नियंत्रित अवलोकन विधि (Controlled Observation Method) भी कहा जाता है। प्रयोगात्मक विधि एक वैज्ञानिक विधि है तथा यह वैज्ञानिक विधि के सोपानों का अनुसरण करती है। इस विधि में प्रयोगकर्ता परिस्थितियों अथवा वातावरण को नियंत्रित करके निर्धारित करता है तथा उस निर्धारित परिस्थिति में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है|

प्रयोगात्मक विधि की विशेषताएं 

Characteristics of Experimental Method


  प्रयोगात्मक विधि की प्रमुख विशेषताएं निम्नवत् हैं 


(i) प्रयोगात्मक विधि एक वैज्ञानिक विधि है इससे प्राप्त निष्कर्ष वस्तुनिष्ठ, विश्वसनीय तथा वैध होते हैं। 

(ii) इस विधि में परिस्थितियों पर मनोवैज्ञानिक का नियंत्रण रहता है इसलिए 

इस विधि से कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किए जा सकते हैं।


(iii) इस विधि से प्राप्त परिणामों का सत्यापन प्रयोग को दोहरा कर किया जा सकता है।


(iv) पशुओं पर प्रयोग करके प्राप्त परिणामों को मनुष्यों के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।



 प्रयोगात्मक विधि की सीमाएं

Limitations of Experimental Method

 

प्रयोगात्मक विधि की कुछ सीमाएं हैं जो निम्नवत् हैं


 (i) भौतिक परिस्थितियों पर नियंत्रण रखना सरल हो सकता है, परंतु व्यवहार से सम्बन्धित परिस्थितियों पर पूर्ण नियंत्रण रखना प्रायः अत्यंत कठिन अथवा असम्भव होता है, जिसके कारण इस विधि से प्राप्त परिणाम श्रुटिपूर्ण भी हो सकते हैं। प्रयोग चाहे कितनी ही सावधानी से क्यों न किया जाए, उसमें कुछ न कुछ कृत्रिमता अवश्य ही आ जाती है, जिसके कारण परिणामों की सनीयता संदिग्ध हो जाती है।


(iii) कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जिनका निर्माण करना या तो असम्भव होता है अथवा अवांछनीय होता है। जैसे, बालकों में क्रोध, भय, डर आदि उत्पन्न करने के लिए परिस्थितियों का निर्माण करना अवांछनीय ही होगा। 


(iv) इस विधि में व्यक्ति को नियंत्रित परिस्थितियों में कार्य करना होता है इसलिए उसमें प्रयोग के प्रति किसी प्रकार की कोई रुचि नहीं होती है। यही कारण है कि इस विधि में प्रयोगकर्ता को प्रयोज्यों का सहयोग प्राप्त करना कठिन हो जाता है।


(v) नियंत्रित परिस्थितियों में व्यक्ति का व्यवहार अस्वाभाविक तथा आडम्बरपूर्ण हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है जिसके कारण व्यक्ति की वास्तविक दशा का ज्ञान प्राप्त करना कठिन हो जाता है। 


(vi) व्यक्ति को न केवल बाह्य कारक वरन् उसकी आन्तरिक दशाएं भी प्रभावित करती हैं। प्रयोगकर्ता बाह्य कारकों पर तो नियन्त्रण कर सकता है, परंतु आन्तरिक दशाओं पर नियन्त्रण करना उसके लिए सम्भव नहीं होता 


(vii) पशुओं पर किए गए प्रयोगों से प्राप्त परिणाम सदैव ही मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। 


सम्बन्धित प्रश्न --

शिक्षा मनोविज्ञान की  प्रयोगात्मक विधि 

SHIKSHA MNOVIGYAN KE PRYOGATMK VIDHI 

Educational Psychology  Experimental Method

जीवन-इतिहास विधि

(Case-History Method)

 

कभी-कभी मनोवैज्ञानिकों को किसी व्यक्ति विशेष की विलक्षणता तथा समस्याओं को जानना होता हैतब मनोवैज्ञानिक प्रायः जीवन-इतिहास विधि का प्रयोग करते हैं। जिस व्यक्ति की विलक्षणता का अध्ययन किया जाता है वह कोई अपराधी. मानसिक रोगी ,झगड़ालू ,समाज विरोधी ,प्रतिभाशाली ,समस्यात्मक बालक आदि कुछ भी हो सकता है। व्यक्ति की विलक्षणता का कारण उसका भौतिकपरिवारिक या सामाजिक वातावरण हो सकता है। व्यक्ति अपनी पूर्वगत परिस्थितियों तथा अनुभवों के फलस्वरूप विलक्षण व्यवहार करने लगता है। मनोवैज्ञानिकगण व्यक्ति के विलक्षण व्यवहार के वास्तविक कारण को जानने के लिए उसके जीवन इतिहास का अध्ययन करते हैं। वे उस व्यक्ति के माता-पिताभाई-बहनपड़ोसियोंसम्वन्धियोंमित्रोंअध्यापकों आदि से उस व्यक्ति के द्वारा विगत में किए गए क्रियाकलापों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी एकत्रित करते हैं। व्यक्ति के वंशानुक्रमपारिवारिक व सामाजिक वातावरणशारीरिक स्वास्थ्यशैक्षिकमानसिकसंवेगात्मक विकास तथा उसकी रुचियों व अनुभवों से सम्बन्धित सूचनाओं को एकत्रित करके मनोवैज्ञानिक उन कारणों की खोज करता हैजिसके फलस्वरूप व्यक्ति के व्यवहार में विलक्षणता उत्पन्न हुई है। स्पष्ट है कि जीवन-इतिहास विधि का उद्देश्य उन कारणों का निदान करना है जो व्यक्ति को किसी विशिष्ट प्रकार का व्यवहार करने के लिए मजबूर करते हैं।

 


जीवन-इतिहास विधि की विशेषताएं

Characteristics of Case-History Method

 

इस विधि की मुख्य विशेषताएं निम्नवत् हैं

 

(i) उपचरात्मक परामर्स व् निर्देशन की दृष्टी से यह विधि सर्वोतम है |

 

(ii) मन्द बुद्धि व पिछड़े बालकों तथा मानसिक रोगों से ग्रस्त बालकों के अध्ययन के लिए यह विधि उपयोगी है।

 

(iii) इस विधि में विभिन्न स्त्रोतों से तथा व्यापक ढंग से सूचनाएं संकलित की

 

जीवन-इतिहास विधि की सीमाएँ

Limitations of Case-History Method

 

इस विधि की प्रमुख सीमाएं निम्नलिखित हैं


 (i) इस विधि का प्रयोग विशेषग्य ही कर  सकते है |


(ii) इस विधि में समयश्रम व धन अधिक लगता हैजिसके कारण यह विधि अधिक व्ययशील हो जाती है।

 

(ii) कभी-कभी व्यक्ति तथा उसके इष्टमित्र प्रश्नगत व्यक्ति से सम्बंधित प्राप्त निष्कर्ष गलत हो सकते हैं।

(iv) इस विधि से प्राप्त सूचनाओं की व्याख्या करते समय मनोवैज्ञानिकगणों में भी मतभेद रहता है।

सम्बन्धित प्रश्न -

JIVAN ETIHAS VIDHI

 जीवन-इतिहास विधि 

JIVAN ETIHAS VIDHI KE JNK KAUN HAI

 CTET ,KVS,

विकासात्मक विधि 

Developmental Method


 विकासात्मक विधि को जेनेटिक विधि (Genentic Method) भी कहा जाता है। इस विधि के अंतर्गत व्यक्ति के विकास का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। मनोवैज्ञानिक जन्म से लेकर प्रौढ़ावस्था तक व्यक्ति के विकास के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्रित करता है तथा उसका विश्लेषण करके व्यक्ति के विकास पर उसके वंशानुक्रम तथा वातावरण के प्रभाव को देखता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि विकासात्मक विधि में विकास की विभिन्न अवस्थाओं जैसे-शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था तथा प्रौढावस्था में व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, संवेगात्मक तथा चारित्रिक आदि पक्षों के विकास का अध्ययन किया जाता है। स्पष्ट है कि यह विधि दीर्घकालीन विधि है, जिसमें अनेक वर्षों तक समंकों को एकत्रित करना होता है । जीवन-इतिहास विधि तथा विकासात्मक विधि में प्रमुख अंतर यह है कि जीवन-इतिहास विधि में व्यक्ति से सम्बन्धित सूचनाएँ अन्य व्यक्ति उपलब्ध कराते हैं, जबकि विकासात्मक विधि में मनोवैज्ञानिक स्वयं अवलोकन करके अथवा मापन करके सूचनाओं को प्राप्त करता है । जीवन-इतिहास विधि में मनोवैज्ञानिक का परिस्थितियों पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। वह केवल व्यक्ति से सम्बन्धित विगत सूचनाओं को प्राप्त करता है, जबकि विकासात्मक विधि में कभी-कभी उसे परिस्थितियों को नियंत्रित करना होता है तथा वह एक लम्बे समय तक घट रही घटनाओं से सम्बन्धित सूचनाएं प्राप्त करता है।


विकासात्मक विधि की विशेषताएं

Characteristics of Developmental Method 


विकासात्मक विधि की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं


 (i) विभिन्न अवस्थाओं में विकास की विशेषताओं को जानने के लिए विकासात्मक विधि सर्वाधिक उपयोगी है।


(ii) बालक के विकासात्मक दोषों को जानने के लिए यह विधि अत्यंत उपयोगी 


विकासात्मक विधि की सीमाएं

Limitations of Developmental Method

 

इस विधि की निम्नलिखित सीमाएं हैं-


(i) दीर्घकालीन होने के कारण यह विधि समय, धन व श्रम की दृष्टि से अत्यंत व्ययसाध्य है। 


(ii) मानव विकास को एक-साथ अनेक कारक प्रभावित करते हैं, सभी का नियंत्रित करके अध्ययन करना सम्भव नहीं होता है। 


Related Question -

शिक्षा मनोविज्ञान की  विकासात्मक विधि 
SHIKSHA MNOVIGYAN KI VIKASATMK VIDHI 

Educational Psychology  Developmental Method


शिक्षा मनोविज्ञान की तुलनात्मक विधि 

Educational Psychology  Comparative Method

 

शिक्षा मनोविज्ञान की तुलनात्मक विधि  में प्राणियों के व्यवहार से सम्बन्धित समानताओं तथा असमानता का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। जैसे, पशुओं तथा मानवों के व्यवहारों की तुलना, दो प्रजातियों (Races) के व्यवहारों की तुलना, विभिन्न वातावरण में पाले गए बालकों की तुलना, लड़के तथा लड़कियों के व्यवहारों की तुलना आदि। दो समूहों के व्यवहारों की समानताओं तथा असमानताओं की तुलना से अनेक उपयोगी सूचनाएं प्राप्त हो सकती हैं। प्रायः विभिन्न पशुओं के ऊपर प्रयोग करके व्यवहार से सम्बन्धित सिद्धान्तों को स्थापित किया जाता है तथा फिर उन सिद्धान्तों की उपयुक्तता मनुष्यों के ऊपर देखी जाती है । उदाहरण के लिए, सीखने के लगभग सभी सिद्धान्तों का प्रतिपादन प्रारम्भ में पशुओं के ऊपर प्रयोग करके किया गया तथा बाद में मानव जाति के ऊपर इनकी उपयोगिता ज्ञात की गई। पशुओं तथा अन्य प्रजातियों के व्यवहारों से तुलना करके मानव व्यवहार को समझने के कारण ही इस विधि को तुलनात्मक विधि कहा जाता है।

 


तुलनात्मक विधि की विशेषताएं

Characteristics of Comparative Method 


तुलनात्मक विधि की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं 


(i) जिन प्रयोगों को मनुष्यों के ऊपर नहीं किया जा सकता, उन प्रयोगों को पशुओं के ऊपर करके सिद्धान्त प्रतिपादित करने की यह एकमात्र विधि है। 


(ii) अन्य प्रजातियों के लिए पहले से उपलब्ध ज्ञान के आधार पर व्यवहार को समझना सरल हो जाता है।


 तुलनात्मक विधि की सीमाएं

Limitations of Comparative Method


इस विधि की निम्नांकित सीमाएं हैं 


(i) मनुष्य तथा पशु में स्पष्ट अंतर होने के कारण पशुओं के ऊपर बनाए गए नियमों को यथावत् मनुष्य के ऊपर प्रयोग नहीं किया जा सकता है।


(ii) विभिन्न प्रजातियों का शारीरिक गठन, वंशानुक्रम तथा परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। अतः एक प्रजाति से प्राप्त ज्ञान को अन्य प्रजातियों पर प्रयुक्त करते समय पर्याप्त सावधानी की आवश्यकता होती है। 


Rilated Question--

शिक्षा मनोविज्ञान की तुलनात्मक विधि

SHIKSHA MNOVIGYAN KI TULNATMK VIDHI

  Educational Psychology  Comparative Method  

मनो-विश्लेषणात्मक विधि 
Psycho-Analytical Method


मनो-विश्लेषणात्मक विधि का प्रतिपादन सिगमन्ड फ्रायड (Sigmond Freual किया था। फ्रायड के अनुसार व्यक्ति का अचेतन मन भी उसके व्यवहार का प्रभाव करता है। अचेतन वास्तव में व्यक्ति की अतृप्त अथवा दमित इच्छाओ, भावनाओ का पुंज  होता है तथा यह सदैव क्रियाशील रहता है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति का व्यवहार अनजाने ही इन अतृप्त अथवा दमित इच्छाओं से प्रभावित होता रहता है | मनोविश्लेषण विधि के द्वारा व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके  उसका इन्छाओं की जानकारी प्राप्त की जाती है जिससे इन अतृप्त इच्छाओं का परिस्कार  अथवा मार्गान्तरीकरण करके व्यक्ति के व्यवहार को सुधारा जा सके । स्पष्ट है कि यह विधि सामान्य व्यवहार करने वाले व्यक्तियों की असामान्यता का निदान करने के लिए प्रयुक्त की जाती है। अचेतन में निहित व्यक्ति की अतृप्त इच्छाओं को जानने के लिए शब्दसाहचर्य, स्वप्न-विश्लेषण जैसी विभिन्न प्रक्षेपीय तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। 


मनोविश्लेषणात्मक विधि की विशेषताएं
Characteristics of Psycho-Analytical Method

इस विधि की प्रमुख विशेषताएं निम्नवत् हैं

(i) इस विधि से व्यक्ति के अचेतन तथा चेतन दोनों ही का ज्ञान प्राप्त होता है 


(ii) व्यक्ति की भावना ग्रंथियों को ज्ञात करना तथा मानसिक विकारों का निदान इस विधि के प्रयोग से ही सम्भव है।


(iii) इस विधि में व्यक्ति अपने मन की बातों को छुपा नहीं पाता है। 


मनो-विश्लेषणात्मक विधि की सीमाएं

Limitations of Psycho-Analytical Method

 

मनो-विश्लेषणात्मक विधि की निम्न सीमाएँ हैं 


(i) इस विधि का प्रयोग केवल दक्ष मनोविश्लेषक ही कर सकते हैं। 


(ii) इस विधि के प्रयोग में धन एवं समय अधिक लगता है।


(iii) इस विधि में व्यक्ति तथा मनोविश्लेषक दोनों को ही अत्यधिक धैर्य से कार्य करना होता है जो कभी-कभी असम्भव हो जाता है।


(iv) व्यक्ति के मन में छिपी अनेक वांछनीय इच्छाओं के सार्वजनिक हो जाने के कारण व्यक्ति तथा समाज इस विधि के प्रयोग करने में सहयोग नहीं देते 

सम्मबन्नोधित प्रश्न --
विश्लेषणात्मक विधि 
MNOVISHLESHAN VIDHI 
Psycho-Analytical Method
शिक्षा मनोविज्ञान के मनो-विश्लेषणात्मक विधि

निदानात्मक विधि 

Diagnostic Method


निदानात्मक विधि का प्रयोग व्यक्ति के व्यवहार की जटिलताओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। यह एक व्यक्तिगत विधि है तथा इस विधि में व्यक्ति का अध्ययन करके उसके सम्मुख आने वाली कठिनाईयों का निदान खोजा जाता है। यह विधि शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं को हल करने में विशेष उपयोगी है। जैसे, पिछड़े बालकों की कठिनाईयों को जानना, उच्च मानसिक योग्यता वाले छात्रों की शैक्षिक असफलता को जानना, अपराधी प्रवृत्ति वाले बालकों के कारणों को जानना, हकलाने वाले बच्चों के हकलाने के कारणों को जानना आदि-आदि । ऐसे बालकों या व्यक्तियों की मनोदशा का गहन अध्ययन करने, उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को जानने तथा उनके व्यवहार के कारणों को समझने के लिए निदानात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है। निदानात्मक विधि के द्वारा व्यक्ति के जटिल तथा अवांछनीय व्यवहार के कारणों को ज्ञात करके उसे उपचारात्मक उपाय बताए जाते हैं।

 


निदानात्मक विधि की विशेषताएं

Characteristics of Diagnostic Method


इस विधि की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं


(i) उपचारात्मक उपाय देने के लिए निदानात्मक विधि का प्रयोग अपरिहार्य है |


(ii) बालकों कीशैक्षि क समस्याओं का समाधान करने में निदानात्मक विधि अत्यंत उपयोगी है। 


निदानात्मक विधि की सीमाएं

Limitations of Diagnostic Method

इस विधि की निम्नांकित सीमाएं हैं 


(i) इस विधि का प्रयोग कुशल मनोचिकित्सक ही कर सकते हैं


(ii) यह विधि समय, श्रम तथा धन की दृष्टि से अत्यधिक व्ययसाध्य है। 


सम्बन्धित प्रश्न = 

निदानात्मक विधि 
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सांख्यिकीय विधि 

Statistical Method

SANKHYIKI VIDHIYO KE JNK SNSTHAPK 


सांख्यिकीय विधि एक आधुनिक तथा पर्याप्त प्रचलित विधि है। इस विधि में व्यक्तियों के प्रतिदर्श से प्रदत्तों को संकलित करके उनके आधार पर सामान्यीकरण किया जाता है। इस विधि से प्राप्त सूचनाओं, सिद्धान्तों तथा नियमों को लगभग सभी व्यक्तियो के लिए उपयुक्त माना जाता है। शिक्षा तथा मनोविज्ञान के क्षेत्र में इस विधि को एक अत्यंत उपयोगी विधि स्वीकार किया जाता है। अवलोकन, साक्षात्कार, प्रश्नावली, परीक्षण आदि मापन उपकरणों की सहायता से संकलित प्रदत्ता का सांख्यिकीय ढंग से विश्लेषण करके परिणाम प्राप्त किए जाते हैं। इस विधि से प्राप्त परिणामों की विश्वसनीयता संकलित प्रदत्तों की विश्वसनीयता पर निर्भर करती है|

सांख्यिकीय विधि की विशेषताएं

Characteristics of Statistical Method


 इस विधि की प्रमुख विशेषताएं निम्नवत् हैं


 (i) यह विधि एक वैज्ञानिक विधि है जिसके कारण इस विधि से प्राप्त सूचनाएं प्रामाणिक स्वीकार की जाती है।


(ii) इस विधि से प्रतिदर्श से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर समग्र के सम्बंध में निष्कर्ष ज्ञात किए जा सकते हैं।


(iii) सांख्यिकीय विधियों के प्रयोग में विभिन्न चरों के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों का गहन अध्ययन किया जा सकता है। 


सांख्यिकीय विधि की सीमाएं

Limitations of Statistical Method


इस विधि की निम्नलिखित सीमाएं है 


(i) इस विधि की विश्वसनीयता प्रयुक्त किए गए प्रतिदर्श तथा उससे प्राप्त सचनाओं पर निर्भर करती है। अतः यदि प्रतिदर्श सम्पूर्ण जनसंख्या का उचित प्रतिनिधित्व नहीं करता अथवा उससे प्राप्त सूचनाएं असत्य होती हैं तो इस विधि से प्राप्त परिणाम अविश्वसनीय हो जाते हैं। 


(ii) यह विधि समूहगत विशेषताओं का अध्ययन करती है। इस विधि से 

व्यक्तिगत विशेषताओं के सम्बंध में निष्कर्ष प्राप्त नहीं होते हैं। 


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SANKHYIKI VIDHI
सांख्यिकीय विधि
Statistical Method
SANKHYIKI VIDHIYO KE JNK SNSTHAPK 




उपसंहार 

शिक्षा मनोविज्ञान की उपरोक्त वर्णित कुछ प्रमुख विधियों के अवलोकन से स्पष्ट है कि शिक्षा मनोविज्ञान अपने अध्ययन के लिए अनेक विधियों का प्रयोग करता है। यह भी स्पष्ट है कि मनोविज्ञान की प्रारम्भिक विधियाँ अव्यवस्थित, आत्मनिष्ठ तथा पक्षपातपूर्ण थीं, परतु कालान्तर में मनोविज्ञान ने व्यवस्थित, वस्तुनिष्ठ, तथा पक्षपातरहित विधियों का प्रयोग करना शुरु कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप मनोविज्ञान के क्षेत्र में किए जाने वाले अध्ययन अधिक वैज्ञानिक तथा प्रामाणिक हो गए। यद्यपि मनोविज्ञान की विधियाँ भौतिक विज्ञानों के समान निरपेक्ष अथवा शत-प्रतिशत सत्य (Absolute Truth) नहीं बताती हैं, फिर भी मनोविज्ञान के विकास में ये विधियाँ अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हई हैं। आधुनिक समय में शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान के ज्ञान का उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । अब शिक्षा के.लगभग समस्त क्षेत्रों तथा समस्त कार्यक्रमों के आयोजन व संचालन में मनोविज्ञान की एक महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, मनोविज्ञान की उपरोक्त वर्णित विधियों की अपनी कुछ विशेषताएं तथा सीमाएं हैं। किसी भी एक विधि को सर्वोत्तम विधि के रूप में इंगित नहीं किया जा सकता। भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न विधि उपयोगी होती है। अतः इन विधियों का उपयोग परिस्थितियों के अनुरूप अत्यंत सतर्कता से किए जाने की आवश्यकता है जिससे प्रयुक्त की जाने वाली विधि के गुणों से लाभ उठाया जा सके तथा उसके दोषों से यथासम्भव बचा जा सके । वास्तव में, मनोविज्ञान की ये सभी विधियाँ एक दूसरे की पूरक तथा सहयोगी हैं। इनमें किसी प्रकार का परस्पर विरोध तथा संघर्ष नहीं है। 




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