निदानात्मक विधि
Diagnostic Method
निदानात्मक विधि का प्रयोग व्यक्ति के व्यवहार की जटिलताओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। यह एक व्यक्तिगत विधि है तथा इस विधि में व्यक्ति का अध्ययन करके उसके सम्मुख आने वाली कठिनाईयों का निदान खोजा जाता है। यह विधि शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं को हल करने में विशेष उपयोगी है। जैसे, पिछड़े बालकों की कठिनाईयों को जानना, उच्च मानसिक योग्यता वाले छात्रों की शैक्षिक असफलता को जानना, अपराधी प्रवृत्ति वाले बालकों के कारणों को जानना, हकलाने वाले बच्चों के हकलाने के कारणों को जानना आदि-आदि । ऐसे बालकों या व्यक्तियों की मनोदशा का गहन अध्ययन करने, उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को जानने तथा उनके व्यवहार के कारणों को समझने के लिए निदानात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है। निदानात्मक विधि के द्वारा व्यक्ति के जटिल तथा अवांछनीय व्यवहार के कारणों को ज्ञात करके उसे उपचारात्मक उपाय बताए जाते हैं।
निदानात्मक विधि की विशेषताएं
Characteristics of Diagnostic Method
इस विधि की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं
(i) उपचारात्मक उपाय देने के लिए निदानात्मक विधि का प्रयोग अपरिहार्य है |
(ii) बालकों कीशैक्षि क समस्याओं का समाधान करने में निदानात्मक विधि अत्यंत उपयोगी है।
निदानात्मक विधि की सीमाएं
Limitations of Diagnostic Method
इस विधि की निम्नांकित सीमाएं हैं
(i) इस विधि का प्रयोग कुशल मनोचिकित्सक ही कर सकते हैं।
(ii) यह विधि समय, श्रम तथा धन की दृष्टि से अत्यधिक व्ययसाध्य है।