बचपन की अवधारणा : ऐतिहासिक एवं समकालीन परिपेक्ष्य
BCHPAN KI AVDHARNA AETIHASIK AEVM SMKALIN PRIKREKSH
SUBJECT | बचपन और विकाश (CHILDHOOD AND GROWING UP) |
PAPER | C - 01 |
YEAR | 1st (FIRST YEAR) |
UNIVERSITY | VKSU ARA & अन्य |
SHORT INFORMATION | बचपन की अवधारणा : ऐतिहासिक एवं समकालीन परिप्रेक्ष | यह VKSU ARA B.Ed 1st YEAR CHILDHOOD AND GROWING UP के यूनिट 01 से सम्बन्धित है | अन्य यूनिवर्सिटी के भी यह सिलेबस में सामिल है|इस पेज में हमलोग निम्नलिखित प्रश्नों को हल करेंगे |
(01)बचपन की अवधारणा (02) बचपन की ऐतिहासिक परिपेक्ष्य (03) बचपन की समकालीन परिपेक्ष्य |
TABLE OF CONTANT बचपन की अवधारणा : ऐतिहासिक एवं समकालीन परिपेक्ष्य (01) प्रस्तावना ?>>> (02) बचपन की अवधारण ?>>> (03) बचपन की ऐतिहासिक परिपेक्ष्य ?>>> (04) बचपन की समकालीन परिपेक्ष्य ?>>> (05) निष्कर्ष >>> (06) सम्बन्धित YOUTUBE विडिओ ?>>> |
प्रस्तावना
बचपन मानव सहित सभी जीव का बहुमूल्य समय होता है| भविष्य में बालक क्या बनेगा यह बचपन से ही दिखाई देने लगता है | बचपन मकान के नीव के समान है | मकान का नीव जितना मजबूत होगा , मकान उतना मजबूत होगी |जिस प्रकार कमजोर नीव पर मजबूत बिल्डिंग सम्भव नही ,उसी प्रकार कमजोर बालक के भविष्य में मजबूत होने की सम्भावना बहुत कम है , इसलिए बच्चो पर बालकाल में विशेष ध्यान देना चाहिए |
बचपन की अवधारणा
मानव जीवन के विकास के विभिन चरण में बाल काल का अपना खाश महत्व है |जन्म के बाद एवं किशोरावस्था के बिच के काल को बचपन कहते है | सामान्यतया 0 से 12-13 वर्ष के काल को बचपन कहते है | भगवान राम एवं श्री कृष्ण का बाल काल की लीलाये जग जाहिर है | बचपन में बच्चा एक कोरी स्लेट की भाँति होता है। इस कोरी या साफ स्लेट पर हम कुछ भी लिख सकते हैं। बचपन में बच्चे अनुकरण प्रिय होते हैं. वे जैसा देखते हैं, सुनते हैं, वैसा ही करने के लिये प्रयासरत हो जाते हैं। बचपन में बच्चे के व्यक्तित्व का विकास अत्यन्त तीव्र गति से होता है। अर्थात जीवन के परे विकास का तिहाई विकास बचपन में ही पूर्ण हो जाता है। बचपन के प्रथम ढाई वर्षों में बालक के शरीर और मस्तिष्क की गति सवाधिक होती है परन्तु इस आयु में बालक अपने घर में ही रहता है तथा जाने-अनजाने घर की संस्कृति और पर्यावरण को आत्मसात करने लगता है। बचपन के छः वर्ष की आयु तक बालक हाथ-पैरों के उपयोग में नवीन कौशल अर्जित करता है। वह आत्मनिर्भर बन जाता है। अतः बचपन के समय में बालक विभिन्न क्रियाकलापों में समन्वय स्थापित करने लगता है।
17वीं सदी के उदार विचारक रूसो ने बचपन को वयस्कता के ख़तरों और कठिनाइयों से मुठभेड़ से पहले की लघु अभयारण्य अवधि कहा. रूसो ने निवेदन किया, "इन मासूमों की खुशियों को क्यों लूटें जो इतनी जल्दी बीत जाता है". "शुरुआती बचपन के जल्दी निकल जाने वाले दिनों में कड़वाहट क्यों भरें, जो दिन न उनके लिए और ना ही आपके लिए कभी लौट कर आने वाले हैं?"
कुछ लोगों का मानना है कि बच्चों को कोई चिन्ता नहीं होनी चाहिए और उन्हें काम करने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए; जीवन ख़ुशहाल और परेशानियों से मुक्त रहना चाहिए। आम तौर पर बचपन ख़ुशी, आश्चर्य, चिंता और लचीलेपन का मिश्रण है। आम तौर पर यह संसार में वयस्कों के हस्तक्षेप के बिना, अभिभावकों से अलग रहकर खेलने, सीखने, मेल-मिलाप, खोज करने का समय है। यह वयस्क जिम्मेवारियों से अलग रहते हुए उत्तरदायित्वों के बारे में सीखने का समय है।शैशवावस्था के बाद बाल्यावस्था का आरंभ होता है। यह अवस्था में बालक के व्यक्तित्व के निर्माण होती है। बालक में इस अवस्था में विभिन्न आदतों, रुचि एवं इच्छाओं के प्रतिरूपों का निर्माण होता है। बालक को आगे क्या बनना है बचपन में ही दिखाई देने लगते है |
बचपन की ऐतिहासिक परिपेक्ष्य
बचपन, जन्म के बाद से लेकर किशोरावस्था तक के आयु काल(12 -13 ) को कहते है। विकासात्मक मनोविज्ञान में, बचपन को शैशवावस्था (चलना सीखना), प्रारंभिक बचपन (खेलने की उम्र), मध्य बचपन (विद्यालय उम्र), तथा किशोरावस्था के विकासात्मक चरणों में विभाजित किया गया है।
बचपन के इतिहास में रुचि का एक विषय रहा है |एरियस ने पेंटिंग, फर्नीचर और स्कूल के रिकॉर्ड का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि १७वीं शताब्दी से पहले, बच्चों को लघु- वयस्कों के रूप में दर्शाया जाता था ।परन्तु अन्य विद्वानों ने इस बात पर जोर दिया है कि कैसे मध्यकालीन और प्रारंभिक आधुनिककाल में बाल पालन-पोषण उदासीन, लापरवाह या क्रूर नहीं था।
विल्सन का तर्क है कि पूर्व-औद्योगिक गरीबी और उच्च शिशु मृत्यु दर (एक तिहाई या अधिक बच्चों की मृत्यु के साथ) के संदर्भ में , वास्तविक बाल-पालन प्रथाओं ने परिस्थितियों में उचित व्यवहार का प्रतिनिधित्व किया। वह बीमारी के दौरान व्यापक माता-पिता की देखभाल , और मृत्यु पर शोक , माता-पिता द्वारा बाल कल्याण को अधिकतम करने के लिए बलिदान, और धार्मिक अभ्यास में बचपन की एक विस्तृत पंथ की ओर इशारा करता है|
चिकित्सकों, वकीलों और सरकारी अधिकारियों और (ज्यादातर) पुजारियों को प्रशिक्षित करने के लिए विश्वविद्यालय खोले गये । पहले विश्वविद्यालय ११०० के आसपास दिखाई दिए: 1088 में बोलोग्ना विश्वविद्यालय ,1150 में पेरिस विश्वविद्यालय , और 1167 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय बना ।
पूर्व-औद्योगिक समय में बाल श्रम आम था, बच्चे आमतौर पर खेती या कुटीर शिल्प के साथ अपने माता-पिता की मदद करते थे। हालांकि, 18वीं शताब्दी के अंत तक, बच्चों को विशेष रूप से कारखानों और खानों में नियोजित किया जाता था | बच्चो से अक्सर कम वेतन पर खतरनाक नौकरियों में लंबे समय तक काम लिया जाता था। १७८८ में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में, १४३ पानी से चलने वाली सूती मिलों में दो-तिहाई श्रमिकों को बच्चों के रूप में वर्णित किया गया था।
बचपन की समकालीन परिपेक्ष्य
20 वी शताब्दी में बाल्यावस्था
CHILDHOOD IN THE 20TH CENTURY
20 वी शताब्दी के मध्य तक औद्योगीकरण ने जोर पकड़ लिया था , बच्चो को आर्थिक कार्यो के लिए जरुरी समझना कम हो गया | पैसा कमाने का काम माता - पिता का हो गया |खाश तौर पर पैसा कमाने का काम पिता का मन जाने लगा |
परिणामस्वरूप अधिक बच्चे पैदा करने को आर्थिक बोझ समझना आरम्भ हो गया। साथ ही साथ बच्चों के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि हुई। बच्चों की परवरिश के बदले कुछ प्राप्त करने की आकांक्षा शिथिल हुई। बच्चों को वांछित प्यार और देखभाल मिलने लगा ।
बाल्यावस्था के आधुनिक संप्रत्यय व निर्माण को निम्न बिन्दुओं के द्वारा व्याख्यायित किया जा सकता है-
1. मानव विकास की अवस्थाओं में बाल्यावस्था को सबसे महत्वपूर्ण माना जाने लगा है ।
2. परिवार के अन्दर बच्चे बाहरी दुनिया से स्वयं को सुरक्षित और संरक्षित महसूस करने लगे हैं।
3. बच्चों को सुरक्षा और संतुष्टि देने के लिए माता-पिता अपने सामर्थ्य के अनुसार भरपूर प्रयास करते हैं ।
4. नाभिकीय पारिवारिक संरचना (Nuclear family structure) में बालक पर अत्यधिक ध्यान दिया जाने लगा, बाल-केन्द्रित विचारों और विश्वासों को प्रमुखता मिलने लगी।
5. विकासात्मक मनोविज्ञान का उदय हुआ, बालकों और बाल्यावस्था को विभिन्न अध्ययनों और शोध के माध्यम से विशेष प्रमुखता दी गई। एलन की (Ellen Key) ने 20वीं शताब्दी को 'बच्चों की शताब्दी' (The century of the child) कहा था।
6. मनोवैज्ञानिकों का विकास दृढ़ हुआ कि बालक का विकास पूर्वनिर्धारित, रेखीय और आयु अनुसार होता है।
7. इतिहास में पहली बार बालक वैज्ञानिक अध्ययनों और व्यावसायिक मनोविश्लेषण का केन्द्र बना ।
8. आधुनिक परिवारों में माता की तरफ से बच्चे को पूर्ण सुरक्षा और ममता प्राप्त होती है, परन्तु कभी-कभी माँ के अत्यधिक संरक्षण से बालकों का विकास प्रभावित भी होता है।
9. बच्चों की भलाई के लिए चिकित्सा और मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञों ने अपना अभूतपूर्व योगदान दिया, बच्चों के पालन-पोषण के नए तरीकों को प्रस्तुत किया, संवेगात्मक दृष्टि से विशिष्ट बच्चों को सहायता दी। बेन्जामिन स्पोक, वर्जीनिया एक्सलाइन और एरिक एरिक्सन को विशेष प्रसिद्धि मिली।
10. 1950 में अमेरिका के घरों में टेलीविजन आ गया, जिसमें माता-पिता और बच्चों के मनोरंजन के कार्यक्रम प्रसारित किए जाने लगे। आरम्भ में टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों पर बड़ा सेंसर होता था। पारिवारिक समस्याओं, गरीबी, हिंसा और शोषण आदि से सम्बन्धित घटनाएँ टेलीविजन पर नहीं दिखाई जाती थीं, ताकि बच्चों पर गलत प्रभाव न पड़े।
11. सालों बाद महिलाओं में यह जागृति आई कि उन्हें केवल पति और बच्चों की देखभाल तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, वे अपने कैरियर के साथ-साथ अपने परिवार और अपने बच्चों की देखभाल भी अच्छी तरह से कर सकती हैं ।
आधुनिक समय में यह मान लिया गया है कि व्यक्ति के जीवन चक्र की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था बाल्यावस्था है। इस अवस्था में हुए समाजीकरण और मनोवैज्ञानिक विकास जीवन भर व्यक्ति के कार्य और व्यवहार को प्रभावित करता है । बाल्यावस्था जीवन का एक महत्वपूर्ण अंश है, जिसमें बड़ों के द्वारा देखभाल और सुरक्षा आवश्यक है ।
निष्कर्ष
ऊपर लिखित बातो से स्पस्ट है की मानव जीवन एवं इसके विकास में बचपन का अपना खाश महत्व है | आज के युग में माता -पिता या अविभावक अपने बच्चो के समुचित विकास के लिए कुछ भी करने को तैयार है | गरीब से गरीब एवं धनी से धनी ब्यक्ति अपने बच्चो पर अधिकतम ध्यान देता है | विश्व के लगभग सभी सरकार भी बच्चो के समुचित विकास के लिए कार्य कर रही है| अब मध्यकालीन समय के जैसा बच्चे को छोटा मानव नही बच्चा समझा जाता है | और इन्हे भगवान का एक रूप माना जाता है | जिनके अंदर डर , भय , चिंता का कोई नाम नही है |
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