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खोज विधि || ह्यूरिस्टिक विधि || Hearistic Method pdf


खोज विधि

ह्यूरिस्टिक विधि

Hearistic Method


इस विधि को अनुसंधान विधि या 'स्वयं ज्ञान विधि' ,ह्यूरिस्टिक ,अन्वेषण या खोज विधि के नाम से भी पुकारते हैं। इस विधि को प्रोफेसर H. E.Armstrong ने जन्म दिया था। सर्वप्रथम इसका प्रयोग विज्ञान शिक्षण में किया गया परन्तु बाद में इसकी उपयोगिता को देखकर इसका प्रयोग अन्य विषयों में भी सफलतापूर्वक किया जाने लगा। जैसा कि इस विधि के नाम से ही स्पष्ट है यहाँ बालक को अन्वेषक की स्थिति में रख दिया जाता है |

Heuristic' शब्द ग्रीक भाषा के 'Heurisco' शब्द से निकला है जिसका अर्थ है, I discover' मैं मालम करता हूँ' । इस शब्द के पीछे एक अन्तर्कथा निहित है। ‘आर्किमिडीज' ने जब अपने विशिष्ट भार के प्रसिद्ध सिद्धान्त को मालूम कर लिया तब वह सड़क पर चिल्लाता भागा था यूरेका-यूरेका अर्थात् 'मैंने मालूम कर लिया है-मैंने मालूम कर लिया है' । इसी कथा के आधार पर अपने आप सीखने की विधि' को Heuristic विधि की संज्ञा दी गई है।


इस विधि का तात्पर्य बालकों को कम से कम बताने और उन्हें स्वयं अधिक से अधिक खोजकर सत्य को पहचानने के लिये प्रेरित करने से है । इस तथ्य पर हरबर्ट स्पैन्सर (Herbert Spencer) भी बल देते हैं। उनका कथन है कि,“बालकों को जितना कम से कम सम्भव हो बताया जाये और उनको जितना अधिक से अधिक सम्भव हो खोजने के लिये प्रोत्साहित किया जाये।"


इस विधि में बालक को अध्यापक बहुत कम बताता है। अध्यापक केवल बालकों के समक्ष समस्यायें रख देता है जिनको वह पुस्तकों और यन्त्रों की सहायता से स्वयं के प्रयत्नों के द्वारा सरल करते हैं । आवश्यकता पड़ने पर वह शिक्षकों से परामर्श कर सकते हैं । इस प्रणाली में मुख्य बात यह है कि विद्यार्थी का दृष्टिकोण एक खोज करने वाले की तरह होना चाहिये न कि उस मनुष्य की भाँति जो ज्ञान प्राप्त करने में निष्क्रिय रहता है । यहाँ एक प्रकार से विद्यार्थी से यह आशा की जाती है कि वह विषय की पुनःखोज करे । इसका अर्थ यह नहीं है कि जो बातें पहले मालूम हो चुकी हैं उनसे वह लाभ न उठायें। "अध्यापक और पाठ्य-पुस्तक का यह कार्य है कि जो काम करना है तथा जो समस्यायें हल करनी हैं, उन्हें इस प्रकार से रक्खें कि विद्यार्थी को वास्तव में खोज करनी पड़े,साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रक्खा जाये कि समस्या उसकी शक्ति से बाहर न हो तथा अन्त में वह विषय का एक अच्छा ज्ञान प्राप्त कर सके।" -प्रोफेसर यंगतिक


विज्ञान के अध्ययन का मूल्य तभी प्राप्त होता है जब विद्यार्थी मुख्य रूप से ह्यूरिस्टिक दृष्टिकोण अपनाता है । इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि हम इस विधि की आत्मा (Spirit) को खोकर उसके शरीर(Form) पर ही जोरन दें । इस विधि में 'Practice makes a man perfect' तथा Learning by doirg' दो प्रमुख शिक्षण सूत्रों (Maxims of Teaching) का प्रयोग किया जाता है । यह विधि निर्माणात्मक (Formative) है,सूचनात्मक (Informative) नहीं।

वैस्टावे के अनुसार- “वस्तुत: अन्वेषण विधि का प्रयोजन किसी विधि के उचित प्रशिक्षण दिलाने से है । ज्ञान यहाँ दूसरा पहलू है।” प्रोफेसर आर्मस्ट्राँग ने स्वयं ही इस विधि की निम्न परिभाषा दी है-

"अन्वेषण विधि वह विधि है जिसमें हम छात्र को अन्वेषक की स्थिति में रखते हैं।"



हरिस्टिक विधि की विशेषतायें?

(Merits of Heuristic Method)

1. बालकों में सत्य को जानने की उत्सुकता बनी रहती है तथा वे तथ्यों को ध्यानपूर्वक समझने के आदत डाल लेते हैं।


2. इस विधि में छात्र ज्ञान को एक निष्क्रिय रूप से ही ग्रहण नहीं करता है बल्कि सीखने में सक्रिय भाग लेता है ।


3. विद्यार्थी,तथ्यों एवं प्रमाणों को तर्क-वितर्क की कसौटी पर जाँचने के बाद ही स्वीकार करते हैं।


4. विद्यार्थियों में सही प्रकार से आलोचना करने की क्षमता का विकास होता है।


5. इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में आत्म-विश्वास, आत्म-निर्भरता एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।


6. विद्यार्थी नवीन ज्ञान की खोज स्वयं करते हैं । अतः ज्ञान स्थायी एवं व्यावहारिक होता है।


7. इस विधि में बालकों को गृह कार्य देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।


8. अध्यापक को बालकों के गुण तथा अवगुणों को जानने के अवसर मिलते हैं तथा वह उनसे व्यक्तिगत सम्पर्क (Rapport) स्थापित कर सकता है।


9. इस विधि से बालकों में परिश्रम करने की आदत पड़ती है तथा उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है।


10. विद्यार्थी सीखने की प्रक्रिया में ऐसी अनेक बातों की सही जानकारी प्राप्त कर लेते हैं जो केवल इसी विधि द्वारा सम्भव है।




खोज विधि ( ह्यूरिस्टिक विधि) सीमायें )

Hearistic Method Limitations


1. इस विधि द्वारा बालकों से मौलिक खोज की आशा की जाती है,परन्तु उनका मानसिक विकास अपेक्षित स्तर का नहीं होता कि वे वास्तव में अनुसन्धान कर सकें । अत: यह विधि बहुधा असफल रहती है |


2. सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को इस विधि से नहीं पढ़ाया जा सकता।


3. कक्षा में सभी विद्यार्थी समान क्षमता के नहीं होते । अतः इस विधि का प्रयोग वर्तमान कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिये सम्भव नहीं है।


4. इस विधि में खोज कम तथा समय की बरबादी अधिक होती है।


5. अध्यापक के सम्मुख इस विधि द्वारा अनेक कठिनाइयाँ प्रस्तुत होती हैं। सभी विद्यार्थियों के लिये सामग्री जुटाना कठिन ही नहीं,बल्कि असम्भव है।



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