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सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक || Srijanshilta ko Prabhavit Karne Wale Karak |Creativity

सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक  

सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक

Srijanshilta ko Prabhavit Karne Wale Karak

Srijanshilta ko Prabhavit Karne Wale Karak DElEd

Srijanshilta ko Prabhavit Karne Wale Karak B.Ed




Post Title:- सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक   
Course- B.Ed and D.El.Ed & CTET
University बिहार के सभी यूनिवर्सिटी के B.Ed and D.El.Ed सिलेबस पर आधारित
Year 1st Ya 2nd   D.El.Ed -1st Year F-10 & B.Ed 1st Year
Short Information सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक -बीएड एवं डी.एल.एड के लिए

सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखत हैं



(1) आनुवंशिकता-


(2) वातावरण-


(3) पारिवारिक वातावरण-


(4) विद्यालय का वातावरण-


(5) जिज्ञासा-


(6) समस्या समाधान व ज्ञान प्राप्ति का अवसर-


(7) उत्साहपूर्ण वातावरण पैदा करके ( Creating an encourage climate )


(8) बहुत से क्षेत्रों में रचनात्मकता को उत्साहित करना ( Encourage Creative in many medias )


(9) विविधिता की प्रेरणा (Encouraging variety of approach )


(10) लचीलता तथा सक्रियता को उत्साहित करना ( Encouraging activeness and flexibility )


(11) आत्म विश्वास को उत्साहित करना ( Encouraging self trust )


(12) श्रेणीं कृतियों के अध्ययन की प्रेरणा ( Encourage to study master pieces )


(13) स्वयं भी एक रचनात्मक रूचियों वाला व्यक्ति हो ( Being a creative person one self )

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(1) आनुवंशिकता-

बालक वंशानुगत रूप से अन्य शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों की तरह सृजनात्मक क्षमता भी अपने माता-पिता या पूर्वजों से प्राप्त करता है। प्रायः गायक या कलाकार का पुत्र भी गायक बनता है, परन्तु यह आवश्यक नही कि ऐसा हो ही। कई मामलों में यह गण बालकों को उचित वातावरण नहीं मिलने पर नहीं भी विकसित हो सकता है।


(2) वातावरण-

समुचित वातावरण बालक में सृजनात्मक क्षमता का विकास करता है। उपर्यक्त वातावरण मिलने पर बालक अपनी सृजनात्मकता को अभिव्यक्त प्रदान कर पाता है अन्यथा वातावरण के अभाव में सृजनात्मक क्षमता कुंठित हो जाती है। अतः माता-पिता व शिक्षक का कर्तव्य है कि बालकों के लिए समुचित वातावरण की व्यवस्था करें।


(3) पारिवारिक वातावरण-

बालकों में सृजनात्मकता के विकास को उसका पारिवारिक वातावरण भी प्रभावित करता है। कठोर व तानाशाही पारिवारिक अनुशासन सृजनात्मकता को अवरुद्ध करता है। अतः सृजनात्मकता के उचित विकास के लिए आवश्यक है कि परिवार का वातावरण स्वतन्त्र, लचीला, एवं जनतन्त्रीय होना चाहिए जिससे बालक को स्वतन्त्र अभिव्यक्ति का अवसर मिले। साथ ही बालक को कुछ समय के लिये पारिवारिक कार्यों से मुक्त रखा जाना चाहिए, नहीं तो सृजनात्मकता अवरूद्ध हो जायेगी।


(4) विद्यालय का वातावरण-

विद्यालय का वातावरण भी सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाला एक मुख्य कारक होता है। विद्यालय में अगर जनतान्त्रिक वातावरण नहीं होता तथा छात्रों के मध्य शिक्षक द्वारा भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है तो छात्रों में धनात्मक अभिवृत्ति का विकास नहीं हो पाता जिससे उनकी सृजनात्मकता अवरुद्ध हो जाती है। अतः आवश्यक है कि विद्यालय का वातावरण प्रजातान्त्रिक हो जिससे बालकों में धनात्मक सामाजिक अभिवृत्तियों का विकास हो सके जो सृजनात्मकता के विकास में सहायक है।


(5) जिज्ञासा-

जिज्ञासा भी बालकों में सृजनात्मकता के विकास के लिए अहम कारक है। बालक अगर किसी बात को जानने की जिज्ञासा रखता है तथा उसकी जिज्ञासा शान्त नहीं की जाती अथवा उसे डाँट कर चुप करा दिया जाता है तो इससे उसकी सृजनात्मकता बाधित होती है। अतः आवश्यक है कि बालकों की जिज्ञासा को सन्तुष्ट किया जाये।


(6) समस्या समाधान व ज्ञान प्राप्ति का अवसर-

बालक को जितना समस्या समाधान का अवसर मिलता है उसके ज्ञान में उतनी ही वृद्धि होती है। ज्ञान वृद्धि से सृजनात्मकता प्रभावित होती है। साधारणतया उच्च बुद्धि के बालकों में उच्च सजनात्मक क्षमता पायी जाती है। अतः बालकों को यथासंभव उचित समस्या वाली परिस्थिति प्रदान की जानी चाहिए।




(7) उत्साहपूर्ण वातावरण पैदा करके 

( Creating an encourage climate ) –

रचनात्मका का विकास करने के लिए खोज के अवसर प्रदान करने चाहिएं और ऐसा वातावरण पैदा करना चाहिए जिसमें बच्चा आने आपकों स्वतन्त्र समझें।


(8) बहुत से क्षेत्रों में रचनात्मकता को उत्साहित करना 

( Encourage Creative in many medias ) -

अध्यापक विधार्थियों को इस बात के लिए उत्साहित करे कि जितने भी क्षेत्रों में सम्भव हो सके, अपने विचारों तथा भावनओं को प्रकट करे । प्रायः अध्यापक यह समझता है कि रचनात्मकता कविताएं, कहानियां, उपन्यास या जीवनियां लिखने तक ही सीमित है। वास्तव में और भी क्षेत्र हैं जैसा कि कला, चित्रकारी, शिल्प, संगीत या नाटक आदि जिसमें नए ढंग से बच्चों को अपने विचार प्रकट करने के लिए उत्साहित किया जा सकता है।


(9) विविधिता की प्रेरणा 

(Encouraging variety of approach ) –

अध्यापक को विविध उत्तरों को प्रोत्साहन देना चाहिए। बच्चों के कार्य तथा प्रयत्न में किसी परिवर्तन या विविधता के चिन्ह का स्वागत करना चाहिए और उसे प्रेरणा देनी चाहिए।


(10) लचीलता तथा सक्रियता को उत्साहित करना 

( Encouraging activeness and flexibility ) –

अध्यापक को चाहिए कि वह सक्रियता तथा लचीलता को उत्साहित करे और बढ़ावा दे। बुद्धिमान बच्चे पढ़ाई की बहुत सी प्रभावी तथा कुशल विधियों का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार क सुन्दर अपवादों का स्वागत किया जाए तथा इनका अच्छी तरह मूल्यांकन किया जाए।


(11) आत्म विश्वास को उत्साहित करना

 ( Encouraging self trust ) –

अध्यापक बच्चों को अपने विचारों में विश्वास तथा सत्कार की भाक्ना के लिए उत्साहित करे। उसे चाहिए कि वह बच्चों के रचनात्मक चिन्तन का पुरस्कार उनके प्रश्नों का सत्कार करते हुए काल्पनिक विचारों के प्रति सम्मान प्रकट करके उनकी स्वाचालित पढ़ाई को प्रोत्साहन दे।


(12) श्रेणीं कृतियों के अध्ययन की प्रेरणा 

( Encourage to study master pieces ) –

अध्यापक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों को श्रेष्ठ – कृतियां के अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करे, उन्हें मौलिक रचना करने के लिए कहें, उन्हे बताए कि वे अपने अनुभवो को प्रयोग करने के लिए नए और अच्छे रूप पैदा करें।


(13) स्वयं भी एक रचनात्मक रूचियों वाला व्यक्ति हो

 ( Being a creative person one self ) –

एक प्राचीन स्वयं सिद्ध कथन है कि ( What a teacher does speaks more loudly then what he says ) रचनात्मक रूचियों वाला अध्यापक अपने विधार्थियों को अपने कार्य से चकित करता है और विधार्थियो को नवीनता का सत्कार करना सिखा सकता है। वह अध्यापक जो स्वयं सीख रहा है और अपने विषय क्षेत्र के ज्ञान को जानने का पूर्ण प्रयत्न कर रहा है, अपने शिष्य का अनुकरण करने के लिए एक नमूना प्रदान करता है|


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