विशिष्ट बालक
Exceptional Children
विभिन्न वालकों में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का होना स्वाभाविक ही है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए किसी विद्यालय अथवा कक्षा में जो बालक आते हैं, उनमें शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक तथा संवेगात्मक दृष्टि से अनेक अन्तर होते है। कछ, बालकों को सामान्य अथवा औसत बालक कहा जा सकता है, जबकि कुछ बालक तीव्र बुद्धि वाले होते हैं, कुछ बालक मंद बुद्धि के होते हैं, कुछ बालक विभिन्न प्रकार के शारीरिक दोसो से युक्त होते हैं तथा कुछ बालक अन्य समस्याओं से युक्त होते हैं। ऐसे बालक जो सामान्य बालकों से पर्याप्त भिन्नता रखते हैं, उन्हें अपवादात्मक बालक अथवा विशिष्ट बालक के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
विशिष्ट बालक का अर्थ
(Meaning of Exceptional Child)
किसी भी सामान्य विद्यालय अथवा कक्षा में पढ़ने वाले वालक-बालिकाओं में से अधिकांश बालकों को सामान्य अथवा औसत बालक-वालिका कहा जा सकता है। इन बालकों की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक विशेषताएं लगभग एक समान होती हैं जिसके कारण इनकी शैक्षिक समस्याओं की प्रकृति तथा प्रकार भी एक जैसा होता है। परंतु विद्यालय अथवा कक्षा में कुछ बालक-बालिकायें ऐसे भी होते हैं जो इन सामान्य बालकों से शारीरिक, मानसिक, सामाजिक अथवा शैक्षिक दृष्टि से पर्याप्त भिन्नता रखते हैं। ऐसा देखा गया है कि सौ बालकों के समूह में से लगभग पचास बालक ऐसी समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं जिनके लिए कुछ विशिष्ट शैक्षिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा भौतिक व्यवस्थाओं की आवश्यकता होती है। वास्तव में इन बालक की शैक्षिक, वौद्धिक, सामाजिक, संवेगात्मक, भौतिक अथवा व्यक्तित्व सम्बंधी परिस्थितियाँ सामान्य बालकों से कुछ भिन्न होती है। अतः इन बालकों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इनमें से भी लगभग दस प्रतिशत बालक शारीरिक अथवा मानसिक दृष्टि से सामान्य वालकों से इतने अधिक भिन्न होते हैं कि उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए विशेष शैक्षिक प्रयासों की आवश्यकता होती है। उनकी समस्याओं को भलीभांति समझकर विशिष्ट ढंग से समाधान किया जाना अत्यंत आवश्यक होता है। ऐसे बालक सामान्य बालकों से शारीरिक, मानसिक अथवा संवेगात्मक दृष्टि से भिन्न होते हैं इसलिए इन्हें अपवादात्मक वालक, असाधारण बालक अथवा विशिष्ट बालक कहा जाता है।
विशिष्ट बालक के प्रत्यय को गुणात्मक तथा मात्रात्मक दोनों ही दृष्टि से देखा जाता है। विशिष्ट बालक के सम्बंध में गुणात्मक दृष्टिकोण के अनुसार विशिष्ट बालकों के कुछ अलग प्रकार होते हैं तथा यह माना जाता है कि वे सीखने, सोचने, समायोजन करने आदि में सामान्य बालकों से बिल्कुल भिन्न होते है। विशिष्ट बालकों के सम्बंध में मात्रात्मक दृष्टिकोण के अनुसार विशिष्ट बालकों तथा सामान्य वालकों के गुणों में केवल मात्रा का अंतर होता है। सभी बालक, चाहे वे सामान्य हों अथवा विशिष्ट, एक ही ढंग से पढ़ते, सोचते अथवा समायोजित करते हैं। विशिष्ट तथा सामान्य बालकों में केवल अंतर इतना है कि विशिष्ट बालक ऐसे कार्यों को शीघ्रता से या विलम्ब से अथवा अधिक यथार्थता से या कम यथार्थता से करते हैं। परंतु सभी बालकों के लिए लागू होने वाले मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त एक समान होते हैं।
विशिष्ट अथवा अपवाद से तात्पर्य असामान्य (Unusal) अथवा दुर्लभ (Rare) से होता है। विशिष्ट अथवा अपवादात्मक बालक शब्द का प्रयोग विद्वानों ने भिन्न-भिन्न ढंग से किया है। कुछ ने इस शब्द का प्रयोग असाधारण प्रतिभा के लिए, कुछ ने सुस्त बालकों के लिए तथा कुछ ने शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े बालकों के लिए किया है। वास्तव में चिकित्सीय, मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षिक दृष्टि से किये जाने वाले विभिन्न वर्गीकरणों को विशिष्ट बालकों के नाम से सम्बोधित किया जाता है । मनोवैज्ञानिकों ने विशिष्ट बालक शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास तो किया है, परंतु कोई सर्वमान्य परिभाषा प्रस्तुत नहीं की जा सकी है। फिर भी सभी मनोवैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि विशिष्ट बालक से तात्पर्य उस बालक से होता है जो विकास के विभिन्न पक्षों में सामान्य से भिन्न है तथा जिसके लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है । वास्तव में विशिष्ट बालक शब्द एक वृहद पद (Umbrella like term) है जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की असामान्यताओं से युक्त बालकों के अनेक समूह समाहित रहते हैं।
कुकशैक के अनुसार-
"विशिष्ट बालक वह है जो वौद्धिक, शारीरिक, सामाजिक अथवा संवेगात्मक दृष्टि से सामान्य समझी जाने वाली वृद्धि तथा विकास से इतना भिन्न है कि वह नियमित विद्यालय कार्यक्रम से पूर्ण लाभ नहीं उठा सकता है तथा विशिष्ट कक्षा अथवा पूरक शिक्षण व सेवा चाहता है।"
An exceptional child is one who deviates intellectually, physically, socially or emotionally so much froin what is considered to be normal growth and development that he cannot receive maximum benefit from a regular school programme and requires a special class or supplementary instruction and services.
-William M. Cruickshank
डन के अनुसार-
"विशिष्ट बालक वे हैं जो सामान्य से शारीरिक अथवा मनोवैज्ञानिक विशेषताओं में इतने भिन्न हैं कि बहुसंख्यक वालकों के लिए बनाया गया विद्यालय कार्यक्रम उनको सर्वांगीण समायोजन व अनुकूलतम विकास के अवसर उपलब्ध नहीं करा पाता है तथा इसलिए अपनी योग्यताओं के अनुरूप उपलब्धि प्राप्त कर सकने के लिए वे विशेष शिक्षण अथवा कुछ स्थितियों में विशेष सहायक सेवायें अथवा दोनों चाहते हैं।"
The exceptionals are those who differ from the average to such degree in physical or psychological characteristics that school
ogramme designed for the majority of the childeren do not afford them the opportunity for all-round adjustment and optimum
gress and who, therefore, need either special instruction or in some cases special ancillary services or both to achieve a level commensurate with their respective abilities.
-L. M. Dunn
क्रिक के अनुसार-
"विशिष्ट बालक वह है जो सामान्य अथवा औसत बालक से मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक विशेषताओं में इतना अधिक भिन्न है कि वह विद्यालय व्यवस्थाओं में संशोधन अथवा विशेष शैक्षिक सेवायें अथवा पूरक शिक्षण चाहता है जिससे वह अपनी अधिकतम क्षमता का विकास कर सके।"
An exceptional child is he who deviates from the normal or average child in mental, physical and social characteristics to such an extent that he requires a modification of school practices or special educatinal services or supplementary instruction in order to develop to his maximum capacity.
-S. A. Kirk
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि विशिष्ट बालक शब्द से तात्पर्य उन वालकों से है जो शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक विशेषताओं में सामान्य वालकों से इतने भिन्न होते हैं कि उनके लिए विशेष प्रकार की शिक्षा व्यवस्था करने की आवश्यकता है