BIHAR D.El.Ed FIRST
YEAR NOTES
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Course |
D.El.Ed |
Year |
First Year |
Paper Name |
GENDER IN EDUCATION
AND INCLUSIVE PERSPECTIVE |
PAPER NUMBER |
6 |
QUESTION |
भारतीय
कक्षाओं में असमानता एवं विधिवता के कारण
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भारतीय कक्षाओं में असमानता एवं विधिवता के कारण
(CAUSES OF DISSIMILARITY AND VARIETY IN INDIAN CLASS-ROOMS)
भारतीय कक्षाओं में असमानता एवं विधिवता के निम्नलिखित कारण है
1. प्रान्तीय आवश्यकताएँ (Regional Needs)-
2. राजनीतिक प्रभाव (Political Effect)-
3. सामाजिक प्रभाव (Social Effect)-
4.परम्पराओं के प्रति प्रेम (Traditional Affection)-
5. समुचित नियोजन का अभाव (Lack of Proper Planning)-
6. सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्धता में कमी (Lesser Commitment for Principles)-
7. आत्म-विश्वास की कमी (Lack of Confidence)-
भारतीय कक्षाओं में असमानता एवं विधिवता के निम्नलिखित कारण है -
1. प्रान्तीय आवश्यकताएँ (Regional Needs)-
भारतीय कक्षाओं में प्रान्तीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण कराया जाता है। इस प्रकार विभिन्न प्रान्तों की कक्षाओं के शिक्षण कार्यों में असमानता आ जाती है। सभी प्रान्त अपनी स्थानीय जरूरतों की छात्रों को जानकारी देना चाहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक प्रान्त की जरूरतो में अन्तर के साथ कक्षाओं में भी पाठ्यक्रम के आधार पर अन्तर आ जाता है। इस प्रकार सभी प्रान्त अपनी प्रान्तीय विशेषताओं से बच्चों को परिचित कराना चाहते हैं जिससे राष्ट्रीय स्तर पर असमानता उत्पन्न हो जाती है।
2. राजनीतिक प्रभाव (Political Effect)-
राजनीतिक प्रभाव के कारण भी पाठ्यक्रम में अन्तर आ जाता है। सभी प्रान्तों में सत्ताधारी दल के नेता अपने फायदे के लिए पाठ्यक्रम के साथ छेड़छाड़ करते हैं जिससे उनका अपने प्रान्त में दबदबा हो सके। विश्वविद्यालयों के नाम बदले जाते हैं, पाठ्यक्रम में भी अपने दल के विशिष्ट नेताओं को स्थान देने का प्रयास किया जाता है। शासन में परिवर्तन के साथ ही जब नया दल सत्तारूढ़ होता है तो वह अपने दल के फायदे के लिए पाठ्यक्रम को प्रभावित करने का प्रयास करता है। कई बार राजनीतिक दल देश के इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ करने का प्रयास करते हैं। इससे भी राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यक्रम में असमानता आ जाती है।
3. सामाजिक प्रभाव (Social Effect)-
पाठ्यक्रम में असमानता एवं विविधता का एक प्रमुख कारण सामाजिक रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं में भिन्नता होना भी है। समस्त प्रान्त अपनी सामाजिक परम्पराओं, रीति-रिवाजों, त्यौहारों आदि का ज्ञान बच्चों को देना चाहते हैं इसलिए इन विषयों को पाठ्यक्रम का एक हिस्सा बनाने का दबाव डालते हैं। इस प्रकार प्रान्तीय सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रभावों से पाठ्यक्रम प्रभावित हो जाता है और राष्ट्रीय स्तर पर उसमें एकरूपता नहीं आ पाती है।
4.परम्पराओं के प्रति प्रेम (Traditional Affection)-
व्यक्ति में अपनी परम्पराओं के प्रति प्रेम जन्मजात पाया जाता है और वह इन परम्पराओं से स्वयं को जुड़ा हुआ अनुभव करता है। प्रत्येक प्रान्त तथा क्षेत्र की परम्पराएँ दूसरे प्रान्त तथा क्षेत्र से भिन्न होती हैं। इस प्रकार समाज में विविधता उत्पन्न हो जाती है और इस विविधता के कारण राष्ट्रीय स्तर पर असमानता व्याप्त हो जाती है। देश में विभिन्न सम्प्रदाय, धर्म, जातियों के व्यक्ति रहते हैं और अपनी-अपनी पम्पराओं का पोषण करते हैं। अतः इन व्यक्तियों के परम्परा प्रेम के कारण पाठ्यक्रम में भी परम्पराओं को प्रतिनिधित्व दिया जाता है और असमानता उत्पन्न होती है।
5. समुचित नियोजन का अभाव (Lack of Proper Planning)-
समुचित नियोजन किसी भी कार्यक्रम की सफलता के लिए आवश्यक है। पाठ्यक्रम में एकरूपता लाने के लिए किये जाने वाले प्रयास इसी कारण सफल नहीं होते हैं क्योंकि इनमें समुचित नियोजन नहीं पाया जाता है तथा उनके क्रियान्वयन का उचित प्रकार से निरन्तर मूल्यांकन नहीं होता है। इसके परिणामस्वरूप ऐसे कार्यक्रम विफल हो जाते हैं और पाठ्यक्रम में राष्टीय स्तर पर असमानता तथा विभेदीकरण आ जाता है जिसके कारण देश में एकसमान पाठ्यक्रम लागू नहीं हो पाता
है।
6. सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्धता में कमी (Lesser Commitment for Principles)-
पाठ्यक्रम में एकरूपता लाने के किसी भी कार्यक्रम की सफलता उसमें आस्था की दृढ़ता तथा सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है। प्राय: नवीन परिवर्तनों के प्रति लोगों में आस्था तथा विश्वास का अभाव पाया जाता है। इस प्रकार परम्परागत रूप से चले आ रहे पाठ्यक्रम में परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव नहीं की जाती है।
7. आत्म-विश्वास की कमी (Lack of Confidence)-
पाठ्यक्रम में एकरूपता लाने तथा असमानता को दूर करने के लिए प्रतिबद्धता आवश्यक है परन्तु शिक्षाविदों और राजनीतिज्ञों में इस क्षेत्र में किसी भी परिवर्तन को लेन के लिए आत्म विश्वास की कमी है | विरोध के डर से पाठ्यक्रम की एकरूपता का मन से प्रयास नही किया गया |