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Samajik vikas Ko Prbhavit Krnevale Kark | Factors Influencing Social Development | सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

 

 सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

Factors Influencing Social Development


 सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 
Factors Influencing Social Development

इस पेज में निम्न्लिखिर प्रश्नों के उत्तर दिये गये है 

(1) सामाजिक विकास क्या है ?

What is Social Development ?

(2) सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

Factors Influencing Social Development

(3) निष्कर्ष

(1) सामाजिक विकास क्या है ?

What is Social Development ?

 सामाजिक विकास क्या है ?

What is Social Development ?

जन्म के समय शिशु में सामाजिकता लगभग शून्य होती है। जैसे-जैसे उसका शारीरिक तथा मानसिक विकास होने लगता है, वैसे-वैसे उसका समाजीकरण भी होने लगता है। वह अपने माता-पिता, परिवार के सदस्यों, संगी-साथियों तथा अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है जिसके फलस्वरूप वह सामाजिक परम्पराओं, मान्यताओं, रुढ़ियों आदि के अनुरूप व्यवहार करना सीखता है तथा सामाजिक जगत में अपने को समायोजित करने का प्रयास करता है। समाजीकरण की इस प्रक्रिया से बालक का सामाजिक विकास होता है। सामाजिक विकास से तात्पर्य विकास की उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक वातावरण के साथ अनुकूलन करता है, सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप अपनी आवश्यकताओं व रुचियों पर नियंत्रण करता है, दूसरों के प्रति अपने उत्तरदायित्व का अनुभव करता है तथा अन्य व्यक्तियों के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से सामाजिक संबंध स्थापित करता है। सामाजिक विकास के फलस्वरूप व्यक्ति समाज का एक मान्य, सहयोगी, उपयोगी तथा कुशल नागरिक बन जाता है। समाज में रह कर ही व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तथा जन्मजात प्रवृत्तियों व योग्यताओं का विकास करता है। समाज में रह कर ही वह दूसरों से सम्पर्क करता है, समाज के मूल्यों, विश्वासों तथा आदर्शों में आस्था रखने लगता है तथा समाज की जीवन-शैली को अपनाता है। उसमें सहअस्तित्व की भावना आ जाती है, वह सामाजिक हित में तथा लोककल्याण की भावना से अपने निहित स्वार्थों का त्याग करना सीख जाता है तथा सामाजिक गुणों को विकसित करके समाज में अनुकूलन स्थापित करने का प्रयास करता है। अन्य व्यक्तियों के साथ सम्पर्क करने एवं अनुकूलन स्थापित करने की योग्यता सामाजिक विकास का ही परिणाम होती है जो बालक के समाजीकरण के फलस्वरूप विकसित होती है। 


                 


(2) सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

Factors Influencing Social Development


विभिन्न अवस्थाओं में होने वाला सामाजिक विकास अनेक कारकों से प्रभावित होता है। बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ महत्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं –

 

1. वंशानुक्रम 

(Heredity)

 2. शारीरिक तथा मानसिक विकास 

(Physical and Mental Development)
3. संवेगात्मक विकास 
Emotional Development
4. परिवार 
(Family)
5. आर्थिक स्थिति 
Economic Status
6. समाज 
Society
7. विद्यालय 
School
8. अध्यापक 
Teacher
9. अन्य कारक 
Other Factors


सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

Factors Influencing Social Development


विभिन्न अवस्थाओं में होने वाला सामाजिक विकास अनेक कारकों से प्रभावित होता है। बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ महत्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं


1. वंशानुक्रम 
(Heredity)

  मनोवैज्ञानिकों के अनुसार सामाजिक विकास पर वंशानुक्रम का भी कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य पड़ता है। वंशानुक्रम व्यक्ति के शारीरिक तथा मानसिक विकास के साथ-साथ उसके सामाजिक विकास को भी प्रभावित करता है। अनेक सामाजिक गुण व्यक्ति को वंश परम्परा के रूप में अपने माता-पिता तथा अन्य पूर्वजों से प्राप्त होते हैं।


 2. शारीरिक तथा मानसिक विकास 
(Physical and Mental Development)

शारीरिक तथा मानसिक विकास का व्यक्ति के सामाजिक विकास से घनिष्ठ संबंध होता है। शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ तथा विकसित मस्तिष्क वाले बालकों के समाजीकरण की सम्भावनायें अधिक होती हैं, जबकि अस्वस्थ तथा कम विकसित मस्तिष्क वाले बालकों के समाजीकरण की सम्भावना कम होती है। बीमार. अपग, शारीरिक दृष्टि से अनाकर्षक, विकत मस्तिष्क वाले, अल्प बुद्धि वाले बालक प्रायः सामाजिक अवहेलना तथा तिरस्कार सहते रहते हैं. जिसके फलस्वरूप उनमें हीनता की भावना विकसित हो जाती है तथा वे अन्य बालकों के साथ स्वयं को समायोजित करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। अत्यधिक प्रतिभाशाली बालक भी मानसिक तालमेल के अभाव (Lack of mental matching) के कारण तथा श्रेष्ठता ग्राथ (Superiority Complex) के कारण प्रायः सामाजिक रूप से समायोजन करने में परेशानी का अनुभव करता है |


3. संवेगात्मक विकास 
Emotional Development

सामाजिक विकास का एक महत्वपूर्ण आधार संवेगात्मक विकास होता है। संवेगात्मक तथा सामाजिक व्यवहार एक दूसरे के अनयायी होते हैं। जिन बालकों में प्रेम स्नेह, सहयोग, ह्रास-परिहास के भाव अधिक होते है वे सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं तथा स्नेह व आकर्षण का पात्र बन जाते हैं। इसके विपरीत जिन बालको में ईर्ष्या   द्वेष, क्रोध, घृणा, नीरसता आदि भाव होते हैं वे किसी को भी अच्छे नहीं लगते हैं तथा ऐसे बालकों की सभी उपेक्षा करते हैं। 


4. परिवार (Family)

समाजीकरण का प्रारम्भ परिवार से होता है। परिवार का वातावरण, संस्कृति, सदस्यों का आचरण, शिक्षास्तर, आर्थिक स्तर, पारिवारिक संरक्षण, सहयोग, पालन-पोषण आदि का बालकों के सामाजिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। बालक अपने माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों जैसे आचरण तथा व्यवहार करने का प्रयास करता है। 


5. आर्थिक स्थिति 

Economic Status

माता-पिता की आर्थिक स्थिति का भी बालक के समाजीकरण पर प्रभाव पड़ता है। धनी माता-पिता के बच्चे अच्छे माहौल में रहते हैं, अच्छे व्यक्तियों के सम्पर्क में आते हैं तथा अच्छे विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करते हैं जिसके कारण उनका सामाजिक विकास अच्छा होना स्वाभाविक ही है। इसके विपरीत निर्धन परिवारों के बालक उत्तम वातावरण, उचित सम्पर्क तथा श्रेष्ठ विद्यालय के अभाव में समुचित सामाजिक विकास से वंचित रह जाते हैं। 


6. समाज 
Society

समाज का भी बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। सामाजिक व्यवस्था बालक के समाजीकरण को एक निश्चित दिशा प्रदान करती है। समाज के कार्य आदर्श तथा प्रतिमान  बालक के सामाजिक दृष्टिकोण का निर्माण करते हैं। ग्रामीण व शहरी समाज में तथा लोकतंत्र व राजतंत्र में बालकों के सामाजिक व्यवहार में स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है।


 7. विद्यालय 
School

बालक के सामाजिक विकास में विद्यालय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है। विद्यालय में बालक को अन्य बालकों, अध्यापकों से मिलने-जुलने के व परस्पर सहयोग करने के तथा विभिन्न प्रकार की सामूहिक क्रियाओं में भाग लेने के अवसर मिलते हैं जो उसके समाजीकरण की दिशा को निर्धारित करते हैं। इससे 

उन्हें परस्पर सामाजिक अन्तक्रिया करने के विपुल अवसर प्रात होते हैं। 


8. अध्यापक 
Teacher

बालकों के सामाजिक विकास पर उनके अध्यापकों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। छात्र अपने अध्यापक से उसी के समान व्यवहार करना सीखते हैं। यदि अध्यापक शांत, शिष्ट, तथा सहयोगी होता है तो छात्रों में भी शिष्टता, धैर्य तथा सहकारिता के गुण विकसित हो जाते हैं। इसके विपरीत यदि शिक्षक अशिष्ट, क्रोधी तथा असहयोगी है तो छात्र भी उसी के समान बन जाते हैं। अत्यधिक सरल व्यक्तित्व वाले अध्यापक छात्रों को अनुशासन में नहीं रख पाते हैं जिसके कारण ऐसे अध्यापकों के छात्रों में अनुशासनहीनता एवं उद्दण्डता की भावना विकसित हो जाती है। 


9. अन्य कारक 
Other Factors

 उपरोक्त वर्णित कारकों के साथ-साथ कुछ अन्य कारक भी बालक-बालिकाओं के सामाजिक विकास पर प्रभाव डालते हैं। संस्कृति, राजनैतिक दल, साहित्य, धार्मिक संस्थायें तथा जनसंचार माध्यमों जैसे अनेक कारक भी बालकों के सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। 


शैशवावस्था, बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था में होने वाले सामाजिक विकास तथा उसे प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारकों के विवेचन से स्पष्ट है कि सामाजिक विकास मानव जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष है। समाजीकरण कि प्रक्रिया के द्वारा ही मानव एक सामाजिक प्राणी बनता है। सामाजिक वातावरण निरन्तर परिवर्तनशील रहता है तथा व्यक्ति को अपने सामाजिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप बदलना होता है। दूसरों से सहयोग करना, अन्यों के अनुरूप व्यवहार करना, शिष्टता का आचरण तथा सहअस्तित्व को स्वीकारना आदि सामाजिक परिपक्वता के लक्षण होते हैं। बालक के सामाजिक वातावरण को नियंत्रित करके उन्हें वांछित दिशा में सामाजिक विकास के लिए प्रेरित किया जा सकता है। शिक्षा इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान कर सकती है। शिक्षा संस्थाओं में स्वस्थ सामाजिक अन्तक्रिया के अवसर उपलब्ध कराकर छात्रों की समाजीकरण की प्रक्रिया को सबल बनाया जा सकता है। 

(3) निष्कर्ष -

 निष्कर्ष 

उपरोक्त से स्पष्ट है कि समाजीकरण की प्रक्रिया तथा सामाजिक विकास परस्पर घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं। समाजीकरण की प्रक्रिया बालक के सामाजिक विकास को गति प्रदान करती है। घर, परिवार, पड़ोस, मित्र-मंडली, विद्यालय, समुदाय, जनसंचार साधन तथा राजनीतिक व सामाजिक संस्थायें बालक के समाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। बालक के सामाजिक विकास को शैक्षिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। आधुनिक समय में शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का सामाजिक विकास करना स्वीकार किया जाता है। अतः शिक्षा के द्वारा बालकों के न केवल शारीरिक व मानसिक विकास को प्रोत्साहित किया जाता है वरन् उनके सामाजिक विकास को भी प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाता है। शिक्षा बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। घर में माता-पिता तथा विद्यालय में अध्यापकगण विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों का आयोजन करके बालकों में समाजीकरण की प्रक्रिया को बढ़ाकर उनका सामाजिक विकास कर सकते हैं।

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