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CTET 2024 | CHILD DEVELOPMENT | बाल विकाश

 

CTET AND STATE TET  CHILD DEVELOPMENT

 बाल विकाश 


एडलर के शब्दों में , "बालक के जन्म के कुछ दिनपश्चात् ही यह निश्चि  यह निश्चित किया जा सकता है कि वह जीवन में कौन-सा स्थान ग्रहण करेगा।" 

विकास 

 व्यक्ति के विकास से आशय बालक के गर्भाधान से पौढता प्राप्त करने की स्थिति है। जन्म के पश्चात अंगों का विकास होता है। यह विकास की प्रक्रिया 

लगातार चलती रहती है। इसी के फलस्वरूप बालक विकास विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। इसी प्रकार बालक का शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास होता है। 


विकास के सन्दर्भ में मुनरो का कथन है 

"परिवर्तन श्रृंखला की वह अवस्था जिनमें बालक भणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है, विकास कहा 

जाता है।" 


महत्व 

 बालक की शिक्षा में विकास का विशेष महत्व होता है। इसी कारण यह एक शिक्षक के लिए जरूरी है कि वह बालक के विकास की निम्न अवस्थाओं का अध्ययन करे। 


विकास का मापन तथा मूल्यांकन तीन रूपों में किया जा सकता है 


1. शरीर का निर्माण 

2. शरीर शास्त्रीय

 3. व्यावहारिक। 



किसी भी बालक के व्यवहार के चिन्ह, उसके विकास के स्तर एवं शक्तियों की विस्तृत रचना करते हैं। 


अभिवृद्धि तथा विकास का सिद्धान्त 


• समान प्रतिमान का सिद्धान्त 

• एकीकरण का सिद्धान्त 

• वशानुक्रम व वातावरण की अन्त:क्रिया का सिद्धान्त 

• वैयक्तिक भिन्नताओं का सिद्धान्त. 

• सामान्य तथा विशिष्ट प्रतिक्रियाओं का सिद्धान्त 

• विकास क्रम का सिद्धान्त 

• निरन्तर विकास का सिद्धान्त 

• विकास दशा का सिद्धान्त 

• विकास की विभिन्न गति का सिद्धान्त 

• परस्पर सम्बन्ध का सिद्धान्त। 



बालक के विकास को प्रभावित करने वाले तत्व 


• यौन भिन्नता 

• वातावरण 

• वंशानुक्रम 

• बुद्धि 

• भोजन 

• रोग 

• प्रजाति 

• माता-पिता का दृष्टिकोण। 


विकास की मुख्य अवस्थाएँ 


• शैशवावस्था -जन्म से 2 वर्ष तक 

• प्रारम्भिक बाल्यावस्था - 2 से 5 वर्ष तक 

• मध्य बाल्यावस्था __- 6 से 12 वर्ष तक 

• उत्तर बाल्यावस्था - 13 से 14 वर्ष तक 

• प्रारम्भिक किशोरावस्था - 15 से 16 वर्ष तक 

• मध्य किशोरावस्था - 17 से 18 वर्ष तक 

• उत्तर किशोरावस्था - 


सामान्य रूप से विकास की मुख्य अवस्थाओं का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है 


1. शैशवावस्था -- जन्म से 5 वर्ष तक

 2. बाल्यावस्था -5 वर्ष से 12 वर्ष तक 

3. किशोरावस्था - - 12 वर्ष से 18 वर्ष तक 


विकास का स्वरूप 


• आकार में परिवर्तन 

• अनुपात में परिवर्तन 

• पुरानी विशेषताओं का लोप 

• नई विशेषताओं की प्राप्ति। 


विकास के सिद्धान्त 


• व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धान्त 

• निरन्तर विकास का सिद्धान्त 

• सामान्य से विशिष्ट की ओर का सिद्धान्त 

• विकास क्रम का सिद्धान्त 

• विकास की विभिन्न गति का सिद्धान्त 

• सह-सम्बन्ध का सिद्धान्त 

• वंशानुक्रम एवं वातावरण की अन्त:क्रिया का सिद्धान्त 

• समान प्रतिमान का सिद्धान्त 

• अवांछित व्यवहार को दूर का सिद्धान्त ।


 वंशानुक्रम के नियम या सिद्धान्त 


• बीज कोष का नियम 

• समानता का नियम 

• भिन्नता का नियम 

• प्रत्यागमन का नियम 

• अर्जित गुणों के हस्तान्तरण का नियम 

मेण्डल का नियम।


 बालक पर वंशानुक्रम का प्रभाव 


• शारीरिक गुणों पर प्रभाव 

• मूल-प्रवृत्तियों पर प्रभाव 

• व्यावसायिक कौशलों पर प्रभाव 

• सामाजिक स्तर पर प्रभाव 

जातिगत श्रेष्ठता पर प्रभाव 

• महानता पर प्रभाव 

• बुद्धि पर प्रभाव।


 वातावरण 


पर्यावरण के अन्तर्गत वे सभी तत्व आते हैं, जो व्यक्ति के जीवन और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। वुडवर्थ के अनुसार, "वातावरण में वे सभी बाह्य तत्व आ जाते हैं, जो बालक को जीवन आरम्भ करने के समय 

प्रभावित करते हैं।" 


बालक पर वातावरण का प्रभाव 


• बुद्धि पर प्रभाव 

• शारीरिक बनावट पर प्रभाव 

• मानसिक विकास पर प्रभाव 

• व्यक्तित्व पर प्रभाव 

• बालक पर बहुमुखी प्रभाव। 


शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और पर्यावरण का महत्व 


सोरेन्सन के अनुसार, “शिक्षक के लिए बाल-विकास पर वंशानुक्रम एवं वातावरण के सापेक्षिक प्रभाव तथा पारस्परिक सम्बन्ध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है।"


बाल-विकास की अवस्थाएँ 


• शैशवावस्था 

• बाल्यावस्था 

किशोरावस्था .

प्रौढ़ावस्था। 


शैशवावस्था का अर्थ—


सामान्य रूप से शिशु के ही से लेकर 5-6 वर्ष तक की अवस्था को शैशवावस्था कहते है 


शैशवास्था का महत्व-


फ्रायड के अनुसार, "बाल को जो कुछ बनना होता है, वह प्रारम्भ के चार-पाँच वर्षे । बन जाता है।" 


प्रमुख विशेषताएँ 


• शारीरिक विकास में तीव्रता 

• मानसिक विकास में तीव्रता 

• सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता 

• सामाजिक भावना का विकास 

• भाषा विकास में तीव्रता 

मूल प्रवृत्तियों पर आधारित व्यवहार । 

कल्पना की सजीवता 

• नैतिक विकास का अभाव 

• आत्म-प्रेम की भावना का विकास 

• दोहराने की प्रवृत्ति 

• काम-प्रवृत्ति 

• दूसरों पर निर्भरता 

• जिज्ञासा की प्रवृत्ति 

• अनुकरण की प्रवृत्ति 

• एकान्त में खेलना 

• संवेगों का प्रदर्शन 

• अनुकूलन करने में असमर्थ 

• प्रत्यक्षात्मक अनुभव द्वारा सीखना। 


शैशवावस्था में शारीरिक विकास 


• लम्बाई 

• भार 

• मांसपेशियाँ 

• अस्थियाँ 

शारीरिक अनुपात 

दाँत

 

 आन्तरिक अंग-

(i) पाचन तन्त्र, 

(ii) श्वसन त 

(iii) रक्त परिवहन तन्त्र, 

(iv) सिर एवं मस्तिष्क। 


मानसिक विकास की अभिव्यक्ति 


• संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण 

• सजीव कल्पना 

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