(1.0) सृजनात्मकता के प्रस्तावना -
(1.1) सृजनात्मकता का अर्थ -
(1.3) सजनात्मकता के तत्व-
(1.4) सृजनात्मकता की प्रकृति
(1.5) सृजनात्मकता के सिधान्त
सृजनात्मकता
(Creativity)
वैज्ञानिक, तकनीकी तथा औद्योगिक विकास के आधुनिक युग में विभिन्न क्षेत्रों के अन्तर्गत नित प्रतिदिन नूतन आविष्कार हो रहे हैं। इनमें से अधिकांश आविष्कारों के पीछे जहाँ वैज्ञानिकों का अथक परिश्रम छिपा है वहीं उनकी सजनात्मकता का भी योगदान कम नहीं है। पहले यह माना जाता था कि केवल लेखक, कवि, चित्रकार, संगीतकार आदि व्यक्ति ही सृजनात्मक होते हैं परन्तु अब यह माना जाने लगा है कि मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति हो सकती है। वास्तव में ससार के समस्त प्राणियों में सजनात्मकता पाई जाती है – किसी व्यक्ति में कम मात्रा में सृजनात्मकता होती है तथा किसी व्यक्ति में अधिक मात्रा में सृजनात्मकता होती है। मानवीय जीवन को सुखमय बनाने के लिए नवीन आविष्कार करने तथा समस्याओं का सामाधान खोजने के कार्य में सृजनात्मकता अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। दूसरे विश्वयुद्ध के उपरान्त 'सृजनात्मकता' के प्रत्यय पर मनोवैज्ञानिकों व शिक्षाशास्त्रियों ने विशेष ध्यान दिया। वर्तमान समय में तीव्र गति से हो रहे वैज्ञानिक, तकनीकी तथा औद्योगिक प्रगति व विकास तथा आधुनिकीकरण ने मानव जीवन को इतना जटिल तथा समस्याग्रस्त बना दिया है कि इन समस्याओं के समाधान के लिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सृजनात्मकता की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। आज के समस्याग्रस्त जटिल समाज तथा प्रतियोगितापूर्ण संसार में सृजनात्मक व्यक्तियों की अत्यन्त माँग है। वैज्ञानिक तथा तकनीकी उपलब्धियों को अधिकाधिक अर्जित करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सृजनात्मक व्यक्तियों को खोजना एक राष्ट्रीय आवश्यकता बन गई है।
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सृजनात्मकता का अर्थ
(Meaning of Creativity)
भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिकों के द्वारा सृजनात्मकता (Creativity) को भिन्न-भिन्न ढंग से परिभाषित किया है। मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत सृजनात्मकता की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नवत हैं -
डीहान तथा हेविंगहर्ट के अनुसार -
"सृजनात्मकता वह विशेषता है जो किसी नवीन व वांछित वस्तु के उत्पादन की ओर प्रवृत्त करे। यह नवीन वस्तु सम्पूर्ण समाज के लिए नवीन हो सकती है अथवा उस व्यक्ति के लिए नवीन हो सकती है जिसने उसे प्रस्तुत किया है।"
ड्रैवहल के शब्दों में –
“सृजनात्मकता वह मानवीय योग्यता है जिसके द्वारा वह किसी नवीन रचना या विचारों को प्रस्तुत करता है।"
मनोवैज्ञानिक क्रो एवं क्रो के अनुसार –
“सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की एक मानसिक प्रक्रिया है।"
कोल और ब्रूस के शब्दों में –
सृजनात्मकता मौलिक उत्पाद के रूप में मानव मस्तिष्क को समय व्यक्त करने तथा सराहना करने की योग्यता व क्रिया है।"
Creativity is an ability and activity of man's mind to grasp, express and appreciate in the form of an original product."
- Cole and Bruce
उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट है कि सृजनात्मकता का सम्बन्ध प्रमुख रूप से मौलिकता या नवीनता से है। समस्या पर नये ढंग से सोचने तथा समाधान खोजने के प्रयास से सृजनात्मकता परिलक्षित होती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि सृजनात्मकता वह योग्यता है जो व्यक्ति को किसी समस्या का विद्वतापूर्ण समाधान खोजने के लिए नवीन ढंग से सोचने तथा विचार करने में समर्थ बनाती है। प्रचलित ढंग से हटकर किसी नये ढंग से चिन्तन करने तथा कार्य करने की योग्यता ही सृजनात्मकता है।
सजनात्मकता के तत्व ।
(Elements of Creativity)
सृजनात्मकता की परिभाषाओं के अवलोकन तथा विश्लेषण से ज्ञात होता है कि सृजनात्मकता को संवेदनशीलता, जिज्ञासा, कल्पना, मौलिकता, खोजपरकता, लचीलापन, प्रवाह, विस्तृतता, नवीनता आदि के संदर्भ में समझा जा सकता है। सृजनात्मकता के कुछ समानार्थी यह विभिन्न प्रत्यय वैज्ञानिक अनुसंधानों, कलाकृतियों, संगीत, रचना, लेखन व काव्य कला, चित्रकला, भवन निर्माण आदि सृजनात्मक कार्यों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। सृजनात्मकता के चार प्रमुख तत्व निम्नवत् हैं -
(i) प्रवाह (Fluency) –
प्रवाह से तात्पर्य किसी दी गई समस्या पर अधिकाधिक विचारों या प्रत्युत्तरों को प्रस्तुत से है। प्रवाह को पुनः चार भागों – वैचारिक प्रवाह (Ideational Fluency), अभिव्यक्ति प्रवाह (Expressional Fluency), साहचर्य प्रवाह (Associative Fluency) तथा शब्द प्रवाह (Word Fluency) में बाँटा जा सकता है। वैचारिक प्रवाह में विचारों के स्वतंत्र प्रस्फुटन को प्रोत्साहित किया जाता है। जैसे किसी कहानी के अनेकानेक शीर्षक वताना, किसी वस्तु के अनेकानेक उपयोग बताना. किसी वस्तु को सुधारने के अनेकानेक तरीके बताना आदि आदि। अभिव्यक्ति प्रवाह में मानवीय अभिव्यक्तियों के स्वतंत्र प्रस्फुटन को प्रोत्साहित किया जाता है। जैसे दिये गये चार शब्दों से वाक्य बनाना, दिये गये अपूर्ण वाक्य को पूरा करना आदि आदि । साहचर्य प्रवाह से तात्पर्य दिये गये शब्दों या वस्तओं में परस्पर साहचर्य स्थापित करने से है। जैसे किसी दिये गये शब्द के अधिकाधिक पर्यायवाची या विलोम शब्द लिखना । शब्द प्रवाह का सम्बन्ध शब्दों से होता है। जैसे दिये गये प्रत्ययों तथा उपसर्गों (Prefix and Suffix) से शब्द बनाना। किसी व्यक्ति के द्वारा किसी सृजनशील परीक्षण के किसी पद (item) पर प्रवाह को प्रायः उस पद पर दिये गये प्रत्युत्तरों की संख्या से व्यक्त किया जाता है। परीक्षण पर व्यक्ति के कुल प्रवाह प्राप्तांक को ज्ञात करने के लिए सभी पदों के प्रवाह अंकों का योग कर लिया जाता है।
ii) विविधता (Flexibility) -
विविधता से अभिप्राय किसी समस्या पर दिये प्रत्युत्तरो या विकला में विविधता के होने से है। इससे ज्ञात होता है कि व्यक्ति के द्वारा प्रस्तुत किये गये विकल्प या उत्तर एक दूसरे से कितने भिन्न-भिन्न हैं। विविधता की तीन विमाएं - आकृति स्वतः स्फूर्त विविधता (Figural Spontaneous Flexibility, आकृति अनुकूलन विविधता (Figural Adaptive Flexibility) तथा शाब्दिक स्वतः स्फूर्त विविधता (Semantic Spontaneous Flexibility) हो सकती हैं। आकृति स्वतः स्फूर्त विविधता से तात्पर्य किसी वस्तु या आकृति में सुधार करने के उपायों की विविधता से है। आकृति अनुकूलन विविधता से अभिप्राय किसी वस्तु या आकृति के रूप में किसी दिये गये रूप में परिवर्तित करने की विधियों की विविधता से है। शाब्दिक स्वतः स्फूर्त विविधता में वस्तओं या शब्दों के प्रयोग में विविधता को देखा जाता है। सृजनात्मकता के परीक्षणों के किसी पद (item) पर विविधता को प्रायः उस पद पर व्यक्ति के द्वारा दिये गये प्रत्युत्तरों के प्रकार (Type of Responses) की संख्या से व्यक्त किया जाता है। परीक्षण पर किसी व्यक्ति के कल विविधता प्राप्तांक को ज्ञात करने के लिए उसके द्वारा विभिन्न पदों पर प्राप्त विविधता अंकों को जोड़ लिया जाता है।
(iii) मौलिकता (Originality) –
मौलिकता से अभिप्राय व्यक्ति के द्वारा प्रस्तुत किये गये विकल्पो या उत्तरो का असामान्य (Uncommon) अथवा अन्य व्यक्तियों के उत्तरों से भिन्न होने से है। इसमें देखा जाता है कि व्यक्ति द्वारा दिये गये विकल्प या उत्तर सामान्य या प्रचलित (Popular) विकल्पी या उत्तरा से कितने भिन्न हैं। दूसरे शब्दों में मौलिकता मुख्य रूप से नवीनता (Newness) से सम्बन्धित हाता है। जो व्यक्ति अन्यों से भिन्न विकल्प प्रस्तुत करता है वह मौलिक कहा जा सकता है। वस्तुओं के नय उपयाग बताना, कहानी, कविता या लेख के शीर्षक लिखना, परिवर्तनों के दूरगामी परिणाम बताना, नवीन प्रतीक खोजना आदि मौलिकता के कुछ उदाहरण हैं।
(iv) विस्तारण (Elaboration)–
विस्तारण से तात्पर्य दिये गये विचारों या भावों की विस्तृत व्याख्या, व्यापक पूर्ति या गहन प्रस्तुतिकरण से होता है। विस्तारण को दो भागों - शाब्दिक विस्तारण (Semantic Elaboration) तथा आकृति विस्तारण (Figural Elaboration) में बांटा जा सकता है। शाब्दिक विस्तारण में किसी दी गई संक्षिप्त घटना, क्रिया, कार्य, परिस्थिति आदि को विस्तृत करके प्रस्तुत करने के लिए कहा .. जाता है जबकि आकृति विस्तारण में किसी दी गई रेखा या अपूर्ण चित्र में कुछ जोड़कर उससे एक पूर्ण एवं सार्थक चित्र बनाना होता है।
सृजनात्मकता की प्रकृति
(Nature of Creativity)
सजनात्मकता के स्वरूप तथा प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए अनेक मनौवैज्ञानिकों के द्वारा प्रयास किये गये हैं। यद्यपि सृजनात्मकता के स्वरूप, प्रकृति तथा औचित्य को स्पष्ट करने के किसी पूर्ण सन्तोषजनक तथा सर्वमान्य सिद्धांत को अभी तक प्रस्तुत नहीं किया जा सका है फिर भी अनेक मनौवैज्ञानिकों ने सजनात्मकता के सिद्धान्तों, सृजनात्मकता की विशेषताओं तथा सृजनात्मकता के स्वरूप को अपने अपने दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत किया है। आगे सृजनात्मकता के विभिन्न सिद्धान्तों तथा स्वरूप की संक्षेप में चर्चा की गई हैं।
सृजनात्मकता के प्राचीन सिद्धान्त (Ancient Theory) के अनुसार सृजनात्मकता (Creativity) को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक उपहार (Gift from God) माना जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार जो व्यक्ति ईश्वरीय शक्ति का जितना ज्यादा कृपापात्र होता है वह उतना ही अधिक सृजनात्मक होता है। अध्यात्मवादी व्यक्ति प्रायः इस विचारधारा का समर्थन करते हैं। ..
उन्माद समकक्ष सृजनात्मकता सिद्धान्त (Creativity Equivalent to Insanity Theory)
के अनुसार सृजनात्मकता बस्तुतः मानसिक उन्माद अथवा मस्तिष्क के गलत व्यवस्थापन (Dearrangement of Mind) का एक लक्षण है।सृजनात्मकता तथा मानसिक उन्माद के प्रायः साथ-साथ पाये जाने के कारण सम्भवतः एक सिधान्त का प्रतिपादन किया गया था। परन्तु उन्माद तथा सृजनात्मकता समानार्थ शब्द नहीं है। उन्मादी व्यक्ति अपनी अलग दुनिया में रहकर अपनी व्यक्तिगत रुचियो तथा स्वार्थों की पूर्ति करता है जबकि सृजनात्मकता व्यक्ति सृजनशील क्रियाकलापो के द्वारा जनहित के कार्य करता है। अपने सृजनात्मक प्रयासों के कारण सृजनात्मक व्यक्ति का व्यवहार सामान्य व्यक्तियों से कुछ भिन्न हो सकता है परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि वह मानसिक दृष्टि से असामान्य अथवा पागल व्यक्ति है।
महत्वपूर्ण प्रश्नों के लिंक
Its copied from edu. Psychology by dr s.p.gupta, dr. Alka gupta and paste by vijendra. Admit pay attention
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