Notes for D.El.Ed.
Course- D.El.Ed.
Subject-
Vidyaly Sanskriti Privartn Aur Shikshak vikash
paper-04
प्रश्न 2. प्रबन्धन की विशेषतायें बताइये।
Question - PRBANDHAN KI VISHESTA BTAVE?
उत्तर-
प्रबन्धन में निम्नलिखित विशेषताएँ प्रमुख रूप से उभरकर आती हैं
1 प्रबन्ध सोद्देश्य प्रक्रिया है
2. प्रबन्धन से कार्य की सफलता बढ़ती है
3. सार्वभौमिकता
4. यह समन्वित प्रक्रिया है
5. प्रबन्धन क्रिया आधारित होता है
6. प्रबन्धन बहु-आयामी होता है
1 प्रबन्ध सोद्देश्य प्रक्रिया है (Purposeful Process)-
प्रबन्धन एक सोद्देश्य किया है। प्रबन्धन का कोई न कोई उद्देश्य होता है। इसका उद्देश्य सरल, सुगम तथा प्रभावी रूप से किसी कार्य के पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना है। प्रबन्धन का अस्तित्व इसलिये है क्योंकि यह वाछित उद्देश्यों की प्राप्ति का प्रभावी साधन है।
2. प्रबन्धन से कार्य की सफलता बढ़ती है (Brings Success of Actions)
प्रबन्धन का केन्द्र बिन्दु सफल कार्यों का आयोजन करना है। प्रबन्धन की सहायता से यह जानना सरल होता है कि कहाँ से कार्य प्रारम्भ किया जाये, कौन से संसाधन जुटाये जायें, उनका सर्वोत्तम उपयोग कैसे हो तथा कार्यों को सफलता कैसे मिले ?
3. सार्वभौमिकता (Universality)-
प्रबन्धन में सार्वभौमिकता होती है। यही कारण है कि प्रत्येक देश, समाज, परिवार तथा उपक्रम में किसी न किसी रूप में प्रबन्धन की आवश्यकता पड़ती है।
4. यह समन्वित प्रक्रिया है (It is an Integrative Process)-
प्रबन्धन का मूल मंत्र सभी मानवीय एवं भौतिक संसाधनों का इस प्रकार समन्वय (Integration) करना है कि उससे अधिकतम परिणाम प्राप्त हो सकें । ये सभी संसाधन प्रबन्धकर्ताओं को उपलब्ध कराये जाते हैं। प्रबन्धकर्ता अपने ज्ञान, अनुभव, शिक्षा तथा दर्शन का प्रयोग कर कार्य-सम्पादन कराते हैं।
5. प्रबन्धन क्रिया आधारित होता है (Activity Based)-
प्रबन्धन क्रिया-आधारित होता है। प्रबन्धन में प्रबन्धकर्ताओं को विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित विविध कार्य करने होते हैं। प्रबन्धक-मण्डल ही विभिन्न कर्मचारियों से इन कार्यों को सम्पादित कराता है। प्रबन्धक-मण्डल ही उपक्रम के समस्त कार्यों के लिये उत्तरदायी होता है।
6. प्रबन्धन बहु-आयामी होता है (Inter-Disciplinary)-
प्रबन्धन का कोई एक .क्षेत्र नहीं होता है। प्रबन्धन के अनेक क्षेत्र, कार्य तथा आयाम होते हैं। प्रबन्धन में ही मानवशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, विज्ञान तथा ऐसे ही अन्य विषयों के सिद्धान्तों का प्रयोग करना पड़ता है।
लेखक --
सिकन्दर कुमार (गिरिडीह)