प्रश्न 7. “शैशवावस्था सीखने का आदर्श काल है।" इस कथन का विवेचन करते हुए शिशु-शिक्षा की एक संक्षिप्त रूप में स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
शैशवावस्था को जीवन का महत्त्वपूर्ण काल क्यों कहा जाता है ?
उत्तर -
शैशवावस्था (INFANCY)
शैशवावस्था , बालक का निर्माण काल है। यह अवस्था जन्म से पाँच वर्ष तक मानी जाती है। पहले तीन वर्ष पूर्व शैशवावस्था और तीन से पाँच वर्ष की आयु उत्तर शैशवावस्था कहलाती है।
न्यूमैन (J. Newman) के शब्दों में "पाँच वर्ष तक की अवस्था शरीर तथा मस्तिष्क के लिए बड़ी ग्रहणशील होती है।
फ्रायड के शब्दों में—“मनुष्य को जो कुछ भी बनना होता है, वह चार पाँच वर्षों में बन जाता है।”
` बालक के जन्म लेने के उपरान्त की अवस्था को शैशवावस्था कहते हैं। यह अवस्था पाँच वर्ष तक मानी जाती है नवजात शिशुओं का आकार 19.5 इंच, भार 7.5 पौंड होता है। वह माँ के दूध पर निर्भर करता है। धीरे-धीरे वह आँखें खोलता है। उसका सिर धड़ से जुड़ा रहता है। बाल मुलायम एवं माँसपेशियाँ छोटी एवं कोमल होती हैं। जन्म से 15 दिन बाद त्वचा का रंग स्थायी होने लगता है।
नवजात शिशु क्रन्दन करता है। इससे फेफड़ों में हवा भर जाती है और उसकी श्वसन क्रिया आरम्भ हो जाती है। स्तनपान के कारण उसमें चूसने की सहज क्रिया प्रकट होती है, वह भूख के समय रोता है। वह 15-20 घण्टे सोता है। धीरे-धीरे उसमें ये परिवर्तन स्थायी होने लगते हैं।
क्रो व क्रो के अनुसार-“बीसवीं शताब्दी को ‘बालक की शताब्दी' कहा जाता है।"
शैशवावस्था के महत्व के सम्बन्ध में हम कुछ विद्वानों के विचारों को उद्धृत कर रहे हैं, यथा -
(1) ऐडलर-
बालक के जन्म के कुछ माह बाद ही यह निश्चित किया जा सकता है कि जीवन में उसका क्या स्थान है।
(2) स्टैंग-
"जीवन के प्रथम दो वर्षों में बालक अपने भावी जीवन का शिलान्यास करता है । यद्यपि किसी भी आय में उसमें परिवर्तन हो सकता है, पर प्रारम्भिक प्रवृत्तियाँ और प्रतिमान सदैव बने रहते हैं।"
(3) गुडएनफ-
“व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है, उसका आधा तीन वर्ष की आयु तक हो जाता है।"
शैशवावस्था की मुख्य विशेषताएँ
(Cheif Characteristics of Infancy)
(1) शारीरिक विकास की तीव्रता (Rapidity in Physical Development)
(2) मानसिक क्रियाओं की तीव्रता (Rapidity in Mental Activities)-
(3) सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता (Rapidity in Learning Process)-
(4) कल्पना की सजीवता (Live Imagination)-
(5) दूसरों पर निर्भरता (Dependence on Others)-
(6) आत्म-प्रेम की भावना (Self Love)-
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शैशवावस्था, मानव विकास की दूसरी अवस्था है। पहली अवस्था गर्भकाल है जिसमें शरीर पूर्णतः बनता है और शैशवावस्था में उसका विकास होता है। शैशवावस्था की विशेषतायें इस प्रकार हैं
(1) शारीरिक विकास की तीव्रता
(Rapidity in Physical Development)
(2) मानसिक क्रियाओं की तीव्रता
(Rapidity in Mental Activities)-
(3) सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता
(Rapidity in Learning Process)-
(5) दूसरों पर निर्भरता
(Dependence on Others)-
(6) आत्म-प्रेम की भावना
(Self Love)
शैशवावस्था की विशेषतायें
(1) शारीरिक विकास की तीव्रता
(Rapidity in Physical Development)
शैशवावस्था के प्रथम तीन वर्षों में शिशु का शारीरिक विकास अति तीव्र गति से होता है। उसके भार और लम्बाई में वृद्धि होती है। तीन वर्ष के बाद विकास की गति धीमी हो जाती है। उसकी इन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों, आन्तरिक अंगों, माँसपेशियों आदि का क्रमिक विकास होता है।
(2) मानसिक क्रियाओं की तीव्रता
(Rapidity in Mental Activities)-
शिशु की मानसिक क्रियाओं; जैसे-ध्यान, स्मृति, कल्पना, संवेदना और प्रत्यक्षीकरण (Sensation and Perception) आदि के विकास में पर्याप्त तीव्रता होती है। तीन वर्ष की आयु तक शिशु की लगभग सब मानसिक शक्तियाँ कार्य करने लगती हैं।
(3) सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता
(Rapidity in Learning Process)-
शिशु के सीखने की प्रक्रिया में बहुत तीव्रता होती है और वह अनेक आवश्यक बातों को सीख लेता है। गेसल (Gesell) का कथन है- “बालक प्रथम 6 वर्षों में बाद के 12 वर्षों से दना सीख लेता है।”
(4) कल्पना की सजीवता
(Live Imagination)-
कुप्पूस्वामी (Kuppuswamy) के शब्दों में, “चार वर्ष के बालक के सम्बन्ध में एक अतिमहत्वपूर्ण बात है उसकी कल्पना की सजीवता। वह सत्य और असत्य में अन्तर नहीं कर पाता है। फलस्वरूप, वह असत्यभाषी ज्ञान पड़ता है।"
(5) दूसरों पर निर्भरता
(Dependence on Others)-
जन्म के बाद शिशु कछ समय तक बहुत असहाय स्थिति में रहता है। उसे भोजन और अन्य शारीरिक आवश्यकताओं के अलावा प्रेम और सहानुभूति पाने के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। वह मुख्यतः अपने माता-पिता और विशेष रूप से अपनी माता पर निर्भर रहता है।
(6) आत्म-प्रेम की भावना
(Self Love)-
शिशु में आत्म-प्रेम की भावना बहुत प्रबल होती है। वह अपने माता-पिता, भाई-बहन आदि का प्रेम प्राप्त करना चाहता है। पर साथ ही, वह यह भी चाहता है कि प्रेम उसके अलावा और किसी को न मि और किसी के प्रति प्रेम व्यक्त किया जाता है तो उसे उससे ईर्ष्या हो जाती है।
शैशवावस्था सीखने का आदर्श काल है।" इस कथन का विवेचन करते हुए शिशु-शिक्षा की एक संक्षिप्त रूप में स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए | SHAISHVAVSTHA SHIKHNE KA AADRSH KAL HAI ,ES KTHN KA VIVECHN KRTE HUVE SHIKSHA KI EK SNCHHIPT RUP SE SPST RUPREKHA PRSTUT KIJIYE
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