गणित में पाठ्य -पुस्तकों का स्थान -
(Place of text books in mathematics)
छात्रों को सही व उच्च कोटि का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उचित गणित की पाठय -पुस्तक की आवश्यकता है ! पाठय -पुस्तक में क्रमबद्ध रूप से उचित एवं स्पष्ट सामग्री होती है ! पाठ्य पुस्तक से छात्रों को कोर्स का पूरा ज्ञान तथा उचित सामग्री मिल जाती है जिससे परीक्षाओं में आने वाले प्रश्नों के हल मिल जाते हैं! छात्र को पाठ्य पुस्तकों से क्रमबद्ध रूप से प्रश्नों को हल करने का तरीका ज्ञात होता है!
गणित की पाठ्य पुस्तकों के अध्ययन से बालकों के मस्तिष्क को सोचने व विचारने की प्रक्रिया को इस ढंग से प्रशिक्षित किया जाता है कि समस्या को देखे तथा तर्कसंगत ढंग से अपना कोई मत स्थिर करें, जब जो भी परिणाम प्राप्त होता है उसके सहारे आगे बढ़े तब उनका मस्तिष्क इस ढंग से कार्य करने के लिए प्रशिक्षित हो जाएगा, तभी गणित की पाठ्य पुस्तकों को पढ़ना सार्थक होगा !
गणित विषय का सही ढंग से पूर्ण ज्ञान लेने के लिए पाठय - पुस्तकों का होना उचित है ! गणित की पाठय - पुस्तकों से गणित विषय में नए-नए सूत्रों द्वारा प्रश्नों की समस्याओं के लिए सोचने का ढंग, उनका विश्लेषण करना, प्रश्नों को हल करने के नियमों व सिद्धांतों आदि के ज्ञान के उद्देश्यों पर बल मिलता है !
पाठय -पुस्तकों से छात्रों को यह पता चलता है कि किस अध्याय का हमें अध्ययन करना है !उस अध्याय का विस्तृत ज्ञान उसको सही ढंग से पढ़ने से मिल जाता है!
पाठ पुस्तकों में कक्षा के हिसाब से भाषा का प्रयोग होना चाहिए ! आजकल की पुस्तकों में भाषा को इतना जटिल बना देते हैं कि सामान्य छात्रों को समझना ही कठिन हो जाता है ! शिक्षक जब पाठ्य-पुस्तक पढ़ाते हैं तब किताब में लिखे प्रश्नों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं समझाते हैं, जिससे छात्रों का ज्ञान सीमित रह जाता है ! शिक्षक जब पढ़ाते हैं तब वे पाठ पुस्तकों में दिए उदाहरणों को बिना बदलाव किए श्यामपट्ट पर उतार देते हैं, जबकि उनको चाहिए की उस दिए हल् से भिन्न उसको समझाएं हो सकता है पाठ्य -पुस्तक में दिए प्रश्नों की भाषा कुछ जटिल हो वह छात्रों को समझ में नहीं आ रही हो उसको अपने ज्ञान से सरल भाषा में छात्रों को समझाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता है! इसलिए आजकल का छात्र केवल पाठ -पुस्तक में दिए हल को ही रटने लगता है ! इसमें वह पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाता है और वह कमजोर रह जाता है ! शिक्षक को चाहिए कि पाठ्य पुस्तक में लेखक के ज्ञान को ही सर्वोपर मान लिया जाए उसको अपने ज्ञान के साथ मिलाकर छात्रों को उचित ज्ञान दिया जाएगा तो निश्चित ही छात्र उदीयमान बनेगा !
यदि छात्र के सम्मुख उचित पाठ्य-पुस्तके लायी जाए तो उससे उसको ज्ञान अधिक मिलेगा नहीं तो उसका पढ़ना व पढ़ाना दोनों ही निरर्थक है !
आजकल छात्रों को प्रश्नों को हल करने के लिए सूत्र रटा दिये जाते हैं ! वे उन्हें मशीनों की तरह समझ लेते हैं, किंतु वास्तविक ज्ञान से बहुत दूर रहते हैं ! विद्यार्थी को जो भी सिखाया जाता है उसे पाठ्यक्रम में रखने का कोई- न -कोई उद्देश्य होता है ! यदि शिक्षक किसी उद्देश्य की प्राप्ति जिन जिन छोटे-छोटे बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता है, तो छात्र रुचि पूर्वक पढता है ! कक्षा में जो भी प्रकरण चलता है उसी के अनुसार गणित का अध्यापन कार्य शिक्षक को कराना चाहिए जो छात्रों के हित में होता है !
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