(Importance of text books in teaching of mathematics)
पाठ्य- पुस्तक शिक्षण एवं पाठ्य- सामग्रियों में सबसे पुराना साधन है ! इसकी आवश्यकता और महत्व आज भी कम नहीं हुए हैं ! आदि काल से लेखक के प्रतीकों के उद् विकास तक अभिज्ञान का भंडारण, स्मृति पटल पर एवं हस्तांतरण पीढ़ी -दर- पीढ़ी मौखिक रूप से होता रहा ! इसमें अतिशय वृद्धि की स्थिति में इन प्रतीकों का विकास हुआ ! फलस्वरूप संप्रेषण योग्य सूचनाओं और तथ्यों को लिखित रूप में प्रस्तुत करने की परंपरा विकसित हुई ! गति का उद्भव एवं विकास मानव सभ्यता के साथ -साथ हुआ ! गणित विषय के संबंध में ज्ञान प्राप्त करने के लिए पाठ पुस्तकों की आवश्यकता पड़ती है ! पाठ्य- पुस्तकों में संगठित ज्ञान एक स्थान पर मिल जाता है ! इससे आधार पर छात्रों का मूल्यांकन होता है ! इनसे ही छात्रों का कक्षा कार्य होता है !
अंग्रेजी भाषा का शब्द करिकुलम (curriculum) का हिंदी रूपांतरण पाठ्यक्रम है ! यह लैटिन भाषा का शब्द है ! इसका अर्थ "दौड़ का मैदान "होता है ! अथार्त पाठ्यक्रम दौड़ का वह मैदान है, जिस पर दौड़कर बालक अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है !
गणित पाठयकर्मों के निर्माण के लिए निम्न सिद्धांतों को ध्यान में रखा जाता है -
1. गणित के पाठ- पुस्तकों में गणित के आधारभूत ज्ञान जैसे- सिद्धांत तथा मुख्य- मुख्य तथ्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिए ! ये कक्षा के स्तर को देखते हुए अधिक जटिल नहीं होना चाहिए ! पाठ -पुस्तकों में दैनिक जीवन में उपयोग में काम आने वाले पाठ होने चाहिए !
2. पाठ- पुस्तकों से जब शिक्षक छात्रों को पढ़ाता है तब विशेष पाठ का चयन करने में आसानी रहती है !
3. पाठ्य पुस्तक में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्न दिए होते हैं उनको छात्रों को समझाने में आसानी होती है !
4. गृह कार्य देते समय पाठ्य- पुस्तकों की आवश्यकता पड़ती है ! यदि पाठ्य-पुस्तक के नहीं होती तब छात्रों को प्रश्न बोलकर लिखने पड़ते ! उस अवस्था में समय बर्बाद होता तथा छात्र सही प्रश्न नहीं लिख पाते !
5. अनुभवी लेखक गणित की पाठ्य-पुस्तक में पाठ्यक्रम के अनुसार अपने अनुभव अनुभव से रूचि पूर्ण एवं सारगर्भित पाठ तैयार करता है, जिससे शिक्षकों को पाठ्यक्रम के बारे में इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता है !
6. परीक्षा में जो प्रश्न पूछे जाते हैं वे पाठ्य- पुस्तक में दिए पाठ्यक्रम से ही आते हैं ! इसके बारे में छात्रों को पूर्व ज्ञान हो जाता है !
7.पाठ पुस्तकों के कारण शिक्षक को पढ़ाने के संबंध में भटकना नहीं पड़ता है ! वह पुस्तक में दिए पाठो को ही अपनी योग्यता एवं अनुभव से छात्रों को पढ़ाने में सहायता मिलती है !
8. पाठय - पुस्तक में जो अध्याय दिए जाते हैं वे क्रमबद्ध होते हैं ! प्रत्येक अध्याय का संबंध अपने पूर्व अध्याय से होता है ! इसलिए अध्यापकों को प्रथम पाठ से शुरू करके अंतिम पाठ तक पढ़ाना चाहिए !
9. पाठ्य - पुस्तक में गणित संबंधी प्रयोग सामग्री उचित ढंग से मिल जाती है, जिससे छात्रों के प्रयोग के संबंध में ज्ञान पूर्ण रूप से हो जाता है !
10. शिक्षक अधिक छात्रों की कक्षा में प्रत्येक छात्र पर व्यक्तिगत रुप से ध्यान नहीं दे पाता है तब पाठ्य-पुस्तक ही इस कार्य को आसान बना देती है
सम्बन्धित प्रश्न -
गणित शिक्षण के लिए पाठ पुस्तकों की आवश्यकता
Importance of text books in teaching of mathematics
GNIT SHIKSHK KE LIYE PATH PUSTAK KI AAVSYKTA
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