Course- 4 (Language across the curriculum)
भाषा की सामान्य विशेषताएं या प्रकृति -
भाषा की प्रकृति उसके विधायक तत्वो अथवा इसके विविध अवयवों पर दृष्टिपात करने से स्पष्ट हो जाता है कि भाषा एक व्यवस्था है ! वह क्रमोच्चारित विभिन्न ध्वनियों की श्रृंखलाबद्ध रचना है ! भाषा में निम्नांकित सामान्य विशेषताएं परिलक्षित होती है :-
1. भाषा अर्जित संपत्ति है -
पैतृक नहीं, मानव-शिशु मां के पेट से कोई भाषा सीख कर नहीं आता, बल्कि जिस भाषा- भाषियों के बीच उसका जन्म होता है, उसका लालन -पोषण होता है और जो भाषा उसे सुनने को मिलती है वही भाषा वह सीख लेता है ! यदि शिशु को मानव- समुदाय से ही अलग रखा जाए तो वह कोई भाषा नहीं सीख सकेगा !
2. भाषा अनुकरणजन्य प्रक्रिया है -
अनुकरण द्वारा ही भाषा सीखते हैं और यह प्रक्रिया ही भाषा की परिवर्तनशीलता का या दूसरे शब्दों में बिकासशीलता का एक प्रमुख कारक है ! शिशु माता-पिता, भाई-बहन आदि से भाषा का व्यवहार सुनकर स्वयं कहने का प्रयास करता है !
3. भाषा सामाजिक प्रक्रिया है -
सामाजिक परिवेश में ही उसका जन्म, विकास अर्जन और प्रयोग होता है ! अतः वह समाज सापेक्ष है ! मनुष्य स्वतंत्र सामाजिक प्राणी है और भाषा उसकी ही कृति है ! भाषा कोई दैविक प्राकृतिक अथवा सांस्कृतिक संपदा नहीं है ! वह सामाजिक परिवेश में मानव- मस्तिष्क की उपज है !
4. भाषा सतत परिवर्तनशील प्रक्रिया है -
भाषाई परिवर्तन ध्वनियों शब्दों पदबंधो एवं वाक्य रचनावो आदि सभी स्तरों पर हो सकते हैं ! पर, यह परिवर्तन इसने शैने -शैने होते हैं कि उनका पता तत्काल नहीं चलता !
5. प्रत्येक भाषा का एक मानक रूप होता है -
यद्यपि भाषा सतत परिवर्तित होती रहती है ! विशेषत: एक विशाल भूखंड में प्रयुक्त होने वाली भाषा के प्रयोग में भिन्नताएं आ जाना और भी स्वाभाविक है ! इस कारण विभिन्न भागों में उनकी ध्वनियों के उच्चारण शब्द एवं रूप रचना अनुतान में ही नहीं बल्कि वाक्य रचनाओं में भी अंतर पाया जाता है ! किंतु, भाषा का एक मानक रूप भी होता है और हमें सदा इस मानक रूप का ही प्रयोग करना चाहिए !
6.भाषा का कोई अंतिम रूप नहीं है -
समाज सापेक्ष होने के फलस्वरूप वह सदैव विकास की ओर अग्रसर होती रहती है ! जो भाषाएँ बोलचाल में नहीं है उनका तो अंतिम रूप निश्चित है, पर जीवित भाषाओं में तो परिवर्तन अवश्यंभावी है ! जीवंत भाषा का यही लक्षण है !
7. भाषा परंपरागत और व्यक्ति उसका अर्जन कर सकता है -
उत्पन्न नहीं कर सकता ! भाषा परंपरा से चली आ रही है ! व्यक्ति उस परंपरागत भाषा का ही समाज में अर्जन करता है !
8. प्रत्येक भाषा की संरचना दूसरी भाषा से भिन्न होती है -
ध्वनि, शब्द, रूप, वाक्य, अर्थ आदि दृष्टियो से किसी एक या अनेक स्तरों पर एक भाषा का ढांचा दूसरी भाषा भाषा के ढांचे से भिन्न होता है ! यह भिन्नता ही एक भाषा को दूसरे से पृथक कर देती है !
9. भाषा स्थूल से सूक्ष्म एवं आपरिपक्वता से परिपक्वता की और विकसित होता है -
भाषा अपनी प्रारंभिक अवस्था में सूक्ष्म भावो एवं अनुभूतियों को व्यक्त करने में समर्थ नहीं है उसका शब्द- भंडार भी कम रहता है तथा संरचनात्मक गठन भी शिथिल रहता है ! किंतु, कालांतर में वही भाषा समृद्धशाली हो जाती है !
10. भाषा संयोगावस्था से वियोगवस्था की दिशा में विकसित होती है
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आधुनिक भाषाओं के इतिहास एवं कर्मोतर विकास के शास्त्रीय अध्ययन से सिद्ध होता है कि भाषा संयोग से वियोग की ओर अग्रसर होती है !
11. मनुष्य प्रयत्न लाघव को विशेष पसंद करता है -
भाषा चुकी मानव अर्जित सम्पति है ! अतः भाषा स्वभावत: कठिनता से सरलता की ओर प्रभावित होती है !
Written By:
Chhotelal Yadav
Assistant Professor
Department Of Education
S. Sinha College, Aurangabad (Bihar)