Course - 8 (Knowledge and curriculum)
आज के युग में बालक को शिक्षा का केंद्र माना जाता है ! आज की मनोवैज्ञानिक खोजो ने सिद्ध कर दिया है कि बालक को मानकर शिक्षा दी जानी चाहिए ! किसी भी दशा में उसे छोटा प्रौढ़ न माना जाए ! सफल शिक्षण के लिए आवश्यक है कि बालक को समस्त शिक्षा उसकी आवश्यकता, प्रकृति, रुचियो उसके मानसिक स्तर एवं शारीरिक क्षमताओं के अनुसार दी जाए ! इसलिए बाल केंद्रित का अभिप्राय उस पाठ्यचर्या से लिया जाता है जिसकी रचना बालकों की आवश्यकताओं, योग्यताओं, क्षमताओं, मानसिक स्तर, प्रकृति एवं रूचि के अनुसार की जाए ! इसी सन्दर्भ में माथुर का कथन है," बाल केंद्रित पाठ्यचर्या का अभिप्राय उस पाठ्यचर्या से लिया जाता है जिसमें पाठ्यचर्या का संगठन, आयोजन बालक की आवश्यकताओं एवं रुचियो के अनुरूप किया जाता है !"
इसी सन्दर्भ में डॉक्टर सफाया का मत है, यह पाठ्यचर्या भी ज्ञान प्रदान करती है, किंतु केवल सैद्धांतिक नहीं ! यह ऐसे अवसर प्रदान करती है एवं ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करती है जो बालक के पूर्ण तथा स्वाभाविक विकास में सहयोग दें !"
इसी सन्दर्भ में भाटिया और नारंग का कहना है कि, "यह बालक को अभिवृतियो, क्षमताओ, रुचियों तथा उनकी आवश्यकताओं पर आधारित है ! बालक उसके केंद्र बिंदु है जिसके चारों ओर संपूर्ण शिक्षा प्रक्रिया घूमती है !"
उपयुक्त परिभाषाओं के आधार पर हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि बाल केंद्रित पाठ्यचर्या वह है जिसमें शिक्षक की समस्त सामग्री तथा क्रियाएं बालक की अभिरुचि, क्षमता, योग्यता, मानसिक स्तर, प्रकृति एवं आवश्यकताओं के अनुसार तैयार की जाती है ! इसका मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है जिसका निरंतर ध्यान रखा जाता है !
बाल केंद्रित पाठ्यचर्या का अर्थ एवं महत्व
(Meaning and importance of Learners centered curriculum)
बाल केंद्रित पाठ्यचर्या -
आज के युग में बालक को शिक्षा का केंद्र माना जाता है ! आज की मनोवैज्ञानिक खोजो ने सिद्ध कर दिया है कि बालक को मानकर शिक्षा दी जानी चाहिए ! किसी भी दशा में उसे छोटा प्रौढ़ न माना जाए ! सफल शिक्षण के लिए आवश्यक है कि बालक को समस्त शिक्षा उसकी आवश्यकता, प्रकृति, रुचियो उसके मानसिक स्तर एवं शारीरिक क्षमताओं के अनुसार दी जाए ! इसलिए बाल केंद्रित का अभिप्राय उस पाठ्यचर्या से लिया जाता है जिसकी रचना बालकों की आवश्यकताओं, योग्यताओं, क्षमताओं, मानसिक स्तर, प्रकृति एवं रूचि के अनुसार की जाए ! इसी सन्दर्भ में माथुर का कथन है," बाल केंद्रित पाठ्यचर्या का अभिप्राय उस पाठ्यचर्या से लिया जाता है जिसमें पाठ्यचर्या का संगठन, आयोजन बालक की आवश्यकताओं एवं रुचियो के अनुरूप किया जाता है !"
इसी सन्दर्भ में डॉक्टर सफाया का मत है, यह पाठ्यचर्या भी ज्ञान प्रदान करती है, किंतु केवल सैद्धांतिक नहीं ! यह ऐसे अवसर प्रदान करती है एवं ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करती है जो बालक के पूर्ण तथा स्वाभाविक विकास में सहयोग दें !"
इसी सन्दर्भ में भाटिया और नारंग का कहना है कि, "यह बालक को अभिवृतियो, क्षमताओ, रुचियों तथा उनकी आवश्यकताओं पर आधारित है ! बालक उसके केंद्र बिंदु है जिसके चारों ओर संपूर्ण शिक्षा प्रक्रिया घूमती है !"
उपयुक्त परिभाषाओं के आधार पर हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि बाल केंद्रित पाठ्यचर्या वह है जिसमें शिक्षक की समस्त सामग्री तथा क्रियाएं बालक की अभिरुचि, क्षमता, योग्यता, मानसिक स्तर, प्रकृति एवं आवश्यकताओं के अनुसार तैयार की जाती है ! इसका मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है जिसका निरंतर ध्यान रखा जाता है !
बाल केंद्रित का महत्व या लाभ :
(1) पाठ्यचर्या का निर्माण मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार किया जाता है !
(2) यह पाठ्यचर्या बालक की आवश्यकताओं के साथ-साथ उसके जीवन से भी संबंधित होती है !
(3) यह पाठ्यचर्या बालक के सर्वांगीण विकास को बल देती है !
(4) यह पाठ्यचर्या लचीली है अर्थात बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार पाठ्यक्रम में परिवर्तन करना सरल एवं संभव है !
(5) इस पाठ्यचर्या में समस्त ज्ञान का समन्वय संभव होता है जिसमें शिक्षा शिक्षार्थवादी एवं उपयोगी बन जाती है !
(6) इस पाठ्यचर्या में सैद्धांतिक पक्ष के साथ-साथ व्यावहारिक पक्ष को भी महत्व दिया जाता है !
Thanks
Written By -
CHHOTELAL YADAV
Assistant Professor
Department of Education
S. Sinha College, Aurangabad (Bihar
S. Sinha College, Aurangabad (Bihar
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