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मातृभाषा, राष्ट्रभाषा एवं संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का महत्व या भूमिका

Course - 4 (Language across the curriculum)



Topic- मातृभाषा, राष्ट्रभाषा एवं संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का महत्व या भूमिका 


     बालकों के विकास में मातृभाषा, राष्ट्रभाषा एवं संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का महत्व या  भूमिका निम्नलिखित है -

1.  विचार -विनिमय का प्रमुख साधन -

 जिस स्वभाविकता  एवं सहजता से हम मातृभाषा में विचारों का आदान -प्रदान करते हैं, उतना किसी अन्य भाषा का अटूट संबंध नहीं हो सकता है !  जितना अधिक हम विचारों को प्रकट करते हैं, उतने ही नवीन विचार हमारे मन में उठते रहते हैं ! हम  मातृभाषा के माध्यम से ही इन विचारों को पूर्णता के साथ प्रकट करते हैं और दूसरे के विचारों के भाव के अर्थ को पूर्णता के साथ ग्रहण करते हैं !

2. ज्ञानार्जन का  प्रमुख साधन -

  मानव श्रवण एवं पाठन क्रियाओं के माध्यम से देश-विदेश की सभी तरह की जानकारी प्राप्त करता है ! शब्द -भंडार के माध्यम से उसकी शैशवावस्था में उसके पास धीरे-धीरे बढ़ता है ! शब्द -भंडार के माध्यम से वह  किसी विचार को सुनता है या किसी रचना को पढता है तो उस विचार को वह अनायास  ही पूरी तरह ग्रहण कर लेता है और ये विचार उसके मस्तिष्क में एकत्रित होते हुए उसके ज्ञान में वृद्धि करते हैं ! वास्तव में, मातृभाषा ही बालक के ज्ञान वृद्धि का प्रमुख साधन है !
3. विद्यालय जीवन की आधारशिला - 

बालक अपने परिवार में जिस भाषा को ग्रहण करता है ! यदि उसी भाषा में विद्यालय में भी शिक्षा दी जाती है तो वह उस शिक्षा को आसानी से ग्रहण कर लेता है ! वह जिस  पूर्णता से सभी विषयों को मातृभाषा से आत्मसात कर लेता है, उसी पूर्णता से किसी अन्य भाषा में नहीं कर सकता ! अतः विद्यालय के सभी कार्यकलापों में भाग लेने के लिए मातृभाषा ही प्रमुख माध्यम है ! 

4. मानसिक एवं बौद्धिक विकास में सहायक -

ज्ञान वृद्धि विकास होती है और बौद्धिक विकास प्रभावित होता है ! मानसिक विकास के लिए विचारशक्ति, तर्कशक्ति, विवेकशक्ति तथा अभिव्यक्ति कौशल का होना अत्यंत आवश्यक है ! जिस व्यक्ति की भाषा पर जितना अधिकार होगा, उसकी विचारशक्ति, तर्कशक्ति, एवं अभिब्यक्ति भी उतनी ही अधिक विकसित होगी ! सशक्त भाषा विचारशक्ति, तर्कशक्ति एवं  अभिव्यक्ति कौशल को विकसित एवं व्यक्ति को मानसिक प्रबलता प्रदान करती है !

5.  भावात्मक विकास में सहायक 

- महात्मा गांधी ने कहा था - "मनुष्य के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा उतना ही आवश्यक है जितना शिशु के शारीरिक विकास के लिए माता का दूध " शैशवास्था में बालक माता के दूध के साथ -साथ उसकी वात्सल्य पूर्ण लोरीयो के माध्यम से मातृभाषा को ग्रहण करता है ! यह क्रिया बालक को  सहज,  सुरक्षा, खुशी एवं आत्मसंतुष्टि प्रदान करती हैं और आत्म -संतुष्टि तथा प्रसंता बालक के बिभिन्न भावात्मक गुणों जैसे -स्नेह, सहानुभूति, सहृदयता,सेवा, धैर्य एवं त्याग आदि को विकसित करने में सहायक होती है ! 

6.  शारीरिक विकास में सहायक -  

मातृभाषा में स्वाभाविक रूप से की गयी  विचारभीव्यक्ति बालक के चित्त को प्रसन्नता एवं शरीर को स्वास्थ्य रखने में सहायक होती है!  यह सत्य है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है और शारीरिक विकास स्वाभाविक रूप से होता है !

7. सामाजिक विकास में सहायक - 

 मातृभाषा में विचारों का आदान- प्रदान करके ही बालक, समाज में एक -दूसरे को सहयोग प्रदान करता है एवं आपसी संबंधों को विकसित करता है, जिससे वह समाज का सहयोगी सदस्य बनता है ! 

8. सांस्कृतिक विकास में सहायक -  

अपनी मातृभाषा के साहित्य का अध्ययन कर हम अपने देश को परंपराओं, आदर्शों, मूल्यो एवं रहन-सहन आदि से आसानी से परिचित हो सकते हैं ! कहा भी गया है - "मातृभाषा बच्चों को अपने पूर्वजों के विचारों, भावो,  रीति-रिवाजों, आदर्शों एवं महत्वाकांक्षाओं से परिचित कराने का सशक्त माध्यम है !"

 9.  चारित्रिक एवं  नैतिक विकास में सहायक -

 मातृभाषा के साहित्य का अध्ययन कर तथा मातृभाषा में व्यक्त किए गए विभिन्न रूपको एवं नाटकों आदि को देखकर बालक विभिन्न नैतिक गुणों से परिचित होता है और उसे ग्रहण करने का प्रयास करता है ! इस प्रकार, मातृभाषा वालक को  नैतिक रूप से भी समृद्ध बनाती है !

10.  व्यवहारिक जीवन में सहायक - 

 व्यवहारिक जीवन में सफल होने के लिए जरूरी है कि बालक  को अपने बड़ों एवं छोटो एवं बराबर वालों के साथ बातचीत करनी आती हो ! यह कार्य मातृभाषा से जितनी कुशलता से हो सकता है उतनी कुशलता से किसी अन्य भाषा में नहीं ! मातृभाषा बालक को  व्यवहारिक कुशलता प्रदान करती है !

11.  लोकतंत्रात्मक विकास में सहायक - 

बालक के लोकतंत्रात्मक विकास  से अभिप्राय है कि बालक को अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का पूर्ण ज्ञान हो, उसमें सामाजिक व राजनीतिक चेतना हो ! उसे देश की सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं का ज्ञान हो मातृभाषा के ज्ञान के बिना यह सब जानकारी असंभव है !

12.  व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास में सहायक -

  मातृभाषा व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक, संस्कृतिक, चारित्रिक एवं भावात्मक विकास में सहायक होकर व्यक्तित्व को संतुलित रूप में विकसित करती है ! एक  तरफ साहित्य का अध्ययन बालक के ज्ञान में वृद्धि करता है, तो दूसरी तरफ  मातृभाषा के माध्यमों से विचारों का आदान- प्रदान कर वह व्यावहारिक कुशलता प्राप्त  करता है ! इससे बालक को आत्म- तुष्टि व प्रसन्नता का अनुभव होता है, उससे  स्वस्थ भावनाओं का विकास होता है तथा उसका व्यक्तित्व संतुलित रूप से विकसित होता है !

    अतः  यदि हम चाहते हैं कि देश के भावी नागरिक आत्म- गौरव से पूर्ण तरह से विकसित हो  एवं वे  तन -मन- धन से देश के  विकास में हाथ बढ़ाएं तो मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा प्रदान करना ही वह एक मात्र उपाय है ! इस दृष्टि से मातृभाषा शिक्षण को सही दिशा प्रदान करने का प्रयत्न सभी ओर से किए जाने चाहिए !

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1 Comments
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  1. सटीक एवं विश्लेषणात्मक लेख। बहुत सुंदर।

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