Understanding Disciplines and Subject
अनुसासन एवं विषय की समझ
विषय | अनुसासन एवं विषय की समझ |
Subject | Understanding Disciplines and Subject |
Anushasan Avam Vishyaon ki Samajh | |
Course | B.Ed 1st Year |
University | All |
AB JANKARI इस पेज में बी.एड फर्स्ट इयर केअनुसासन एवं विषय की समझ नोट्स , अनुसासन एवं विषय की समझ असाइनमेंट ,अनुसासन एवं विषय की समझ प्रश्न-उत्तर ,अनुसासन एवं विषय की समझ बी.एड नोट्स in hindi, को शामील किया गया है |
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(01) प्रश्न पाठ्यक्रम से क्या समझते है ?पाठ्यक्रम निर्माण के सिधांत का वर्णन करे ? ?
(01) प्रश्न -पाठ्यक्रम से क्या समझते है ?पाठ्यक्रम निर्माण के सिधांत का वर्णन करे ? |
पाठ्यक्रम -
"पाठ्यक्रम" से तात्पर्य उस योजना, रूपरेखा या ढाँचे से है जिसके अंतर्गत किसी विशेष कक्षा, पाठ्य स्तर या परीक्षा के लिए अध्ययन की जाने वाली विषयवस्तु निर्धारित की जाती है।
सरल शब्दों में कहें तो:
पाठ्यक्रम का मतलब है —
"वह सम्पूर्ण अध्ययन सामग्री, विषय, अध्याय, गतिविधियाँ और मूल्यांकन की विधियाँ, जिन्हें किसी शिक्षा स्तर पर छात्रों को पढ़ाया और सिखाया जाता है।"
हर विषय के अंदर कौन-कौन से अध्याय पढ़ाए जाएंगे, कैसे मूल्यांकन होगा (जैसे परीक्षा, प्रोजेक्ट), और किस क्रम में पढ़ाया जाएगा — ये सब पाठ्यक्रम में निर्धारित होता है।
पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत वे मूल नियम, दृष्टिकोण या मानदंड होते हैं जिनके आधार पर किसी शिक्षा प्रणाली के लिए प्रभावशाली, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण पाठ्यक्रम तैयार किया जाता है। इन सिद्धांतों का पालन करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि पाठ्यक्रम छात्रों की शैक्षिक, सामाजिक, मानसिक और व्यावहारिक ज़रूरतों को पूरा करे।
1. बालक केंद्रित सिद्धांत (Child-Centered Principle)
सरल शब्दों में कहें तो:
पाठ्यक्रम का मतलब है —
"वह सम्पूर्ण अध्ययन सामग्री, विषय, अध्याय, गतिविधियाँ और मूल्यांकन की विधियाँ, जिन्हें किसी शिक्षा स्तर पर छात्रों को पढ़ाया और सिखाया जाता है।"
हर विषय के अंदर कौन-कौन से अध्याय पढ़ाए जाएंगे, कैसे मूल्यांकन होगा (जैसे परीक्षा, प्रोजेक्ट), और किस क्रम में पढ़ाया जाएगा — ये सब पाठ्यक्रम में निर्धारित होता है।
पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत वे मूल नियम, दृष्टिकोण या मानदंड होते हैं जिनके आधार पर किसी शिक्षा प्रणाली के लिए प्रभावशाली, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण पाठ्यक्रम तैयार किया जाता है। इन सिद्धांतों का पालन करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि पाठ्यक्रम छात्रों की शैक्षिक, सामाजिक, मानसिक और व्यावहारिक ज़रूरतों को पूरा करे।
पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत
1. बालक केंद्रित सिद्धांत (Child-Centered Principle)
पाठ्यक्रम बच्चों की रुचि, आवश्यकता, क्षमताओं और मानसिक स्तर के अनुसार होना चाहिए।
इससे शिक्षा अधिक प्रभावी और आकर्षक बनती है।
2. सामाजिक उपयोगिता सिद्धांत (Social Utility Principle)
पाठ्यक्रम में ऐसे विषय और अनुभव शामिल होने चाहिए जो बच्चों को समाज में उपयोगी नागरिक बनने में मदद करें। जैसे: नैतिक शिक्षा, सामाजिक विज्ञान, पर्यावरण आदि।
3. गतिविधि आधारित सिद्धांत (Activity-Based Principle)
शिक्षा को केवल किताबी न बनाकर उसमें परियोजना, प्रयोग, खेल, रचनात्मक कार्य आदि को भी शामिल किया जाए। इससे बच्चों में व्यावहारिक ज्ञान और कौशल विकसित होते हैं।
4. समग्र विकास सिद्धांत (All-Round Development Principle)
पाठ्यक्रम ऐसा हो जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक और भावनात्मक विकास को बढ़ावा दे।
5. लचीलापन सिद्धांत (Flexibility Principle)
पाठ्यक्रम इतना लचीला हो कि अलग-अलग स्थानों, स्थितियों और छात्रों के अनुसार उसमें आवश्यक परिवर्तन किए जा सकें।
6. स्थानीय आवश्यकताओं का सिद्धांत (Local Needs Principle)
पाठ्यक्रम में स्थानीय संस्कृति, परंपरा, भाषा और समस्याओं को स्थान मिलना चाहिए, ताकि छात्र अपने परिवेश से जुड़ सकें।
7. क्रमिकता और सततता का सिद्धांत (Principle of Continuity and Sequence)
पाठ्यक्रम में विषयवस्तु इस तरह रखी जाए कि एक कक्षा का ज्ञान अगली कक्षा के ज्ञान से जुड़ा हो। आसान से कठिन की ओर क्रम हो।
8. जीवन उपयोगिता का सिद्धांत (Life-Centered Principle)
शिक्षा केवल परीक्षा पास करने तक सीमित न हो, बल्कि जीवन में उपयोगी सिद्ध हो।
इससे शिक्षा अधिक प्रभावी और आकर्षक बनती है।
2. सामाजिक उपयोगिता सिद्धांत (Social Utility Principle)
पाठ्यक्रम में ऐसे विषय और अनुभव शामिल होने चाहिए जो बच्चों को समाज में उपयोगी नागरिक बनने में मदद करें। जैसे: नैतिक शिक्षा, सामाजिक विज्ञान, पर्यावरण आदि।
3. गतिविधि आधारित सिद्धांत (Activity-Based Principle)
शिक्षा को केवल किताबी न बनाकर उसमें परियोजना, प्रयोग, खेल, रचनात्मक कार्य आदि को भी शामिल किया जाए। इससे बच्चों में व्यावहारिक ज्ञान और कौशल विकसित होते हैं।
4. समग्र विकास सिद्धांत (All-Round Development Principle)
पाठ्यक्रम ऐसा हो जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक और भावनात्मक विकास को बढ़ावा दे।
5. लचीलापन सिद्धांत (Flexibility Principle)
पाठ्यक्रम इतना लचीला हो कि अलग-अलग स्थानों, स्थितियों और छात्रों के अनुसार उसमें आवश्यक परिवर्तन किए जा सकें।
6. स्थानीय आवश्यकताओं का सिद्धांत (Local Needs Principle)
पाठ्यक्रम में स्थानीय संस्कृति, परंपरा, भाषा और समस्याओं को स्थान मिलना चाहिए, ताकि छात्र अपने परिवेश से जुड़ सकें।
7. क्रमिकता और सततता का सिद्धांत (Principle of Continuity and Sequence)
पाठ्यक्रम में विषयवस्तु इस तरह रखी जाए कि एक कक्षा का ज्ञान अगली कक्षा के ज्ञान से जुड़ा हो। आसान से कठिन की ओर क्रम हो।
8. जीवन उपयोगिता का सिद्धांत (Life-Centered Principle)
शिक्षा केवल परीक्षा पास करने तक सीमित न हो, बल्कि जीवन में उपयोगी सिद्ध हो।
(02) प्रश्न जॉन डीवी के शैक्षिक विचार ?
(02) प्रश्न -जॉन डीवी के शैक्षिक विचार |
भूमिका - जॉन डीवी (John Dewey) एक प्रसिद्ध अमेरिकी दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे। वे प्रगतिशील शिक्षा (Progressive Education) आंदोलन के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं। उनके शैक्षिक विचार आज भी आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
जौन डीवी के शिक्षिक विचार--
जौन डीवी के प्रमुख शिक्षाशास्त्रीय विचार
1. अनुभव आधारित शिक्षा (Learning by Doing)
डीवी का मानना था कि बच्चे को केवल किताबों से ज्ञान प्राप्त नहीं होता, बल्कि अनुभव और क्रियात्मक गतिविधियों के माध्यम से वह ज्यादा सीखता है। उन्होंने कहा: "Education is not preparation for life; education is life itself."
2. शिक्षा और समाज (Education and Society)
डीवी के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत विकास नहीं है, बल्कि एक बेहतर समाज की रचना भी है। उन्होंने शिक्षा को लोकतंत्र की आधारशिला माना।
3. बच्चा केंद्रित शिक्षा (Child-Centered Education)
डीवी का जोर इस पर था कि शिक्षा प्रणाली बच्चे के रुचि, आवश्यकता और अनुभव पर आधारित होनी चाहिए, न कि केवल शिक्षक या पाठ्यक्रम पर।
4. समस्या समाधान पद्धति (Problem Solving Method)
डीवी का विश्वास था कि बच्चे को समस्याओं का समाधान करना सिखाना चाहिए। इससे उसके अंदर तर्क, विश्लेषण और निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है।
5. लोकतांत्रिक कक्षा (Democratic Classroom)
उन्होंने शिक्षा को एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया माना, जहाँ छात्र और शिक्षक दोनों मिलकर सीखते और एक-दूसरे का सम्मान करते हैं।
निष्कर्ष:
जॉन डीवी ने शिक्षा को रटंत विद्या से मुक्त करके उसे जीवन से जोड़ा। उनका मानना था कि सच्ची शिक्षा वही है जो व्यक्ति को समाज के लिए उपयोगी बनाए। आज भी उनके विचार शिक्षा क्षेत्र में प्रासंगिक हैं।
(03) प्रश्न अंतर्वस्तु चयन के कौन कौन मूल आधार है समझाईये ?
(03) प्रश्न -अंतर्वस्तु चयन के कौन कौन मूल आधार है समझाईये |
उत्तर
अंतर्वस्तु चयन (Content Selection) का अर्थ है शिक्षण प्रक्रिया में पढ़ाए जाने वाले विषय-वस्तु, अवधारणाओं और अनुभवों का चयन करना। जॉन डीवी के अनुसार, अंतर्वस्तु चयन के मूल आधार शिक्षा के उद्देश्यों, छात्रों की आवश्यकताओं और समाज की मांगों पर निर्भर करते हैं।
अंतर्वस्तु चयन के प्रमुख मूल आधार:
1. छात्रों की रुचियाँ और आवश्यकताएँ (Student’s Interests and Needs)
• डीवी के अनुसार, शिक्षा बाल-केंद्रित होनी चाहिए।
• अंतर्वस्तु का चयन करते समय छात्रों की उम्र, मानसिक स्तर, रुचियाँ और जिज्ञासाओं को ध्यान में रखना चाहिए।
• उदाहरण: छोटे बच्चों को खेल-खेल में सीखने (Play-way Method) के लिए गतिविधि-आधारित अंतर्वस्तु दी जानी चाहिए।
2. समाज की आवश्यकताएँ (Social Needs and Relevance)
• शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को समाज के लिए उपयोगी बनाना है।
• अंतर्वस्तु में सामाजिक मूल्य, नैतिकता, लोकतांत्रिक सिद्धांत और व्यावहारिक ज्ञान शामिल होना चाहिए।
• उदाहरण: पर्यावरण शिक्षा, नागरिकशास्त्र, वित्तीय साक्षरता आदि को पाठ्यक्रम में शामिल करना।
3. अनुभव-आधारित शिक्षा (Experiential Learning)
• डीवी का मानना था कि "हम वही सीखते हैं जो हम अनुभव करते हैं।"
• अंतर्वस्तु में प्रयोगात्मक गतिविधियाँ, फील्ड विजिट, प्रोजेक्ट वर्क आदि को शामिल किया जाना चाहिए।
• उदाहरण: विज्ञान पढ़ाते समय प्रयोगशाला कार्य, इतिहास पढ़ाते समय संग्रहालय भ्रमण।
4. विषय-वस्तु की उपयोगिता (Utility and Practicality)
• पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो दैनिक जीवन में उपयोगी हो।
• रटंत विद्या के बजाय व्यावहारिक ज्ञान पर जोर दिया जाना चाहिए।
• उदाहरण: गणित में बजट बनाना, भाषा शिक्षण में वार्तालाप कौशल सिखाना।
5. लचीलापन और विविधता (Flexibility and Diversity)
• अंतर्वस्तु चयन में लचीलापन होना चाहिए ताकि विभिन्न सीखने की शैलियों को समायोजित किया जा सके।
• बहु-विषयक दृष्टिकोण (Multidisciplinary Approach) को बढ़ावा देना चाहिए।
• उदाहरण: विज्ञान को इतिहास या कला से जोड़कर पढ़ाना (जैसे—वैज्ञानिकों के जीवन पर चर्चा)।
6. लोकतांत्रिक मूल्यों का समावेश (Democratic Values)
• डीवी के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य अच्छे नागरिक तैयार करना है।
• अंतर्वस्तु में सहयोग, समानता, न्याय और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को शामिल किया जाना चाहिए।
• उदाहरण: कक्षा में समूह चर्चा, निर्णय लेने की प्रक्रिया में छात्रों की भागीदारी।
निष्कर्ष:
जॉन डीवी के अनुसार, अंतर्वस्तु चयन छात्र-केंद्रित, समाज-उपयोगी और अनुभव-आधारित होना चाहिए। शिक्षा का लक्ष्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि व्यक्तित्व विकास और सामाजिक योगदान को बढ़ावा देना है।
(04) प्रश्न समुदाय क्या है ? विद्यालय पाठ्यक्रम निर्माण में समुदाय के महत्व व् प्रकार का वर्णन करे | ?
(04) प्रश्न -समुदाय क्या है ? विद्यालय पाठ्यक्रम निर्माण में समुदाय के महत्व व् प्रकार का वर्णन करे | |
उत्तर –
समुदाय क्या है? (What is Community?)
समुदाय लोगों का एक ऐसा समूह होता है जो भौगोलिक क्षेत्र, सांस्कृतिक मूल्य, सामाजिक संरचना या साझे उद्देश्यों के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। समुदाय के सदस्यों में पारस्परिक संबंध, सहयोग और सामूहिक जिम्मेदारी की भावना होती है।
विद्यालयी पाठ्यक्रम निर्माण में समुदाय का महत्व
1. सामाजिक प्रासंगिकता सुनिश्चित करना
o समुदाय की आवश्यकताओं (रोजगार, सामाजिक समस्याएँ) के अनुरूप पाठ्यक्रम डिजाइन करना
उदाहरण: कृषि प्रधान क्षेत्रों में कृषि प्रौद्योगिकी को शामिल करना
2. स्थानीय ज्ञान का संरक्षण
o पारंपरिक कलाएँ, लोकविद्या और स्थानीय इतिहास को पाठ्यक्रम में समावेश
उदाहरण: राजस्थान के पाठ्यक्रम में लोकगीत और जल प्रबंधन तकनीक
3. व्यावहारिक शिक्षा हेतु संसाधन
o समुदाय के विशेषज्ञ (किसान, कारीगर) द्वारा प्रायोगिक ज्ञान का हस्तांतरण
उदाहरण: स्थानीय कुम्हार द्वारा मिट्टी के बर्तन बनाने का प्रशिक्षण
4. सामुदायिक भागीदारी से लोकतांत्रिक शिक्षा
o अभिभावक-शिक्षक संघ (PTA) और स्थानीय निकायों के माध्यम से निर्णय प्रक्रिया
5. संसाधनों का अनुकूलन
o समुदाय द्वारा स्कूल अवसंरचना, शैक्षिक सामग्री और फंडिंग में योगदान
विद्यालय पाठ्यक्रम निर्माण में समुदाय का महत्व
(Role of Community in Curriculum Development)
o जॉन डीवी के अनुसार, "विद्यालय समुदाय का लघु रूप है", इसलिए पाठ्यक्रम निर्माण में समुदाय की भूमिका अहम है।
o 1. सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करना (Addressing Social Needs)
o समुदाय की आर्थिक, सांस्कृतिक और नैतिक आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम बनाया जाना चाहिए।
o उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि-आधारित शिक्षा, शहरी क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता।
o 2. स्थानीय संदर्भों का समावेश (Incorporating Local Context)
o पाठ्यक्रम में स्थानीय इतिहास, भाषा, कला और पर्यावरण को शामिल किया जाना चाहिए।
o उदाहरण: राजस्थान के पाठ्यक्रम में लोकगीत और जल संरक्षण पर विशेष ध्यान।
o 3. व्यावहारिक शिक्षा को बढ़ावा (Promoting Practical Knowledge)
o समुदाय के अनुभवी सदस्य (किसान, कारीगर, कलाकार) विद्यालयों में व्यावहारिक ज्ञान साझा कर सकते हैं।
o उदाहरण: स्थानीय कुम्हार द्वारा मिट्टी के बर्तन बनाने की कला सिखाना।
o 4. लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास (Developing Democratic Values) o समुदाय की भागीदारी से छात्र सहयोग, सहनशीलता और नागरिक दायित्व सीखते हैं।
o उदाहरण: विद्यालय में स्वच्छता अभियान चलाने के लिए समुदाय को जोड़ना।
o 5. अभिभावकों और शिक्षकों का सहयोग (Parent-Teacher Collaboration)
o अभिभावक बच्चों की रुचियों और कमजोरियों के बारे में जानकारी देकर पाठ्यक्रम को प्रभावी बना सकते हैं।
(05) प्रश्न ?
(05) प्रश्न - |
(06) प्रश्न ?
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