Learning and Teaching
अधिगम एवं शिक्षण
विषय | अधिगम एवं शिक्षण |
Subject | Learning and Teaching |
Adhigam evan shikshan | |
Course | B.Ed 1st Year |
University | All |
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प्रश्न -1 अधिगम से क्या समझते है ? अधिगम के प्रकार |
उत्तर - अधिगम से क्या समझते हैं?
अधिगम का अर्थ होता है – ज्ञान, कौशल, व्यवहार या अनुभव को प्राप्त करने की प्रक्रिया।
आसान शब्दों में अधिगम :- अधिगम = सीखने की प्रक्रिया
जब कोई व्यक्ति अभ्यास, अनुभव, शिक्षा या पर्यावरण के प्रभाव से कुछ सीखता है, तो वह "अधिगम" कहलाता है।
जैसे -
(01) बच्चा जब बोलना सीखता है — यह अधिगम है।
(०२) किसी ने गाड़ी चलाना सीखा — यह भी अधिगम है।
(०3) यदि कोई डर को नियंत्रित करना सीख जाए — यह भी मनोवैज्ञानिक अधिगम है।
अधिगम के प्रकार-
(01) संवेदी अधिगम (Sensory Learning)
इन्द्रियों (आँख, कान, नाक आदि) के माध्यम से सीखना। जैसे: देखकर या सुनकर सीखना।
(02) मौखिक अधिगम (Verbal Learning)
भाषा और शब्दों के माध्यम से सीखना। जैसे: कविता याद करना, बातचीत से सीखना।
(03) मोटर अधिगम (Motor Learning)
शरीर की गतिविधियों से जुड़ा अधिगम। जैसे: तैराकी, लिखना, दौड़ना।
(04)संज्ञानात्मक अधिगम (Cognitive Learning)
सोच-विचार, तर्क और निर्णय की प्रक्रिया से सीखना। जैसे: गणित हल करना।
(05) सामाजिक अधिगम (Social Learning)
दूसरों के व्यवहार को देखकर सीखना। जैसे: बड़ों की नकल करके व्यवहार अपनाना।
(06) भावनात्मक अधिगम (Emotional Learning)
भावनाओं को समझना और नियंत्रित करना। जैसे: गुस्से को संभालना सीखना।
(02) प्रश्न - शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका |
शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। एक शिक्षक केवल ज्ञान का संप्रेषण करने वाला व्यक्ति नहीं होता, बल्कि वह विद्यार्थियों के समग्र विकास का मार्गदर्शक, प्रेरक और संरक्षक भी होता है। नीचे शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक की प्रमुख भूमिकाओं को बताया गया है:
1. ज्ञान का स्रोत (Source of Knowledge):
शिक्षक विद्यार्थियों को विषय-वस्तु की जानकारी प्रदान करता है, उन्हें कठिन अवधारणाओं को समझने में मदद करता है और विषय के प्रति रुचि विकसित करता है।
2. मार्गदर्शक (Guide):
शिक्षक विद्यार्थियों को सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। वह यह सुनिश्चित करता है कि छात्र अपने लक्ष्य को पहचानें और उसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करें।
3. प्रेरणास्रोत (Motivator):
शिक्षक विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, जिज्ञासा और सीखने की इच्छा को प्रोत्साहित करता है। वह उन्हें कठिनाइयों से न घबराने और लगातार प्रयास करते रहने की प्रेरणा देता है।
4. सुव्यवस्थित योजना निर्माता (Planner):
शिक्षण की प्रभावी योजना बनाना, पाठ्यक्रम को उपयुक्त रूप से विभाजित करना और समय का उचित उपयोग करना शिक्षक की भूमिका में शामिल है।
5. प्रवेशकर्ता और मूल्यांकनकर्ता (Evaluator):
शिक्षक विद्यार्थियों की सीखने की प्रक्रिया का आकलन करता है, उनकी प्रगति की जांच करता है और सुधार हेतु सुझाव देता है।
6. सहयोगी और सहभागी (Facilitator & Collaborator):
आधुनिक शिक्षण पद्धतियों में शिक्षक विद्यार्थियों के साथ सहभागिता करता है, उनके विचारों को महत्व देता है और उन्हें स्वतंत्र रूप से सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है।
7. चरित्र निर्माणकर्ता (Builder of Character):
एक अच्छा शिक्षक विद्यार्थियों के भीतर नैतिक मूल्यों, अनुशासन, सहिष्णुता और जिम्मेदारी जैसे गुणों का विकास करता है।
(03) प्रश्न शिक्षण का अर्थ , परिभाषा , प्रकृति का वर्णन करे ? |
शिक्षण का अर्थ (Meaning of Teaching)
शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक विद्यार्थियों को ज्ञान, कौशल, और मूल्यों का संप्रेषण करता है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि सोचने, समझने और व्यवहार में लाने की क्षमता को विकसित करना होता है।सरल शब्दों में:
शिक्षण एक संवादात्मक प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक और छात्र मिलकर सीखने का वातावरण बनाते हैं।
शिक्षण की परिभाषाएँ (Definitions of Teaching)
ब्राउन के अनुसार:"Teaching is the process of carrying out those activities that experience has shown to be effective in bringing about learning."
(शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें ऐसे क्रियाकलाप किए जाते हैं जो अनुभव के अनुसार प्रभावशाली रूप से अधिगम कराते हैं।)
मैडल एंड डन के अनुसार:
"Teaching is a form of interpersonal influence aimed at changing the behavior potential of another person."
(शिक्षण एक अंतरव्यक्तिगत प्रभाव की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य किसी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाना होता है।)
भारत के राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढाँचे (NCF 2005) के अनुसार:
"Teaching is to facilitate learning."
(शिक्षण, अधिगम को सरल और सुगम बनाने की प्रक्रिया है।)
शिक्षण की प्रकृति (Nature of Teaching)
द्विपक्षीय प्रक्रिया:शिक्षण केवल शिक्षक द्वारा जानकारी देना नहीं है, यह शिक्षक और छात्र दोनों के बीच संवादात्मक प्रक्रिया है।
लक्ष्य-उन्मुख:
शिक्षण का उद्देश्य होता है छात्रों में किसी विशेष ज्ञान, कौशल या व्यवहार का विकास करना।
गतिशील प्रक्रिया:
यह स्थिर नहीं है; यह समय, परिस्थितियों और छात्रों की आवश्यकता के अनुसार बदलती रहती है।
मानव विकास की प्रक्रिया:
यह शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और नैतिक विकास को भी प्रभावित करती है।
सांस्कृतिक प्रक्रिया:
शिक्षण समाज की सांस्कृतिक परंपराओं और मूल्यों को आगे बढ़ाता है।
कला और विज्ञान दोनों:
शिक्षण में अनुभव, संवेदना (अभिव्यक्ति), और नवाचार की आवश्यकता होती है, इसलिए यह एक कला है। साथ ही इसमें वैज्ञानिक पद्धतियों और अनुसंधान का भी उपयोग होता है।
(04) प्रश्न - शिक्षण एवं अधिगम में अभिप्रेरणा के महत्व को स्पस्ट करे
उत्तर
अभिप्रेरणा के महत्व को स्पष्ट करने वाले प्रमुख बिंदु:
1. सीखने की दिशा प्रदान करती है:
अभिप्रेरणा छात्रों को यह स्पष्ट करती है कि उन्हें क्या सीखना है और क्यों सीखना है। यह सीखने की प्रक्रिया को उद्देश्यपूर्ण बनाती है।
2. रुचि व उत्सुकता बढ़ाती है:
जब छात्र किसी विषय में अभिप्रेरित होते हैं, तो उनकी उस विषय के प्रति रुचि और जानने की उत्सुकता बढ़ती है, जिससे वे अधिक ध्यान और लगन से अध्ययन करते हैं।
3. प्रयास और परिश्रम को बढ़ावा देती है:
प्रेरित छात्र कठिन से कठिन कार्य को करने के लिए भी तैयार रहते हैं। वे अधिक परिश्रम करते हैं और कठिनाइयों से घबराते नहीं।
4. ध्यान और एकाग्रता में वृद्धि:
प्रेरणा मिलने से छात्रों का ध्यान भटकता नहीं है और वे अधिक एकाग्र होकर अध्ययन करते हैं, जिससे उनकी सीखने की क्षमता में वृद्धि होती है।
5. सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करती है:
अभिप्रेरित छात्र अध्ययन को एक बोझ के रूप में नहीं बल्कि एक अवसर के रूप में देखते हैं, जिससे वे सकारात्मक सोच के साथ अधिगम करते हैं।
6. उपलब्धि और आत्मसंतोष की भावना:
जब छात्र प्रेरित होकर पढ़ते हैं और लक्ष्य प्राप्त करते हैं, तो उनमें आत्मसंतोष, आत्मविश्वास और गर्व की भावना उत्पन्न होती है।
7. रचनात्मकता और नवाचार को प्रोत्साहन:
अभिप्रेरणा छात्रों को नई चीज़ें सोचने, प्रयोग करने और रचनात्मक बनने के लिए प्रेरित करती है।
निष्कर्ष:
शिक्षण एवं अधिगम की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा एक मूलभूत तत्व है। यह न केवल छात्रों को सक्रिय बनाती है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर, जिज्ञासु और निरंतर सीखते रहने वाला व्यक्ति भी बनाती है। इसलिए शिक्षकों को चाहिए कि वे छात्रों में उचित और सकारात्मक अभिप्रेरणा विकसित करें ताकि अधिगम की प्रक्रिया प्रभावी और परिणामदायक बन सके।