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ज्ञान के प्राप्ति की विधिया

ज्ञान के प्राप्ति की विधिया


QUESTION  ज्ञान के प्राप्ति की विधियों की विवेचना कीजिए।
COURSE  B.Ed
SEMESTER  THREE
UNIVERSITY  MGKVP VARANSI & OTHER
SUBJECT   ज्ञान एवं पाठ्यक्रम
CODE 303
SHORT INFO  इस पेज में महात्मा गाँधी कशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय के तीसरे समेस्टर के पेपर 303 ज्ञान एवं पाठ्क्रम के प्रश्न को शामिल किया गया है | 

 
 

 प्रश्न 3 (iv) ज्ञान के प्राप्ति की विधियों की विवेचना कीजिए।

उतर -

ज्ञान के स्रोत यदि ज्ञान की उत्पत्ति अथवा उद्गम की चर्चा करते हैं तो 'ज्ञान प्राप्ति की विधियों' के अन्तर्गत इस विषय पर विचार किया जा सकता है कि उस ज्ञान को प्राप्त कैसे किया जाए। मानव का स्वभाव प्रकृति से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है अर्थात् वह अपने आसपास घटने वाली प्रत्येक घटना का ज्ञान प्राप्त करने के प्रयास में सदैव लगा रहता है। ज्ञान कभी भी समाप्त न होने वाली भूख है। इसलिए मनुष्य के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने ज्ञान को समय के साथ निरन्तर समायोजित युग करता रहे। ज्ञान प्राप्त करने की यह जिज्ञासा प्रत्येक आयु के व्यक्ति में पायी जाती है। आज के में बदलती परिस्थितियों के अनुसार व्यक्ति यदि अपने ज्ञान को नहीं बदलेगा तो वह समय व अपने साथियों से पिछड़ जाएगा। विभिन्न दार्शनिक विचारधाराएँ ज्ञान के स्वरूप, प्रकार तथा स्रोतों के विषय में विचार करने के साथ-साथ उसको प्राप्त करने की विधियों के विषय में भी अपने विचार व्यक्त करती *हैं। ये विधियाँ वास्तव में ज्ञान के स्वरूप तथा स्रोतों पर ही आधारित होती हैं। इन्द्रियों, तर्क और विश्वासों के आधार पर शिक्षाविदों और दार्शनिकों ने ज्ञान प्राप्त करने की कुछ विधियों का निर्माण किया है। ये विधियाँ निम्नलिखित हैं-

1. अंतर्बोध-

इस विधि में न तो तर्क का इस्तेमाल होता है और न ही ज्ञानेंद्रिय अनुभव का। सम्पूर्ण ज्ञान में अंतर्ज्ञान का तत्त्व मौजूद होता है। यह केवल भूतकाल के अनुभवों और सोच पर आधारित होता है। इस विधि में हमें वस्तुओं की वास्तविकता का ज्ञान होता है। इस विधि से उच्चतम एवं दार्शनिक ज्ञान की प्राप्ति होती है।

2. एकाग्रता एवं ध्यान विधि-

परम सत्ता तथा ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करने के लिए यह विधि प्रभावशाली है। इस विधि का सम्बन्ध भी ज्ञान के आध्यात्मिक स्तर के साथ है। सभी भारतीय दर्शनों ने इस विधि के महत्त्व को स्वीकार किया है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति अपने ध्यान को अन्य विषयों से हटाकर केवल उसी वस्तु या विचार विधि के माध्यम से शांत स्थान पर ध्यान केन्द्रित करके अपना सम्बन्ध अलौकिक शक्ति के साथ जोड़ने का प्रयास करते थे। महात्मा बुद्ध ने इसी विधि द्वारा परम बोध को प्राप्त किया।

3. शब्द - 

विधि- ज्ञान प्राप्ति की यह काफी महत्त्वपूर्ण विधि है। आज हमारी शिक्षा प्रणाली में इसका सर्वाधिक प्रयोग होता है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति लिखित विषय सामग्री को पढ़कर अथवा विश्वसनीय व्यक्तियों के विचारों को सुनकर ज्ञान अर्जित करता है। साधारण भाषा में हम इसे मौखिक अथवा लिखित शब्दों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त कराने वाली विधि कह सकते हैं। मानव जाति ने युगों से जिन ज्ञान को संचित किया है, उसे न प्रत्यक्ष विधि से प्राप्त किया जा सकता है और न ही केवल अन्तःप्रज्ञा, एकाग्रता अथवा प्रयोग द्वारा। इसके लिए सबसे उपयुक्त विधि है— शब्द-विधि।

 
 

4. अथॉरिटी को अपील करना-

अथॉरिटी ज्ञान का स्रोत न तो बुद्धि है न ही इन्द्रियानुभव। इस विधि की मुख्य विचारधारा किसी प्रकार की अथॉरिटी से अपील करना है। जैसे चर्च, विशेषज्ञों की राय आदि। प्रायः देखा गया है कि बहुत-सा ज्ञान जो हमारे पास है, उसे न तो ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा प्राप्त किया गया है और न ही इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए बुद्धि का प्रयोग किया गया है। हमें ऐसे ज्ञान के लिए विशेषज्ञों पर निर्भर रहना पड़ता है। ज्ञान के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ होते हैं। विशेषज्ञ वह व्यक्ति होता है जो अपने अनुभव के आधार पर किसी क्षेत्र का इतना ज्ञान रखता है कि उसके ज्ञान को चुनौती नहीं दी जा सकती। इसलिए उसके ज्ञान को सच माना जाता है। कभी यह विश्वास किया जाता था कि धरती गोल नहीं चपटी है। बाद में तर्क को आधार बनाकर खोज की गई। ऐसी संस्था जो काफी समय से अस्तित्व में हो उसे अथॉरिटी समझा जा सकता है। प्रत्येक आदमी इस विधि का प्रयोग ज्ञान प्राप्ति के लिए करता है। उदाहरण के लिए, हमारे माता-पिता द्वारा बताए गए जीवन-मूल्यों, परम्पराओं और सांस्कृतिक मूल्यों को हम बिना चुनौती दिए स्वीकार करते हैं।

5. हेतुवाद-

हेतुवादियों का मानना है कि ज्ञान विचारों की तुलना के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। तर्क के आधार पर ज्ञान प्राप्त करने की दो विधियाँ हैं-

(क) आगमन विधि-

इस विधि में हम विशेष से सामान्य की ओर चलते हैं तथा मूर्त से अमूर्त की ओर चलते हैं। इससे सिद्धान्त का निर्माण होता है। हम उदाहरणों से शुरू करते हैं और सिद्धान्तों पर पहुँचते हैं।

(ख) निगमन विधि-

यह विधि आगमन विधि से विपरीत है। हम इस विधि में सामान्य से विशेष की ओर बढ़ते हैं। हम एक सिद्धान्त से शुरू करते हैं और इसकी व्याख्या उदाहरणों के द्वारा करते हैं।

6. प्रयोगात्मक विधि-

 इस विधि में ज्ञान लेबोरेट्री में प्रयोग के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। यह विधि भौतिक विज्ञान, मनोविज्ञान, भूगोल आदि विषयों में ज्ञान प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाई जाती है।

7. समस्या समाधान विधि-

 प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में समस्याओं का सामना करता है। इन समस्याओं का हल ज्ञान बन जाता है। यह विधि मानसिक और बौद्धिक विकास करने के लिए उत्तम है। यह विधि गणित में सबसे अधिक कारगर है।

8. प्रत्यक्ष विधि-  

प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो के अनुसार, “ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान के द्वार हैं।" जब हमारी इन्द्रियाँ बाहरी विषयों के सम्पर्क में आती हैं तो हमें उस वस्तु का ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान प्राप्त करने की इस विधि को प्रत्यक्ष विधि कहा जाता है। इस विधि में ज्ञान प्राप्ति के लिए अन्य माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार ज्ञान प्राप्त करने की सबसे आरम्भिक विधि है— ज्ञानेन्द्रियों का प्रयोग। हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं—आँख, कान, नाक, मुख व त्वचा। इनके द्वारा देखकर, सुनकर, सूंघकर, स्वाद लेकर व स्पर्श कर व्यक्ति विभिन्न वस्तुओं के विषय में ज्ञान प्राप्त करता है। न्याय दर्शन के अनुसार, “इस विधि से यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्ञानेन्द्रियों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है।"

9. ज्ञानेन्द्रिय अनुभव -  ज्ञानेंद्रिय अनुभव ज्ञान प्राप्त करने की एक मुख्य विधि हैं। आधुनिक विज्ञान की प्रकृति अनुभव पर आधारित है। अवधारणाओं का विकास ज्ञानेंद्रिय अनुभवों के परिणामस्वरूप होता है। न्याय दर्शन के अनुसार, "इस विधि से यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्ञानेंद्रियों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है।"

(अ) करके सीखना- 

हम ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करते हुए कुछ कार्य करते हैं और ज्ञान प्राप्त, करते हैं। जब एक बच्चा बर्फ को छूता है तो उसे पता लगता है कि बर्फ ठंडी है। इस प्रकार प्राप्त किया गया ज्ञान स्थायी होता है।

(ब) निरीक्षण- 

समाज में रहते हुए बालक अपने आसपास के वातावरण का प्रेक्षण करता है। इस निरीक्षण के आधार पर वह अनुभवों को वास्तविक जीवन से जोड़कर देखता है। इस प्रक्रिया में तथ्यों का तर्क के आधार पर देखा जाता है। प्राकृतिवाद इस विधि में विश्वास करता है, क्योंकि इसका मानना है कि प्रकृति ज्ञान का सबसे अच्छा स्रोत होता है।

उपर्युक्त समस्त विवेचन से स्पष्ट है कि विभिन्न दर्शनों के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने की सम विधियाँ ज्ञान प्राप्ति में अपने ढंग से सहयोग देती है। ज्ञान प्राप्ति की प्रत्येक विधि का ज्ञान प्राप्त करने में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में खेल विधि, समस्या समाधान विधि, विवाद, ब्रेन स्टॉर्मिंग विधि आदि विधियाँ बालकों को ज्ञान प्राप्त करने में सहायता हेतु प्रयुक्त की जाती है

 
 

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