ज्ञान से आप क्या समझते हैं ? इसके प्राप्ति के तरीके
TITLE | बालक के जीवन में परिवार के महत्व |
PAPER NAME | समाज, शिक्षा और पाठ्यचर्या की समझ |
PAPER CODE | F-1 & OTHER |
ज्ञान पद का अनुवाद 'नालेज' पद से किया जाता है। भारतीय दर्शन के अनुसार 'ज्ञान' का अर्थ समझने से पूर्व सत्य की वस्तुनिष्ठता, ज्ञान की सार्थकता, ज्ञान की सत्यता तथा तार्किक प्रतिज्ञप्ति सत्यता से लगाया जाता है।
इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं-
- (i) ज्ञान की सत्यता हेतु उसकी वस्तुनिष्ठता का आंकलन किया जाना आवश्यक है।
- (ii) ज्ञान के अस्तित्व में कोई संशय नहीं होना चाहिए।
- (iii) ज्ञान की सत्यता की पुष्टि की सन्देहरहित होनी चाहिए।
- (iv) तार्किक प्रतिज्ञप्ति भी सत्य होनी चाहिए।
ज्ञान की अवधारणा/संकल्पना
ज्ञान की अवधारणा के सन्दर्भ में एक तथ्य और है कि ज्ञान केवल अनुभूति मात्र नहीं है। अनुभूति मात्र बाह्य स्वरूप की होती है परन्तु जब वस्तु के बाह्य रूप को देखने के बाद हम उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं तो यह स्थिति संभवतः ज्ञान की कही जा सकती है। ऐसा ज्ञान प्राप्त होने की स्थिति को ही ज्ञान चक्षु का खुल जाना कहा जा सकता है। शिक्षा यदि हमारे ज्ञान चक्षु खोल दे तो वह अर्थात् हमारी शिक्षा का इस प्रकार भारतीय दर्शन के अनुसार चेतना को ही ज्ञान की संज्ञा दी जाती है। ज्ञान इन्द्रियों के अनुभव तक ही सीमित नहीं है, अपितु इन्द्रियों से प्राप्त अनुभूतियों द्वारा भी ज्ञान की प्राप्ति होती है जिसके लिए कर्म, ज्ञान व भक्ति में समन्वय आवश्यक है।ज्ञान के स्रोत या तरीके
- (a) इन्द्रिय अनुभव
- (b) साक्ष्य
- (c) तार्किक चिन्तन
- (d) अन्तः प्रज्ञा तथा अन्तः प्रज्ञावाद
- (e) सत्ता अधिकारिक ज्ञान
(b) साक्ष्य -
जब हम दूसरों के अनुभव तथा निरीक्षण पर आधारित ज्ञान को मान्यता देते हैं तो इसे साक्ष्य कहा जाता है, साक्ष्य में व्यक्ति स्वयं निरीक्षण नहीं करता। वह दूसरों के निरीक्षण पर ही तथ्य का ज्ञान प्राप्त करता है। इस प्रकार साक्ष्य दूसरों के अनुभव पर आधारित ज्ञान है। हम प्रायः अपने जीवन में साक्ष्य का बहुत उपयोग करते हैं। हमने स्वयं बहुत से स्थानों को नहीं देखा है किन्तु जब दूसरे उनका वर्णन करते हैं तो हम उन स्थानों के अस्तित्व में विश्वास करने लगते हैं।
(c) तार्किक चिन्तन-
तार्किक चिन्तन ऐसी मानसिक प्रक्रिया/योग्यता है जिसके बिना कोई भी ज्ञान सम्भव नहीं है। हमारा अधिकांश ज्ञान तर्क पर ही आधारित होता है। हमें अनुभव द्वारा जो संवेदनायें प्राप्त होती हैं उनको तर्क द्वारा संगठित करके ज्ञान का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार यह अनुभव पर काम करता है और हमें ज्ञान में परिवर्तन करता जाता है।
इन्द्रियों से प्राप्त अनुभवों के द्वारा हम-रंग, स्वाद तथा गन्ध आदि से सम्बन्धित कुछ संवेदनाएँ प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु जब वस्तुओं में भेद करने का प्रश्न आता है, वहाँ हमें तार्किकता की आवश्यकता होती है जिसमें अमूर्त चिन्तन निहित होता है। अतः ज्ञान का आधार तर्क बुद्धि ही है।
(d) अन्तः प्रज्ञा तथा अन्तः प्रज्ञावाद -
यह भी ज्ञान प्राप्ति का एक मुख्य स्रोत है। यह एक प्रकार का आन्तरिक बोध है जिसमें ज्ञान की स्पष्टता निहित होती है। अन्तः से हमारा तात्पर्य है किसी तथ्य को अपने मन में जानना। इसके लिए किसी तर्क की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि इसके अन्तः अचानक ज्ञान के प्रकाश की किरण उत्पन्न होती है जिसे हम ज्ञान की संज्ञा देिते हैं। इस प्रकार के ज्ञान का एकमात्र प्रमाण यह है कि उसकी निश्चितता तथा वैधता में सन्देह नहीं होता तथा हम उस ज्ञान पर पूर्ण विश्वास कर लेते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अन्तःप्रज्ञा हमारे अन्दर निहित वह सद्धत क्षमता है जो कभी अचानक ही क्रियाशील होकर हमें आलोकित करती है।
परन्तु इस अन्तःप्रज्ञा के साथ कभी-कभी आत्मनिष्ठता का ऐसा गुढ़ा आबद्ध हो जाता है कि यदि हम इस यथार्थ ज्ञान का साथ मान भी लें तो फिर इस ज्ञान में वस्तुनिष्ठता तथा सार्वजनिकता जैसी चीज नहीं रह जायेगी और हम यह दावा नहीं कर सकेंगे कि कौन-सी प्रतिज्ञप्ति सत्य है और कौन-सी असत्य है।
(e) सत्ता अधिकारिक ज्ञान-
उच्च शिक्षित व्यक्तियों द्वारा प्रदत्त ज्ञान को सत्ता अधिकारिक ज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है। मनोविज्ञान ने अब यह सिद्ध कर दिया है कि मानव समाज में व्यक्तिगत भिन्नताएँ हैं। कुछ मनुष्य अत्यन्त प्रतिभाशाली हैं, जिनकी संख्या कम होती है, वे ही ज्ञान क्षेत्र में नई बातें जोड़ते हैं। इनके द्वारा दिया गया ज्ञान आर्ष या प्रति ज्ञान कहलाता है। शिक्षा का समस्त पाठ्यक्रम इन महान व्यक्तियों द्वारा जीवन के अनुभवों का भार है। अतः इन महान् व्यक्तियों को सत्ता माना जाना चाहिए। परन्तु इस तथ्य में एक कमी है कि इनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान के प्रति हमें इतना भी अंधविश्वासी नहीं होना चाहिए कि हमारा ज्ञान संकीर्ण हो जाये व उस ज्ञान से हमारे विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाये।
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