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महात्मा गाँधी की शिक्षा की अवधारणा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।

महात्मा गाँधी द्वारा सुझाई गई शिक्षा की अवधारणा की प्रमुख विशेषता

प्रश्न 6. महात्मा गाँधी द्वारा सुझाई गई शिक्षा की अवधारणा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।

उत्तर- राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा है। उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत था। संसार के अधिकांश लोग उन्हें महान राजनीतिज्ञ एवं समाज सुधारक के रूप में जानते हैं। पर उनका यह मानना था कि सामाजिक उन्नति हेतु शिक्षा का एक महत्वपूर्ण योगदान होता है। अतः गाँधीजी का शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष योगदान रहा है। उनका मूलमंत्र था 'शोषण विहीन समाज' की स्थापना करना ।उसके लिए सभी को शिक्षित होना चाहिए। क्योंकि शिक्षा के अभाव में एक स्वस्थ समाज का निर्माण असंभव है। अतः गांधीजी ने जो शिक्षा के उद्देश्यों एवं सिद्धांत की व्याख्या की तथा प्रारंभिक शिक्षा योजना उनके शिक्षा दर्शन का मूर्त रूप है। अतएव उनका शिक्षा दर्शन उनको एक शिक्षाशास्त्री के रूप में भी समाज के सामने प्रस्तुत करता है। उनका शिक्षा के प्रति जो योगदान था वह अद्वितीय था। संसार के अधिकांश लोग उन्हें महान राजनीतिज्ञ एवं समाज सुधारक के रूप में जानते हैं। पर उनका यह मानना था कि सामाजिक उन्नति हेतु शिक्षा का एक महत्वपूर्ण योगदान होता है।


शिक्षा में गाँधीजी के योगदान निम्न हैं-

  • 1. सम्पूर्ण मानव को शिक्षित करने की महान् योजना का प्रतिपादन
  • 2. राष्ट्रीय शिक्षा की रूपरेखा प्रस्तुत करना-
  • 3. बालक केन्द्रित शिक्षा —
  • 4. शिल्प केन्द्रित शिक्षा-
  • 5. शिक्षा को व्यावहारिक रूप प्रदान करना-
  • 6. शिक्षा के विभिन्न अंगों के सम्बन्ध में संश्लेषणात्मक दृष्टिकोण –
  • 7. सर्वोदय
1. सम्पूर्ण मानव को शिक्षित करने की महान् योजना का प्रतिपादन -

गाँधी जी ने एक ऐसी महान् योजना का प्रतिपादन किया जो सम्पूर्ण मानव को शिक्षित करने पर बल देती है। उन्होंने इस योजना का सूत्रपात अपने दक्षिण अफ्रीका एवं भारत में शिक्षा के प्रयोग के फलस्वरूप प्राप्त लम्बे अनुभवों के आधार पर किया। गाँधीजी ने टॉल्सटाय फार्म, फोनिक्स स्टेट, चम्पारण, साबरमती, गुजरात एवं वर्धा में नये प्रयोग किये और इन स्थानों पर चरित्र, ज्ञान एवं क्रिया के विकास के लिये नये साधन खोजे। इन प्रयोगों के द्वारा उन्होंने हाथ, हृदय एवं मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने की योजना प्रस्तुत की ताकि सम्पूर्ण मानव को शिक्षित किया जा सके। 

 2. राष्ट्रीय शिक्षा की रूपरेखा प्रस्तुत करना- 

गाँधी जी ने भारत की सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों के अनुरूप राष्ट्रीय शिक्षा की योजना प्रस्तुत की जो भारत को न केवल स्वतंत्र बनाने के लिए बल्कि सम्पूर्ण आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन को पुनजीर्वित करने वाली थी। यह एक ऐसी शिक्षा प्रणाली थी जो देश की शिक्षा में एकरूपता उत्पन्न करने वाली थी, जो भारतवासियों का एकता के सूत्र में बाँधने के लिए आवश्यक थी। 
 
3. बालक केन्द्रित शिक्षा — 

गाँधी जी का महत्वपूर्ण योगदान पहले से व्याप्त शिक्षा के स्वरूप व्यवस्था और विधियों के विपरीत क्रान्तिकारी विचार प्रकट करना है। तत्कालीन शिक्षा ने बालक के महत्त्व को समाप्त कर दिया था और वह केवल सूचनाओं का संग्रहकर्ता बनकर रह गयी थी। उन्होंने बालक को शिक्षा में उपयुक्त स्थान दिया और शिक्षा को 'बालक केन्द्रित' बनाया। रूसो भी बालक केन्द्रित शिक्षा का पोषक था परन्तु गाँधी और रूसो के विचारों में अन्तर है। रूसो ने बालक की शिक्षा में सामाजिक और आर्थिक लाभों पर बल दिया, जबकि गाँधी जी ने इनके साथ मनोवैज्ञानिक लाभों को भी महत्वपूर्ण बताया। 

 4. शिल्प केन्द्रित शिक्षा

 शैक्षिक सिद्धान्त और व्यवहार के क्षेत्र में गाँधी जी की महत्वपूर्ण वेन बेसिक शिक्षा अर्थात् मानव- हाथ को उचित स्थान प्रदान करना है। जे० बी० कृपलानी के अनुसार, "जहाँ तक गाँधीजी द्वारा हस्त कौशल या शिल्प द्वारा शिक्षा देने का सम्बन्ध है, वह एक मौलिक विचार है।" हस्त कौशल का विचार गाँधी जी ने प्राचीन भारतीय शिक्षा से ग्रहण कर जिस उल्लेखनीय ढंग से आधुनिक शिक्षा में प्रतिपादित किया है, उससे उनकी भी मौलिकता का ज्ञान होता है। उनका स्वयं कथन है कि "हस्तशिल्प को केवल उत्पादन कार्य के रूप में नहीं पढ़ना है, बल्कि बालक के बौद्धिक विकास के लिए पढ़ाना है।" वे पूर्ण 'मनुष्य' का विकास हस्तकौशल के द्वारा ही करना चाहते हैं। इस प्रकार वे प्रथम कोटि के शिक्षाशास्त्री हैं। हस्तशिल्प में क्रिया की प्रधानता होती है इसीलिए बालक क्रिया द्वारा सीखता है। रूसो पश्चिम में क्रिया द्वारा शिक्षा का अग्रदूत था तो गाँधी जी पूर्व में हस्तशिल्प, श्रम का महत्व और क्रियात्मक के कारण गाँधी जी की बुनियादी शिक्षा भारत के लिए सबसे बड़ी देन है। उन्होंने स्वयं कहा है―" मैंने भारत को कई चीजें प्रदान की हैं लेकिन अपनी प्रविधियों के साथ शिक्षा की यह योजना जैसा कि अनुभव करता हूँ, उनमें श्रेष्ठ है। मैं नहीं समझता कि इससे अच्छी और कोई चीज मेरे पास देश को देने के लिए है।

 5. शिक्षा को व्यावहारिक रूप प्रदान करना- 

गाँधी जी का एक महत्वपूर्ण योगदान यह है कि उन्होंने शिक्षा को व्यावहारिक रूप प्रदान किया। इसके लिए उन्होंने हस्तकौशल पर आधारित पाठ्यक्रम का निर्माण किया। उनसे प्रोत्साहन पाकर आज ग्रामीण देश भारत में कुटीर उद्योग धन्धे एक तरफ विशेष ध्यान दिया जा रहा है। विद्यालयों में व्यावसायिक शिक्षा की ओर ध्यान देकर प्रतिदिन शिक्षा को व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जो कि भारत जैसे विकसित देश के लिए आवश्यक है। 

 6. शिक्षा के विभिन्न अंगों के सम्बन्ध में संश्लेषणात्मक दृष्टिकोण – 

 गाँधी जी ने एकांकी दृष्टिकोण से बचकर शिक्षा के विभिन्न अंगों तथा शिक्षा की अवधारणा, शिक्षण के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण-पद्धति, शिक्षक, विद्यार्थी, अनुशासन आदि के सम्बन्ध में संश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाया। उनका विचार था कि आदर्शवादी, प्रकृतिवादी, प्रयोजनवादी. एवं यथार्थवादी ये विचारधाराएँ व्यावहारिक दृष्टिकोण से एक दूसरे के विपरीत नहीं हैं, बल्कि वे शिक्षा के विभिन्न अंगों को अधिकाधिक स्पष्ट एवं व्यावहारिक बनाने में सहायक होती हैं। डॉ. पटेल के अनुसार - "गाँधी जी के दर्शन में प्रकृतिवाद, आदर्शवाद एवं प्रयोजनवाद एक-दूसरे के विरोधी न होकर पूरक हैं।" " 

 7. सर्वोदय-

   गाँधी जी की महत्वपूर्ण देन उनका 'सर्वोदय' अर्थात् 'सभी के उत्थान का विचार है। वे ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे, जिसमें अन्याय, घृणा, जाति-पाँति और अमीर-गरीब का कोई चिह्न नहीं होगा।

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