बचपन को प्रभावित करने वाले मनोसामाजिक कारक
Psycho Social Factors of Childhood
बचपन को प्रभावित करने वाले मनोसामाजिक कारक निम्न हैं-
(1) शारीरिक बनावट तथा स्वास्थ्य (Physique and Health)
(2) परिवार (Family)
(3) पड़ोस तथा विद्यालय (Neighbourhood and School )
(4) मनोरंजन (Recreation)
(5) संवेगात्मक विकास (Emotional Development )
(6) हीनता की भावना (Inferiority Complex)
(7) साथी समूह (Peer Groups )
(1) शारीरिक बनावट तथा स्वास्थ्य (Physique and Health) -
जिन बच्चों का शरीर सुसंगठित और सुन्दर होता है, उन्हें अपने समूह और समाज में अच्छा स्थान मिलता है। साथ ही उनमें आत्मविश्वास भी जाग्रत होता है। इनका समायोजन भी भिन्न स्रोतों में आसानी से हो जाता है। इनका विकास अन्य बच्चों की अपेक्षा जल्दी होता है। यह खेल कूद में आगे रहते हैं। ये दूसरे असामान्य बच्चे जैसे गूँगे, बहरे, अंधा, आदि बच्चों के साथ खेलना भी पसंद नहीं करते हैं। इन बच्चों में सामाजिकता के गुण, मित्रता तथा सहयोग की भावना अधिक होती है।
(2) परिवार (Family)–
परिवार का वातावरण तथा परिवार का सामाजिक-आर्थिक स्तर बच्चों के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है । इनके अलावा परिवार का आकार भी महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है। छोटे परािवार में बच्चों की देखभाल अच्छी होती है। उन्हें प्यार-दुलार ज्यादा मिलता है परन्तु बड़े आकार के परिवार में बच्चों की देखभाल अच्छी नहीं हो पाती परन्तु उन्हें अन्य बच्चों के साथ अनुसरण के अवसर अधिक मिलते हैं। सहयोग, उत्तरदायित्व, पक्षपात, तिरस्कार, आदि सब बच्चों को अपने अभिभावकों से ही मिलते हैं। बच्चे अपने माता-पिता से ही सब कुछ सीखते हैं । निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर वाले परिवार के बालकों में हीनता की भावना आ सकती है। जिससे उन्हें कठिनाइयाँ संभालने में परेशानियाँ आ सकती हैं। उनमें आत्मविश्वस की कमी हो सकती है।
(3) पड़ोस तथा विद्यालय (Neighbourhood and School )
बच्चे का मनोसामाजिक विकास किस प्रकार होगा यह उसके विद्यालय तथ पड़ोस से भी निर्धारित होता है । पड़ोस में रहने वाले बच्चों तथा वयस्कों के व्यवहार का भी प्रभाव बच्चे पर पड़ता है । किस प्रकार के कार्यक्रम होते हैं, कैसा पड़ोस का वातावरण है, आदि कारक भी बच्चे के विकास को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं। विद्यालय में शिक्षक तथा कक्षा के विद्यार्थी भी बच्चे के मनोसामाजिक विकास में योगदान देते हैं। स्कूल में बच्चे को अपनी उम्र के अनेक बच्चों के साथ बैठने और सीखने का मौका तो मिलता ही है साथ उसे बड़े बच्चों के अनुभव सुनने और उनके व्यवहार से परिचित होने का अवसर मिलता है।
(4) मनोरंजन (Recreation)-
बच्चों को मनोरंजन की जितनी सुविधाएँ मिलती हैं उतना ही व्यस्त रहता है तथा हँसमुख स्वभाव का हो जाता है। मनोरंजन के साधन उपलब्ध होने के कारण बच्चे में समाज विरोधी व्यवहार के उत्पन्न होने का भी खतरा नहीं होता है । इनका विकास सामान्य ढंग से होता है ।
(5) संवेगात्मक विकास (Emotional Development ) -
जो बच्चे हँसमुख व विनोदप्रिय होते हैं, चिड़चिड़े नहीं होते, क्रोधी नहीं होते हैं उन बच्चों के ज्यादा दोस्त होते हैं तथा जितने दोस्ते होते हैं बच्चों में आत्मविश्वास की भवना आती है।
(6) हीनता की भावना (Inferiority Complex) -जिन बच्चों में हीनता की भावना होती है, उनके विकास पर असर होता है। ये बच्चे दूसरे बच्चे से मिलने से कतराते हैं। उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। वे अन्तर्मुखी हो जाते हैं।
(7) साथी समूह (Peer Groups ) -
बालक की मित्र मण्डली जितनी बड़ी होती है उसके साथी समूहों की संख्या उतनी ही अधिक होती है। उसके सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों व प्रतिमानों को सीखने की सम्भावना उतनी ही अधिक होती है। इनके साथी समूहों में बालक और बालिकाएँ दोनों ही होते हैं। इन साथी समूह के सदस्यों का जैसा व्यवहार होता है, बच्चा भी वैसा ही व्यवहार सीखता है।