रुचि के अर्थ परिभाषा प्रकार |
RUCHI KE PRKAR
Type of Interest
Post Title:- | रुचि , रूचि के प्रकार ,रुचि तथा अन्य प्रत्ययों में अन्तर |
Course | B.Ed. |
YEAR | 1st |
UNIT | 05 |
Paper Code | PAPER-1 |
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Short Information | (1) बी.एड 1st ईयर, पेपर -1 यूनिट -5 रुचि , रूचि के प्रकार | (2) CTET तैयारी के लिए CTET टेलीग्राम ज्वाइन करे | (3) डी.एल.एड तैयारी के लिए D.El.Ed टेलीग्राम ज्वाइन करे | |
प्रस्तावना
रुचि व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विमा है। रंग-रुप, शारीरिक गठन, मानसिक योग्यता, स्वभाव, आचार-विचार, अभिवृत्ति, बुद्धि आदि की तरह से रूचियों में भी व्यक्तिगत भिन्नताएं पाई जाती हैं। विभिन्न विषयों, प्रकरणों, व्यक्तियों, वस्तुओं, क्रियाओं, व्यवसायों आदि के प्रति व्यक्ति की रुचियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। कोई व्यक्ति प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहता है, जबकि कोई डाक्टर, कोई वकील, कोई अभियन्ता, कोई व्यवसायी तथा कोई उद्यमी बनने का इच्छुक रहता है। किसी छात्र को गणित विषय अच्छा लगता है जबकि किसी छात्र को इतिहास, किसी को हिन्दी, किसी को चित्रकला तथा किसी को विज्ञान विषय अच्छा लगता है। किसी गृहिणी को अवकाश के समय में साहित्य पढ़ने का शौक होता है, किसी को आराम करने का मन होता है तथा किसी को गप्पबाजी करने या दूरदर्शन देखने की इच्छा होती है। इस प्रकार के सभी अन्तर रुचियों में विभिन्नताएं होने के कारण होते हैं। किसी कार्य में रुचि होने पर व्यक्ति उस कार्य को सरलता व शीघ्रता के साथ तथा मनोयोग से करता है एवं उसमें सफलता प्राप्त कर लेता है। इसके विपरीत रुचि के अभाव में व्यक्ति कार्य को ठीक ढंग से व मन लगाकर नहीं कर पाता है, परिणामतः प्रायः उस कार्य में असफल हो जाता है। यही कारण है कि शैक्षिक तथा व्यावसायिक परामर्श व निर्देशन प्रदान करते समय रुचियों का भी ध्यान रखा जाता है। साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि रुचि किसी वस्तु, व्यक्ति, तथ्य, प्रतिक्रिया आदि को पसन्द करने तथा उसके प्रति आकर्षित होने की प्रवृत्ति है। जब किसी व्यक्ति को कोई वस्तु पसन्द आती है या अपनी ओर आकर्षित करती है तो स्वाभाविक रूप से कहा जा सकता है कि उस व्यक्ति की रुचि उस वस्तु के प्रति है।
बिंघम के अनुसार –
“रुचि किसी अनुभव में संविलीन होने व इसमें संलग्न रहने की प्रवृत्ति है, जबकि विरक्ति उससे दूर हो जाने की प्रवृत्ति है।"
“An interest is a tendency to become absorbed in an experience and to continue it, while an aversion is a tendency to turn away from it.”
- W.V. Bingham"रुचि किसी क्रिया, वस्तु या व्यक्ति पर ध्यान देने, उसके द्वारा आकर्षित होने, उसे पसन्द करने तथा उससे सन्तुष्टि पाने की प्रवृत्ति है।"
"Interest is a tendency to give attention, to attract by, to like and find satisfaction in an activity, object or a person."
- J.P. Guilford"रुचियाँ वास्तव में सुखान्त व दुखान्त भावनाओं, पसन्द या नापसन्द के व्यवहार के प्रति आकर्षण व प्रतिकर्षण से परिलक्षित होती है।"
*Interests are presumably the reflection of attraction and aversion in bahaviour of feeling of pleasantness and unpleasantness, likes or dislises."
- H.H. Remmers, N. L. Gage and J. F. Rummelअतः कहा जा सकता है कि किसी वस्तु, व्यक्ति, प्रक्रिया, तथ्य, कार्य आदि को पसन्द करने अथवा उसके प्रति आकर्षित होने, उस पर ध्यान केन्द्रित करने तथा उससे सन्तुष्टि पाने की प्रवृत्ति का हा साच कहत है। रुचि का व्यक्ति की योग्यताओं से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है परत जिन कार्यों में व्यक्ति की रुचि होती है वह उसमें अधिक सफलता प्राप्त करता है। रूचियाँ जन्मजात भी हो सकती है तथा अर्जित भी हो सकती हैं। यद्यपि लघु समय अन्तराल में रुचियाँ प्रायः स्थिर रहती हैं परन्तु आयु व अनुभव के साथ रुचियों में कुछ अन्तर आता रहता है।
रुचि के प्रकार
सुपर (Super) के अनुसार रुचियों के ये चार प्रकार
(1) अभिव्यक्त रुचियाँ (Expressed Interests),
(2) प्रदर्शित रुचियाँ (Manifested Interests),
(3) आंकलित रुचियाँ (Inferred Interests)
(4) सूचित रुचियाँ (Inventoried Interests) हैं।
इनमें से प्रथम तीन प्रकार की रूचियों की जानकारी अवलोकन, साक्षात्कार, व्यक्ति के द्वारा लिखित बातों, चेक लिस्ट, प्रश्नावली या सम्प्राप्ति परीक्षणों जैसे मापन उपकरणों जो किन्हीं अन्य उद्देश्यों के लिए बनाये गये होते हैं, के प्रयोग से प्राप्त परिणामों की व्याख्या करके अप्रत्यक्ष रूप से की जाती है जबकि चतुर्थ प्रकार की रुचियों का मापन विशेष रूप से तैयार किये गये प्रमापीकृत रुचि सूचियों (Standardized Interest Inventories) के द्वारा किया जाता है। स्पष्ट है कि सुपर के द्वारा बताये गये रुचियों के ये चार प्रकार वास्तव में रुचियों को किन्हीं चार भागों में नहीं बाँटते हैं वरन किसी व्यक्ति की रुचियों को चार विभिन्न विधियों से पहचानने व मापने पर प्राप्त रुचियों को इंगित करते हैं। दूसरे शब्दों कहा जा सकता है कि रुचियों के ये चार प्रकार वास्तव में रुचियों को मापने की चार विभिन्न विधियों को इंगित करते हैं।
(i) अभिव्यक्त रुचियाँ (Expressed Interests)-
अभिव्यक्ति रुचियाँ वे रुचियाँ होती हैं जिन्हें व्यक्ति की स्वयं उल्लिखित (Self-reported) क्रिया-कलापों, कार्यों, व्यवहारों या पसन्दों के आधार पर जाना जाता है। अभिव्यक्त रुचियों को व्यक्ति से प्रत्यक्ष प्रश्न (Direct Question) पृछ कर ज्ञात किया जाता है। व्यक्ति से पूछा जाता है कि क्या वह अमुक क्रिया, अमुक वस्तु, अमुक व्यक्ति आदि को पसन्द करता है अथवा नहीं। व्यक्ति के द्वारा इस प्रकार के प्रश्नों पर दिये उत्तरों से उस व्यक्ति की रुचियाँ अभिव्यक्त हो जाती हैं। दूसरे शब्दों में अभिव्यक्त रुचियाँ वे हैं जो व्यक्ति स्वयं मौखिक अथवा शाब्दिक रूप से अपने में होने का दावा करता है। अभिव्यक्त रुचियाँ प्रायः अविश्वसनीय होती हैं। व्यक्ति अपनी वास्तविक रुचियों या पसन्द को छिपाकर विभिन्न कारणों से गलत उत्तर दे देता है जिसके कारण इस प्रकार की रुचियों की विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है। व्यक्ति के अनुभवों की पृष्ठभूमि (Background of Experiences) तथा सामाजिक वांछनीयता (Social Desirability) के कारण व्यक्ति बहुधा अपनी वास्तविक पसन्द, नापसन्द, रुचि, विरक्ति आदि को छिपाने का प्रयास करता है। कभी-कभी अपनी निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण व्यक्ति अपनी पसन्द के व्यवहारों अथवा कार्यों को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करना नहीं चाहता है। कोई-कोई व्यक्ति तो अपनी वास्तविक पसन्द-नापसन्द अथवा आनन्ददायक क्रियाकलापों को ठीक ढंग से विभिन्न कारणों से अभिव्यक्त ही नहीं कर पाता है। कभी-कभी पूर्ण सूचनाओं के अभाव में व्यक्ति किसी नापसन्द या कम पसन्द कार्य वस्त या व्यक्ति को पसन्द करने लगता है। बचपन या किशोरावस्था में किसी कार्य में प्राप्त सफलता या असफलता भी व्यक्ति को उसी प्रकार के कार्यों के प्रात आसाक्त या विरक्ति का भाव उत्पन्न कर सकती है। इस प्रकार के विभिन्न कारणों से कभी-कभी अभिव्यक्ति रूचियाँ व्यक्ति की वास्तविक रुचियों से भिन्न हो सकती हैं। अभिव्यक्ति रुचियों में इस प्रकार की त्रुटियों के बावजूद भी अभिव्यक्त रुचियाँ शैक्षिक व व्यवासायिक मार्गनिर्देशन के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं।
(ii) प्रदशित रुचियाँ (Manifested Interests) -
प्रदर्शित रुचियाँ वे रुचियाँ होती हैं जिन्हें व्यक्ति या बालक की विभिन्न क्रियाओं से पहचाना जा सकता है। स्पष्ट है कि इस प्रकार की रुचियो की जानकारा व्यक्ति के व्यवहार के अवलोकन से होती है। कोई व्यक्ति टी० वी० कार्यक्रम प्रतिदिन देखता है, कोई व्यक्ति नित्य क्रिकेट खेलता है, कोई प्रतिदिन संगीत का आनन्द लेता है जबकि कोई नित्य पत्रपत्रिकायें पढ़ता है। नित्य प्रतिदिन के इस प्रकार के व्यवहारों के अवलोकन से व्यक्तियों की रुचियों को ज्ञात किया जा सकता है। प्रदर्शित रुचियाँ प्रायः अस्थायी प्रकृति की होती हैं। इस प्रकार की रुचियों के पीछे प्रायः कोई प्रेरक होता है तथा प्रेरक के हट जाने या बदल जाने से प्रायः व्यक्ति की प्रदर्शित रूचियाँ परिवर्तित हो जाती हैं। जैसे रमेश प्रतिदिन अपने साथी सोहन के कहने से क्रिकेट खेलता है। कुछ समय बाद रमेश की मित्रता राकेश से हो जाती है जिसे संगीत का शौक है। राकेश के कारण रमेश क्रिकेट खेलना छोड़कर कैसियो बजाना सीखने लगता है। स्पष्ट है कि पहले रमेश का प्रेरक सोहन था तथा परन्तु बाद में राकेश उसका प्रेरक बन गया। दोनों प्रेरकों की रुचियों के अन्तर के कारण राकेश की प्रदर्शित रुचियाँ बदल गईं। वास्तव में किसी व्यक्ति की प्रदर्शित रुचियाँ उसकी वास्तविक रुचियाँ (Real Interests) न होकर. उसके संगी-साथियों के प्रभाव का एक परिलक्षित रूप है जो संगी-साथियों के बदलने या परिपक्वता आने के साथ बदलता रहता है।
(iii) आंकलित रुचियाँ (Inferred Interests) -
आंकलित रुचियाँ वे रुचियाँ हैं जिन्हें विभिन्न सम्मान परीक्षणों (Achievement Tests) पर व्यक्ति के द्वारा अर्जित अंको की सहायता से आंकलित (Inferred) किया जाता है। यह माना जाता है कि व्यक्ति या बालक जिन विषयों में अधिक अंक प्राप्त करता है | उन विषय में उनकी अधिक रुचि होती है तथा जिन विषयों में कम अंक प्राप्त करता है उनमें उसकी कम रुचि होती है। जैसे यदि लता चित्रकला में 80% अंक तथा गणित में 40% अंक प्राप्त करती है तो कहा जा सकता है कि लता की रुचि चित्रकला में अधिक है तथा वह गणित में कम रुचि लेती है , उसी प्रकार से आशीष यदि विज्ञान में 50% तथा कामर्स में 75% अक प्राप्त करता है तो इसका अभिप्राय है कि आशीष की रुचि कामर्स विषय में विज्ञान विषय की तुलना में अधिक है।
(iv) सूचित रुचियाँ (Inventoried Interests) -
सूचित रुचियाँ वे रुचियाँ कहलाती हैं जिन्हें प्रमापीकत (Standardized Interest Inventories) की सहायता से मापा जाता है। प्रमापीकृत रुचि सूचियों में पारायह क्रिया-कलापों की एक सावधानीपूर्वक तैयार की गई सूची होती है तथा व्यक्ति को या तो इन क्रियाओं के सम्बन्ध में अपनी पसन्द-नापसन्द को बताना होता है अथवा इन क्रिया-कलापों की परस्पर तुलना करके अपनी तुलनात्मक पसन्द-नापसन्द को इंगित करना होता है। व्यक्ति के द्वारा विभिन्न क्रियाओं के सम्बन्ध में बताई गई पसन्द-नापसन्द अथवा तुलनात्मक पसन्द की सहायता से उसकी रुचियों व उनकी मात्राओं (amount) को मापा जाता है।
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रुचि तथा अन्य प्रत्ययों में अन्तर
रुचि से तात्पर्य किसी उद्दीपक अर्थात वस्तु, क्रिया आदि के प्रति सुख व लगाव की अनुभूति से होता है जबकि भावना किसी उद्दीपक के प्रति अनुभूति मात्र है। रुचि में केवल सुख की अनुभूति होती है जिसके फलस्वरूप लगाव उत्पन्न होता है। भावना में सुख-दुख व उदासीन होने की कोई भी अनुभूति हो सकती है। भावना एक तरह से उद्दीपन के प्रति जागरूकता या ध्यान देने की प्रवृत्ति मात्र को इंगित करती है जो सुख का भी एहसास करा सकती है, दुख का भी अहसास करा सकती है तथा उदासीनता को भी परिलक्षित कर सकती है।
रुचि एवं इच्छा (Interest and Wish) -
रुचि का सम्बन्ध सुख प्राप्ति की अनुभूति से होता है जबकि इच्छा किसी अभाव या कमी के महसूस करने से सम्बन्धित होती है। रुचि व्यक्ति की पसन्द को इंगित करती है। व्यक्ति जिस उद्दीपक से सुख की अनुभूति महसूस करता है, उसकी उस उद्दीपक के प्रति मान जागत हो जाती है। इच्छा में सदैव अभाव महसूस करने की अनुभूति समाहित रहती है तथा व्यक्ति सदैव अपनी नई-नई इच्छाओं की पूर्ति करने का प्रयास करता रहता है।
रुचि एवं अभिक्षमता (Interest and Aptitude)-
रुचि तथा अभिक्षमता दोनों परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं तथा एक दूसरे के प्रस्फुटन में सहायक होते हैं। रुचि अभिक्षमता का लाक्षणिक पान जा सकता है। व्यक्ति की जन्मजात अभिक्षमताओं तथा उसे उपलब्ध सुविधाओं की अन्तक्रिया के फलस्वरूप रुचियों का विकास होता है। स्पष्ट है कि रुचि के विकास के लिये अभिक्षमता की उपस्थिति आवश्यक तथा महत्वपूर्ण होती है। इसके साथ-साथ यह कहना भी सत्य है कि रूचि के अभाव में व्यक्ति किसी कार्य को सफलतापूर्वक करने में असमर्थ ही रहता है। दूसरे शब्दों में रुचि के अभाव में अभिक्षमता का होना प्रायः संदिग्ध रहता है।
रुचि में व्यक्ति के विचारों व अनुभूतियों के धनात्मक पक्ष को इंगित किया जाता है जबकि अभिवृत्ति में विचारों व अनुभूतियों के धनात्मक व ऋणात्मक दोनों ही पक्षों को सम्मिलित किया जाता है। रुचि व्यक्ति की पसन्द, लगाव अथवा आकर्षण की प्रवत्ति को बताती है। व्यक्ति की रुचियाँ उसके पूर्व अनुभव, असफलताओं, योग्यताओं आदि के परिणामस्वरूप विकसित होती है। अभिवृत्ति मनोवैज्ञानिक उद्दीपकों के प्रति व्यक्ति की सहज प्रतिक्रियायें होती हैं। रुचि की तुलना में अभिवृत्ति अधिक व्यापक होती है।
रुचि एवं मूल्य (Interest and Values)-
रुचि जहाँ व्यक्ति की पसन्द व लगाव को अभिव्यक्त करती है वहीं मूल्य व्यक्ति के विश्वास, आदर्श या मानकों को इंगित करते हैं। निःसंदेह मूल्य व्यक्ति की रुचियों को प्रभावित करते हैं तथा व्यक्ति के मूल्यों का निर्माण उसकी रुचियों से प्रभावित होता है। वास्तव में रुचि तथा मूल्य परम्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं। रुचियाँ जहाँ अल्प समय अन्तराल में ही परिपक्वता व अनुभव के फलस्वरूप परिवर्तित होती रहती हैं वहीं मूल्य प्रायः लगभग स्थायी प्रकृति के होते हैं तथा जीवन में घटी कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण व झकझोर देने वाली घटनायें ही व्यक्ति के मूल्यों को परिवर्तित कर पाती हैं।
रुचि एवं योग्यता (Interest and Ability) –
रुचि तथा योग्यता भी परस्पर सम्बन्धित होते हैं। ज्ञानार्जन व सीखने की प्रक्रिया में दोनों की उपस्थिति आवश्यक है। वास्तव में रुचि एवं योग्यता एक दूसरे के पूरक हैं। एक के अभाव में दूसरा अपूर्ण हो जाता है। बिना योग्यता के रुचि होने पर भी व्यक्ति प्रयास करने पर भी सफलता नहीं प्राप्त कर पाता है एवं इसी तरह से रुचि के अभाव में योग्यता सम्पन्न व्यक्ति को भी प्रायः असफलता का ही सामना करना पड़ता है। सफलता प्राप्ति के लिए रुचि तथा योग्यता दोनों का होना आवश्यक होता है।