सत्ता का अर्थ , परिभाषा , प्रकार , स्रोत और प्रभावित करने वाले कारक | STA KE ARTH , PRIBHASHA , PRKAR , SROT , PRBHAVIT KRNE VALE KARK
Meaning , Definition ,Types and Sources of Power
(1) प्रश्न - सत्ता का अर्थ एवं परिभाषा
(2) प्रश्न - सत्ता के प्रकार व स्रोत
(3) प्रश्न - सत्ता को प्रभावित करने वाले कारक
(4) प्रश्न - शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक
(1) सत्ता का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Power)
साधारण अर्थ में सत्ता निर्णय लेने की वह शक्ति है जो दूसरों के कार्यों को प्रभावित करती है। हरबर्ट साईमन के अनुसार सत्ता निर्णय लेने की शक्ति है। यूनेस्को की 1955 की रिपोर्ट के अनुसार-"सत्ता वह शक्ति है जो कि स्वीकृत, सम्मानित, ज्ञात एवं औचित्यपर्ण होती है।"
सत्ता का अर्थ अनेक विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित भी किया है
1. बायर्सटेड के अनुसार- "सत्ता शक्ति के प्रयोग का संस्थात्मक अधिकार है, स्वयं शक्ति नहीं।"
2. बीच के अनुसार-"दूसरे के कार्यों को प्रभावित एवं निर्देशित करने के औचित्यपूर्ण अधिकार को सत्ता कहते हैं।"
3. रोवे के अनुसार-"सत्ता व्यक्ति या व्यक्ति समूह के राजनीतिक निश्चयों के निर्माण तथा राजनीतिक व्यवहारों को प्रभावित करने का अधिकार है।"
4. बनार्ड बारबर एवं एमितॉय इर्जियोनी के अनुसार-“सत्ता औचित्यपूर्ण शक्ति है।"
5. एस. ई. फाइनर के अनुसार-"शक्ति पर सत्ता उन बाह्य प्रभावों के समस्त परिवेश की द्योतक है, जो व्यक्ति को अपने प्रभाव से अपेक्षित दिशा में आगे बढ़ने पर बाध्य कर सकती है।"
6. ई. एम. कोल्टर के अनुसार-"सत्ता वह क्षमता है जिससे कोई घटना हो सकती है जो उस क्षमता के बिना नहीं होती।"
7. जे. फ्रेडरिक के अनुसार-"जिसे केवल संकल्प इच्छा या प्राथमिकता के आधार पर चाहा जाता है, उसके औचित्य को तार्किक प्रक्रिया के द्वारा सिद्ध करने की क्षमता को सत्ता कहा जाता है।"
अत: कहा जा सकता है कि सत्ता राज्य के शासकों द्वारा संचालित राज्य की शक्ति है जो औचित्यपूर्णता पर आधारित है।
सत्ता के प्रकार व स्रोत
(Types and Sources of Power)
सत्ता वर्गीकरण कई आधारों पर किया जाता है। इसको क्षेत्रीय, प्रशासनिक एवं राजनीतिक दृष्टि से विभिन्न भागों में बांटा जा सकता है। विभिन्न स्रोतों के अनुसार सत्ता के विविध रूप हो जाते हैं। सत्ता को औचित्यपूर्ण के अनुसार मैक्स वेबर ने आधुनिक राज्य में तीन तरह की बताया है
1. परम्परागत सत्ता (Traditional Authority)
2. कानूनी विवेकपूर्ण या तर्कसंगत सत्ता (Legal Rational Authority)
3. करिश्माई सत्ता (Charismatic Authority)
1. परम्परागत सत्ता
यह सत्ता परम्परागत शक्ति ढांचे से जन्म लेती है। जब प्रजा या अधीनस्थ कर्मचारी अपने शासक या वरिष्ठ अधिकारियों की आज्ञा या आदेशों का पालन करते हैं तो वह परम्परागत सत्ता होती है। ऐसा करना एक परम्परा बन जाती है। इस सत्ता का आधार यह है कि जो व्यक्ति या वंश आदेश देने का अधिकार रखता है, वह प्रचलित परम्परा पर ही आधारित होता है। इस प्रकार की सत्ता में प्रत्यायोजन अस्थाई एवं स्वेच्छाचारी होता है। राजतन्त्र में इसी प्रकार की सत्ता प्रचलित होती है। प्रशासनिक दृष्टि से अधीनस्थ वर्ग आने वरिष्ठों की बात इसलिए मानता है कि ऐसा युगों से होता आया है। इस तरह की सत्ता में शासक या वरिष्ठ कर्मचारियों का जनता या अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा स्वेच्छापूर्वक आँख बन्द करके पालन किया जाता है। इस प्रकार की सत्ता नेपाल व ब्रिटेन में युगों से प्रचलित है।
2. कानूनी-विवेकपूर्ण सत्ता
इस सत्ता का आधार शासक या प्रशासनिक अधिकारी का राजनीतिक पद होता है। आधुनिक नौकरशाही इसी प्रकार की सत्ता को प्रकट करती है। इसमें प्रत्यायोजन स्थाई व बौद्धिक होता है। इसमें कुर्सी या पद का सम्मान किया जाता है, व्यक्ति का नहीं। इसमें औपचारिक सम्बन्धों का महत्त्व समझा जाता है। इसमें समस्त कार्य-व्यवहार कानून की परिधि में ही किया जाता है।
इसमें संवैधानिक नियमों के अनुसार प्रशासनिक व राजनीतिक पद का प्रयोग किया जाता है। कोई भी व्यक्ति कानून से बड़ा नहीं होता। इस तरह की सत्ता का आधार कानून का शासन होता है। अमेरिका का राष्ट्रपति व भारत का प्रधानमन्त्री इसी प्रकार की सत्ता का प्रयोग करते हैं। इसमें सब कुछ कानूनी सीमा के अन्तर्गत ही होता है।
3. करिश्माई सत्ता
जब जनता या अधीनस्थ कर्मचारी अपने शासक या वरिष्ठ अधिकारियों की आज्ञा का पालन उनकी व्यक्तिगत छवि के कारण करते हैं तो वह सत्ता करिश्माई सत्ता होती है। इस प्रकार की सत्ता में वरिष्ठ की आज्ञा का पालन उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर किया जाता है। इस प्रकार सत्ता में अनुयायी अपने नेता के कहने पर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। उनके लिए नेता के शब्द वेद-वाक्य हैं। इस प्रकार की सत्ता धार्मिक एवं युद्ध के क्षेत्र में अधिक प्रभावी रहती है।
सत्ता को प्रभावित करने वाले कारक (Power Influencing Factors)
सत्ता के प्रमुख घटक दो हैं-
(i) शक्ति (Power),
(ii) वैधता (Legitimacy)
जब शक्ति को जनता का औचित्यपूर्ण समर्थन मिल जाता है तो इसे वैधता प्राप्त हो जाती है। शक्ति का अर्थ, अपनी इच्छानुसार दूसरों से अपने आदेश का पालन कराना होता है। समाज में व्यवस्था कायम रखने हेतु शक्ति और वैधता दोनों एक दूसरी की मदद करते हैं। सत्ता को प्रभावी रखने के लिए शक्ति एवं औचित्यपूर्ण दोनों ही महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक
शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1. अच्छी संस्था में प्रवेश-
2 परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए दबाव डालना-
3. शिक्षक की नियुक्ति और स्थानान्तरण-
4. साक्षात्कार को प्रभावित करना-
5. नौकरी में योग्य विद्यार्थी की अपेक्षा अयोग्य (निम्न) व्यक्ति को वरीयता-
1. अच्छी संस्था में प्रवेश-
समाज में ऐसे व्यक्ति जो अच्छी संस्था में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए ऊपर से जान-पहचान निकालते हैं या पैसे के बल पर अपने बच्चों को प्रवेश दिलाते हैं, जिनके कारण पढ़ने वाले बच्चे पिछड़ जाते हैं, उनका विद्यालय या संस्था की मैरिट लिस्ट में नाम नहीं आ पाता और प्रवेश से वंचित रह जाते हैं, जिसके कारण शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है।
(2) परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए दबाव डालना-
परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए शिक्षक पर दबाव डाला जाता है। ऐसे विद्यार्थी शिक्षक को पैसों की रिश्वत या अन्य तरीकों से उना परीक्षा में नंबर बढाने के लिए दबाव डालते हैं, जिससे कक्षा में महत्त्वाकांक्षी विद्यार्थी शिक्षा में पिछड़ जाते हैं, जिसके कारण शिक्षा प्रभावित होती है।
3. शिक्षक की नियुक्ति और स्थानान्तरण-
समाज में ऐसे व्यक्ति जो अपने बल पर सरकारी संस्थानों में नियुक्ति करा लेते हैं, जिससे अच्छे नम्बरों से पास होने वाला व्यक्ति मैरिट लिस्ट में नहीं आ पाता। अगर आ भी जाता है तो उसे किसी साक्षात्कार में निकाल दिया जाता है और उसकी जगह वह व्यक्ति नियुक्त कर दिया जाता है जो रिश्वत देकर आया होता है। स्थानान्तरण भी पैसे के बल पर करा लिया जाता है जिसके कारण अच्छे और योग्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाती है।
4. साक्षात्कार को प्रभावित करना-
ऐसे व्यक्ति साक्षात्कार को प्रभावित करते हैं, जो अयोग्य होने हैं। अयोग्य होने पर ऐसे व्यक्ति साक्षात्कार के समय रिश्वत या जान-पहचान के द्वारा साक्षात्कार में अपनी जगह बनाते हैं, जिसके कारण एक योग्य व्यक्ति साक्षात्कार से वंचित हो जाता है, जिसके कारण शिक्षा प्रभावित होती है और शिक्षण संस्थानों में योग्य शिक्षकों की कमी हो जाती है।
5. नौकरी में योग्य विद्यार्थी की अपेक्षा अयोग्य (निम्न) व्यक्ति को वरीयता-
समाज में निम्न योग्यता वाले व्यक्ति को वरीयता दी जाती है, जिससे योग्य व्यक्ति समाज में पिछड़ जाता है। निजी संस्थानों में नौकरी देते समय योग्य व्यक्ति की अपेक्षा अयोग्य व्यक्ति को वरीयता इसलिए दी जाती है क्योंकि वह कम वेतन में काम कर लेते हैं। यही कारण है कि अच्छे और योग्य शिक्षकों को प्रताड़ित किया जाता है, जिसके कारण शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का महत्त्व खत्म हो गया है।
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