प्रकृतिवाद का अर्थ , परिभाषा , प्रकृतिवाद और शिक्षा
PRKRITY KA ARTH , PRIBHASHA , PRKRITI AUR SHIKSHA
MEANING AND DEFINITION OF NATURALISM, NATURALISM AND EDUCATION
निचे निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिया गया है |
(1) प्रकृतिवाद का अर्थ व परिभाषा
(2) प्रकृतिवाद और शिक्षा
(1 ) प्रकृतिवाद का अर्थ व परिभाषा
(MEANING AND DEFINITION OF NATURALISM)
(1) प्रकृतिवाद का अर्थ (Meaning of Naturalism)-
'प्रकृतिवाद' तत्त्व मीमांसा का वह रूप है, जो प्रकृति को पूर्ण वास्तविकता मानता है। यह अलौकिक और पारलौकिक को नहीं मानता है। जो प्राकृतिक नियम से स्वतन्त्र जान पड़ती है, जैसे-मानव-जीवन या कल्पना की उपज वे भी वास्तव में प्रकृति की योजना में आती हैं। प्रत्येक वस्तु , प्रकृति से उत्पन्न होती है और उसी में विलीन हो जाती है।
निस्सन्देह, कुछ बातें ऐसी हैं, जिनका हमें ज्ञान नहीं है। विज्ञान इन्हीं को जानने का प्रयत्न करता है। पर ये बातें स्वयं प्रकृति ही हैं और कुछ नहीं , प्रकृति से परे या प्रकृति के बाद कुछ नहीं है। यह प्रश्न उठता है कि "प्रकृति का अर्थ क्या है ?" इसका अर्थ है स्थान और समय में होने वाली ऐसी बातें और घटनाएँ जो समान नियमों के अनुसार होती है |
(2) प्रकृतिवाद की परिभाषा (Definition of Naturalism)
प्रकृतिवाद के परिभाषाएँ नीचे दे रहे हैं
1. थॉमस और लैंग (Thomas and Lang)-
"प्रकृतिवाद, आदर्शवाद के विपरीत मन को पदार्थ के अधीन मानता है और यह विश्वास करता है कि अन्तिम वास्तविकता भौतिक है, आध्यात्मिक नहीं।"
2. पैरी (Perry)-
"प्रकृतिवाद, विज्ञान नहीं है, वरन् विज्ञान के बारे में दावा है। साधक स्पष्ट रूप में यह इस बात का दावा है कि वैज्ञानिक ज्ञान अन्तिम है, जिसमें विज्ञान बाहर या दार्शनिक ज्ञान का कोई स्थान नहीं है।"
3. जेम्स वार्ड-
"प्रकतिवाद वह सिद्धान्त है, जो प्रकृति को ईश्वर से पृथक करता है. " का पदार्थ के अधीन करता है और अपरिवर्तनीय नियमों को सर्वोच्चता प्रदान करता है |
Naturalism is the, doctrine which separates nature from God, hates spirit to matter and sets up unchangeable laws as supreme."
-James Ward
(2) प्रकृतिवाद और शिक्षा
(NATURALISM AND EDUCATION)
प्रकृतिवादी मनीषियों ने प्रकतिवाद की जिन विशेषताओं का उल्लेख किया है, उन्हें आगे की पंक्तियों में दिया जा रहा है
1. बालक का स्वतन्त्र व्यक्तित्व-
2. प्रकृति के पीछे चलो-
3. निषेधात्मक शिक्षा-
4. बाल-केन्द्रित शिक्षा -
(क) जेम्स रॉस-
(ख) पॉल मुनरो-
5. प्रकृति ही बालक की सर्वोत्तम शिक्षिका है-
6. शारीरिक शिक्षण और खेल-कूद
7. बजानिक तत्वों का प्रयोग-
8 प्रकृतिवादी शिक्षा प्रगतिवादी है-
10. बालक की स्वतन्त्रता पर बल-
प्रकतिवाद की विशेषताये -
1. बालक का स्वतन्त्र व्यक्तित्व-
प्रकतिवाद से सम्बन्धित सभी मनीषियों का कथन है कि प्रत्येक बालक का अपना एक अलग स्वतन्त्र व्यक्तित्व होता है। उनकी यह मान्यता है कि बालक वयस्क लोगों का छोटा संस्करण नहीं होते। इसलिए बडे लोगों को अपना मान्यताए, अपने विचार, अपने जीवन-आदर्श बालक-बालिकाओं पर थोपने नहीं चाहिए।
इस बात को सामने रखते हुए प्रकृतिवादी चिन्तकों का विचार है कि शिक्षा को इस कार्य में मदद करनी चाहिए कि छात्र-छात्राओं का स्वाभाविक और प्राकृतिक विकास हो।
2. प्रकृति के पीछे चलो-
प्रकृतिवादी आचार्य रूसो ने एक स्थान पर कहा है 'प्रकृति के पीछे चलो' (Follow Nature)। शिक्षा की दृष्टि से विट पेने ने इसकी व्याख्या | इस प्रकार से की है
"यथासम्भव अपनी विधियों को आसान बनाओ। शिक्षा की प्रक्रिया को जटिल बनाने वाले उपकरणों में आस्था मत रखो। जहाँ तक हो सके, शिक्षा को व्यक्तिगत अनुसंधान की प्रक्रिया बनाओ। मेरे विचार में रूसो के 'प्रकृति के पीछे चलो' से यही तात्पर्य है।"
3. निषेधात्मक शिक्षा-
प्रकृतिवाद की दूसरी विशेषता इसका निषेधात्मक होना रास ने निषेधात्मक शिक्षा के सम्बन्ध में ये विचार व्यक्त किये हैं
"निषेधात्मक शिक्षा से तात्पर्य निकम्मेपन का समय नहीं है। यह गुणों की शिक्षा नही बल्कि अवगुणों से रक्षा करती है। यह सच्चाई की शिक्षा नहीं, अपितु गलती से बचाती है। यह बालक को उस पथ पर चलने देती है, जो उसे बड़ा होने पर सच्चाई की ओर जाएगा। यह पथ बालक को उस समय अच्छाई की ओर ले जाएगा, जब उसमें अच्छाई को पहचानने की योग्यता पैदा हो जाएगी।"
"A negative education does not mean a time of idleness, far from it. It does not give virtue, it protects from vice. It does not inculcate truth, it protects from error. It disposes the child to take the path that will lead him to truth, Vhen he has reached the age to understand it and to goodness, when he has acquired faculty of recognizing and loving it."
- James Ross : Groundwork of Educational Theory
4. बाल-केन्द्रित शिक्षा -
प्रकृतिवादी शिक्षा में बालक को केन्द्रीय स्थान प्रदान किया गया है। इस सम्बन्ध में कुछ ख्यात शिक्षाविदों के विचार नीचे दिये जा रहे हैं
(क) जेम्स रॉस-
"प्रकतिवादी शिक्षा में बालक का स्थान ही प्रमुख है, न कि अध्यापक का, विद्यालय का, अध्यापन की विषयवस्तु का अथवा पुस्तक का।"
("It is the child himself, rather than the education, the subject of study, the book that is the foreground of educational picture.") - James Ross
(ख) पॉल मुनरो—
“प्रकृतिवादी शिक्षा का उद्देश्य या प्रयोजन; प्रक्रिया और साधन बालकों के जीवन और अनुभवों में निहित रहते हैं।"
(“Naturalistic Education finds its purpose and its means wholly within the child and child experience.")
-P. Munroe
5. प्रकृति ही बालक की सर्वोत्तम शिक्षिका है-
प्रकृतिवादी विचारक कहते हैं कि विद्यालयों ने, पाठ्यक्रम ने, अध्यापकों ने और पाठ्य-पुस्तक ने शिक्षा को बन्दीगृह में कैद कर रखा है। विद्यार्थियों के स्वाभाविक विकास की दृष्टि से इसे कठोर नियमों और बनावटीपन और औपचारिकताओं से मुक्त करना होगा।
रूसो ने एक स्थान पर कहा है कि प्रकृति के निर्माता भगवान ने बालक का निर्माण किया है। इसलिए वह जन्म से ही शुद्ध, पवित्र और सुप्रवृत्तियों वाला होता है। समाज के दोषपर्ण प्रभाव के कारण उसमें विकार आ जाता है। समाज के दोषपर्ण वातावरण के कारण शिक्षक भी विकारयुक्त हो गया है। इसलिए वह छात्र-छात्राओं को ठीक-ठीक शिक्षा देने के काबिल नहीं है।
जीवन के अनुभवों के द्वारा बालकों को शिक्षा दी जानी चाहिए और ये अनुभव प्रकृति के बीच में रहकर ही प्राप्त किये जा सकते हैं। इसलिए हम प्रकति को बालों की मनसे उत्तम शिक्षिका कह सकते हैं।
6. शारीरिक शिक्षण और खेल-कूद -
सभी प्रकतिवादी बालकों की शिक्षा में -शिक्षण और खेल-कूद को बड़ा महत्व प्रदान करते हैं क्योंकि खेल-कूदों और शारीरिक व्य्यामो से छात्र-छात्राओं के सभी अंगों का समुचित विकास होता है।
विद्यार्थियों को खेलने-कूदने में बड़ा आनन्द आता है। इसलिए सभी विद्यालयो शारीरिक व्ययाम एवं खेल-कूदों की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
7. बजानिक तत्वों का प्रयोग-
सभी प्रकृतिवादी मनोवैज्ञानिक नियमों के अनुसार ही विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं। इसीलिए रूसो ने एक स्थान पर कहा है कि शिशुअवस्था , बाल्यावस्था और किशोरावस्था के लिए अलग-अलग तरह की शिक्षा होनी चाहिए।"
बालको की मल-प्रवृत्तियों, संवेगों और रुचियों को ध्यान में रखकर आज जो शिक्षा दा जा रही है उसकी पृष्ठभूमि में प्रकृतिवादी विचारधारा ही है।
8 प्रकृतिवादी शिक्षा प्रगतिवादी है-
इस तथ्य का अभिप्राय यह है कि जैसे-जैसे शिक्षा दी जाती है, वैसे-वैसे उसका भाव-विकास होता जाता है। इसी प्रकार शिक्षा को भी शनै:-शनैः बालक से वयस्क व्यक्तियों के कार्यों की आशा करना, विकास के सिद्धान्तों की अवहेलना करते हुए प्रकृति की गोद में परिपक्व होने दो।
प्रकतिवादी के मुताबिक बाल्यावस्था से लेकर व्यक्ति की प्रौढ़ अवस्था तक चार भिन्न भिन्न अवस्थाएँ या स्थितियाँ (stages) हैं। इन अवस्थाओं या स्थितियों को ध्यान में रखकर शिक्षा देना प्रगतिवादी शिक्षा है।
9. ज्ञानेन्द्रियों द्वारा शिक्षा-
समस्त प्रकृतिवादी इस बात का प्रतिपादन करते हैं कि बालकों को ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाए। इस सम्बन्ध में रूसो (Rousseau) ने अपनी पुस्तक 'एमील' (Emile) में एक स्थान पर लिखा है -
"पाँच से बारह वर्ष की आयु तक बालकों की ज्ञानेन्द्रियों को प्रयोग में लाना चाहिए। ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा शिक्षा ज्ञान के द्वार का उद्घाटन करे।"
कदाचित् इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए श्रीमती मान्टेसरी ने ज्ञानेन्द्रियों को 'ज्ञान के द्वार' (Gateway of Knowldge) कहा है।
10. बालक की स्वतन्त्रता पर बल-
प्रकृतिवादी विचारक बालक की स्वतन्त्रता पर जोर देते हैं। इस सम्बन्ध में रूसो का कहना है कि सभी प्रकार के बन्धन मनुष्य के द्वारा रचित हैं। भगवान किसी को बन्धन में नहीं डालते। सृजनकर्ता द्वारा रची जाने वाली प्रकृति की प्रत्येक वस्तु मंगलकारी है परन्तु मनुष्य के हाथ में पड़कर वह बिगड़ जाती है। और 7 इसलिए प्रकृतिवादी शिक्षण पद्धति, सभी प्रकार के बन्धनों, उलझनों और बाधाओं से मुक्त रहकर बालक के स्वतन्त्र परिवेश में विकसित होने पर बल देती है। -