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SAMAJIK NYAY | Social Justice | सामाजिक न्याय | SMKALIN BHARTIY SAMAJ ME SHIKSHA | DElEd Second Year Notes

 

डी.एल.एड. सेकेण्ड  ईयर  नोट्स

सामाजिक न्याय 

(Social Justice) 

NOTE- DElEd-2020 में पूछा गया प्रश्न  

आधुनिक भारतीय समाज की एक और प्रमुख विशेषता "सामाजिक न्याय है।" अति प्राचीन काल से ही या कहना चाहिए कि वैदिक काल से ही भारत में सामाजिक न्याय के प्रयास किये जाते रहे हैं। वैदिक काल में सम्पूर्ण जाति व्यवस्था कर्म-प्रधान थी। जो जैसा कर्म करता था तदनसार ही समाज में उसे वैसा ही स्थान प्राप्त होता था। सम्पूर्ण वैदिक युग में सबके साथ सामाजिक स्थिति के अनुसार समानता के आधार पर व्यवहार किया जाता था। इस सम्बन्ध में ऋग्वेद में लिखा है 


संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।

 देवा भागं यथा पूर्वे संजनाना उपासते।।1।। 

समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम्। 

समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि।।2।। 

समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः। 

समानवस्तु वो मनो यथा वः सु सुहासति।।3।। 


अर्थात्-हम सब मिलकर रहें, एक जैसी सम्पत्तियाँ रखें, सहयोग एवं पारस्परिक विचार-विनिमय करके नवीन ज्ञान की खोज करें और अपने निश्चित कर्त्तव्यों को पूरा करें। 


हम सब एक संगठन में रहकर एकता व समानता के आधार पर जीवन व्यतीत करें, सबके चित्त समान हों तथा सबको जीवन की समान सुविधाएँ उपलब्ध हों। 

सभी मानव समाज को सुख पहुँचाने वाले हों, सबके हृदय समान हों तथा सबके मन समता के प्रेम से भरे हों। 


उक्त संगठन सूत्रों से स्पष्ट है कि वेद सभी को एकता, समता व प्रेम से जीवन व्यतीत करने को कहते हैं। सामाजिक न्याय की यह सर्वश्रेष्ठ पराकाष्ठा है। वैदिक युग के बाद भारत में बौद्ध, जैन, मुस्लिम एवं अंग्रेजी शासन का युग आया और प्रत्येक परिवर्तन के साथ-ही-साथ भारत में सामाजिक न्याय की मात्रा घटती गई। अंग्रेजी काल में तो सामाजिक न्याय नाम की कोई चीज ही शेष न रह गई। चारों ओर शोषण, दमन, अत्याचार तथा आपाधापी का साम्राज्य था, परिणामस्वरूप समाज कई उपवर्गों में विभक्त हो गया तथा एक वर्ग दूसरे वर्ग का खुलकर दमन तथा शोषण करने लगा। सम्पूर्ण अंग्रेजी शासन काल में यही विकट स्थिति चलती रही। भारत सन् 1947 ई. में स्वतन्त्र हुआ तब भारतीय नेताओं का ध्यान पुनः अपनी प्राचीन उच्च स्तरीय श्रेष्ठताओं को प्राप्त करने की ओर गया। इन श्रेष्ठताओं में एक सामाजिक न्याय की श्रेष्ठता भी है। इसे प्राप्त करने के लिए स्वतन्त्र भारत में संविधान में पर्याप्त व्यवस्था की गई और भारतीय संविधान में कई धाराओं में यह व्यवस्था रखी गई। इन संवैधानिक धाराओं में दो दृष्टिकोण नजर आते हैं-


1. पहले तो समाज के उन वर्गों को विशेष सुविधाएँ दी जायें जिनका लम्बे समय से शोषण तथा दमन हो रहा है जिससे वे उठकर समाज के अन्य वर्गों के समकक्ष आकर खड़े हो सकें|


2. सबको समानता की दृष्टि से सभी आवश्यक सुविधाएँ प्रदान की जायें। 


उक्त व्यवस्थाओं के लिए भारतीय संविधान की निम्नांकित धाराएँ विशेष उल्लेखनीय हैं 


1.- धारा 25 (1) सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान करती है। 


2. धारा 28 (2) के अनुसार, कोई भी संस्था धार्मिक शिक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक शिक्षण का - स्थापित कर सकती है। 


3. धारा 15 के अनुसार राज्य, जाति, रंग, रूप, धर्म तथा क्षेत्र आदि के आधार पर नागरिकों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा। 


इस प्रकार संविधान में अनुसूचित, जनजाति तथा पिछड़ी जातियों के उत्थान की विशिष्ट व्यवस्था की गई है , जिससे इन जातियों के सदस्यों को ऊपर उठाकर अन्य जाति के लोगों के समकक्ष कर दिया जाए, जिससे कि उन्हें सामाजिक न्याय प्राप्त हो सके। सामाजिक न्याय से तात्पर्य है-सबको समाज में यथोचित सम्मान तथा प्रगति करने के अवसर प्राप्त हो सकें। इन संवैधानिक व्यवस्थाओं के कारण भारतीय समाज में अनेक उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। आज भारतीय समाज में दमन, शोषण एवं अत्याचार कम हुए हैं। जमींदारी प्रथा समाप्त हुई है। बन्धुआ मजदूरी गैर-कानूनी घोषित की गई है, अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के उत्थान के लिए विभिन्न विशिष्ट कार्यक्रम अपनाए गए हैं। इन सब कार्यक्रमों के कारण आज के भारतीय समाज में सामाजिक न्याय बढ़ा है। छुआछूत का उन्मूलन हुआ है, सार्वजनिक स्थानों पर हरिजनों का आना-जाना प्रारम्भ हुआ है, जातिगत बन्धन ढीले हुए हैं, वर्ग-व्यवधान कम हुआ है तथा पारस्परिक मेल-जोल में वृद्धि हुई है।

 

सामाजिक न्याय की वृद्धि के लिये भी शिक्षा का अपना महत्त्व है। शिक्षा के द्वारा दलित एवं शोषित वर्ग को ऊपर उठाया जा सकता है। उनकी उत्पादनशीलता में वृद्धि की जा सकती है। जनसाधारण का शोषण रोका जा सकता है, असमानताएँ भी कम की जा सकती हैं तथा सामाजिक पुनर्रचना सम्भव हो सकती है। आज भारतीय समाज में यदि हम सामाजिक न्याय शीघ्र पाना चाहते हैं तो और अधिक व्यापक मात्रा में शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी। इस प्रकार की शिक्षा-व्यवस्था के निम्नांकित ध्येय (Aims) होने चाहिए 


1. समानता की भावना का विकास।


 2. शिक्षा के समान अवसरों की व्यवस्था का विकास।


3. सामाजिक न्याय की भावना का विकास। 


4. दृष्टिकोणों में उदारता का विकास।


5. व्यापक रूप से प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रमों का विकास। 


6. निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा-व्यवस्था करना। 


७. सभी को, विशेष रूप से दलितों एवं शोषितों को आर्थिक विकास के समान अवसर प्रदान करना। 

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Paper S1

समकालीन भारतीय समाज में शिक्षा

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Paper S2

संज्ञान सीखना और बाल विकास

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Paper S3

कार्य और शिक्षा

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Paper S4

स्वयं की समझ

 

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Paper S5

विद्यालय में स्वास्थ्य योग एवं शारीरिक शिक्षा

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Paper S6

Pedagogy of English

(Primary Level)

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Paper S7

गणित का शिक्षणशास्त्र – 2 (प्राथमिक स्तर)

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Paper S8

 

हिंदी का शिक्षणशास्त्र – 2

(प्राथमिक स्तर)

 

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Paper S9 A

गणित का शिक्षणशास्त्र

(उच्च-प्राथमिक स्तर)

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Paper S9 B

विज्ञान का शिक्षणशास्त्र

(उच्च-प्राथमिक स्तर)

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Paper S9 C

सामाजिक विज्ञान का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर)

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Paper S9 D

Pedagogy of English

(Upper – Primary Level)

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Paper S9 E

हिंदी का शिक्षण शास्त्र

(उच्च-प्राथमिक स्तर)

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Paper S9 F

संस्कृत का शिक्षणशास्त्र

(उच्च-प्राथमिक स्तर)

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Paper S9 G

मैथिली का शिक्षणशास्त्र

(उच्च-प्राथमिक स्तर)

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Paper S9 H

बांग्ला का शिक्षणशास्त्र

(उच्च-प्राथमिक स्तर)

 

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Paper S9

उर्दू का शिक्षणशास्त्र

(उच्च-प्राथमिक स्तर)

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SAMAJIK NYAY | Social Justice | सामाजिक न्याय | से सम्बन्धित प्रश्न एवं उसके समाधान/उत्तर >>>
(1) प्रश्न:-(1)सर SAMAJIK NYAY | Social Justice | सामाजिक न्याय | और पेपर का कब मिलेगा ?

उत्तर :AB JANKARI.in :- जल्द ही और पेपर के प्रश्न जोड़े जायेंगे |


(2) प्रश्न:-(2)

उत्तर :-AB JANKARI.in -|

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