बाल्यावस्था में शिक्षा
Education During Childhood
प्रस्तावना
बाल्यावस्था को मानव के सम्पूर्ण जीवन की आधारशिला स्वीकार किया जाता है। वाल्यावस्था के दौरान ही व्यक्ति के आधारभूत दृष्टिकोणों, मूल्यों तथा आदर्शो का काफी सीमा तक निर्धारण हो जाता है । अतः यह आवश्यक है कि वाल्यावस्था में बालक की विकासात्मक विशेषताओं (Developmental Characteristics) को ध्यान में रखकर ही उसकी शिक्षा व्यवस्था की जाए।
बाल्यावस्था के दौरान बालक-बालिकाओं की शिक्षा व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना महत्वपर्ण होगा
(1) शारीरिक विकास पर ध्यान
Attention on Physical Development
2. बाल मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षा
(Education based on Child Psychology)
3. खेल तथा क्रिया द्वारा शिक्षा
Education through Play and Activity
4. भाषा विकास पर बल
Emphasis on Language Development
5. रोचक पाठ्यसामग्री
Interesting Content
6. जिज्ञासा प्रवृत्ति को संतुष्टि
Satisfaction of Curiosity
7. सामूहिक प्रवृत्ति की तुष्टि
Satisfaction of Gregariousness
8. रचनात्मक कार्यों की व्यवस्था
(Arrangement of Constructive Work)
9. संचय प्रवृत्ति का प्रोत्साहन
Promotion of Acquisitiveness
10. सामाजिक गुण का विकास
Development of Social Qualities
11. नैतिक शिक्षा
Moral Education
12. मानसिक विकास पर बल
Emphasis on Mental Development
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(1) शारीरिक विकास पर ध्यान
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिस्क का विकास होता है | इसलिए मानसिक विकास के लिए बालक के शारीरिक विकास पर उचित ध्यान देना आवश्यक है |बच्चो के उचित विकास के लिए विद्यालय में खेलकूद, व्यायाम आदि में भाग लेने के लिए व्यवस्था होनी चाहिए |
2. बाल मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षा
(Education based on Child Psychology)
बालक-बालिकाऐं कठोर अनुशासन पसंद नहीं करते हैं। शारारिक दंड बल का प्रयोग, डाँट-डपट आदि से वे घणा करते हैं। अतः बालकों के लिए प्रेम व सहानुभूति आधारित शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए।
3. खेल तथा क्रिया द्वारा शिक्षा
Education through Play and Activity
खेल तथा क्रियाशीलता बालकों की सहज तथा स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ है। आधुनिक शिक्षा मनोवैज्ञानिक बालकों की शिक्षा में खेल तथा क्रियाशीलता को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करते हैं। खेल तथा क्रिया द्वारा बालक सरलता, सहजता, उत्साह तथा प्रसन्नता से नवीनं बातों को सीख लेते हैं। अतः बालकों की शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए कि वालक स्वाभाविक क्रियाशीलता तथा खेल द्वारा नवीन ज्ञान का अर्जन कर सके।
4. भाषा विकास पर बल
Emphasis on Language Development
बाल्यावस्था में भाषा विकास पर ध्यान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है। वालकों के भाषा ज्ञान की वृद्धि के लिए उन्हें वार्तालाप करने, कहानियाँ सुनाने, पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेने, भाषण देने, कविता पाठ करने जैसी क्रियाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
5. रोचक पाठ्यसामग्री
Interesting Content
बालकों की पाठ्यसामग्री उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप तथा रोचक होनी चाहिए। बाल्यावस्था में बालकों की रुचि में विभिन्नता तथा परिवर्तनशीलता पर रूप से परिलक्षित होती है। इसलिए शिक्षा की पाठ्यसामग्री में रोचकता तथा विभिन्नता का पुट होना ही चाहिए।
6. जिज्ञासा प्रवृत्ति को संतुष्टि
Satisfaction of Curiosity
शिक्षा के द्वारा बालकों की प्रबल जिज्ञासा प्रवृत्ति को संतुष्ट करने तथा: प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। माता-पिता तथा अध्यापकों बालकों के प्रश्नों का समुचित उत्तर देकर उसे नई-नई लाभप्रद बातें सिखाना चाहिए।
7. सामूहिक प्रवृत्ति की तुष्टि
Satisfaction of Gregariousness
बालकों की सामूहिक प्रवृत्ति की तुष्टि के लिए विद्यालयों में सामूहिक कार्य खलकूद की व्यवस्था की जानी चाहिए। बाल सभा, स्काऊट-गाइड, पर्यटन नाम सरस्वती यात्राऐं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि के द्वारा बालक-बालिकाओं की सामाजिक प्रवृत्ति की संतुष्टि की जा सकती है।
8. रचनात्मक कार्यों की व्यवस्था
(Arrangement of Constructive Work)
घर तथा विद्यालय में बालक बालिकाओं के लिए विभिन्न प्रकार के रचनात्मक कार्यों की व्यवस्था की जाती है। मिट्टी, लकड़ी, कागज, दफ्ती आदि के द्वारा तरह-तरह की वस्तुएं बनवाकर बालक-बालिकाओं की रचनात्मक प्रवृत्ति का विकास किया जा सकता है।
9. संचय प्रवृत्ति का प्रोत्साहन
Promotion of Acquisitiveness
बालक की संचयी प्रवृत्ति को शैक्षिक दृष्टि से अभिमुख बनाया जा सकता है। माता-पिता तथा अध्यापक शिक्षाप्रद वस्तुओं को एकत्रित करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। डाक टिकट, माचिस, सिक्के, चित्र, प्राकृतिक वस्तुएं आदि को एकत्रित कराकर उन्हें शैक्षिक दृष्टि से सार्थक रूप में व्यवस्थित किया जा सकता है।
10. सामाजिक गुण का विकास
Development of Social Qualities
बाल्यावस्था में बालक का समाजीकरण होता है । बालक घर से निकल कर स्कूल में जाता है जहाँ वह अन्य छात्रों तथा अध्यापकों से सामाजिक अन्तक्रिया करता है । अतः विद्यालय में ऐसी क्रियाओं का आयोजन किया जाना चाहिए जो बालक के सामाजिक विकास की गति को तेज कर सके । कक्षा, विद्यालय तथा खेल के मैदान में इस प्रकार का वातावरण होना चाहिए कि छात्रों में अनुशासन, आत्मसंयम, उत्तरदायित्व, आज्ञापालन, सहयोग, सहानुभूति आदि सामाजिक गुणों का अधिकतम विकास हो सके।
11. नैतिक शिक्षा
Moral Education
बाल्यावस्था के दौरान बालकों में नैतिक मूल्यों का विकास होने लगता है। वह समाज की नैतिक मान्यताओं तथा नियमों में विश्वास करने लगता है। अतः बालकों में नैतिक मल्यों के उचित निर्माण तथा सामाजिक मान्यताओं व नियमों में विश्वास बढ़ाने के लिए उन्हें विद्यालय में नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए । बालकों को आनन्द देने वाली, सरल, धार्मिक तथा नैतिक कहानियों के द्वारा उन्हें नैतिक शिक्षा दी जा सकती है |
12. मानसिक विकास पर बल
Emphasis on Mental Development
मानसिक विकास के लिए उपयुक्त वातावरण आवश्यक है । अतः बाल्यावस्था में मानसिक विकास के लिए बालकों को यथासम्भव उचित वातावरण प्रदान करना चाहिए। घर तथा विद्यालय में उन्हें ऐसा बौद्धिक वातावरण मिलना चाहिए जिससे उनकी विभिन्न मानसिक योग्यताएं जैसे प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, कल्पना, चिन्तन, तर्क इत्यादि का अधिकतम विकास हो सके।
बालक की शिक्षा का उत्तरदायित्व माता-पिता, अध्यापक तथा समाज पर होता है। बाल्यावस्था में यदि उपरोक्त बिन्दुओं के अनुरूप शिक्षा प्रदान की जायेगी तो बालकों का सर्वागीण विकास हो सकेगा।
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