शिक्षा
मनोविज्ञान की विधियाँ
Methods of Educational
Psychology
Introspection Method Notes
शिक्षा मनोविज्ञान वास्तव में मनोविज्ञान की एक प्रयुक्त शाखा है जो मनोविज्ञान कसिद्धान्तो का प्रयोग शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए करता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में छात्रों के व्यवहार को समझने, नियंत्रित करने, अनुमान लगाने तथा उसमें परिमार्जन करने से सम्बन्धित मनोवैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध कराता है। मानव व्यवहार का अध्ययन करने के लिए शिक्षा मनोविज्ञान विभिन्न विधियों का प्रयोग करता है जिससे वह छात्रों के व्यवहार से सम्बंधित आवश्यक सूचनाएं संकलित कर सके । क्योंकि शिक्षा मनोविज्ञान सामान्य मनोविज्ञान की ही एक शाखा है इसलिए शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ सामान्य मनोविज्ञान की विधियों से भिन्न नहीं हो सकती हैं। वास्तव में शिक्षा मनोविज्ञान सामान्य मनोविज्ञान के द्वारा व्यवहार के अध्ययन में प्रयुक्त की जाने वाली विभिन्न विधियों का प्रयोग ही करता है।
सामान्य जीवन में व्यक्ति अपने स्वयं के तथा अन्य व्यक्ति के व्यवहार को समझने का प्रयास करता ही रहता है । जैसे, व्यक्ति सोचता है कि मुझे अमुक व्यक्ति पर क्रोध क्यों आया? अथवा रमेश अमुक वस्तु को देखकर भयभीत क्यों हो गया? इस प्रकार के प्रश्नों पर विचार करने से व्यवहार के कारणों का ज्ञान हो सकता है। इसी प्रकार अन्य व्यक्ति के व्यवहार के अवलोकन से व्यक्तियों के द्वारा किए जाने वाले व्यवहार की समझ हो जाती है। कभी-कभी व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की प्रकृति को परीक्षण के द्वारा जानना चाहता है । जैसे, यदि कोई बालक सिनेमा देखने के सम्बंध में अपने पिता के दृष्टिकोण को जानना चाहता है तब वह उनसे सिनेमा जाने की अनुमति माँगता है। यदि इस प्रश्न पर उसके पिता नाराज होते हैं तब वह समझ जाता है कि उन्हें सिनेमा दिखलाना पसंद नहीं है । सामान्य जीवन में व्यवहार को समझने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली इन दोनों व्यापक विधियों- अवलोकन तथा परीक्षण को ही मनोवैज्ञानिकगण व्यवहार के अध्ययन के लिए प्रयुक्त करते हैं । अंतर मात्र इतना होता है कि मनोवैज्ञानिक इन विधियों का प्रयोग परिष्कृत ढंग से (Refined Manner) करते हैं, जबकि सामान्य जीवन में व्यक्ति इनको अपरिष्कृत ढंग (Crude Manner) से करते हैं । अवलोकन तथा परीक्षण दोनों विधियों की सहायता से ही मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है।
मनोविज्ञान वास्तव में वैज्ञानिक ढंग से व्यवहार का अध्ययन करता है। वैज्ञानिक विधियों की मुख्य विशेषताएं क्रमबद्धता (Systematicness), यथार्थता (Accuracy); वस्तुनिष्ठता (Objectivity), परीक्षणयोग्यता (Verifiability) तथा सार्वभौमिकता (Universality) होती हैं। मनोवैज्ञानिकगण व्यवहार का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक विधियों के विविध सोपानों का अनुसरण करते हैं । वैज्ञानिक विधियाँ प्रदत्तों के संकलन, विश्लेषण तथा व्याख्या के आधार पर निष्कर्षों को प्रतिपादित करती हैं। वैज्ञानिक विधि से प्राप्त परिणाम विश्वसनीय, वस्तुनिष्ठ, वैध तथा निष्पक्ष होते हैं। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है, उनमें से कुछ प्रमुख विधियाँ निम्नवत् हैं|
(******** 1) अन्तर्दर्शन विधि
(Introspection
Method)
(II) बहिर्दर्शन विधि (Extrospection Method)
(III) प्रयोगात्मक विधि (Experimental Method)
(IV) जीवन इतिहास विधि (Case-History Method)
(V) faralarcha fafar (Developmental Method)
(VI) THATCH farfer (Comparative method)
(VII) मनोविश्लेषणात्मक विधि (Psycho-Analytical Method)
(VIII) निदानात्मक विधि (Diagnostic Method)
(IX) Affetta fafer (Statistical Method)
उपरोक्त विधियों
में से अन्तर्दर्शन विधि तथा बहिर्दर्शन विधि निरीक्षण विधियों (Methods of
Observation) के अन्तर्गत आती हैं,
जबकि जीवन इतिहास विधि, विकासात्मक विधि, तुलनात्मक विधि, मनोविश्लेषणात्मक
विधि, निदानात्मक विधि तथा
सांख्यिकीय विधि को विवरणात्मक विधियों (Methods of Exposition) के अंतर्गत रखी जा सकती हैं। आगे मनोविज्ञान की
इन विधियों का संक्षिप्त वर्णन किया जा रहा है।
अन्तर्दर्शन विधि
Introspection Method
यह मनोविज्ञान की संभवतः सर्वाधिक प्राचीन विधि है इस विधि का प्रयोग प्राचीन काल में बहतायत से किया जाता था। अवैज्ञानिक विधि होने के कारण वर्तमान समय में इसका प्रयोग बहत सीमित हो गया है । अन्तर्दर्शन से तात्पर्य अपने अंदर देखना अथवा आत्मनिरीक्षण से है । अन्तर्दर्शन में व्यक्ति अपने स्वयं के व्यवहार को देखता है इसलिए इसे स्वअवलोकन अथवा आत्मनिरीक्षण विधि (Self-observation Method) भी कहा जाता है। प्राचीन काल के मनोवैज्ञानिक मानसिक क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इस विधि का प्रयोग करते थे। वे अपने अनुभवों के समय अर्थात् सुख-दुख, क्रोध-शान्ति, घृणा-प्रेम आदि स्थितियों में अपनी मानसिक दशाओं तथा भावनाओं का स्वनिरीक्षण करके उसका वर्णन करते थे तथा जिसके विश्लेषण के द्वारा वे मनोवैज्ञानिक नियमों तथा सिद्धान्तों को प्रतिपादित करते थे । उदाहरणार्थ, यदि कोई व्यक्ति क्रोध में है तथा वह अपने क्रोध की अवस्था के कारणों को स्वयं ज्ञात करे तथा इसके आधार पर क्रोध से सम्बन्धित मानसिक प्रक्रिया के नियम, सिद्धान्त अथवा दशाओं का निरूपण करे तो इसे अन्तर्दर्शन कहा जायेगा।
अन्तर्दर्शन की
विशेषताएं
(Characteristics of Introspection)
अन्तर्दर्शन विधि
वस्तुतः आत्मनिरीक्षण की विधि है। आत्मनिरीक्षण की निम्नांकित विशेषताएं
अन्तर्दर्शन की विशेषताएं भी हैं
(i) व्यक्ति को अपने व्यवहार के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष (Direct), तत्काल __(Immediate) तथा वास्तविक (Real) ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
(ii) व्यक्ति वास्तव में अपने व्यवहार का अवलोकन करता है। अन्य व्यक्ति कभी-कभी व्यवहार का वास्तविक अवलोकन नहीं कर सकते है।
(iii) किसी विशिष्ट उपकरण की आवश्यकता न होने के कारण यह विधि अत्यंत सरल तथा सदैव सुलभ विधि है।
अन्तर्दर्शन विधि की सीमाएं (Limitations of Introspection)
अन्तर्दर्शन विधि में वैज्ञानिकता का अभाव
होने के कारण यह विधि अधिक मान्य स्वीकार नहीं की जाती है।
इस विधि की मुख्य सीमाएं निम्नवत् हैं
(i) अन्तर्दर्शन विधि में व्यक्ति अपने स्वयं के व्यवहार का अवलोकन करता है। किसी मानसिक प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति के द्वारा अपने व्यवहार का अवलोकन करना यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है।
(ii) अन्तर्दर्शन विधि से प्राप्त होने वाली सूचनाएँ अत्यधिक विषयनिष्ठ (Subjective) होती हैं।
(iii) शिशुओं, बालकों तथा असामान्य व्यक्तियों के द्वारा अन्तर्दर्शन विधि का प्रयोग सम्भव नहीं हो सकता है।
(iv) अचेतनावस्था (unconciousness) में किए जाने वाले व्यवहार का
अध्ययन इस विधि के द्वारा नहीं किया जा सकता है।
(v) बदलते मनोवैज्ञानिक अनुभवों में अन्तर्दर्शन करना कठिन होता है।
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