विशिष्ट बालकों से अभिप्राय (Meaning of the term Exceptional Children)
विशिष्ट बालक उन बालको को कहा जाता है जो अपनी योग्यताओं, क्षमताओं, व्यवहार तथा व्यक्तित्व संबंधी विशेषताओं की दृष्टि से अपना आयु के अन्य औसत अथवा सामान्य बालकों से बहुत अधिक भिन्न होते हैं। ये बालक अपनी कक्षा या समूह विशेष के अन्य बालको की तुलना में अपनी कुछ निजी विशेषता या विशिष्टता रखते हैं जिसके कारण इस समूह विशेष में या तो उनकी गिनती अति उच्चकोटि के बालकों में होती है और या फिर उन्हें निम्नकोटि में रखा जाता है। इस प्रकार से ये बच्चे अपनी आयु तथा समूह के अन्य सामान्य बच्चों से शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास की दृष्टि से इतने पिछड़े हुए अथवा आगे निकले हुए होते हैं कि उन्हें जीवन में पग-पग पर बाधाओं तथा समायोजन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन बालकों को अपनी शक्तियों का समुचित उपयोग करने तथा ठीक ढंग से अपने आपको समायोजित करने के लिए विशेष देखभाल और शिक्षा-दीक्षा की आवश्यकता होती है।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) ने 'विशिष्ट' (Exceptional) शब्द को स्पष्ट करते हुए लिखा है :
"विशेष प्रकार या 'विशिष्ट' शब्द किसी एक ऐसे गुण या उस गुण को धारण करने वाले व्यक्ति के लिए उस समय प्रयोग में लाया जाता है जबकि व्यक्ति उस गुण विशेष को धारण करते हुए अन्य सामान्य व्यक्तियों से इतना आधिक असामान्य प्रतीत हो कि वह उस गुण विशेष के कारण अपने साथियों से विशिष्ट ध्यान की मांग करे अथवा उसे प्राप्त करे और साथ ही इससे उसके व्यवहार की क्रियाएं तथा अनुक्रियाएं भी प्रभावित हो।"
टैलफोर्ड और सारे (Telford and Sawrey) ने भी कुछ इस प्रकार के विचार विशिष्ट बालकों के बारे में ब्यक्त
किये है। उनकी दी हुई परिभाषा कुछ इस प्रकार से है
"विशिष्ट बालक शब्दावली का प्रयोग उन बालकों के लिये करते हैं जो सामान्य बालकों से शारीरिक, मानसिक सवेगात्मक या सामाजिक विशेषताओं में इतने अधिक भिन्न होते हैं कि उन्हें अपनी क्षमता के अधिकतम विकास विशेष सामाजिक और शैक्षिक सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है।" .
विशिष्ट बालको के संबंध में दी गई उपरोक्त दोनों परिभाषाएँ विशिष्ट बालकों की प्रकृति और विशेषताओं के बारे में निम्न बातें बतलाती हैं
1. विशिष्ट बालक सामान्य या औसत बालकों से निश्चित रूप से काफी अधिक अलग और भिन्न होते हैं।
2. सामान्य या औसत बालकों से विशिष्ट बालकों की यह भिन्नता या विशेष दूरी विकास की दोनों दिशाओं धनात्मक (Positive) और ऋणात्मक (Negative) में से किसी भी एक में हो सकती है। उदाहरण के लिये वे बुद्धि की दृष्टि से जहाँ जरूरत से अधिक धनी (प्रतिभाशाली) हो सकते हैं वहीं बुद्धि की बहुत कमी भी उन्हें मानसिक रूप से पिछड़े बालकों के रूप में विशिष्ट बालकों का दर्जा दिला सकती है।
3. सामान्य या औसत बालकों से विशिष्ट बालकों की यह भिन्नता या विशेष दूरी इस सीमा तक बढ़ी हुई होती है कि इसकी वजह से उन्हें अपने और अपने वातावरण से समायोजित होने में विशेष समस्याओं का सामना करना पड़ता है और अपनी विशेष योग्यताओं और क्षमताओं के विकास, उचित समायोजन तथा आवश्यक वृद्धि एवं विकास हेतु विशेष देख-रेख एवं शिक्षा-दीक्षा की आवश्यकता पड़ती है।
लेखक --
सिकन्दर कुमार (गिरिडीह)