बालकों के पिछड़ेपन के कारण
(Causes of Backwardness among Children)
बालकों के पिछड़ेपन के कई कारणों को शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने उजागर किया है जिनमे निम्नांकित प्रमुख हैं-
बर्ट (Burt, 1937 ) द्वारा किये गये अध्ययन से यह स्पस्ट हो गया है कि बालकों के पिछडेपन का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण उम्र के अनुसार बौद्धिक क्षमता का कम या बिल्कुल ही न होना होता है। बौद्धिक क्ष सामान्य या औसत बद्धि के बालकों के लिए बनाए गए पाठ्यक्रम (curriculum) का समझ नही पाते हैं और परिणामस्वरूप पिछड जाते हैं। बर्ट ने अपने अध्ययन में पाया कि पिछ का 95% बालक ऐसे थे जिनकी बद्धि औसत बद्धि से कम थी। अतः. स्पष्ट हो जाता है कि बालको के पिछड़ेपन में बौद्धिक क्षमता की कमी एक प्रधान कारक है।
(2) वातावरण का प्रभाव (Effect of environment)-
छात्रों के पिछड़ेपन में वातावरण का भी काफी प्रभाव पड़ता है। बर्ट के अध्ययन के अनुसार यदि बालक का घरेलू वातावरण तथा स्कूली वातावरण शिक्षा की दृष्टि से उत्साहवर्द्धक नहीं होता है, तो इससे बालकों की शैक्षिक आय (educational age) वास्तविक आयु के अनुकूल नहीं बढ़ पाती है और बालक शैक्षिक रूप से पिछड़ जाते हैं। अकसर देखा गया है कि गरीब माता-पिता बालकों की जरूरत के अनुसार कॉपी, कागज, पेंसिल, कलम, किताब तथा अन्य शिक्षण सामग्री नहीं खरीद पाते। फलस्वरूप, उनकी शैक्षिक अभिरुचि (educational interest) घटने लगती है और इस तरह वे कक्षा में पिछड़ने लगते हैं। इतना ही नहीं, कभी-कभी ऐसे परिवार के बालकों को कम उम्र में रोजी-रोटी कमाने के लिए निकल जाना पड़ता है, इससे भी इनकी शैक्षिक उपलब्धि प्रभावित हो जाती है। बर्ट के अध्ययन के अनुसार करीब 12% बालक अपने घरेलू वातावरण के कारण ही पिछड़ जाते हैं। इन्होंने अपने अध्ययन में यह भी पाया है कि कुछ स्कूल ऐसे भी होते हैं जहाँ सही अर्थ में अध्ययन करने का कोई शैक्षिक माहौल नहीं होता। यहाँ के शिक्षक छात्रों से दुर्व्यवहार करते हैं तथा पढाने की जगह वे अपनी व्यक्तिगत सेवा पर उन्हें लगाए रखते हैं। ऐसे स्कूली वातावरण के कारण भी बालक शैक्षिक रूप से पिछड़ जाते हैं। बर्ट के अध्ययन के अनुसार करीब 8% बालक स्कुल के अनपयुक्त माहौल के कारण पिछड़ जाते हैं।
(3) शारीरिक दोष (Physical defects)-
शारीरिक दोष के कारण भी बालक शैक्षिक रूप से पिछड़ जाते हैं। अंधे, बहरे, गूंगे बालकों में पिछड़ेपन का मूल कारण उनकी शारीरिक विकलांगता ही होती है। अपने शारीरिक दोष के कारण ऐसे बालकों की अभिरुचि शिक्षा में कम होने लगती है। बर्ट के अध्ययन के अनुसार करीब 9% बालकों के पिछड़ेपन का कारण यही शारीरिक दोष है।
(4) स्वभाव-संबंधी दोष (Temperamental defects)-
बर्ट ने अपने अध्ययन में पाया कि कछ बालक स्वभाव-संबंधी दोष के कारण अपने साथियों से पिछड़ जाते हैं। ऐसे बालक प्रायः उनुकामजाजी, आक्रामक (aggressive) एवं संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं। ऐसे गुणों के कारण उनका समायोजन कक्षा में न तो शिक्षक के साथ और न ही अपने साथियों के साथ हो पाता है| जिसका परिणाम यह होता है कि वे कक्षा में पिछड़ जाते हैं। बर्ट ने अपने अध्ययन में पाया कि करीब 9% पिछड़े बालकों का कारण उनका स्वभाव संबंधी दोष था।
(5) कर्त्तव्यत्यागिता (Truancy)-
कुछ बालक ऐसे होते हैं जो कक्षा में ठीक ढंग से शिक्षक के व्याख्यान पर ध्यान नहीं देते और मौका मिलते ही कक्षा से भाग खड़े होते हैं। जब कक्षा में वे नियमित रूप से बैठते ही नहीं हैं, तो उन्हें पाठ्यक्रम (curriculum) ठीक ढंग से नहीं समझ में आता है और इससे उनकी शैक्षिक अभिरुचि उत्तरोत्तर घटती जाती है और कक्षा में वे पिछडते चले जाते हैं। बर्ट के अध्ययन के अनुसार करीब 10% बालक ऐसे होते हैं जिनके पिछड़ेपन का कारण स्कूल की कक्षा से अनुपस्थित होना बताया गया है।
इस तरह हम देखते हैं कि बालकों के पिछड़ेपन (backwardness) के कई कारण हैं जिनकी ओर शिक्षा मनोवैज्ञानिकों का ध्यान गया है।
Best
ReplyDeletePaper 5 ka notes bhejiye
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