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भाषा -विकास की अवस्थाएं | BHASHA VIKAS KI AVSTHAYE | Stage of Speech Development

Paper-4 (language across the curriculum)


भाषा -विकास की अवस्थाएं
Stage of Speech Development 


बालकों में भाषा -विकास की कई अवस्थाएं हैं, जो इस प्रकार है-

1.  बोलने की तैयारी-

(a) क्रंदन (crying):-
(b) बबलाना (Babbling)
(c) हाव -भाव (Gestures) 

2. वास्तविक भाषा की अभिव्यक्तिया 

(a) आकलन शक्ति (comprehensive power)
(b) उच्चारण (pronunciation) 
(c) शब्द -भंडार (Vocabulary) 


 1.  बोलने की तैयारी-

(a) क्रंदन (crying):-

                             शिशु के जन्म से ही क्रंदन प्रारंभ हो जाता है, जो उसकी भाषा का प्रारंभिक रूप है ! यदि बालक सामान्य रूप से रोता है तो रोने से उसकी आवश्यकता की पूर्ति होती है | साथ ही उसकी मांसपेशियों का अभ्यास भी हो जाता है | इस अभ्यास से उसकी मांसपेशियों की बृद्धि  होती है और मांसपेशियों का समन्वय(co-ordination) बढ़ता है | रोने से उनको अच्छी नींद आती है एवं उनकी भूख बढ़ती है |

               रोने से बच्चो का  संवेगात्मक का तनाव भी दूर होता है, परंतु आवश्यकता से अधिक रोना बालक के लिए शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों रूप से हानिकारक होता है !

(b) बबलाना (Babbling)  :-

                                      आयु बढ़ने के साथ-साथ बच्चों का क्रंदन कुछ समय बबलाने में परिवर्तित हो जाता है | पहले महीने के अंत से ही बच्चा  कुछ सरल धवनिया  निकालने या बोलने  लगता है , छीकते समय, जम्हाई लेते समय, खांसते समय, बालक कुछ जटिल ध्वनिया बोलता है ! यह ध्वनिया कुईंग (cooiun) कहलाती है |

         बाबलाना बालकों में लगभग 2 माह की आयु से प्रारंभ होकर 13 माह की अवस्था तक चलता है ! बबलाने से बालकों के स्वर- यंत्र की परिपक्वता को बल मिलता है ! बालक आयु बढ़ने के साथ अधिक -से -अधिक ध्वनिया  बोलने लगता है ! बबलाने में बच्चा स्वरों को  पहले और व्यंजनों को उनके साथ मिलाकर दुहराता है ! 

(c) हाव -भाव (Gestures) :- 

                                          बालको द्वारा हाव-भाव का प्रदर्शन भाषा के पूरक के रूप में किया जाता है ! बच्चों के हाव- भाव की उत्पत्ति  बबलाने के साथ- साथ ही हो जाती है ! बच्चा अपने हाव-भाव का प्रदर्शन, मुस्कुराकर, हाथ फैलाकर, अंगुली दिखाकर, मुक  भाषा में करता है ! अतः बच्चों के लिए हाव-भाव विचारों की अभिव्यक्ति का एक सुगम साधन है, जो शब्दों के स्थान पर प्रयुक्त किया जाता है !

2. वास्तविक भाषा की अभिव्यक्तिया 

 (a) आकलन शक्ति (comprehensive power) :-

                                                                         बालकों की वह क्षमता जिसके द्वारा वह दूसरी की क्रियाओं तथा हाव-भाव का अनुकरण कर लेता है, ' आकलन शक्ति ' कहलाती है ! हरलॉक के अनुसार, बालक में आकलन शक्ति का विकास शब्दों के प्रयोग से पहले हो चुका होता है ! प्राय: यह देखा गया है कि बालक उन वाक्यों को जल्दी सीखता है, जिनमें शब्दों के साथ-साथ कुछ हाव-भाव भी जुड़े होते हैं |

(b) उच्चारण (pronunciation) :-

                                                लगभग 1 वर्ष के बालकों में शब्दों के अनुसार उच्चारण की तत्परता (Readiness) एवं योग्यता आ जाती है ! इस समय वह अनेक ऐसी सरल ध्वनियों का उच्चारित कर सकता है जिनका उच्चारण उसने पहले कभी नहीं किया था !  यह वह अनुकरण द्वारा सीखता है !

 (c) शब्द -भंडार (Vocabulary) :-

                                                    बालक के शब्द -भंडार में वृद्धि उसके आयु में वृद्धि के साथ-साथ होती है |

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